सिक्ख शक्ति का अभ्युदय (Rise of the Sikh Power)
सिक्ख शक्ति का अभ्युदय
सिक्ख गुरु
(1) गुरु नानक (1469-1538)
- गुरु नानक सिक्ख मत के प्रवर्तक थे.
- गुरु नानक का जन्म 1469 में पश्चिमी पंजाब के तलवण्डी नामक ग्राम में हुआ था.
- वर्तमान में इस ग्राम को ननकाना साहब कहा जाता है.
- इनकी माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कालू मेहता था.
- सात वर्ष की आयु में गुरु नामक ने अपने ग्राम की पाठशाला में प्रवेश लिया.
- शुरू से ही ईश्वर के ध्यान में मग्न रहने के कारण हिन्दू या मुसलमान शिक्षक उन्हें कुछ अधिक नहीं पढ़ा सके.
- व्यापार करने और धन प्राप्त करने के बजाए वह निर्धनों में धन का वितरण कर देते थे.
- उनके पिता ने अपने पुत्र की परलोक संबंधी प्रवृत्ति को बदलने के लिए सुलक्खनी नाम की कन्या से उनका विवाह कर दिया.
- इनके दो पुत्र भी हुए, किन्तु विवाह से भी उनके मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
- 1499 में उन्होंने सांसारिक मोहमाया छोड़कर संन्यास ले लिया.
गुरु नानक के उपदेश
- लगभग 30 वर्ष तक गुरु नानक ज्ञान प्राप्त करते हुए तथा उपदेश देते हुए देश भर का भ्रमण करते रहे.
- गुरु नानक का मुख्य उपदेश यह था कि एक सच्चे प्रभु में विश्वास करो.
- उनके अनुसार “प्रभु” एक है.
- नानक प्रभु के “एकत्व” पर जोर देते थे.
- उनके अनुसार प्रभु के समान कोई नहीं हो सकता.
- नानक ने प्रभु को ‘प्रेमिका’ कहा है.
- उनके मत में ईश्वर सबके हृदय में विराजमान है.
- वे ‘सतनाम’ की पूजा पर जोर देते थे.
सुधारक या क्रान्तिकारी
- गुरु नानक के कार्यों के विषय में दो विचारधाराएं प्रचलित हैं.
- एक विचारधारा के अनुसार नानक हिन्दू धर्म के सुधारक थे.
- दूसरी विचारधारा के अनुसार नानक क्रान्तिकारी थे.
- प्रथम विचारधारा के अनुसार, नानक भारतवर्ष में ‘भक्ति मार्ग’ को मानने वालों में से थे.
- उन्होंने हिन्दू धर्म के आधारभूत नियमों का खण्डन न करके केवल शताब्दियों से उसमें घुस आई कुरीतियों का ही खण्डन किया.
- वे अवतार-उपासना से अधिक प्रभु-भक्ति पर जोर देते थे.
- दूसरी विचारधारा के अनुसार, वे एक क्रान्तिकारी थे.
- उनका ध्येय तत्कालीन समाज में असंतोष पैदा करके, उसके समस्त विधि-विधान को उलट-पलट करके एक नए समाज का निर्माण करना था.
- गुरु नानक ने हिन्दू धर्म के मुख्य आधार वर्णव्यवस्था का खण्डन किया और वर्णव्यवस्था के नाश के लिए एक ठोस कार्यक्रम बनाया.
- उन्होंने अपने अनुयायियों को युगों से एकत्रित अज्ञान के अन्धकार से निकाला तथा बौद्धिक उपासना और चारित्रिक श्रेष्ठता की प्रेरणा दी.
- उनके अनुयायी सिक्ख व शिष्य कहलाते थे “प्रजा” नहीं.
(2) गुरु अंगद (1538-1552)
- गुरु नानक ने गुरु अंगद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया.
- गुरु अंगद ने “गुरुमुखी” लिपि का जनसाधारण के मध्य प्रचार किया.
- कहा जाता है कि हुमायूँ गुरु अंगद से आशीर्वाद लेने आया था.
(3) गुरु अमरदास (1559-1574)
- गुरु अंगद का उत्तराधिकारी गुरु अमरदास बना.
- गुरु अमरदास ने गोइन्दावाल में एक बावली खुदवाई.
- यह बावली बाद में सिक्खों का मुख्य तीर्थ बन गया.
- उन्होंने लंगर की परिपाटी में सुधार किए और इसे लोकप्रिय बनाया.
