गुलाम तथा खिलजी कालीन वास्तुकला (Ghulam and Khilji period Architecture)–यह स्थापत्य कला के विकास की प्रथम अवस्था मानी जाती है. सल्तनत काल का आरम्भिक समय होने के कारण इस काल की इमारतों पर हिन्दू-शैली का पर्याप्त प्रभाव देखने को मिलता है.
- खिलजी काल में निर्मित भवनों में निर्माण तथा अलंकण की विधि में परिवर्तन हुआ.
- अब अलंकरण में बेल, पुष्प आदि स्थापत्य कला के अभिन्न अंग बन चुके थे.
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
- तुर्क शासकों (कुतुबुद्दीन ऐबक) द्वारा भारत में बनवाया गया प्रथम वास्तु कलात्मक नमूना कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद है.
- इसका निर्माण 1192 ई. में दिल्ली विजय की स्मृति में करवाया गया था.
- यह मस्जिद 212 फीट लम्बे और 150 फीट चौड़े चबूतरे पर दिल्ली के निकट महरौली में स्थित है.
- इस मस्जिद की निर्माण सामग्री में हिन्दुओं के 27 मन्दिरों के अंश थे.
- मस्जिद में लगी जाली, स्तम्भ एवं दरवाजे मन्दिरों के ही अवशेष हैं.
- इण्डो-इस्लामिक शैली में निर्मित स्थापत्य कला का यह पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें स्पष्ट हिन्दू प्रभाव परिलक्षित होता है.
- 1230 ई. में इल्तुतमिश ने इसके बाहरी आँगन को बढ़कार अर्थात् पूजा वाले दालान और उसके बाहरी आवरण को तुड़वाकर इस मस्जिद का क्षेत्रफल दुगने से भी अधिक कर दिया.
- अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस मस्जिद का विस्तार किया.
कुतुबमीनार
- कुतुबमीनार दिल्ली से 12 कि.मी. की दूरी पर महरौली नामक स्थान पर स्थित है.
- सर जॉन मार्शल का विचार है कि कुतुबद्दीन ऐबक का उद्देश्य इसका निर्माण ‘मा-जिना’ के रूप में करना था, जहाँ ‘मुअज्जिन’ नमाज के लिए ‘अजान’ दे सके.
- किन्तु कुछ समय बाद इसे चित्तौड़ व मांडू की भांति विजय की मीनार माना जाने लगा.
- इसकी स्थापना वास्तव में उश के फकीर ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी.
- योजनानुसार इसकी चार मंजिलें बनाई जानी थी तथा ऊंचाई 225 फीट होनी थी.
- कुतुबद्दीन ऐबक इसकी एक ही मंजिल बनवा सका और शेष कार्य इल्तुतमिश ने पूरा करवाया.
- फिरोज तुगलक के समय इस पर बिजली गिरी और तब चौथी मंजिल को तोड़कर उसकी जगह दो मंजिलें बनवा दी गई.
- 1506 ई. में सिकन्दर लोदी ने भी इसकी मरम्मत करवाई.
- इस मीनार की ऊंचाई के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है.
- पर्सी ब्राउन तथा रालिन्स के अनुसार वह 238 फीट ऊंची है.
- लेनपूल के अनुसार इसकी ऊंचाई 250 फीट है.
- वसेंट स्मिथ ने भी इसका समर्थन किया है.
- डॉ. बर्गेस के अनुसार 1799 ई. में इसकी ऊंचाई 242 फीट मापी गई थी.
- अब इसकी ऊंचाई 234 फीट है.
- इसका निचला भाग लगभग 15 मी. है जो ऊपर की ओर जाकर मात्र 3 मी. रह जाता है.
- इसमें ऊपर चढ़ने के लिए 375 सीढ़ियां बनाई गई हैं.
- इसके आन्तरिक भाग में कुछ छोटे देवनागरी अभिलेखों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि शुरू में एक हिन्दू मीनार थी और मुसलमानों ने केवल बाहरी सतह में नई कटाई करा दी.
- सर जॉन मार्शल इस विचार को स्वीकार नहीं करते हैं.
- मीनार के निर्माण में लाल पत्थरों का अधिकाधिक प्रयोग किया गया हैं, सभी मंजिलों की आकृति तथा नक्काशी सुन्दर है.
इसकी प्रशंसा में पर्सी ब्राउन ने लिखा है,-
“किसी भी दृष्टिकोण से देखने पर कुतुबमीनार एक अत्यधिक प्रभावशाली इमारत है. इसके लाल पत्थरों के विभिन्न रंग, उसकी बाँसुरीनुमा मंजिलों की बदलती हुई जाली और उस पर एक-दूसरे पर चढ़े हुए उल्लेख साधारण कारीगरी और उत्कृष्ट पत्थरों के कटाव की तुलना छज्जों के नीचे हिलती-डुलती छाया, सभी अत्यन्त प्रभावशाली हैं.”
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
- यह 1200 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में बनवाया था तथा इल्तुतमिश ने एक आवरण से इसकी सुंदरता बढ़ा दी.
- यह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद जैसी निर्माण-पद्धति पर आधारित है.
- यह विचार कि इस इमारत का निर्माण ढाई दिन में हो गया, स्वीकार नहीं किया जाता और कहा जाता है कि इसके पूरे होने में ढाई वर्ष लगे होंगे.
