सल्तनत कालीन प्रशासन, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास तथा सामाजिक और धार्मिक अवस्था-सल्तनत काल में सुल्तानों ने भारतीय शासन व्यवस्था के स्थान पर अरबी-फारसी पद्धति पर आधारित शासन व्यवस्था प्रचलित की.
‘खलीफा इस्लामिक संसार का, पैगम्बर के बाद का सर्वोच्च नेता होता था. किन्तु वह सुल्तानों का नाम मात्र का ही मुखिया होता था. सुल्तानों के लिए ‘खलीफा’ के प्रभुत्व को मानना उनकी इच्छा पर निर्भर करता था.
मुबारक खिलजी ने तो स्वयं अपने को खलीफा घोषित कर दिया था. इस काल में सुल्तानों की प्रशासनिक व्यवस्था पूर्णतः इस्लामिक धर्म व उसके आदर्शों पर आधारित थी.
सुल्तान
यह सल्तनत के प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. उस पर किसी का अंकुश नहीं होता था.
प्रशासन के सभी विभाग उसके अधीन होते थे. सुल्तान का पद सामान्यतः पैतृक था, क्योंकि सुल्तान प्रायः अपने पुत्र या पुत्री को ही उत्तराधिकारी नियुक्त करता था.
किन्तु अयोग्य शासकों के काल में अमीरों व सरदारों ने सुल्तान को चुनने की प्रणाली का प्रयोग किया. खिज्र खाँ और बहलोल लोदी ने तलवार की शक्ति से सिंहासन प्राप्त किया था.
अतः सल्तनत काल में उत्तराधिकार सम्बन्धी विभिन्न परम्पराओं का प्रचलन था.
अमीर
सल्तनल काल में प्रभावशाली पद अमीरों के अधीन हुआ करते थे.
सुल्तानों के लिए प्रायः अमीरों को अपने पक्ष में करना अनिवार्य होता था.
अमीरों का महत्व इस बात से पता चलता है कि अनेक बार अमीरों ने विद्रोह व षड्यन्त्रों द्वारा सुल्तानों का अपदस्थ करके स्वेच्छा से किसी अन्य को सुल्तान बना दिया.
बलबन और अलाउद्दीन के समय अमीरों का महत्व कम हो गया था, परन्तु लोदी वंश के काल में अमीरों का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया था.
सल्तनत कालीन प्रशासन, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास तथा सामाजिक और धार्मिक अवस्था (The Sultanate-Administration, Economic and Cultural Development and Social and Religious Conditions)
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