- उन्होंने अपने धार्मिक साम्राज्य को 22 मंत्रियों अथवा भागों में बांटा.
- उन्होंने सती प्रथा को वर्जित किया और अपने अनुआयियों को मदिरा पीने से मना किया.
(4) गुरु रामदास (1575-1581)
- गुरु अमरदास का दामाद रामदास उनका उत्तराधिकारी बना.
- उसकी सम्राट अकबर से बड़ी घनिष्ट मित्रता थी.
- अकबर ने उन्हें आधुनिक अमृतसर के स्थान पर बहुत सस्ते दाम पर 500 बीघा भूमि प्रदान की.
- इस स्थान पर गुरु रामदास ने एक नया नगर “चकगुरु” या रामदासपुर नाम से बसाया.
- यह नगर कालान्तर के अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
- उन्होंने दो तालाबों-अमृतसर और संतोषसर-की खुदाई भी आरंभ करवाई.
- गुरु रामदास के काल में सिक्ख पन्थ ने काफी उन्नति की.
(5) गुरु अर्जुनदेव (1581-1606)
- गुरु अर्जुनदेव लगभग 25 वर्ष तक सिक्ख पन्थ के गुरु रहे.
- उन्होंने अमृतसर तालाब की खुदाई का कार्य पूर्ण किया.
- गुरु अर्जुनदेव ने तरनतारन और करतारपुर नाम के नगर बसाए .
- गुरु अर्जुनदेव का मुख्य कार्य सिक्खों की धार्मिक पुस्तक “आदि ग्रन्थ” को पूरा करवाना था.
- इस पुस्तक में सिक्खों के पांच गुरुओं और 18 भक्तों तथा कबीर, फरीद, नामदेव और रैदास इत्यादि के उपदेशों का संग्रह था.
- “ग्रन्थ साहव” (आदि ग्रन्थ) सिक्ख पन्थ की महत्वपृर्ण पुस्तक है.
- यह ग्रन्थ हिन्दुओं के मन्दिर की मूर्ति या कैथोलिक चर्च के सलीब की भांति नहीं है.
- गुरु अर्जुनदेव ने “मसन्द प्रथा” का प्रारंभ किया.
- इस प्रथा के अनुसार सिक्खों को अपनी आय का दसवां भाग गुरु को देना पड़ता था.
- सम्राट अकबर और गुरु अर्जुनदेव के संबंध भी सौहार्दपूर्ण थे.
- किन्तु जहांगीर के शासनकाल में इनमें कटुता आ गई .
- इस कटुता के कारण ही 1606 में गुरु की हत्या करवा दी गई.
(6) गुरु हरगोविन्द (1606-1645)
- गुरु अर्जुन का पुत्र हरगोविन्द उनका उत्तराधिकारी बना.
- आरंभ से ही वह मुगलों का कट्टर शत्रु था.
- उसने अपने अनुयायियों को शस्त्र रखने और मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध युद्ध करने को कहा और स्वयं “सच्चा बादशाह” की उपाधि धारण की.
- उन्होंने राजोचित चिन्ह-छत्र, शस्त्र और बाज-धारण किए तथा सैनिक पोशाक पहननी आरंभ की.
- वे दो तलवारें रखा करते थे जिनमें से एक उनकी धार्मिक सत्ता और दूसरी उनकी राज्य-सत्ता की प्रतीक थी.
- उन्होंने लोहगढ़ की मोर्चाबन्दी की और “अकाल तख्त” या ‘प्रभु का सिंहासन‘ की स्थापना की.
- मुगल सम्राट जहांगीर गुरु की निरन्तर बढ़ती शक्ति को सहन नहीं कर पाया.
- उसने गुरु को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया.
- शाहजहां के शासन काल में भी मुगल-सिक्ख संबंध मधुर नहीं थे.
(7) गुरु हरराय (1645-1661)
- गुरु हरगोविन्द का उत्तराधिकारी उनका पौत्र हरराय बना.
- गुरु हरराय ने शान्तिपूर्ण प्रचार की नीति अपनाई.
- अतः उनके शासन काल में मुगल-सिक्ख संबंध मधुर रहे.
(8) गुरु हरकिशन (1661-1664)
- गुरु हरराय का उत्तराधिकारी गुरु हरकिशन बना.
- गुरु बनने के समय उनकी आयु केवल पांच वर्ष थी.
- तीन वर्ष बाद ही उसकी चेचक की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई.
(9) गुरु तेगबहादुर (1664-1675)
- गुरु तेगबहादुर सिक्खों के नौवें गुरु थे.
