औरंगजेब आलमगीर (1658-1707 ई.) Aurangzeb Alamgir Muhi-ud-Din Muhammad
औरंगजेब (1658-1707 ई.) Aurangzeb
- मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म 16 अक्टूबर, 1610 ई. में ‘उज्जैन’ के निकट ‘दोहाट’ नामक स्थान पर मुमताज महल के गर्भ से हुआ था.
- शीघ्र ही उसने कुरान, अरबी, फारसी, तुर्की तथा हिन्दी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया.
- सैनिक शिक्षा में भी उसने योग्यता प्राप्त की.
- 16 वर्ष की आयु में उसने बड़ा मनसब प्राप्त किया.
- बुन्देलखण्ड के राजा जुझार सिंह के विद्रोह का उसने दमन किया.
- 1636 ई. से 1644 ई. तक तथा 1652 ई. में 1658 ई. तक औरंगजेब दक्षिण का राज्यपाल रहा.
- वह मुल्तान (1640 ई.) तथा गुजरात (1645 ई.) का गवर्नर भी रहा.
- अपने भाइयों से निपटने के पश्चात् औरंगजेब ने 31 जुलाई, 1658 ई. को आगरा में सिंहासनारोहण किया तथा अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब ने दिल्ली में प्रवेश किया तथा जून, 1659 ई. में उसका दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ.
प्रारम्भिक प्रबन्ध
- राज्यप्राप्ति के युद्ध के कारण देश में गड़बड़ी फैली हुई थी.
- व्यापार और कृषि पर बहुत कुप्रभाव पड़ा.
- अतः औरंगजेब ने सर्वप्रथम अनेक करों तथा ‘राहदारी’, ‘पिण्डारी’ अर्थात् “भूमिकर’ तथा ‘गृहकर’ आदि लगभग 18 करों को समाप्त किया.
- खाफी खाँ ने इनमें से केवल 14 करों का उल्लेख किया है.
- उसने सिक्कों पर ‘कलमे’ का लिखा जाना बन्द करवा दिया, जिससे गैर-मुस्लिमों छूए जाने से यह अपवित्र न हो जाए.
- उसने फारस के ‘नौरोज’ के त्यौहार का मनाया जाना बन्द करवाया तथा प्रजा के चरित्र की निगरानी करने हेतु ‘मुहतसिब’ नियुक्त किए.
पूर्वी सीमान्त पर युद्ध (1661-66 ई.)
- दिसम्बर, 1661 ई. में बिहार के राज्यपाल दाऊद खाँ ने पोलमन जीता.
- मीर जुमला को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया.
- उसने कूचबिहार व असम को जीता.
- वह चीन पर आक्रमण करना चाहता था, किन्तु मार्च, 1663 ई. में उसकी मृत्यु हो गई.
- शाईस्ता खाँ को दक्षिण से बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया.
- उसने पुर्तगाली और बर्मी समुद्री लुटेरों का दमन किया तथा जनवरी 1666 ई. में अराकान के राजा से चाटगाँव प्राप्त किया.
- 1662 ई. में औरंगजेब सख्त बीमार हुआ और लगभग एक मास तक वह चारपाई पर पड़ा रहा.
- थोड़ा स्वस्थ होकर वह स्वास्थ्य लाभ हेतु कश्मीर गया.
- बर्नियर भी उसके साथ था, जिसने इस यात्रा का रोचक वर्णन किया.
उत्तर पश्चिमी सीमान्त नीति
- इस प्रदेश के प्रति औरंगजेब ने राजनैतिक और आर्थिक कारणों से उदार नीति अपनाई.
- आरम्भ में औरंगजेब ने यहाँ के विद्रोही मुस्लिम कबीलों को धन देकर शान्त करने का असफल प्रयत्न किया.
- 1667 ई. में यूसुफियों ने अपने नेता भागू के नेतृत्व में विद्रोह किया जिसे दबा दिया गया.
- 1672 ई. में अकमल खाँ के नेतृत्व में अफरीदियों ने विद्रोह किया.
- खुशहाल खाँ के नेतृत्व में ‘खट्क’ भी अफरीदियों से आ मिले.
- 1674 ई. में मुगल सेनापति शुजात खाँ युद्ध में मारा गया.
- जुलाई, 1674 ई. में हसन अब्दाल ने शस्त्र, शक्ति व कूटनीति से परिस्थिति को काबू में कर दिया.
- अफगानिस्तान के मुगल राज्यपाल अमीर खाँ ने भी इन लोगों के प्रति समझौते की नीति अपनाई.
- खुशहाल खाँ अपने पुत्र के विश्वासघात के कारण बन्दी बनाया गया.
डा. यदुनाथ सरकार के अनुसार
“अफगान-युद्ध शाही खजाने के लिए तो तबाही का कारण था ही किन्तु इसका राजनैतिक प्रभाव और भी अधिक हानिकारक था.”
औरंगजेब और मुस्लिम जगत
- औरंगजेब ने 1661 से 1667 ई. तक मक्का के इमाम, फारस, बल्ख, बुखारा, एबीसिनिया, काशगर, खिवा और शहरीनाऊ के राजाओं और बसरा, यमन, मोचा, हदरामात के राज्यपालों के दूतों का स्वागत किया.
- कुस्तुनतुनिया का राजदूत 1690 ई. में आया.
तपस्वी औरंगजेब (??)
- औरंगजेब ने अपने शासन काल में अनेक नियमों आदि में परिवर्तन किए.
- उसने अपने शासन काल की गणना के लिए शाही-गौर-वर्ष समाप्त कर दिया.
