सल्तनत कालीन आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास ( Economic and Cultural Development)
सल्तनत कालीन आर्थिक विकास (Sultanate period Economic Development)
दिल्ली सल्तनत कालीन आर्थिक दशा के बारे में हमें बहुत सीमित जानकारी प्राप्त होती है, क्योंकि तत्कालीन इतिहासकारों की विशेष रुचि राजनीतिक घटनाओं में अधिक थी.
फिर भी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि सल्तनत काल में भारत आर्थिक, दृष्टि से विकसित था.
- इस काल में कुछ हिन्दू जागीरदारों और राजाओं की आर्थिक दशा अच्छी थी और वे प्रायः भूमि सुधार में रुचि लेते थे.
- वस्त्र उद्योग इस काल में प्रमुख उद्योग था.
- देश में सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र बनाए जाते थे.
- रेशम का चीन से आयात किया जाता था.
- राजगीर, काश्तकार, मोची, लोहार, ठठेरे, सुनार आदि विभिन्न प्रकार के व्यवसाय प्रचलित थे.
इस काल में आन्तरिक तथा बाह्य दोनों व्यापार प्रगति पर थे. भड़ौच, खम्भात, मुल्तान, सोनारगाँव, लखनौती, दिल्ली आदि बन्दरगाह और नगर व्यापार के प्रमुख केन्द्र थे.
- भारत का विदेशी व्यापार मिश्र, अरब, पुर्तगाल, श्री लंका, बर्मा, चीन, जापान, पूर्वी द्वीप समूह, नेपाल, ईरान, मध्य एशिया आदि से होता था.
- बरनी के अनुसार मुल्तानी व्यापारी इतने समृद्ध होते थे कि सोना और चाँदी उन्हीं के घरों में मिलता था. कई बार बड़े-बड़े सामन्त भी उनसे उधार लेते थे.
सल्तनत कालीन सांस्कृतिक विकास (Sultanate period Cultural Development)
स्थापत्य कला
- सल्तनत काल में वास्तुकला के क्षेत्र में एक नए युग का आरम्भ हुआ.
- इस काल में कला के क्षेत्र में भारतीय और इस्लामी शैलियों से मिश्रित शैली का विकास हुआ.
- इस युग में निर्मित भवन विशाल होने के साथ-साथ सुन्दर भी थे.
- स्थापत्य कला की इस मिश्रित शैली को ‘इण्डो-इस्लामिक’ शैली कहा गया.
- इस काल की स्थापत्य कला की कुछ विशेष विशेषताएं थीं, जैसे-‘किला’, मकबरा, मस्जिद, महलों आदि में नुकीले मेहराबों-गुम्बदों तथा संकरी एवं ऊंची मीनारों का प्रयोग किया गया है.
- इमारतों की मजबूती के लिए पत्थर, कंकरीट एवं अच्छे किस्म के चूने का प्रयोग किया गया है.
- इमारतों की साज-सज्जा में जीवित वस्तुओं के चित्रों की अपेक्षा अनेक प्रकार के फूल-पत्तियों, ज्यामितीय एवं कुरान की आयतें खुदवायी जाती थीं.
- कालान्तर में इस काल के कलाकारों ने भवनों की साज-सज्जा में कमलबेल के नमूने, स्वास्थिक, घण्टियों के नमूने एवं कलश आदि हिन्दू साज-सज्जा की वस्तुओं का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया.
सल्तनत कालीन वास्तुकला के विकास का विभाजन तीन भागों में किया जा सकता है.
- गुलाम तथा खिलजी कालीन वास्तुकला.
- तुगलक कालीन वास्तुकला.
- सैय्यद तथा लोदी कालीन वास्तुकला.
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