सूफी मत भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन भारत (Sufism-Bhakti Movement in Medieval India)
सूफी मत
- महमूद गजनवी की पंजाब विजय के पश्चात् कई सूफी सन्त भारत आये.
- सूफी शब्द की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों के कई विचार हैं.
- कुछ का विचार है कि इस शब्द की उत्पत्ति ‘सफा‘ अर्थात् ‘पवित्र‘ शब्द से हुई.
- एक मत यह है कि सूफी शब्द की उत्पत्ति ‘सूफ’ अर्थात ‘ऊन’ से हुई तथा मुहम्मद साहब के पश्चात् जो सन्त ऊन के वस्त्र पहन कर अपने मत का प्रचार करते थे वे ‘सूफी’ कहलाए.
- कुछ विद्वानों का मत है कि सूफी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘सोफिया‘ अर्थात् ‘ज्ञान’ शब्द से हुई है.
- शेख मुही-उद्दीन इब्न-उल-अरनी (1165-1240 ई.) के अनुसार सूफियों की उत्पत्ति ‘वहदत-उल-बुजूद’ सिद्धान्त से हुई.
- इसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और वह संसार की सब चीजों के पीछे है.
- सूफियों के काम-काज के केन्द्र खानकाहें थीं.
- ये लोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए वहाँ जाते थे.
- सूफियों ने इस्लाम की कट्टरता को तिलांजलि देकर रहस्यवाद की आन्तरिक गहराई से समझौता कर लिया.
- जिस प्रकार धार्मिक विचारकों ने कुरान शरीफ और इजमा के आधार पर अपने सिद्धान्तों की व्यवस्था की है उसी प्रकार सूफियों ने भी अपना रास्ता कुरान शरीफ और सुन्नत के भीतर से ही निकाला.
- भारत में आने वाला पहला सूफी सन्त शेख इस्माइल था, जो लाहौर आया.
- उसके पश्चात् शेख अली बिन उस्मान अल हजवैरी (दाता गंज बख्श) था.
- पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में सूफी मत बारह सिलसिलों अथवा वर्गों में विभक्त हो गया, इनमें-
- चिश्ती,
- सुरहावर्दी,
- कादिरी,
- सत्तरी,
- फिरदौसी,
- नक्शबन्दी आदि प्रमुख सिलसिले थे.
- भारत में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती, हमीमुद्दीन नागोरी, कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदुद्दीन गंजशकर, निजामुद्दीन औलिया आदि सूफी मत के प्रमुख प्रचारक हुए.
- इन प्रचारकों ने अपने-अपने सम्बन्धित सिलसिलों का भारत में खूब प्रचार किया.
- ये सिलसिले दो वर्गों में विभाजित थे-
- ‘बा-शरा‘ अर्थात् इस्लामी विधि (शरा) का अनुसरण करने वाले तथा
- ‘बे-शरा‘ अर्थात् जो इस्लामी विधि से बंधे नहीं थे और घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे.
- भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख सूफी सिलसिलों का संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है-
चिश्ती सिलसिला
- चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा अब्दुल चिश्ती ने हैरात में की थी.
- चिश्ती सिलसिले की स्थापना भारत में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (1141-1236 ई.) ने की थी.
- बाबा फरीद आदि इस सिलसिले के प्रमुख सन्त थे.
- चिश्ती लोग शासक वर्ग से अलग रहते थे तथा संगीत और योग क्रियाओं में विश्वास रखते थे.
- चिश्ती लोग सादा जीवन व्यतीत करते थे.
- उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था.
- उन्होंने कई भारतीय रीति-रिवाजों को भी अपनाया.
- चिश्ती लोग बड़े उदार विचारों के थे.
- चिश्ती ईश्वर के प्रति प्रेम और मनुष्यमात्र की सेवा में विश्वास रखते थे.
- चिश्ती लोग निजी सम्पत्ति में विशस नहीं रखते थे.
सुहरावर्दी सिलसिला
- इस सिलसिले की स्थापना शेख शहाबुद्दीन सहरावर्दी (1145-1234 ई.) ने की थी.
- उसने अपने शिष्यों को भारत भेजा जो भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में बस गए.
- बहाउद्दीन जकारिया सुहरावर्दी, हमीद्दीन नौगरी, शेख जहालुद्दीन तब्रेजी आदि इस सिलसिले के प्रमुख सन्त हुए.
- चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिलों में कुछ भेद और अन्तर था.
- सुहरावर्दी सन्त सुल्तानों और अमीरों से मेल-जोल रखते थे, परन्तु चिश्ती सन्त उनसे दूर रहते थे.
