विजयनगर साम्राज्य का प्रशासन (Administration of Vijayanagara Empires)
केन्द्रीय शासन (Central government)
राजा
- विजयनगर सिद्धान्ततः निरंकुश राजतन्त्र था.
- राजा ही सम्पूर्ण शक्ति यथा-सैनिक, असैनिक तथा न्यायिक आदि का केन्द्र था.
- फिर भी राजा की निरंकुशता पर व्यापारिक निगम, धार्मिक संस्थाओं, केन्द्रीय मन्त्री-मण्डल, ग्रामीण संस्थाएं आदि रोक लगाती थीं.
- धार्मिक दृष्टि से वे सहिष्णु थे.
- कई बार राजा के चुनाव में मन्त्रियों तथा दरबारियों का बड़ा हाथ होता था.
- प्रायः राजा प्रजा-हितैषी होता था.
मंत्रिमंडल
- राजा की शासन कार्यों में सहायता हेतु एक मंत्रिमंडल होता था जिसमें सम्भवतः 20 सदस्य होते थे.
- मंत्रिमंडल के अध्यक्ष को सभानायक कहा जाता था.
- शासन कायों को चलाने में मन्त्रिपरिषद् महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी, किन्तु मन्त्रिपरिषद् की सलाह को मानना या न मानना राजा की इच्छा पर निर्भर करता था.
- ‘दण्डनायक’ अनेक अधिकारियों की विशेष श्रेणी थी, जिसमें सेनापति, न्यायाधीश, गवर्नर अथवा प्रशासकीय अधिकारी आदि शामिल थे.
- कुछ अन्य अधिकारी कार्यकर्ता कहलाते थे.
केन्द्रीय विभाग और सचिवालय
- शासकीय कार्यों को अनेक भागों में बाँटा गया था तथा केन्द्र में एक संगठित सचिवालय की व्यवस्था की गई थी.
- सचिवालय का प्रमुख अधिकारी कर्णिकम या सचिव होता था.
- केन्द्र में दो कोषागार (छोटा तथा बड़ा) होते थे.
- छोटे कोषागार में से हर समय व्यय हेतु धन निकाला जा सकता था, किन्तु बड़े कोषागार में बड़ी मात्रा में धन संचित रखा जाता था और बहुत बड़ी जरूरत पड़ने पर ही उससे धन निकाला जाता था.
- शाही मुद्रा रखने वाला अधिकारी ‘मुद्राकर्ता’ कहलाता था.
राजस्व
- राजस्व नकदी और जिन्स दोनों रूपों में वसूल किया जाता था.
- भूमिकर,
- प्रान्तीय गवर्नरों द्वारा भेजे एक वार्षिक कर,
- सम्पत्ति कर,
- विक्रय कर,
- व्यवसाय कर,
- विवाह कर,
- लाइसेंस शुल्क,
- परिवहन कर,
- बाजार कर,
- जुर्माना आदि राज्य की आय के प्रमुख साधन थे.
- भूमि को कई श्रेणियों में बांटा गया था,
जैसे—
- सिंचाई- युक्त भूमि,
- सूखी भूमि,
- मन्दिरों या ब्राह्मणों की भूमि,
- चारागाहों के लिए छोड़ी गई भूमि आदि.
- भू-राजस्व की मात्रा भूमि की उत्पादकता और उसकी स्थिति को ध्यान में रख कर तय की जाती थी.
- राज्य की आय को सामान्यतः महल, सेना और धार्मिक मदों पर व्यय किया जाता था.
सैन्य व्यवस्था
- सेना में मुख्यतया हाथी, घुड़सवार और पैदल सैनिक होते थे.
- तत्कालीन लेखों के अनुसार तोपखाना तथा जल सेना भी सैनिक संगठन के अंग थे, किन्तु उनके संगठन के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है.
- पुर्तगालियों से अच्छे अरबी तथा इरानी घोड़े खरीदे जाते थे.
