प्रान्तीय राजवंश
खान देश
मालिक राजा फारुकी
- मालिक राजा फारुकी ने ताप्ती नदी (तापी नदी) घाटी क्षेत्र में स्थित खान देश के स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की स्थापना सुल्तान फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के उपरांत 1382 ई. में की.
- यहाँ सभी सुल्तानों ने खान की उपाधि धारण की इसलिए इसका नाम खान देश पड़ा.
- खान देश की राजधानी बुरहानपुर तथा सैनिक मुख्यालय आसीरगढ़ था.
- 29 अप्रैल, 1399 ई. को राजा फारुकी की मृत्यु के बाद खान देश के अन्य शासक थे-
- नासिर खान फारुकी (1400-1434),
- मीरान आदिल खान फारुकी (1437-1441),
- मीरान मुबारक खान फारुकी (1441-1457),
- मीरान आदिल खान फारुकी द्वितीय (1457-1501),
- दाऊद खान (1501-1508),
- गजनी खान (1508),
- आजम हुमायूँ आदिल खान तृतीय (1509-1520),
- मीरान मुहम्मद खान प्रथम (1520-1535),
- मीरान मुबारक शाह फारुकी (1535-1566),
- हशन खान फारुकी (1576),
- राजा अली खान (1576-1597),
- बहादुर खान (1597-1600).
- मीरान आदिल खान द्वितीय के बाद कमजोर उत्तराधिकारियों के कारण – साम्राज्य दलगत राजनीति से ग्रस्त हो गया.
- फलतः इसका फायदा उठाकर गुजरात एवं अहमदनगर ने खान देश के मामले में हस्तक्षेप करना आरंभ किया.
- अंततः 1601 में अकबर ने खान देश के अंतिम शासक को परास्त कर उसे अपने साम्राज्य में मिला लिया.
इस राज्य की कला पर मालवा तथा गुजरात की वास्तुकला शैली का काफी व्यापक प्रभाव पड़ा.
बीबी की मस्जिद
- इस मस्जिद में पूर्णरूप से गुजराती वास्तुकला का प्रभाव है.
- इसका निर्माण सुल्तान मुजफ्फरशाह गुजराती की पुत्री ने गुजरात के शिल्पकारों से बुरहानपुर में करवाया.
- इस मस्जिद के मेहराब एवं गुम्बद पूर्णतः गुजराती शैली के हैं.
जामा मस्जिद
- आदिल शाह फारुकी चतुर्थ ने 1589 ई. में जामा मस्जिद का निर्माण बुरहानपुर में करवाया.
- जामा मस्जिद में भी गुजराती शैली का थोड़ा-बहुत प्रभाव है.
बंगाल
- दूरस्थ प्रांत होने की वजह से बंगाल हमेशा से दिल्ली के सुल्तानों के लिए एक समस्या बना रहा तथा समय-समय पर स्वायत्तता हासिल करने में कामयाब रहा.
- इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी पहला मुसलमान आक्रमणकारी था, जिसने बिहार और बंगाल के सेन वंश को हराया.
- बाद में इल्तुतमिश तथा बलबन को बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिलाना पड़ा.
- बलबन के पुत्र बुगरा खान ने बंगाल को स्वतंत्र घोषित कर लिया.
- गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को तीन भागों में बांट दिया.
- लखनौती (उत्तरी बंगाल),
- सोनारगाँव (पूर्वी बंगाल) तथा
- सतगाँव (दक्षिण बंगाल)
- मुहम्मद तुगलक के अंतिम दिनों में फखरुद्दीन के विद्रोह के कारण बंगाल फिर स्वतंत्र हो गया.
शम्सुद्दीन इलियास शाह
- 1345 ई. में हाजी इलियास बंगाल के विभाजन को समाप्त कर शम्सुद्दीन इलियास शाह के नाम से बंगाल का शासक बना.
- 1375 ई. में शम्सुद्दीन इलियास की मृत्यु के बाद सिकन्दर शासक बना.
- सिकन्दर ने पांडुआ में ‘अदीना मस्जिद’ का निर्माण करवाया.
गयासुद्दीन अजमशाह
- 1389 में गयासुद्दीन अजमशाह अगला शासक बना.
- गयासुद्दीन अजमशाह अपनी न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है.