- चिश्ती सन्तों को जो धन मिलता था-वे गरीबों में बांट देते थे, जबकि बहाउद्दीन जकारिया (सुहरावर्दी) ने बहुत धन संचित किया.
- चिश्तियों के जमैतखाने में सब प्रकार के लोग आ सकते थे.
- वे सब एक बड़े हालनुमा कमरे में इकट्ठे रहते थे.
- सुहरावर्दी सिलसिले के लोगों को अलग-अलग रहने का स्थान दिया जाता था.
फिरदौसी सिलसिला
- इसके संस्थापक मध्य एशिया के ‘सैफुद्दीन बखरजी’ थे.
- यह सिलसिला सुहरावर्दी सिलसिले की एक शाखा थी तथा भारत में इसका कार्यक्षेत्र बिहार में था.
- इस सिलसिले को शेख शरीफुद्दीन यहय्या ने लोकप्रिय बनाया.
- उसने इस्लाम के सिद्धान्तों का आधुनिकीकरण किया.
- बदुद्दीन समगंजी, अहमद इब्न याहया मनैरी आदि इस सिलसिले के प्रमुख सन्त थे.
कादिरी सिलसिला
- इसका संस्थापक बगदाद का शेख अब्दुल कादिर जिलानी (1077-1166 ई.) था.
- यह सिलसिला पन्द्रहवीं शताब्दी में भारत में पहुंचा.
- शाह न्यामतुल्ला और मखदूम मुहम्मद जिलानी ने इस सिलसिले को भारत में लोकप्रिय बनाया.
- कादिरी सिलसिले के अनुयायी गाने और बजाने के विरोधी थे.
- ये हरे रंग की पगड़ियाँ पहनते थे.
- वे उदार भी थे तथा रूढ़िवादी भी.
- दारा शिकोह इस सिलसिले का अनुयायी था.
- प्रारम्भ में यह सिलसिला उच्छ (सिंध) में ही सीमित था, परन्तु बाद में आगरा और अन्य स्थानों पर भी फैल गया.
नक्शबन्दी सिलसिला
- इस सिलसिले को ख्वाजा पीर मुहम्मद के अनुयायियों ने भारत में चलाया.
- ख्वाजा बाकी विल्लाह (1563-1603 ई.) ने इसे लोकप्रिय बनाया.
- इसके अनुयायियों ने शरीयत पर बहुत जोर दिया और नई बातों का विरोध किया.
- इस सिलसिले के लोग भी संगीत के विरोधी थे और उन्होंने एक ईश्वरवाद के सिद्धान्त को भी चुनौती दी.
- शाह वली उल्लाह (1702-1762 ई.) भी इस सिलसिले का सन्त था.
सत्तारी सिलसिला
- ‘अवूयजीद-अल- बिस्तामी’ ने इस सिलसिले की स्थापना की.
- शेख अब्दुल्ला इस सिलसिले के प्रमुख सन्त थे.
सूफी मत दक्षिण भारत में भी फैला.
- सुल्तानों की दक्षिण विजय से पूर्व ही सूफी लोग दक्षिण भारत में पहुंच गए थे और उन्होंने यहाँ लोगों को बहुत प्रभावित किया.
- प्रोफेसर निजामी का विचार है कि दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले की नींव शेख बुरहानुद्दीन गरीब ने रखी थी.
- उन्होंने दौलताबाद को अपना स्थायी केन्द्र बनाया.
- हाजी रूमी ने बीजापुर से खानकाह स्थापित की.
- सूफी ईश्वर को सृष्टि के कण-कण में व्याप्त समझते थे.
- सूफी साम्प्रदायिकता के विरोधी थे तथा एक ईश्वर में विश्वास रखते थे.
- भारतीय संस्कृति और साधना के सम्पर्क में आने पर सूफियों ने इस संस्कृति से बहुत कुछ ग्रहण किया.
- बाबा फरीद ने पंजाबी साहित्य को अनूठी देन दी.
- सूफियों के प्रयत्नों के फलस्वरूप इस्लाम में उदार और गतिशील तत्वों को प्रेरणा मिली.
- मध्यकालीन भारत में जमाखोरी, दास-प्रथा, कालाबाजारी, शराब, वेश्यावृत्ति आदि बहुत- सी सामाजिक बुराइयाँ आ गई थीं.
- उनको दूर करने के लिए सूफी सन्तों ने प्रयत्न किए.
- सूफी सन्तों ने आध्यात्मिक रहस्यमय भावनाओं से ओत-प्रोत महत्वपूर्ण काव्य और साहित्य भारत को दिए.
- उन्होंने लोगों को विश्व प्रेम का पाठ पढ़ाया.
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