- इस इमारत का पूरा क्षेत्रफल कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद से दुगुना है. इसमें पाँच मेहराबदार दरवाजे हैं तथा मुख्य दरवाजा अधिक ऊँचा है.
- इसके प्रत्येक कोने में बांसुरीनुमा मीनारें हैं.
सर जॉन मार्शल के अनुसार-
“सौंदर्य की दृष्टि से कुछ कमी होते हुए भी तकनीकी ज्ञान तथा गणित की सुक्ष्मता की दृष्टि से यह मस्जिद उच्चकोटि की है.”
नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा या सुल्तान घड़ी
- इसका निर्माण 1231-32 ई. में हुआ.
- इल्तुतमिश ने इसका निर्माण अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की स्मृति में करवाया था.
- इसकी चारदीवारी के मध्य में लगभग 66 फीट का आंगन है.
- इसके चारों और दुर्ग जैसा घेराव है और चारों किनारों पर गोल गुम्बद बने हुए हैं.
- घेरे का काफी आन्तरिक भाग हल्के भुरभुरे रंग के पत्थर का है, किन्तु मस्जिद व प्रवेश-दालान और मकबरे का बाह्य भाग संगमरमर का है.
इल्तुतमिश का मकबरा
- इसका निर्माण 1235 ई. से कुछ समय पहले आरम्भ हुआ था.
- यह अपने रूप व पहलुओं में पूर्णतया स्पष्ट है.
- इसका बाहरी दीवारें सुन्दर एवं अलंकृत हैं.
- 42 फीट की वर्गाकार इस इमारत के तीन और दरवाजे हैं.
- इसके आन्तरिक भाग की सारी दीवारें फर्श से लेकर छत तक कुरान की आयतों से भरी हुई हैं.
कुछ अन्य इमारतें भी इल्तुतमिश के द्वारा बनवाई गई मानी जाती हैं, जिसमें बदायूं में निर्मित ‘हौज-ए-शम्सी’, ‘शम्सी ईदगाह’ और ‘जामा मस्जिद’ प्रमुख हैं.
- राजस्थान में अतारकिन के दरवाजे के नाम से प्रसिद्ध इमारत का निर्माण 1230 ई. में हुआ माना जाता है.
- इस काल के कुछ दूसरे भवन-श्वेत भवन, तुर्क महल, हरा भवन आदि हैं तथा इस काल में कुछ राजकीय भवन भी बने.
- इल्तुतमिश द्वारा निर्मित कराए गए भवनों के बाद लगभग 50-60 वर्षों तक किसी महत्वपूर्ण इमारत के निर्माण का उल्लेख नहीं मिलता है.
- उसके पश्चात् अलाउद्दीन खिलजी के काल में वास्तुकला ने एक नया मोड़ लिया.
- अलाउद्दीन खिलजी के काल में अलंकरण में बेल, पुष्प आदि का प्रयोग कर दिया गया था.
अलाई दरवाजा
- सर जॉन मार्शल के अनुसार, ‘‘अलाई दरवाजा इस्लामी वास्तुकला की अमूल्य निधि है.”
- इसका निर्माण 131 1 ई. में हुआ .
- यह दक्षिण प्रवेश द्वारा था जो कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बनवाए गए भाग तक ले जाता है.
- यह एक ऊचे चबूतरे पर निर्मित एक चौकोर इमारत है, जिसकी छतें चपटे गुम्बद की तरह हैं.
- यह इमारत लाल पत्थर की है, किन्तु कहीं-कहीं पर संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है.
- इसमें कुरान की आयतों से काफी सजावट की गई है.
सर जॉन मार्शल के शब्दों में-
“इस इमारत के मूल लक्षण हैं–पूर्ण समानता और उसके भागों की निर्माण युक्त भद्रता . चाहे कोई भी कारीगर हो, वह मौलिक रुचि का व्यक्ति था; जो केवल बार-बार चलते हुए परम्परागत विचारों से सन्तुष्ट नहीं था, किन्तु जिसने स्वयं विचार किया और स्वयं ही निर्माण का प्रत्येक विषय पूरा किया.”
जमात खाना मस्जिद
- अलाउद्दीन खिलजी ने निजामुद्दीन औलिया के दरगाह के समीप जमात खाना मस्जिद का निर्माण करवाया.
- यह भारत में ऐसी मस्जिद का सबसे पुराना उदाहरण है, जो पूर्णतः इस्लामी विचारों के अनुसार बनी है.
- यह लाल पत्थर की बनी है और इसमें तीन कमरे हैं.
- शुरू में इस निर्माण का आशय किसी मस्जिद का बनाना नहीं था, अपितु यह केवल शेख निजामुद्दीन का मकबरा था .
- तुगलक काल में इसे मस्जिद के रूप में बदला गया और इसके इधर-उधर कुछ कक्ष और बढ़ा दिए गए.
खिलजी काल में निर्मित अन्य निर्माण कार्यों में कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी द्वारा निर्मित भरतपुर में ‘ऊखा मस्जिद’ और खिज्र खाँ द्वारा निर्मित ‘निजामुद्दीन औलिया की दरगाह’ विशेष उल्लेखनीय है. अलाउद्दीन ने ‘सीरी नगर’, ‘हौज-ए-अलाई’ और ‘हौज खास का तालाब’ आदि का निर्माण भी करवाया.
गुलाम तथा खिलजी कालीन वास्तुकला (Ghulam and Khilji period Architecture)
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