- प्रसिद्ध फारसी कवि ‘हाजिफ शीरजी’ तथा अन्य विद्वानों से उसका सम्पर्क था.
- गयासुद्दीन अजमशाह ने चीन के लिए एक 1409 में राजदूत भेजा तथा चिटागोंग तट से चीन के साथ अच्छे व्यापार की शुरुआत की.
- 1410 में उसकी मृत्यु हो गई.
- गियासुद्दीन के उत्तराधिकारी कमजोर हुए.
जमींदार गणेश
- उस समय एक ब्राह्मण जमींदार गणेश बहुत प्रभावशाली हो गया तथा उसने 1415 ई. में बंगाल की गद्दी पर अधिकार कर लिया.
- मुसलमानों के विरोध के कारण उसने अपने नाबालिग पुत्र जादू सेन का धर्म परिवर्तन कराकर उसे मुसलमान बना दिया तथा उसके नाम से शासन करने लगा.
- फारसी पाण्डुलिपियों में गणेश को ‘केस’ नाम से जाना जाता है.
- गणेश ने ‘दनुजमर्दन’ की उपाधि धारण की.
जादू सेन
- 1418 में गणेश की मृत्यु के बाद जादू सेन ने जलाल-उद्-दीन के नाम से 1431 तक शासन किया.
- इसके पुत्र और उत्तराधिकारी शम्स-उद-दीन अहमदशाह की 1442 में हत्या के बाद गणेश के वंश का अंत हो गया तथा इल्यास शाही राजवंश की फिर से स्थापना हुई.
अलाउद्दीन हुसैनशाह
- बंगाल के अमीरों ने 1493 में योग्य सुल्तान अलाउद्दीन हुसैनशाह को बंगाल की गद्दी पर बैठाया.
- अलाउद्दीन हुसैनशाह ने अपनी राजधानी को पाण्डुआ से गौड़ हस्तांतरित किया.
- अलाउद्दीन हुसैनशाह एक धर्मनिरपेक्ष शासक था.
- अलाउद्दीन हुसैनशाहने हिन्दुओं को ऊँचे पदों पर नियुक्त किया.
- चैतन्य महाप्रभु इसी शासक के समकालीन थे.
- अलाउद्दीन ने ‘सत्यपीर‘ नामक आंदोलन की शुरुआत की.
- अलाउद्दीन हुसैनशाह के काल में बंगाली साहित्य ने बहुत उन्नति की.
- दो विद्वान वैष्णव भाई रूप एवं सनातन उसके प्रमुख अधिकारी थे.
- हिन्दू उसे (अलाउद्दीन हुसैनशाह को) कृष्ण का अवतार मानते थे.
- अलाउद्दीन हुसैनशाहने ‘नृपति तिलक’, ‘जगतभूषण’ आदि उपाधियां धारण की.
- अहोमों के सहयोग से उसने कामता (कामरूप) राजा को नष्ट किया.
- ‘श्रीकृष्ण विजय‘ की रचना मालधर बसु ने उसी के शासन काल में की.
- मालधर बसु ने गुणराज खान की उपाधि धारण की.
नुसरतशाह (1519-32)
- अलाउद्दीन के बाद उसका बेटा नुसरतशाह (1519-32) शासक बना.
- उसने बाबर के साथ एक संधि की जव बाबर पूर्व की ओर कूच कर रहा था.
- यह भी बिल्कुल अपने पिता की तरह था.
- पुर्तगाली सबसे पहले इसी के शासनकाल में बंगाल में प्रविष्ट हुए.
- इसी के शासनकाल में महाभारत का बंग्ला में अनुवाद कराया गया.
- इसने गौड़ में बड़ा सोना तथा कदम रसूल मस्जिद का निर्माण करवाया.
गयासुद्दीन महमूदशाह
- 1533 में नुसरत शाह की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन महमूदशाह शासक हुआ.
- 1538 में शेरशाह ने इसे बंगाल से खदेड़कर पूरे बंगाल पर अधिकार कर लिया.
असम
- 13वीं सदी के हिन्दू राज्य कामरूप के इतिहास के बारे में बंगाल के मुस्लिम राजाओं द्वारा किए गए छिट-पुट आक्रमणों के अतिरिक्त अन्य जानकारी नगण्य है.
