सल्तनत काल न्याय प्रशासन (Sultanate Justice administration)-मुस्लिम कानून के चार स्रोत कुरान, हदीस, इजमा एवं कयास थे. इनके नियमों के आधार पर न्यास किया जाता था.
कुरान
- यह मुसिल्म कानून का प्रमुख स्रोत था.
- इसके नियमों की सहायता से प्रशासकीय समस्याओं का समाधान किया जाता था.
हदीस
- इस ग्रन्थ में पैगम्बर के कार्यों और कथनों का उल्लेख किया गया है.
- जव ‘कुरान’ के नियमों के माध्यम से किसी समस्या का समाधान नहीं होता था तो ‘हदीस’ का सहारा लिया जाता था.
इजमा
- मुस्लिम कानूनों की व्यवस्था करने वाले विधिशास्त्रियों को ‘मुजतहिद’ कहा जाता था.
- अतः मुजतहिद द्वारा व्याख्यायित कानून को अल्ला की इच्छा माना जाता था.
- इसे ‘इजमा’ कहा जाता था.
कयास
- तर्क के आधार पर विश्लेषित कानून को ‘कयास’ कहा जाता था.
न्याय विभाग दिल्ली के सुल्तानों का एक असंगठित विभाग था.
सुल्तान, सद्र-उस-सुदूर, काजी-उल्-कजात आदि न्याय से सम्वन्धित सर्वोच्च अधिकारी थे.
सुल्तान दीवान-ए-कजा तथा दीवान-ए-मजालिम के द्वारा भी न्याय का काम पूरा करता था.
इस दिशा में मुहम्मद तुगलक ने एक नया विभाग दीवान-ए-रियासत’ कायम किया.
‘दीवान-ए-मजालिम’ का अध्यक्ष’ अमीरे-दाद होता था.
दीवान-ए-मुमालिक सुल्तान को कानूनी परामर्श देता था.
प्रान्ताध्यक्षों की सहायता काजी या ‘साहिब-ए-दीवान’ करते थे.
सल्तनत काल में मुख्यतः चार प्रकार के कानून थे —
- सामान्य कानून – व्यापार आदि से सम्बन्धित कानून थे, जो मुस्लिम तथा गैर मुस्लिम दोनों पर लागू होते थे. सामान्यतः यह कानून केवल मुसलमानों पर ही लागू थे.
- देश का कानून – सुल्तानों के अधीन या शासित देश में प्रचलित स्थानीय कानून .
- फौजदारी कानून – यह कानून मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों पर समान रूप से लागू होता था.
- गैर-मुस्लिमों के कानून – हिन्दू या गैर-मुस्लिमों के सामाजिक या धार्मिक मामलों में सल्तनत का नाम मात्र ही हस्तक्षेप होता था. ये मामले प्रायः पंचायतों में विद्वान पण्डित एवं ब्राह्मण लोगों द्वारा सुलझाए जाते थे.
दण्ड-विधान
- सल्तनत काल में दण्ड-विधान कठोर था.
- अपराधानुसार अंग-भंग, मुत्यु दण्ड तथा सम्पत्ति जब्त कर लेना आदि दण्ड दिए जाते थे.
प्रान्तीय न्यायालय (सल्तनत काल न्याय प्रशासन)
प्रान्तों में चार प्रकार के न्यायालय अस्तित्व में थे (सल्तनत काल न्याय प्रशासन Sultanate Justice administration)
1. गवर्नर का न्यायालय
- यह प्रान्त का सर्वोच्च न्यायालय होता था जिसे ‘वली’ कहते थे.
- वली या गवर्नर मुकद्दमों के सम्बन्ध में काजी-ए-सूबा की सहायता लेता था
- उसके निर्णय के विरुद्ध केन्द्रीय न्यायालय में अपील की जा सकती थी.
2. काजी-ए-सूबा का न्यायालय
- यह मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर सुल्तान द्वारा नियुक्त किया जाता था तथा दीवानी और फौजदारी दोनों प्रकार के मुकद्दमों का फैसला करता था.
- प्रान्त के अन्य काजियों तथा परगनों में काजियों की नियुक्ति हेतु व्यक्तियों की सिफारिश भी ‘काजी-ए-सूबा’ ही करता था .
3. दीवान-ए-सूबा का न्यायालय
- यह केवल भूमि-राजस्व सम्बन्धी मामलों पर ही फैसला देता था.
4. सद्रे-सूबा का न्यायालय
- दीवाने-सूबा की तरह इस न्यायालय का अधिकार क्षेत्र भी बहुत सीमित था.
- प्रान्त में यथा-मुफ्ती, गुहतसिब व दादबक आदि न्याय सम्बन्धी पदाधिकारी होते थे.
- काजी, फौजदार, आमिल, कोतवाल, ग्राम-पंचायतें आदि प्रान्तों के न्यायिक उप-विभागों में शामिल थे.
सल्तनत काल न्याय प्रशासन (Sultanate Justice administration)
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