- अब्दुर्रजाक के अनुसार,
“इस सेना में सैनिक हर चार महीने पर वेतन पाते थे और किसी भी व्यक्ति को किसी प्रान्त के राजस्व पर हुण्डी के जरिये वेतन भुगतान नहीं किया जाता था.”
पुलिस व्यवस्था
- विजयनगर साम्राज्य में पुलिस व्यवस्था अच्छी थी और स्थानीय चोरी और अपराधों की जिम्मेदारी उसी प्रकार पुलिस अधिकारियों पर थी जैसे शेरशाह सूरी के काल में थी.
- शहरों में रात को सड़कों पर नियमित रूप से पुलिस का पहरा और गश्त की व्यवस्था थी .
न्याय विभाग
- सर्वोच्च न्यायिक शक्ति राजा में निहित थी .
- अपील के लिए सर्वोच्च संस्था सम्राट की सभा होती थी.
- प्रायः छोटे-छोटे अपराधों के मामले ग्राम-पंचायतें व जातीय संगठन सुलझा लेते थे.
- अपराध सिद्ध करने के लिए ऑडियल प्रथा (Ordeal System) (अग्नि परीक्षा आदि) भी प्रचलित थी.
प्रान्तीय शासन
- साम्राज्य कई प्रान्तों, राज्यों या मण्डला में विभक्त था.
- सामान्यतः राज परिवार का सदस्य या कोई राजकुमार ही प्रान्त के मुखिया होता था.
- कुछ प्रान्तों में कुशल और अनुभवी दण्डनायकों को भी शासक नियुक्त किया जाता था.
- ये गवर्नर या प्रान्तपति नए कर लगाने, पुराने को समाप्त करने या भूमि दान करने, कानून व्यवस्था रखने, राज्य कर वसूल करने, केन्द्र के लिए निर्धारित अंश दान हर वर्ष भेजना आदि कार्य करते थे.
- प्रान्तीय गवर्नरों को व्यापक अधिकार प्राप्त थे.
- प्रान्तों में बहुत से क्षेत्र ऐसे भी थे जो अधीनस्थ शासकों द्वारा शासित थे.
नायंकर व्यवस्था
- इस व्यवस्था में कुछ विशेषताएं दिल्ली सल्तनत कालीन इक्तादार या राजपूत कालीन भू-सामन्त या मध्य कालीन व्यवस्था यूरोपीय सामंत व्यवस्था जैसी होती थी.
- संभवतः ये अपनी सेना रखते थे और एक निश्चित भू-खण्ड से कर प्राप्त करने का इन्हें अधिकार था.
- प्रायः इनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थनान्तरण नहीं होता था.
आयंगर व्यवस्था
- प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में बारह प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी.
- इसको सामुहिक रूप से आयंगर कहा जाता था.
- इन्हें राज्य की ओर से वेतन नहीं दिया जाता था.
- इनकी सेवाओं के बदले में इन्हें राज्य के करों से पूर्णतः मुक्त रखा जाता था.
- इनके पद पैतृक थे तथा ये किसी के पास अपने पद को बेचने अथवा गिरवी रखने के लिए स्वतन्त्र होते थे.
स्थानीय शासन
- प्रान्तों को मण्डलों तथा मण्डलों को जिलों में बांटा गया था.
- जिले को ‘कोटम’ या ‘वलनाडु’ कहते थे.
- जिले को ‘परगनों या ‘ताल्लुकों में बांटा गया था जिन्हें ‘नाडु’ कहते थे .
- प्रत्येक नाडु में पचास-पचास गाव होते थे, जिसे मेलागाँव कहते थे.
- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘उर’ कहलाती थी.
- गाँव को मोहल्लों में बांटा गया था.
- गाँव के अधिकारियों के पद पैतृक होते थे.
- ये अधिकारी थे-‘सेन्टेयव’ (गाँव की आय-व्यय की देखभाल करने वाला, “तलस’ (चौकीदार), ‘बेगरा’ (बेगार अथवा मजदूरी की देखभाल करने वाला) आदि .
- नाडु के सदस्यों को ‘नातवर’ कहा जाता था. इनका अधिकार क्षेत्र अत्यन्त ही विस्तृत था.
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