- 13वीं सदी के अंत में दुलर्भ नारायण ने कामता (कामरूप) पर शासन किया.
- इस राज्य पर अहोम आक्रमण के फलस्वरूप एक संधि हुई, जिसके पश्चात् दुर्लभ की बेटी का विवाह अहोम राजी सुखंगपा से हुआ.
- 15वीं सदी के आरंभ में खेन नामक ब्राह्मण आदिवासी जाति ने कामता को एक प्रभावशाली राज्य बनाया.
- 15वीं सदी के अंत में बंगाल के अलाउद्दीन हुसैन शाह ने उसके राज्य को अपने अधीन कर लिया.
- कोच आदि जाति के विशासिम्हा ने 1515 ई. में कामता का राज्य संभाला.
उड़ीसा
अनंद वर्मन छोड़ा गंग (1076-1148)
- अनंद वर्मन छोड़ा गंग (1076-1148) ने उड़ीसा की सीमाओं का विस्तार बंगाल में गंगा के तट से दक्षिण में गोदावरी तक किया तथा उड़ीसा को एक शक्तिशाली राज्य बनाया.
- एक महान सैनिक तथा नायक होने के साथ-साथ वह (अनंद वर्मन छोड़ा गंग) संस्कृत तथा तेलुगु साहित्य का महान संरक्षक भी था.
- अनंद वर्मन छोड़ा गंग ने भुवनेश्वर का मशहूर लिंगराज मंदिर तथा पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया.
नरसिम्हा
- उड़ीसा का दूसरा महान शासक नरसिम्हा था, जिसने बंगाल का एक हिस्सा मुस्लिम शासकों से छिना .
- कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण भी नरसिम्हा ने करवाया.
- नरसिम्हा की मृत्यु के साथ ही पूर्वी गंग का वैभव समाप्त हो गया.
- उड़ीसा के सूर्यवंशी शासकों ने ‘गजपति‘ की उपाधि धारण की.
जौनपुर
मलिक सरवर
- फिरोजशाह तुगलक ने अपने पूर्वज जौना खाँ (मुहम्मद-बिन-तुगलक) के नाम पर जौनपुर शहर की स्थापना की थी.
- 1394 ई. में फिरोज तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने अपने वजीर ख्वाजा जहाँ को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की.
- मलिक सरवर ने दिल्ली पर हुए तैमूर आक्रमण के कारण राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर स्वतंत्र शर्की वंश की नींव डाली.
करनफल मुबारक शाह (1399-1402)
- 1399 ई. में मलिक सरवर की मृत्यु के बाद इसका पुत्र (दत्तक) करनफल मुबारक शाह (1399-1402) गद्दी पर बैठा.
- करनफल मुबारक शाह ने सुल्तान की उपाधि धारण की तथा अपने नाम से खुतबे पढ़वाये.
इब्राहिमशाह (1402-1440)
- मुबारक शाह के बाद उसका छोटा भाई इब्राहिमशाह (1402-1440) गद्दी पर बैठा.
- वह शर्की राजवंश का सबसे महान शासक था.
- इब्राहिमशाह ने सांस्कृतिक तथा आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की .
महमूद शाह
- 1440 में इब्राहिम शाह की मृत्यु के बाद जौनपुर की गद्दी पर उसका पुत्र महमूद शाह बैठा.
- महमूद शाह ने चुनार को अपने अधीन कर लिया, किन्तु कालपी को अधीन करने की उसकी कोशिस विफल रही.
- महमूद शाह ने दिल्ली पर भी आक्रमण किया, किन्तु दिल्ली के शासक बहलोल लोदी ने उसे हरा दिया.
हुसैनशाह
- महमूदशाह के बाद उसके पुत्र मुहम्मदशाह (1457-58) की हत्या उसके ही छोटे भाई हुसैनशाह (1450-1505) ने कर दी, जो शर्की वंश का अंतिम शासक था.
- बहलोल लोदी ने 1483-84 में जौनपुर पर कब्जा कर लिया.
- अंततः सिकन्दर लोदी ने पूर्ण रूप से जौनपुर को दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया.
कश्मीर
हिन्दू राजवंश
- 1286 ई. में सिम्हादेव ने, एक पुराने हिन्दू राजवंश के अंतिम शासक को नष्ट कर, नए हिन्दू राजवंश की स्थापना की.
