पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth)–पृथ्वी सौरमण्डल के ग्रहों में से एक प्रमुख और अनोखा ग्रह है क्योंकि केवल इसी पर विविध प्रकार के पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के विकास और जीवन के लिए उपयुक्त परिस्थितियां पाई जाती हैं.
- सौरमण्डल के सारे ग्रह अपनी धुरी पर अपने चारों ओर सूर्य का चक्कर लगाते हैं.
- लेकिन इनमें सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी पर बहुत ज्यादा होता है.
- इस प्रभाव से पृथ्वी पर दिन-रात का जन्म होना और छोटे-बड़े होना निर्भ करता है.
- ऋतु और जलवायु परिवर्तन भी पृथ्वी के परिभ्रमण पर निर्भर करता है.
पृथ्वी की गतियाँ (Movements of the Earth)
पृथ्वी अपनी धुरी पर और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है जिससे पृथ्वी पर बहुत सारे परिवर्तन होते हैं. इस गति को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जाता है-
- दैनिक गति (Rotation)
- वार्षिक गति (Revolution)
दैनिक गति (Rotation)
- पृथ्वी अपनी कल्पित धुरी (Imaginary axis) या अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर गोल लट्टू की तरह घूमती है.
- अक्ष वह कल्पित रेखा है जो पृथ्वी के केन्द्र से होकर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती है और यह अक्ष अपने कक्ष तल (Plane of Orbit) के साथ 66 ½ डिग्री का कोण बनाती है.
- इसे पृथ्वी की घूर्णन या आवर्तन अथवा दैनिक गति के नाम से भी जाना जाता है.
- इस गति की वजह से ही पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं.
- जब कभी भी पृथ्वी मध्याह्न रेखा के ऊपर उत्तरोत्तर दो बार गुजर लेती है तो बीच की अवधि नक्षत्र दिवस (Sidereal day) कहलाती है
- जिसकी लम्बाई 23 घंटे 56 मिनीट और 4 सैकेण्ड के बराबर होती है.
- इसके विपरीत जब एक ही निश्चित मध्याह्न रेखा के ऊपर सूर्य उतरोत्तर दो बार गुजरता है तो गुजरने के बीच लगने वाला समय सौर दिवस (Solar day) कहलाता है
- जिसकी औसत लम्बाई 24 घन्टे होती है.
- इस 24 घंटे के समय को एक दिन कहते हैं
- पृथ्वी का वह भाग जो सूर्य के सामने आता है उसे दिन कहते हैं और बाकी पीछे वाला भाग अन्धकार के कारण रात्रि कहलाता है.
- इस प्रकार दिन रात का उपक्रम होता है.
- यह दैनिक गति भूमध्य रेखा पर तीव्र और ध्रुवों पर मन्द होती है.
- इस प्रकार वह भाग जो पृथ्वी के पूर्व में स्थित है वहां पर पहले दिन होते हैं एवं पश्चिम में स्थित भाग पर बाद में दिन होते हैं.
- पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही हवाओं और समुद्री धाराओं की दिशा पर प्रभाव पड़ता है.
- पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति का होना और ज्वार-भाटे का आना भी इसी पर निर्भर करता है.
वार्षिक गति (Revolution)
- पृथ्वी अपनी धुरी (अक्ष) पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर अण्डाकार मार्ग पर जिसे भू-कक्षा (Earth orbit) कहते हैं, 365 दिन और 6 घंटे में पूरा चक्कर लगा लेती है.
- यह पृथ्वी की वार्षिक गति या परिक्रमण गति कहलाती है.
- वर्ष की अवधि और ऋतु परिवर्तन इसी गति के द्वारा सम्भव है.
- समय पूरा न होने के कारण प्रत्येक 4 साल बाद लींद के साल (Leap year) में फरवरी 29 दिन की होती
अक्षांश रेखायें (Latitudes)पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध
- ये रेखायें पृथ्वी के चारों ओर खींचे गये कल्पित वृत्त हैं जो भूमध्य रेखा के समान्तर रहते हैं.
- दूसरे शब्दों, में भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण में किसी भी स्थान की कोणिक दूरी को अक्षांश के नाम से जाना जाता है.
- पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 डिग्री अक्षांश से एक और झुकी हुई है.