- मुगल सम्राट औरंगजेब की शत्रुता उन्हें विरासत में मिली थी.
- दोनों के मध्य यह शत्रुता बढ़ती ही गई.
- औरंगजेब ने इन्हें दिल्ली में बन्दी बना लिया तथा इस्लाम धर्म स्वीकार करने या चमत्कार दिखाने को कहा.
- गुरु ने औरंगजेब की इनमें से किसी भी बात को मानने से इन्कार कर दिया.
- अतः औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर की हत्या करवा दी.
(10) गुरु गोविन्द सिंह (1675-1708)
- गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु थे.
- गुरु बनने के बाद उन्होंने अनुभव किया कि उनके अनुयायियों में मतभेद है तथा उनमें मुगलों से युद्ध करने की न तो सामर्थ्य है और न ही साहस.
- उन्होंने अपने अनुयायियों को युद्ध की शिक्षा देनी आरंभ की और पठानों को अपनी सेना में भर्ती किया.
- उनका अनेक पर्वतीय राजाओं से संघर्ष हुआ.
- इस संघर्ष में भंगानी का युद्ध बहुत प्रसिद्ध है.
- उन्होंने आनंदपुर को अपना मुख्यालय बनाया.
- 1699 की बैसाखी के दिन गुरु गोविन्द सिंह ने ” खालसा “ का स्थापना किया.
- उन्होंने आनंदपुर में सिक्खों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया और पांच आदमियों का चुनाव किया.
- इन पांच आदमियों को “पंच प्यारे” के नाम से पुकारा जाने लगा.
- गुरु ने यहां “अमृत” पिया.
- इस प्रकार गुरु नानक के अनुयायी सन्त से सैनिक बन गए .
- सिक्खों को एक विशेष प्रकार की पोशाक पहननी पड़ती थी.
- अपने शरीर के साथ सदैव पाँच वस्तुएँ यथा-केश, कृपाण, कच्छा, कंघा और कड़ा रखने पड़ते थे.
- पर्वतीय प्रदेशों के सामंतों ने गुरु के नेतृत्व में निरन्तर बढ़ती सिक्ख शक्ति पर आक्षेप किया.
- इसके परिणामस्वरूप 1701 में आनंदपुर का प्रथम युद्ध हुआ.
- इस युद्ध में पर्वतीय राजा पराजित हुए.
- आगे चलकर इन पर्वतीय प्रदेशों ने औरंगजेब से सहायता प्राप्त की.
- इसके फलस्वरूप 1903-04 में आनंदपुर का दूसरा युद्ध हुआ.
- इस युद्ध में सिक्खों को पराजित होकर आनंदपुर छोड़ना पड़ा.
- गुरु के दो पुत्र पकड़ लिए गए और उन्हें सरहिन्द में ले जाकर जिन्दा ही दीवार में चिनवा दिया गया.
- चमकौर में पुनः युद्ध हुआ.
- इस युद्ध में गुरु के दो और पुत्र शहीद हुए.
- खिदरना या मुक्तसर के युद्ध के बाद गुरु तलवण्डी साबो या दमदमा में आकर बस गए.
- 1708 में एक पठान ने छुरा घोंपकर उनकी हत्या कर दी.
- गुरु गोविन्द सिंह का औरंगजेब के नाम लिखा गया अंतिम पत्र “जफरनामा” के नाम से प्रसिद्ध है.
बन्दा बहादुर (1670-1716)
- बन्दा बहादुर का जन्म 1670 में हुआ था.
- वह डोगरा राजपूत था.
- उसका जन्म का नाम लक्ष्मणदास था और वह शिकार का बड़ा शौकीन था.
- 1708 में उसकी गुरु गोविन्द सिंह से भेंट हुई.
- गुरु ने उसे अपना “बन्दा” अर्थात् सेवक बना लिया तथा उसे उत्तर भारत में जाकर खालसा के शत्रुओं से बदला लेने का आदेश दिया.
- गुरु गोविन्द सिंह ने पंजाब के सिक्खों को बन्दा बहादुर के नेतृत्व में संगठित होने का आदेश भी दिया.
- बन्दा बहादुर के नेतृत्व में सिक्खों ने काफी शक्ति का संचय कर लिया.
- उन्होंने कौशल, समाना, शाहबाद, अम्बाला और कपूरी को लूटा.
- 1710 में सिक्खों ने सरहिन्द पर अधिकार कर लिया.
- सरहिन्द की विजय के बाद बन्दा बहादुर ने बाजसिंह को सरहिन्द का राज्यपाल नियुक्त किया.
