विजयनगर साम्राज्य सामाजिक दशा,आर्थिक दशा,कला एवं साहित्य
सामाजिक दशा
- विजयनगर समाज वैदिक और शास्त्रीय परम्पराओं के आधार पर कई वर्गों और जातियों में बंटा था.
- फिर भी प्रमुख वर्ग चार थे–ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य वर्ण (चेट्टी) तथा निम्न वर्ग .
ब्राह्मण
- ब्राह्मणों को समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था.
- ब्राह्मणों को कठोर दण्ड से मुक्त रखा गया था.
- ब्राह्मण सम्मानीय जीवन व्यतीय करते थे और माँस आदि का प्रयोग नहीं करते थे.
क्षत्रिय
- क्षत्रिय वर्ग के विषय में स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है.
- अनुमानतः कहा जा सकता है कि क्षत्रिय वर्ग के लोग राजाओं, प्रान्तीय और केन्द्रीय उच्चाधिकारियों, सेनापतियों आदि के रूप में कार्य करते थे.
वैश्य वर्ण (चेट्टी)
- वैश्य वर्ण या मध्यम वर्ग के “चेट्टी” नामक विशाल वर्ग का उल्लेख मिलता है.
- अधिकांश व्यापार वैश्य वर्ग के हाथ में था.
- यह समूह (वैश्य वर्ग) लिपिक एवं लेखा कार्य में पूर्णतः दक्ष था.
निम्न वर्ग
- किसान, जुलाहे, नाई, शस्त्रवाहक, लुहार, स्वर्णकार, मूर्तिकार, बढ़ई आदि निम्न वर्ग में आते थे.
- डोंगर (बाजीगर), मछुआरों और जोगियों को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था.
ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा चेट्टियों का जीवन उच्च-स्तरीय था, जबकि अन्य लोगों का जीवन स्तर बहुत निम्न था.
स्त्रियों की स्थिति
- स्त्रियों की स्थिति प्रायः निम्न थी और उन्हें भोग की वस्तु समझा जाता था.
- कुलीन स्त्रियों को समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त था.
- वे शिक्षा, नृत्यकला, शस्त्रविद्या आदि में पारंगत होती थीं.
- अंगरक्षक के रूप में भी स्त्रियों की नियुक्ति की जाती थी.
- राज-परिवार के लोग स्त्रियों को नौकरानी एवं रखैलों के रूप में रखते थे.
- वैश्यावृत्ति में स्त्रियों का बहुत बड़ा वर्ग संलग्न था. विधवा स्त्रियों का जीवन बहुत अपमानजनक समझा जाता था.
- विधवा-विवाह प्रचलित था .
- पर्दा-प्रथा का प्रचलन नहीं था.
- सम्भवतः सती प्रथा भी प्रचलित थी.
गणिका
- गणिकाओं का प्रत्येक वर्ण के साथ उल्लेख मिलता है.
- ये दो प्रकार की होती थीं-
मन्दिरों से सम्बन्धित तथा
स्वतंत्र जीवन-यापन करने वाली
विजयनगर साम्राज्य के समाज में अनेक कुप्रथाएं भी प्रचलित थीं, जैसे-
- बाल-विवाह,
- बहु-विवाह,
- सती–प्रथा,
- दहेज-प्रथा,
- दास-प्रथा आदि .
- क्रियी दासों को ‘वेसवग’ कहा जाता था.
- स्त्रियाँ भी दास हुआ करती थीं.
- नाटक, यक्षगान, शतरंज, पासा खेलना, जुआ खेलना, तलवार बाजी, बाजीगरी, तमाशा दिखाना, मछली पकड़ना, चित्रकारी आदि लोगों के मनोरंजन के साधन थे.
- लोग माँसाहारी भी थे और शाकाहारी भी .
- गाय का माँस खाना निषेध था.
- ब्राह्मण माँस नहीं खाते थे.
- सूती रेशमी वस्त्रों का प्रचलन था.
- पुरुष धोती, कुर्ता, टोपी तथा दुपट्टे और स्त्रियाँ धोती एवं चोली पहनती थीं.
