जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर (1526-30 ई.) Zahiruddin Muhammad Babur
बाबर (1526-30 ई.)
- जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 1483 ई. में मध्य एशिया के एक छोटे-से राज्य फरगना में हुआ.
- वह तैमूर और चंगेज खाँ का वंशज था.
- जब वह 11 वर्ष 4 मास का ही था, उसके पिता उमरशेख मिर्जा का देहान्त हो गया तथा बाबर राजा बना.
- बाबर के चाचा और चचेरे भाईयों ने उसकी तरुण अवस्था और अनुभवहीनता का लाभ उठा कर उस पर चारों ओर से आक्रमण कर दिए.
- 1497 ई. में बाबर ने समरकन्द को जीता.
- उसकी अनुपस्थिति में उसके मन्त्रियों ने षड्यन्त्र रचकर उसके छोटे भाई जहाँगीर को फरगना का शासक बना दिया.
- जब बाबर फरगना को प्राप्त करने समरकन्द से चला तो समरकन्द पर उसके चचेरे भाई अली ने अधिकार कर लिया.
- अतः फरवरी 1498 ई. में बाबर को एक वर्ष से अधिक समय तक खानाबदोशों वाला जीवन व्यतीत करना पड़ा.
- 1499 ई. में बाबर ने फरगना की राजधानी पर पुनः अधिकार कर लिया.
- 1500 ई. में उसने समरकन्द पर भी अधिकार कर लिया, किन्तु उजबेगों ने उसे समरकन्द छोड़ने पर बाध्य कर दिया.
- उसी वर्ष फरगना भी उसके हाथ से निकल गया और एक बार फिर से 1502 ई. में बाबर के पास कुछ भी न रहा.
- उसने अब कहीं और भाग्य आजमाने की ठानी और 1504 ई. में वह काबुल पर अधिकार करने में सफल हो गया.
- फिर उसने कन्धार व हेरात पर भी विजय प्राप्त की.
- शैबानी की मृत्यु के पश्चात् 1516 ई. में बाबर ने एक बार फिर समरकन्द पर विजय प्राप्त की, किन्तु यह विजय स्थायी सिद्ध न हुई.
- 1507 ई. में उसने अपने पूर्वजों की उपाधि ‘मिर्जा’ को त्याग कर ‘पादशाह’ की उपाधि धारण की .
- अब उसने भारत की ओर ध्यान दिया.
- 1519 ई. में बाबर ने भेरा, खुशाब और चेनाब के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की.
- 1520 ई. में उसने बदख्शाँ को जीत कर हुमायूँ के हवाले कर दिया तथा 1522 ई. में कन्धार को जीत कर कामरान को सौंप दिया.
- इस समय तक उसके पास पंजाब के सूबेदार दौलतखाँ लोदी, इब्राहिम के चाचा अलाउद्दीन और राणा सांगा की ओर से भारत पर आक्रमण करने हेतु अनेक निमन्त्रण आ चुके थे.
- 1524 ई. में बाबर ने लाहौर को जीत कर सुल्तान इब्राहिम लोदी के चाचा अलाउद्दीन को सौंप दिया.
- किन्तु अलाउद्दीन को दौलता खाँ लोदी ने भगा दिया और अलाउद्दीन काबुल भाग गया.
पानीपत का प्रथम युद्ध, (1526 ई.) मुगल वंश की स्थापना
- नवम्बर, 1525 ई. को बाबर ने 12,000 घुड़सवारों के साथ भारत की ओर कूच किया और तीन सप्ताह में ही बाबर ने पंजाब पर अधिकार कर लिया.
- 12 अप्रैल, 1526 ई. को इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाएं पानीपत के मैदान में आमने सामने हुई.
- इब्राहिम लोदी के पास एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी थे.
- कुछ विद्वानों की राय है कि इब्राहिम की सेना में एक बड़ी संख्या सेवकों की थी और वास्तव में युद्ध लड़ने वाले सिपाहियों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी जितना ‘तुज्के बाबरी’ में उल्लेख किया गया है.