- सिम्हादेव के उत्तराधिकारी सुहादेव के समय दलूचा के नेतृत्व में (1320 में) मंगोलों का आक्रमण हुआ.
- सुहादेव अपनी राजधानी इन्द्रकोट से भाग खड़ा हुआ.
- इस स्थिति का फायदा उठाकर लद्दाखी नायक के पुत्र रिंचन ने सिंहासन पर कब्जा कर लिया.
- सुहादेव के चचेरे भाई उदयनदेव ने 1323 ई. में रिंचन को पराजित कर 1339 तक कश्मीर पर शासन किया.
- उदयन देव की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी कोटा ने शासन संभाला, किन्तु उचित अवसर पाकर शाहमीर ने, जिसे रिंचन ने अपनी पत्नी और पुत्र के लिए शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया था, कोटा तथा उसके अल्पायु बच्चों को कैद कर सिंहासन पर कब्जा कर लिया.
शाहमीर राजवंश
शाहमीर
- शाहमीर ने सुल्तान शम्स-उद्दीन के नाम से (1339-42) सिंहासनारुढ़ हुआ.
- इस राजवंश ने दिल्ली के स्वामित्व को कभी स्वीकार नहीं किया तथा दिल्ली में भी कभी कश्मीर को अधीन करने की कोशिश नहीं की गई.
- इस राजवंश में 16 अन्य शासक हुए जिनमें सिकन्दर तथा जैन-उल-आबिदीन का विशिष्ट स्थान है.
सिकन्दर (1389-1413)
- सिकन्दर (1389-1413) को कश्मीर के औरंगजेब के नाम से भी जाना जाता है.
- उसने हिन्दुओं के उत्पीड़न से कश्मीर और सामाजिक दोनों व्यवस्थाओं में परिवर्तन ला दिया.
- वह धार्मिक रूप से असहिष्णु था.
- उसके ‘जजिया’ आरोपित किया तथा मूर्तियों को तोड़ा.
- उसने, सिकन्दर के साथ आए, मुस्लिमों को काफी संरक्षण दिया.
- इस कारण उन्होंने कश्मीर पर अपना दबदबा हासिल कर लिया तथा इस्लाम के लिए एक सांस्कृतिक आधार दिया.
- इसके विषय में इतिहासकार जोनराजा ने लिखा है कि “सुल्तान अपने सुल्तान के कर्तव्यों को भूल गया और दिन-रान उसे मूर्तियों को नष्ट करने (बुतशिकन) में आनन्द आने लगा”.
- उसने मार्तण्ड, विश्य, इसाना, चक्रव्रत एवं त्रिपुरेश्वर की मूर्तियों को तोड़ दिया.
- ऐसा कोई शहर, नहर, गाँव या जंगल शेष न रहा जहाँ ‘तुरुष्क सूहा’ (सिकन्दर) ने ईश्वर के मंदिर न तोड़े हों.
आलीशाह
- सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् आलीशाह सिंहासारुढ़ हुआ.
- आलीशाह के वजीर साहूभट्ट ने सिकन्दर की धार्मिक कट्टरता को आगे बढ़ाया.
शाही खाँ जैन-उल-आविद्दीन (1420-70)
- आलीशाह का भाई शाही खाँ जैन-उल-आविद्दीन (1420-70) को कश्मीर के अकबर के नाम से जाना जाता है.
- उसे ‘बुदशाह’ या महान सुल्तान भी कहा जाता है.
- यह धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर के ठीक विपरीत था.
- इसने टूटे हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण, गायों की सुरक्षा, जजिया तथा शवहाह कर हटाने, नहरें खुदवाने, पुल बनवाने अनेक शहरों का निर्माण कराने, मुसलमान बने हिन्दुओं को पुनः हिन्दू बनने, कश्मीर छोड़कर भाग एग हिन्दुओं को वापस बुलाने, सती प्रथा पर लगे प्रतिबंध को हटाने आदि के आदेश दिए.
- वह स्वयं संस्कृत, फारसी, तिब्बती तथा कई अन्य भाषाओं का ज्ञाता था.
- महाभारत तथा रातरंगिणी का फारसी में अनुवाद करवाया.