- जिससे सूर्य उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में एक निश्चित सीमा तक ही चमकता है.
- इस सीमा को उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (Tropics of Cancer) 23½ डिग्री उत्तरी
- अक्षांश और दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (Tropics of Capricorn) 23½ डिग्री दक्षिणी अक्षांश कहते हैं.
- इन अक्षांशों के बाहर सूर्य कभी भी लम्बवत नहीं चमकता है.
- उत्तरायण (Aphelion) में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 15 करोड़ 12 लाख किमी. और दक्षिणायण (Perihelion) में 14 करोड़ 64 लाख किमी. होती है.
- वर्ष के 187 दिन उत्तरायण में और 178 दिन दक्षिणायण में होते हैं.
- पृथ्वी अपनी धुरी पर 667 डिग्री का कोण बनाती है, इसलिए दिन रात छोटे-बड़े होते हैं और ऋतु परिवर्तन होते हैं.
- 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में दिन .
- बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं. दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके विपरीत होता है.
- इस स्थिति को कर्क संक्रान्ति या ग्रीष्म अयनात (Summer Solstice) कहते हैं.
- 22 दिसम्बर को जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लम्बवत पड़ती हैं. तो दक्षिणी गोलार्द्ध मे दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं.
- अतः दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी की ऋतु और उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु की स्थिति को मकर संक्रान्ति (Winter Solstice) के नाम से जाना जाता है.
- इससे सम्बन्धित और भी तथ्य हैं जैसे-21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर सीधी पड़ती हैं.
- जिसके कारण प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है.
- इस स्थिति को विषुवत अथवा सम रात-दिन (Equinox) कहते हैं.
- भूमध्य रेखा 0° का अक्षांश वृत्त है.
- अक्षांश भूमध्य रेखा से हर स्थान पर समानान्तर रहकर ध्रुव तक अनेक वृत्तों का निर्माण करता है.
- अक्षांश रेखाएं 0° से 90° तक होती हैं.
- भूमध्य रेखा के उत्तर में 0° से 90° उत्तरी ध्रुव तक उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिण में 0° से 90° दक्षिणी ध्रुव कहलाता है.
- इस प्रकार 180° अक्षांश होते हैं.
- उत्तरी गोलार्द्ध में 23½° उत्तर में कर्क रेखा, 66½° उत्तर में उपध्रुव वृत (Arctic Circle) और 90° उत्तर में उत्तरी ध्रुव (North Pole) स्थित हैं.
- इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में 23½° दक्षिण में मकर रेखा (Tropic of Capricorn), 66½ ° दक्षिण में उपनुव वृत (Antarctic Circle) और 90° दक्षिणी में दक्षिण ध्रुव स्थित है.
- 1° अक्षांशों के चाप की दूरी लगभग 111 किमी० के बराबर होती है जो पृथ्वी की गोलाई के कारण भूमध्य रेखा से छुर्वी तक भिन्न है.
- भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने में रात दिन की अवधि में अन्तर आने लगता है.
- जो नीचे दिए गए हैं.
अक्षांश | दिन की अवधि |
0° | 12 घंटे |
17° | 13 घंटे |
49° | 16 घंटे |
66½° | 24 घंटे |
69½° | 2 महीने |
90° | 6 महीने |
देशान्तर (Longitude)पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध
- ये भी कल्पित रेखायें हैं जो पृथ्वी के चारों ओर भूमध्य रेखा को काटती हुई उतरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती हैं.
- पृथ्वी के पूर्ण वृत्त में 360 अंश होते हैं.
- इसलिए भूमध्य रेखा को 360 अंशों में बाँट दिया जाता है.
- इसके प्रत्येक अंश से गुजरने वाली रेखा को देशान्तर कहते हैं.
- 0° देशान्तर रेखा ब्रिटेन के ग्रीनविच नामक नगर से होकर गुजरती है जो पूरी पृथ्वी को पश्चिमी एवं पूर्वी दो गोलाद्ध में विभाजित करती है.
- देशान्तरों की कुल संख्या 360 होती है जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में 180 तक लायी जाती है.
- भूमध्य रेखा पर 1° देशान्तर की दूरी 111.32 किमी० के बराबर होती हैं जो दों की ओर कम होती जाती है और वों पर 8 किमी. हो जाती है.