- 1710 में ही उसने गुरु के नाम से सिक्के भी प्रचलित किए.
- उसने जमींदारी प्रथा का अन्त किया.
- उसके नेतृत्व में सिक्खों ने अमृतसर, कसूर, बटाला, कालानौर और पठानकोट आदि को भी जीत लिया.
- सिक्खों की इन विजयों ने मुगल सम्राट बहादुर शाह को इनका दमन करने के लिए बाध्य कर दिया.
- सम्राट ने अमीनखाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी.
- बन्दा बहादुर ने लौहगढ़ के किले का समर्पण कर दिया और स्वयं भाग निकले किन्तु मुगल सेना ने उसका पीछा किया.
- इस कारण गुरदासपुर नांगल का प्रसिद्ध युद्ध हुआ.
- इस युद्ध में सिक्खों की घोर पराजय हुई.
- बन्दा बहादुर को गिरफ्तार कर दिल्ली भेज दिया गया.
- जून, 1716 में बन्दा बहादुर और उनके साथियों की हत्या करवा दी गई.
बन्दा बहादुर की मृत्यु के बाद सिक्खों की स्थिति
- 1716 में बन्दा बहादुर की मृत्यु के बाद सिक्ख दो दलों में बंट गए-“बन्दई और “तत खालसा”.
- “बन्दई” बन्दा बहादुर के अनुयायी थे तथा “तत खालसा” कट्टर सिक्ख पंथी.
- 1721 में भाई मनीसिंह के प्रयत्नों के फलस्वरूप इन दोनों दलों में एकता स्थापित हो गई.
- पंजाब के मुगल राज्यपाल जकारिया खान ने सिक्खों का दमन करने के लिए मुसलमानों की धर्मान्धता को भड़काया और ‘हैदरी झण्डा’ लहाराया.
- सिक्खों ने मुगल शक्ति का सामना करने के लिए अपने को ‘दल खालसा’ में संगठित किया.
- दल खालसा के दो दल थे-
- बुड्ढा दल और
- तरुण दल .
- बुड्ढा दल बड़े आदमियों की सेना थी और तरुण दल नवयुवकों की .
- ये दोनों दल सरबत खालसा के नेता के नाम से प्रसिद्ध नवाब कपूरसिंह के नेतृत्व में कार्य करते थे.
- 1746 और 1747 में पंजाब में गृह-युद्ध की आग जलती रही.
- अंत में मीर मन्नू को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया.
- उसने भी सिक्खों का दमन करने की नीति अपनाई.
- 1748 में दल खालसा का नेतृत्व कपूरसिंह ने जस्सासिंह आहलुवालिया को सौंप दिया.
- 1753 में पंजाब के राज्यपाल मीर मन्नू की मृत्यु के बाद उसकी विधवा मुगलानी बेगम ने पंजाब की सत्ता पर कब्जा कर लिया.
- वह एक चरित्रहीन स्त्री थी, इस कारण सारे पंजाब में अराजकता फैल गई.
- शीघ्र ही उसे सत्ताच्युत कर अदीनाबेग को पंजाब का राज्यपाल नियुक्त किया गया.
- अदीनाबेग ने सिक्खों के साथ मधुर संबंध स्थापित किए.
- 1758 में अदीनावेग की मृत्यु हो गई.
सिख मिस्लें
- मिस्ल शब्द एक अरबी भाषा का शब्द है.
- इसका अर्थ है-“बराबर” या ‘एक जैसा’ .
- सिख मिस्लों का प्रादुर्भाव उस समय हुआ जिस समय पंजाब में पूर्ण रूप से अराजकता फैली हुई थी.
- इस दौरान सिख किसी सुदृढ़ नेतृत्व के अभाव में छोटे-छोटे दलों में बंटे हुए थे.
- उनकी यह दलबन्दी ‘‘मिस्ल” के नाम से प्रसिद्ध हुई.
- ये मिस्ले पूर्ण रूप से धार्मिक थी.
- ये मिस्ले प्रजातंत्रात्मक भी थी, क्योंकि मिस्त के प्रत्येक सैनिक और साधारण सदस्य को सामाजिक और राजनीतिक रूप से समान अधिकार प्राप्त थे.
- किन्तु मिस्ल के सरदार पर किसी प्रकार का बंधन या रोक न होने के कारण मिस्त पूर्णरूप से सामन्तशाही थी.
मिस्ल का संगठन
- प्रत्येक मिस्ल का सरदार या मिस्तदार, मिस्ल का मुखिया होता था.