- आबिदीन ने वूलर झील में जैना लंका नामक एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण करवाया.
- उसने समरकन्द में कागज बनाने का कार्य आरंभ करवाया.
हाजी खाँ
- इसके बाद हाजी खाँ ‘हैदर शाह’ की उपाधि के साथ सिंहासन पर बैठा.
- हाजी खाँ के शासन-काल में इस वंश का अंत हो गया.
चाक वंश
- 1540 में चाकों ने कश्मीर पर शासन करना शुरू किया.
- बाबर का रिश्तेदार मिर्जा हैदर दोगलत (1540 में) गद्दी पर बैठा.
- चाक आरंभ में शाहमीर वंश के वजीर थे.
- 1561 में चाक वजीर ने ‘नसीरुद्दीन मुहम्मद गाजी शाह’ खिताब लिया.
- अंतिम चाक शासक नसीरुद्दीन मु. यूसुफ गाजी को 1586 में अकबर ने पराजित कर कश्मीर को अपने साम्राज्य में मिला लिया.
राजस्थान
मेवाड़
- मेवाड़ (राजधानी-नगदा) के गहलौत शासक जैत सिंह (1213-61) ने दिल्ली के इल्तुतमिश के आक्रमण को विफल कर दिया, किन्तु नगदा पूरी तरह ध्वस्त हो गया.
- इसके बाद चित्तौड़ राजधानी बनी.
- 1303 ई. में रत्नसिंह अलाउद्दीन खिलजी से अपनी राजधानी हार गया.
- यह गहलौत वंश के काल में हुआ.
राणा हम्मीर
- इसके पश्चात् राजवंश की एक छोटी शाखा ‘सिसौदिया’ का शासन शुरू हुआ.
- राणा हम्मीर ने (1314-78) चित्तौड़ को वापस जीत लिया.
- इसके शासन ने मेवाड़ के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की.
- राणा हम्मीर मुहम्मद-बिन-तुगलक का समकालीन था.
- हम्मीर के बाद उसका पुत्र क्षेत्रसिंह (1378-1405) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा.
- इसके बाद क्रमशः लक्खा सिंह (1405), मोकल (1418) गद्दी पर बैठे.
राणा कुम्भा
- 1431 में मोकल की मृत्यु के बाद राणा कुम्भा मेवाड़ की गद्दी पर बैठा.
- राणा कुम्भा के शासन काल में उसका एक रिश्तेदार रानमल शक्तिशाली हो गया.
- कुछ इष्र्यालु राजपूत सरदारों ने रानमल की हत्या कर दी.
- राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी मालवा के शासक को परास्त कर 1448 ई में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तंभ‘ की स्थापना की.
- राणा कुम्भा (कुम्भकरण) एक वीर योद्धा, सफल सेनानायक, संस्कृति तथा साहित्य के महान संरक्षण, वेद, उपनिषद्, स्मृति, मीमांसा, व्याकरण, राजनीति तथा साहित्य के ज्ञाता थे.
- उन्होंने जयदेव की गीतगोविंद पर एक टीका और चंडीसतकम पर एक विवेचना लिखी.
- सैन्य वास्तुकला में उनकी विशेष रुचि थी.
- चित्तौड़ की सुरक्षा को मजबूत किया और वहाँ 32 किले बनवाने के साथ कुम्भलगढ़ में एक नए किले की नींव रखी.
- संस्कृत, प्राकृत तथा तीन अन्य स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों के रचयिता कुम्भा की हत्या 1473 ई. में उनके पुत्र ने कर दी.
राजमल (1473-1509)
- राजपूत सरदारों के विरोध के कारण राणा उदय अधिक दिनों तक सत्ता का सुख नहीं भोग सका.
- उसके बाद उसका भाई राजमल (1473-1509) गद्दी पर बैठा.
राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा)
- 1509 में उसकी मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) मेवाड़ की गद्दी पर (1509-1598) बैठा.
- 1527 ई. में खानवा के युद्ध में वह मुगल बादशाह बाबर से हार गया.
- इसके पश्चात् योग्य शासक के अभाव में जहाँगीर ने अपने साम्राज्य में मिला लिया.
- इस मेवाड़ की स्थैापना राठौर शासक चुन्द ने की थी.