- देशान्तर रेखाओं की पारस्परिक दूरी भूमध्य रेखा की ओर बढ़ती जाती है और ध्रुवों की ओर कम होती जाती है जहां पर वे एक साथ मिल जाती हैं.
- देशान्तर रेखाएं समय निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
- पृथ्वी को 360° घूमने में एक दिन या 24 घंटे का समय लग जाता है और 1° की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट लगते हैं.
- 24*60/360=4 मिनट
- पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और सूर्योदय पूर्व में पहले होता है.
- जिसके कारण पूर्व का समय आगे और पश्चिम का समय पीछे रहता है.
- जिसकी वजह से पृथ्वी के सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न अक्षाशों में समय अलग-अलग पाया जाता है.
- 15° देशान्तर पर 1 घन्टे का अन्तर पाया जाता है जो 75° देशान्तरों पर 5 घंटे और 180° देशान्तर पर 12 घंटे और 360° देशान्तर पर 24 घटें हो जाता हैं.
स्थानीय और प्रमाणिक समय (Local and Standard Times)
- प्रत्येक देशान्तर के पूर्व और पश्चिम में जाने पर 4 मिनट का अन्तर आता है.
- किसी स्थान विशेष का सूर्य की स्थिति से परिकलित समय स्थानीय समय कहलाता है.
- इस समय का आकलन उस समय किया जाता है जब सूर्य आकाश में सबसे उच्चतम स्थिति में पहुंच जाता है और भमि पर किसी वस्तु विशेष की छाया छोटी हो जाती है.
- इसके विपरीत किसी देश के बीच से गुजरने वाली याम्योत्तर (Meredian) से लिए गए समय को उस देश का प्रमाणिक समय (Standard Time) कहते हैं जो सम्पूर्ण देश के लिए मान्य होता है .
- अपने देश भारत का प्रमाणिक समय 82½° पूर्वी देशान्तर से लिया गया है जो इलाहाबाद से गुजरता है.
- इसी प्रकार प्रत्येक देश की अपनी एक प्रमाणिक देशान्तर रेखा है जिससे देश का प्रमाणिक समय लिया जाता है.
- लेकिन समस्या उस समय आती है जब देश का आकार बड़ा होता है खासकर पूर्व पश्चिम दिशा में.
- ये देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस को अलग-अलग समय कटिबंधों (Time Zones) में बाँटा गया है जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका को पांच और रूस को 11 समय कटिबंधों में बांटा गया है.
- इन्हीं समय कटिबंधों से इन देशों का प्रमाणिक समय निर्धारित होता है.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Lirne)
- यह देखा जाता है कि 15° देशान्तर पर एक घन्टे का अन्तर आता है जो बढ़कर 75° देशान्तर पर पांच घंटे हो जाता है और 180° देशान्तर पर 12 घंटे का अन्तर आ जाता है.
- यह अन्तर 360° देशान्तर पर 24 घंटे का हो जाता है.
- इस स्थिति को समाप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रो. डेविडसन ने अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा का निर्धारण किया जो पृथ्वी के स्थल खण्डों को छोड़ते हुये पृथ्वी पर 180° देशान्तर की समानता रखते हुए खींची गई है.
- परन्तु स्थल के लोगों में समय सम्बन्धी कोई गड़बड़ न हो इसलिए कुछ भागों में यह रेखा मुड़ जाती है और जल से होकर गुजरती है.
- जब कोई जहाज पूर्व से पश्चिम को आता हुआ इस रेखा को पार करता है तो वह एक दिन छोड़ देता है.
- यदि वह रविवार को इस रेखा को पार करता है तो अगला दिन सोमवार न होकर मंगलवार होगा.
- यदि जहाज ने 25 फरवरी को रेखा पार की है तो अगला दिन 26 फरवरी न होकर 27 फरवरी होगा.
- इसके विपरीत पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाला जहाज पुनः उस दिन को गिन लेता है.
- यदि उसने मंगलवार को इस रेखा को पार किया है तो वह अगला दिन भी मंगलवार मानेगा न कि बुधवार .
- यदि उसने इस रेखा को 25 फरवरी को पार किया है तो अगला दिन भी 25 फरवरी मानेगा.
पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth in Hindi)
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