- सरदार को मिस्ल के मामलों में पूर्ण अधिकार प्राप्त था, किन्तु वह अपने अनुयायियों के दैनिक जीवन में बाधा नहीं पहुंचाता था.
- मिस्लों का शासन मूलतः ग्राम्य शासन था.
- प्रत्येक ग्राम एक छोटा-सा गणतंत्र था.
- प्रत्येक ग्राम में एक पंचायत होती थी.
- मुखियों की सभा या पंचायत शक्तिशालियों को नियंत्रण में रखती थी तथा निर्वलों की सुरक्षा करती थी.
- ग्राम दो प्रकार के होते थे-
- वे ग्राम जो सीधे मिस्ल के शासन में होते थे और
- मिस्ल द्वारा रक्षित ग्राम, जिन्हें “राखी” कहा जाता था.
- पहले प्रकार के ग्रामों से उपज का पांचवाँ भाग लगान के रूप में लिया जाता था.
- ‘राखी’ ग्रामों से भी इतनी ही मात्रा में लगान लिया जाता था.
- उल्लेखनीय है कि सिक्खों की ‘राखी’ प्रथा मराठों की ‘चौथ’ के समतुल्य थी.
- मिस्लों की सैन्य शक्ति का मेरुदण्ड घुड़सवार सेना थी.
- सैनिकों की नियमबद्ध शिक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं था.
- इन मिस्लों के सैनिकों का विश्वास जमकर लड़ने की अपेक्षा छापामार युद्ध पर अधिक था.
गुरमता
- ‘गुरमता ‘ को शाब्दिक अर्थ “धर्मगुरु का आदेश” है.
- “गुरमता” मिस्लों की केन्द्रीय संस्था थी.
- यह माना जाता है कि सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के पश्चात् सिक्ख दिवाली, दशहरा या वैशाखी के दिन अमृतसर में ‘अदि ग्रन्थ’ के सम्मुख एकत्रित होते थे और “अकाल तख्त” पर सामूहिक कार्यवाही के अपने कार्यक्रम पर विचार करते थे.
- इस विचार-विमर्श के उपरान्त किए गए निर्णय को प्रस्तावों या ‘गुरमता’ के रूप में लिख लिया जाता था.
- 1805 में अंतिम ‘गुरमता’ लिखा गया.
बारह मिस्लें
- साधारणतः 12 सिक्ख मिस्लों का उल्लेख मिलता है.
- ये बारह मिस्लें निम्नलिखित हैं–
(1) सिंहपुरिया या फैजलपुरिया मिस्ल
- इस मिस्ल का संस्थापक नवाब कपूरसिंह था.
- यह खालसा का सर्वमाय नेता था.
- 1753 में इसकी मृत्यु के पश्चात् खुशहाल सिंह उसका उत्तराधिकारी बना.
- 1796 में खुशहाल सिंह का उत्तराधिकार बुधसिंह ने सम्भाला.
- इस मिस्त का अधिकृत क्षेत्र सतलुज के पूर्व और पश्चिम की ओर फैला था.
- जालंधर और पट्टी इस मिस्त के महत्वपूर्ण स्थान थे.
- 1836 में रणजीतसिंह ने इस मिस्त को अपने राज्य में मिला लिया.
(2) आहलुवालिया मिस्ल
- इस मिस्ल का संस्थापक जस्सा सिंह आहलुवालिया था.
- 1738 में यह मिस्ल प्रसिद्धि में आई.
- 1748 में जस्सा सिंह ‘दल खालसा‘ का नेता चुना गया.
- 1753 में कपूर सिंह की मृत्यु के पश्चात् जस्सा सिंह समस्त सिक्ख जाति का नेता बन गया तथा “सुलतान-उल-कौम कहलाया जाने लगा.
- 1783 में जस्मा सिंह की मृत्यु के बाद भाग सिंह उसका उत्तराधिकारी बना.
- 1801 में फतह सिंह ने भाग सिंह का उत्तराधिकार सम्भाला.
- 1837 में निहाल सिंह ने फतह सिंह का स्थान लिया.
- निहाल सिंह के वंशज कपूरथला रियासत के पैप्सू राज्य में मिलाये जाने तक वहां राज्य करते रहे.
(3) भंगी मिस्ल
- सरदार हरि सिंह ने भंगी मिस्ल की स्थापना की.
- यह मिस्ल क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी थी.
- हरि सिंह के बाद झण्डा सिंह इस मिस्ल का सरदार बना.