मारवाड़
- जोधपुर की स्थापना मेवाड़ के संस्थापक चुन्द के बेटे जोधा ने की तथा उसे मारवाड़ की राजधानी बनाया.
- मारवाड़ का सबसे महान शासक मालदेव (1539-62) था.
- जिसके शासन काल में राठौरों की शक्ति अपनी चरम सीमा पर थी.
अन्य राजपूत राज्य
आम्बेर ( आमेर )
- बाद में जयपुर के नाम से जाना गया.
- वहाँ के शासक सूर्यवंशी कछवाहा थे तथा अपनी उत्पत्ति भगवान राम से मानते थे.
- किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से इस राज्य की उत्पत्ति ढंढर राज्य से हुई जिसकी स्थापना दुलह राय ने 10वीं सदी के उत्तरार्द्ध में की थी.
- इस वंश के शासक भारमल ने अकबर की सत्ता स्वीकार की तथा इसके पुत्र भगवान दास तथा पोता मान सिंह ने मुगल साम्राज्य को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योग दिया.
गुजरात
- अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में गुजरात के शासक राजा रायकन (कर्ण) को पराजित कर इसे दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया.
जफर खा (मुजफ्फर शाह)
- 1391 में मुहम्मद-बिन-तुगलक द्वारा नियुक्त गुजरात के सूबेदार जफर खा ने 1401 में तुगलक वंश के शासकों की कमजोरी का फायदा उठाकर सल्तनत की अधीनता को अस्वीकृत कर दी.
- 1407 में वह ‘सुल्तान मुजफ्फरशाह’ की उपाधि धारण कर गुजरात का स्वतंत्र सुल्तान बन बैठा.
- उसने मालवा के शासक हुसंग शाह को पराजित कर उसकी राजधानी धार पर कब्जा कर तिया .
अहमदशाह
- 1411 ई. में मुजफ्फर शाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पोता (तातार खाँ का पुत्र) अहमद ‘अहमदशाह’ की पदवी ग्रहण का सिंहासनारुड़ हुआ.
- अहमदशाह गुजरात का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.
- अहमदशाह ने मालवा, आसीरगढ़ तथा राजपूताना के अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की.
- अहमदशाह ने असाचल के नजदीक अहमदनगर नामक एक नगर की स्थापना की.
- अहमदशाह ने हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया तथा गुजरात में पहली बार जजिया लगाया.
- अहमदशाह वास्तुशास्त्र का महान संरक्षक था.
- अहमदशाह ने राजधानी अहिलवड़ा से अहमदनगर परिवर्तित की.
महमूद शाह I बेगड़ा (1458-1511)
- गुजरात का सबसे महान् शासक महमूद शाह I (1458-1511) था.
- महमूद शाह I ने दो शक्तिशाली राजपूत गढ़ों (किलों) गिरनार व जूनागढ़ तथा चम्पानेर के किलों को जीता.
- इसके बाद इसे ‘बेगड़ा’ की उपाधि मिली .
- गिरनार के समीप मुस्तफाबाद की स्थापना कर अपनी राजधानी बनायी .
- बेगड़ा ने चम्पानेर के पास महमूदाबाद की स्थापना की.
- चम्पानेर के निकट उसने एक विशाल ‘बाग-ए-फिदौस’ (स्वर्गिक उपवन) की स्थापना की.
- संस्कृत विद्वान कवि उदयराज उसका दरबारी कवि था .
- धार्मिक रूप से असहिष्णु बेगड़ा ने गुजरात के समुद्र तटों पर बढ़ रहे पुर्तगाली प्रभाव को कम करने के लिए मिस्र नौसेना की सहायता लेकर पुर्तगालियों से संघर्ष किया, किन्तु सफलता नहीं मिली .
- बारबोसा एवं वार्थेमा ने बेगड़ा के विजय की रोचक जानकारी दी है.
खलीलखाँ ( मुजफ्फरशाह )
- 23 नवम्बर, 1511 को इसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र खलीलखाँ ‘मुजफ्फरशाह ‘ की उपाधि के साथ सिंहासन पर बैठा.
- मेवाड़ के सांगा से उसका युद्ध हुआ .
बहादुरशाह (1526-37)
- अप्रैल 1526 में मुजफ्फरशाह की मृत्यु के बाद बहादुरशाह (1526-37) गद्दी पर बैठा .