- दूसरी ओर बाबर के पास अब केवल 12,000 सैनिक ही नहीं थे, बल्कि उसके साथ उन सरदारों की सेना भी थी, जिन्होंने पंजाब में उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी.
- फिर भी यह माना गया है कि बाबर की सैन्य संख्या इब्राहिम लोदी से कम थी.
- बाबर ने युद्ध में ‘तुलुगमा रणपद्धति‘ को अपनाया.
- उसने सेना के एक अंश को रिजर्व सेना के रूप में पानीपत में टिका दिया और दूसरे अंश की सुरक्षा उसके खाई खोदकर उसे पेड़ों की डालियों और पत्तियों से ढंक कर की.
- युद्ध क्षेत्र में उसने सेना को तीन भागों में विभाजित किया-अपने पुत्र हुमायूँ को उसने दाहिने भाग की व सुल्तान मिर्जा को बायें भाग का नेतृत्व सौंपा.
- मध्य भाग स्वयं बाबर ने दो निपुण तोपचियों अली और मुस्तफा की मदद से सम्भाला.
- उसने अपनी सेना के सामने 700 बैलगाड़ियों की सुरक्षात्मक दीवार बना ली तथा हर दो गाड़ियों के मध्य कच्ची ईंटों की दीवार बनवाई जिन पर सिपाही तोपें रख कर गोले बरसा सकते थे.
- 21 अप्रैल, 1526 को बाबर की सेना ने इब्राहिम की सेना पर हमला कर दिया.
- इब्राहिम पराजित हुआ और रणभूमि में ही मारा गया.
- लेनपूल के अनुसार
‘‘पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफगानों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ”
- दिल्ली और आगरा पर बाबर का अधिकार हो गया तथा उसने स्वयं को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित किया.
- इस प्रकार भारत में मुगल वंश की स्थापना हुई.
- एस.एस. जाफर के अनुसार
“पानीपत की प्रथम लड़ाई ने भारतीय इतिहास में नए युग का सूत्रपात किया.”
- अपार धन बाबर के हाथ लगा जिसे उसने अपने सैनिकों में बांटा.
- सम्भवतः इस बंटवारे में हुमायूँ को ‘कोहिनूर’ हीरा प्राप्त हुआ जिसे उसने ग्वालियर के नरेश ‘राजा विक्रमाजीत‘ से छीना था.
- भारत विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक काबुल निवासी को एक-एक चाँदी के सिक्के उपहार स्वरूप दिए.
- उसकी इस उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर‘ उपाधि दी गई.
- वस्तुतः इस सफलता के बाद बाबर किसी हद तक चिन्तामुक्त हो गया.
- उसने स्वयं लिखा कि “काबुल की गरीबी हमारे लिए पुनः नहीं होगी.”
खानवा का युद्ध, (1527 ई.)
- खानवा का युद्ध बाबर व मेवाड़ के राणा सांगा (राणा संग्राम सिंह) के बीच हुआ.
- बाबर ने राणा सांगा पर आरोप लगाया कि उसने अपने वायदे के अनुसार इब्राहिम लोदी के विरुद्ध युद्ध में बाबर की सहायता नहीं की.
- दूसरी ओर राणा सांगा के हिन्दू साम्राज्य को स्थापित करने का स्वप्न बाबर के दिल्ली में स्थापित होने से अधूरा रह गया था.
- राणा सांगा ने बाबर को यह समझ कर निमन्त्रण दिया था कि वह दिल्ली की लोदी सत्ता को नष्ट-भ्रष्ट करके वापस लौट जाएगा.
- किन्तु बाबर के भारत में स्थापित होने से दोनों शक्तियों (राजपूतों और मुगलों) में टक्कर होनी आवश्यक हो गई.
- 16 मार्च, 1527 ई. को बाबर की सेना फतेहपुर सीकरी के निकट खनवा या कनवाहा के मैदान में पहुंची.
- 17 मार्च को युद्ध आरम्भ हुआ.
- राणा सांगा के साथ मारवाड़, ग्वालियर, आम्बेर, अजमेर, हसन खाँ मेवाती, वसीन चंदेरी एवं इब्राहिम का भाई महमूद लोदी दे रहे थे.