- उच्च वर्ग की स्त्रियाँ पेटीकोट पहनती थीं.
- केवल धनी व्यक्ति ही जूता पहनते थे.
- पुरुष एक पैर में कड़ा (गंडपेन्द्र) पहनते थे.
- जियनगर के राजाओं ने न तो शिक्षा में रुचि ली और न ही विद्यालयों या महाविद्यालयों की स्थापना की.
- उन्होंने ब्राह्मणों को भूमि दान देकर तथा मन्दिर और मठों को भूमि एवं सम्पत्ति का दान देकर परोक्ष रूप से शिक्षा को बढ़ावा दिया.
- इस राज्य में चारों वेदों के साथ-साथ पुराणों, इतिहास, नाटक, दर्शन, भाषा, गणित आदि की शिक्षा दी जाती थी.
आर्थिक दशा
- विभिन्न विदेशी यात्रियों यथा-इटली निवासी निकोली कोण्टी, पुर्तगाल निवासी डोमिंगो पेइज तथा ईरान निवासी अब्दुर्रज्जाक ने विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि की प्रशंसा की है.
- यहाँ कृषि तथा व्यापार काफी उन्नत स्थिति में थे.
- कृषि योग्य भूमि व सिंचाई के साधनों की उत्तम व्यवस्था की गई थी.
- विजयनगर साम्राज्य का व्यापार मुख्यतः मलाया, बर्मा, चीन, अरब, ईरान, अफ्रीका, अबीसीनिया एवं पुर्तगाल से होता था.
- व्यापार जल तथा स्थल दोनों मार्गों से होता था.
- अरब, मोती, तांबा, कोयला, पारा, रेशम आदि विदेशों से आयात किया जाता था तथा कपड़ा, चावल, शीरा, चीनी, मसाले, इत्र आदि का यहाँ से निर्यात होता था.
- उस समय अनेक प्रकार की भूमि अस्तित्व में थी जैसे
भूमि के प्रकार
कुटगि भूमि
- भू-स्वामियों द्वारा किसान को पट्टे पर दी गई भूमि .
मठापुर भूमि
- धार्मिक सेवाओं के बदले ब्राह्मणों, मन्दिरों एवं मठों को दान स्वरूप दी गई भूमि .
उंबलि भूमि
- गाँव को दी गई लगान मुक्त भूमि.
अमरम भूमि
- सैनिक तथा असैनिक अधिकारियों को उल्लेखनीय सेवाओं के बदले दी गई भूमि.
रतकोडगे भूमि
- युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने वाले को दी गई भूमि.
कला एवं साहित्य
- विजयनगर के राजाओं ने विभिन्न कलाओं-स्थापत्य कला, नाट्य कला, संगीत कला, चित्रकला आदि को बहुत प्रोत्साहन दिया.
- कृष्णदेव राय का ‘हजारा मंदिर’ तथा ‘विठ्ठलस्वामी’ का मन्दिर इस काल की स्थापत्य कला के उत्कृष्ठ नमूने हैं.
- इस काल में नृत्यकला एवं नाट्य कला पर अनेक ग्रन्थों की रचना हुई.
- राजाओं ने अनेक विद्वानों को संरक्षण दिया.
- इस काल में संस्कृत, तेलुगु, तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं में साहित्य लिखा गया.
- सायण, माधव, नचन सोम तथा कृष्णदेव राय आदि यहाँ के प्रमुख विद्वान थे.
- इन्होंने नृत्य कला, व्याकरण, दर्शन, धर्म आदि पर ग्रन्थ लिखे.
- संक्षेप में विजयनगर राज्य में हिन्दू-धर्म, संस्कृति, प्राचीन दक्षिण भारत की भाषाओं के साहित्य, वास्तुकला, मूर्तिकला तथा संगीत कला को बहुत प्रोत्साहन मिला.
विजयनगर साम्राज्य सामाजिक दशा,आर्थिक दशा,कला एवं साहित्य
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