- 1531 में उसने मालवा को जीतकर गुजरात में मिला लिया.
- यह उसकी महान सैनिक उपलब्धि थी.
- 1534 में उसने चित्तौड़ पर आक्रमण किया.
- 1535 में मुगल शासक हुमायूँ ने उसे पराजित कर गुजरात से बाहर खदेड़ दिया.
- 1537 ई. में पुर्तगालियों ने उसकी हत्या कर दी.
- अकबर ने 1572-73 ई. में गुजरात को मुगल सत्ता के अधीन कर लिया.
मालवा
दिलावर खाँ
- गुजरात की तरह मालवा भी अंतिम तुगलकों के समय स्वाधीन हो गया.
- ऐसा 1401 ई. में दिलावर खाँ ने किया, जिसे फिरोज तुगलक ने 1390 ई. में मालवा का सूबेदार बनाया था.
- इसके पूर्व 1310 ई. में ही अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को अपने अधीन किया था.
अलप खाँ (हुसंगशाह)
- 1405 ई. में दिलावर खाँ की मृत्यु तथा तैमूर के भारत से लौटने के पश्चात् दिलावर का पुत्र अलप खाँ ‘हुसंगशाह’ की उपाधि धारण कर मालवा का सुल्तान बना .
- हुसंगशाह ने अपनी राजधानी को धारा से माण्डू हस्तांतरित किया.
- नरदेव सोनी (जैन) उसका खजांची था.
- हुसंगशाह महान विद्वान और रहस्वादी सूफी संत शेख बुरहानुद्दीन का शिष्य था.
- उसके समय में ललितपुर मंदिर का निर्माण हुआ.
गजनी खाँ मुम्मदशाह
- 1435 ई. में अलपखाँ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र गजनी खाँ मुम्मदशाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा.
महमूदशाह खिलजी
- उसकी अयोग्यता के कारण उसके वजीर ने उसे अपदस्थ कर ‘महमूदशाह’ की उपाधि से गद्दी पर बैठा.
- महमूदशाह ने 1436 ई. में मालवा में खिलजी वंश की नींव डाली.
- महमूद खाँ एक पराक्रमी शासक था, उसने मेवाड़ के राणा कुम्भा ने अपनी विजय का दावा करते हुए विजय की स्मृति में चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया.
- महमूदशाह ने माण्डू में सात मंजिलों वाले महल का निर्माण करवाया.
- निःसन्देह महमूद खिलजी मालवा के मुस्लिम शासकों में सबसे अधिक योग्य था.
- मिस्त्र के खलीफा ने उसके पद को स्वीकार किया तथा महमूद खिलजी ने सुल्तान अबू सईद के यहाँ से आये एक दूतमंडल का स्वागत किया.
- फरिश्ता उसके गुणों की प्रशंसा करते हुए उसे न्यायी एवं प्रजाप्रिय सम्राट बताता है.
- कोई भी ऐसा वर्ष नहीं बीतता था जिसमें वह युद्ध नहीं करता रहा हो .
- फलस्वरूप उसका खेमा उसका घर बन गया तथा युद्धक्षेत्र उसका विश्राम स्थल .
गयासुद्दीन
- 1469 ई. में महमूदशाह की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन गद्दी पर बैठा.
नासिरुद्दीन शाह
- 1500 ई. के लगभग गयासुद्दीन को उसके पुत्र ने जहर देकर मार दिया और साथ ही नासिरुद्दीन शाह की उपाधि ग्रहण कर मालवा की गद्दी पर बैठा.
- बुखार के कारण 1512 ई. में उसकी मृत्यु हो गई.
आजम हुमायूँ ( महमूदशाह द्वितीय )
- उसकी मृत्यु के बाद इस वंश का अन्तिम शासक आजम हुमायूँ, महमूदशाह द्वितीय की उपाधि ग्रहण कर सिंहासन पर बैठा.
- गुजरात के बहादुरशाह ने महमूदशाह द्वितीय को युद्ध में परास्त कर उसकी हत्या कर दी.
- इसी के साथ मालवा का गुजरात में 1531 ई. में विलय हो गया.
मध्यकालीन भारत प्रान्तीय राजवंश (Medieval India – Provincial Dynasty in Hindi)
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