- आरम्भ में तो मुगलों की सेना विचलित हुई, किन्तु बाबर के कुशल सैनिक नेतृत्व तथा ओजस्वी भाषण से उसके सैनिकों में नवस्फूर्ति आई.
- बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध ‘जिहाद’ की घोषणा की.
- 20 घण्टे के भीषण युद्ध के पश्चात् बाबर को विजय प्राप्त हुई. तथा उसने ‘गाजी‘ की उपाधि धारण की.
- राणा सांगा घायल होकर युद्ध स्थल से बच निकला, किन्तु कालान्तर में उसके किसी सामन्त ने उसे जहर दे दिया जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ.
- निष्पक्ष रूप से कहा जा सकता है कि राणा सांगा अनुपम वीर अवश्य था, परंतु उच्चकोटि का राजनीतिज्ञ नहीं था तथा राजनीति और युद्ध में बाबर के तुल्य नहीं था.
चन्देरी का युद्ध, (1528 ई.)
- खनवा के युद्ध के पश्चात् राजपूतों की शक्ति पूर्णतः नष्ट नहीं हुई थी.
- राजपूतों की बची हुई सेना का चन्देरी के मेदनी राय ने नेतृत्व किया.
- बाबर ने मेदनी राय से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा जिसे मेदनी राय ने अस्वीकार कर दिया.
- 20 जनवरी, 1528 ई. को बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण कर दिया.
- चंदेरी के किले को बाबर ने जीत लिया तथा असंख्य राजपूत सैनिकों को मौत के घाट उतारा.
- राजपूत स्त्रियों ने ‘जौहर’ का मार्ग अपनाया.
- उसके पश्चात् बाबर की शक्ति को ललकारने के लिए कोई भी राजपूत सरदार शेष नहीं रहा.
घाघरा का युद्ध, (1529 ई.)
- अफगानों की शक्ति को बाबर ने पूर्ण रूप से घाघरा के युद्ध में कुचला.
- इब्राहिम लोदी के भाई व महमूद लोदी ने बिहार पर अधिकार कर लिया.
- बाबर ने अपने पुत्र अस्करी को महमूद लोदी के विरुद्ध भेजा तथा स्वयं उसके पीछे चला .
- 6 मई, 1599 ई. को बाबर का अफगानों से घाघरा के स्थान पर युद्ध हुआ.
- बाबर का तोपखाना अफगानों के विरुद्ध अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ.
- बाबर ने बिहार को अपने अधीन कर लिया.
बाबर की मृत्यु (26 दिसम्बर, 1530 ई.)
- 26 दिसम्बर, 1530 ई. को बाबर की मृत्यु हो गई.
- उस समय वह लगभग 48 वर्ष का था.
- उसे काबुल में दफनाया गया.
- बाबर सम्भवतः कुषाणों के पश्चात् पहला शासक था जिसने भारत पर राज्य करते हुए काबुल तथा कन्धार को अपने पूर्ण नियन्त्रण में रखा.
- वह एक कुशल सेनापति व राजनीतिज्ञ होने के साथ एक उच्चकोटि का विद्वान भी था.
- उसने तुर्की भाषा में ‘बाबरनामा‘ (अपनी आत्मकथा) की रचना की, जिसे अब्दुल रहीम खानखाना तथा प्यादा खाँ ने फारसी में अलग-अलग अनुवादित किया.
- बाबर ‘मुबइयान‘ नामक पद्यशैली का जन्मदाता माना जाता है.
- शासन की व्यवस्था करने का बाबर को पर्याप्त समय नहीं मिला,
- अतः वह स्वयं को अत्यधिक कुशल शासक सिद्ध न कर सका.
- भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय अकबर को दिया जाता है.
- लेनपूल के अनुसार –
‘यद्यपि बाबर मुगल साम्राज्य का वास्तविक निर्माता नहीं था लेकिन फिर भी उसने उस सुन्दर भवन की आधारशिला रखी, जिस पर उसी के पौत्र अकबर ने बाद में साम्राज्य रूपी महल खड़ा किया .”
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