- 1774 में उसकी हत्या के बाद उसके भाई गंडा सिंह ने उसका उत्तराधिकार संभाला.
- 1782 में उसकी मृत्यु के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिस्ल को अपने राज्य में मिला लिया.
(4) रामगढ़िया मिस्ल
- इस मिस्ल की स्थापना जस्सा सिंह इच्छोगिलिया ने की थी.
- 1803 में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र जोध सिंह उसका उत्तराधिकारी बना.
- 1814 में जोध सिंह की मृत्यु के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिस्ल को अपने राज्य में मिला लिया.
(5) कन्हिया मिस्ल
- इस मिस्ल की स्थापना जय सिंह ने की.
- उसकी मृत्यु के पश्चात् इसकी सत्ता सदाकौर ने संभाली.
- कालान्तर में महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिस्ल को भी अपने राज्य में मिला लिया.
(6) सुकरचकिया मिस्ल
- चरत सिंह इस मिस्ल का संस्थापक था.
- 1774 में उसकी मृत्यु के बाद महा सिंह उसका उत्तराधिकारी बना.
- 1798 में उसकी मृत्यु के बाद रणजीत सिंह उसका उत्तराधिकारी बना.
- कालान्तर में रणजीत सिंह ने ही पंजाब में सतलुज के दूसरे पार के सब सरदारों को हराकर एक शक्तिशाली सिक्ख राज्य की नींव डाली.
(7) फुलकियाँ मिस्ल
- इस मिस्ल की स्थापना चौधरी फूल ने की.
- 1696 से 1765 के काल में बाबा आला सिंह के नेतृत्व में इस मिस्ल का यश और शक्ति बहुत बढ़ गयी.
- 1765 में अहमदशाह अब्दाली ने आला सिंह को “नगाड़ा और निशान (ध्वज)” राज्योचित चिन्ह प्रदान किए.
- 1765 में आला सिंह की मृत्यु के बाद अमर सिंह ने उसका उत्तराधिकार सम्भाला .
- उसने इतनी शक्ति अर्जित की कि अहमदशाह अब्दाली ने उसे “राज, राजगान बहादुर” की पदवी प्रदान की.
- अमरसिंह का उत्तराधिकारी साहिब सिंह बना .
- कालान्तर में इस मिस्ल ने ईस्ट इंडिया की कम्पनी का संरक्षण स्वीकार किया.
(8) डल्लेवालिया मिस्ल
- गुलाब सिंह ने इस मिस्ल की स्थापना की थी.
- इस मिस्ल का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति तारा सिंह घेबा था.
- उसकी मृत्यु के बाद रणजीत सिंह ने इस मिस्त को अपने राज्य में मिला लिया .
(9) निशानवालिया मिस्ल
- इस मिस्ल को संगत सिंह और मोहर सिंह ने स्थापित किया था.
- यह एक छोटी सी मिस्ल थी .
- अम्बाला और शाहावाद इसके महत्वपूर्ण क्षेत्र थे.
- कालान्तर में यह मिस्ल ईस्ट इंडिया कम्पनी के संरक्षण में चली गई.
(10) करोड़ सिंधिया मिस्ल
- इस मिसल का नाम “पंचगढ़िया” मिस्ल भी था.
- बधेल सिंह के नेतृत्व में इस मिस्ल ने ख्याति प्राप्त की.
(11) शहीद मिस्त
- इसे निहंग मिस्त भी कहते थे.
- यह मिस्ल उन सिक्खों द्वारा स्थापित की गई थी जिन्हें मुसलमानों ने धार्मिक मतान्धता के कारण मरवा डाला था.
- सरदार करमसिंह और गुरबख्श सिंह इस मिस्ल के अन्य नेता थे.
(12) नक्कई मिस्ल
- सरदार हीरा सिंह इस मिस्ल के संस्थापक थे.
- 1766 में नाहर सिंह ने हीरा सिंह का उत्तराधिकार सम्भाला.
- 1769 में नाहर सिंह की आकस्मिक मृत्यु के बाद राम सिंह ने उसका उत्तराधिकार सम्भाला.
- 1807 में महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिस्ल को अपने राज्य में मिला लिया.
इन मिस्तों के संबंध में यह बात विशेष महत्व रखती है कि इनमें से अधिंकाश मिस्लों को महाराजा रणजीत सिंह ने अपने राज्य में मिलाया तथा शेष बची हुई मिस्लें ईस्ट इंडिया कम्पनी के संरक्षण में चली गई.
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