- दरबार में गाना-बजाना तथा सार्वजनिक संगीत सम्मेलनों को भी बन्द करवा दिया.
- ‘झरोखा दर्शन’ की परिपाटी तथा अपने शासन काल के 12वें वर्ष में उसने सोना-चाँदी व अन्य वस्तुओं से अपना तुलादान किया जाना बन्द कर दिया.
- विजय दशमी तथा अन्य कई हिन्दू त्यौहार व उत्सवों पर रोक लगा दी तथा राज ज्योतिषियों तथा खगोल-पण्डितों को पदच्युत कर दिया.
- दरबार से चाँदी के धूपदान व कलमदान हटा दिए गए. भाँग पीने, वैश्यावृत्ति और जुआ खेलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया.
- उसने तत्कालीन वेश-भूषा पर भी प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया.
- दाढ़ी तथा पायजामों की लम्बाई कानूनन निर्धारित की गई. जरी के कपड़े पहनने मना थे. सन्तों आदि की कब्रों पर दीपक जलाने बन्द करवा दिए गए. 1669 ई. में औरंगजेब में ‘मुहर्रम’ मनाना बन्द करवा दिया. हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्ति नहीं दी जाती थी.
हिन्दू विरोधी नीति
- औरंगजेब ने हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करने की आज्ञा जारी की.
- अतः 1665 ई. में गुजरात में, 1666 ई. में मथुरा के केशवदेव मन्दिर का ‘कटघरा’ (दारा शिकोह द्वारा निर्मित), 1669 ई. में उड़ीसा, मुलतान, सिन्ध, बनारस आदि में मन्दिरों को तुड़वाया.
- उदयपुर में लगभग 235 मन्दिर तथा अम्बेर (जयुपर) में लगभग 66 मन्दिर तोड़े गए.
- हरिद्वार तथा अयोध्या में भी अनेक मन्दिर तोड़े गए.
- हिन्दुओं के विरुद्ध अनेक दण्ड-विधेयक लागू किए गए.
- अकबर द्वारा हटाया गया तीर्थ यात्रा कर तथा 1679 ई. में जजिया फिर से हिन्दुओं पर थोप दिया गया.
- 1665 ई. में हिन्दुओं के ‘होली के त्यौहार पर प्रतिबन्ध लगाया गया.
- इसी वर्ष मुसलमानों पर बन्दरगाहों पर हिन्दुओं से आधा टैक्स लगाया गया.
- 1694 ई. में एक आज्ञानुसार मराठों और राजपूतों को छोड़ कर अन्य हिन्दुओं के लिए ईरानी घोडा, हाथी अथवा पालकी की सवारी प्रतिबन्ध लगा दिया.
- 1702 ई. में हिन्दुओं को अंगूठियों पर हिन्दू देवी-देवताओं के नाम खुदवाने की मनाही की गई.
- 1703 ई. में हिन्दुओं को अहमदाबाद में साबरमती के तट पर मुर्दो की अन्त्येष्टि पर प्रतिबन्ध लगाया गया.
- हिन्दुओं को मुस्लिमों जैसी वेश-भूषा धारण करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया.
डा. यदुनाथ सरकार के अनुसार, औरंगजेब के आन्तरिक अनुशासन का सर्वप्रथम रूप यह था कि उसने अपने पूर्वजों की ‘अ-मुस्लिम’और अन्य राजाओं के प्रति नीति को पूर्णतः उलट दिया और इस नीति के कारण ही उसकी मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का इतना शीघ्र पतन हो गया.
हिन्दू विरोधी नीति के प्रभाव
राजपूतों से युद्ध, (1679-81 ई.)
- दिसम्बर, 1678 ई. में जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु के पश्चात् औरंगजेब ने उसकी दो विधवाओं को बन्दी बना कर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया.
- दुर्गादास के नेतृत्व में जुलाई, 1679 ई. में राजपूतों ने विद्रोह कर दिया.
- औरंगजेब ने अजमेर से मुगल सेना भेजी व जोधपुर पर अधिकार कर लिया गया.
- 1681 ई. में शाहजादा अकबर ने विद्रोह किया व राजपूतों से जा मिला .
- औरंगजेब ने शाहजादा अकबर व राजपूतों में फूट डलवानी चाही मगर पूर्ण रूप से सफल न हुआ.
- 1683 ई. में शाहजादा दक्षिण से फारस भाग गया.
- 1681 ई. में औरंगजेब को राजपूतों से सन्धि करनी पड़ी.
- यह माना जाता है कि यदि औरंगजेब ने राजपूतों से शत्रुता न की होती तो सम्भवतः दक्षिण में वह अधिक सफल हुआ होता.
- उल्लेखनीय है कि राजपूतों और मुगलों में 1681 ई. से संघर्ष निरन्तर उस समय तक चलता रहा जब तक 1709 ई. में, बहादुर शाह ने अजीत सिंह को मेवाड़ का एकमात्र छत्राधिपति स्वीकार नहीं कर लिया.
- 1681 ई. से 1687 ई. तक अजीत सिंह गुप्त रूप से युद्ध करता रहा.
- 1687 ई से 1701 ई. तक दुर्गादास और अजीत सिंह ने बंदी और हाड़ाओं की सहायता से इस स्वातन्त्रय युद्ध का संगठन और संचालन किया.
- 1701 ई. से 1708 ई. तक यह संघर्ष अपने अन्तिम चरण में प्रविष्ट हुआ.
सतनामियों का विद्रोह
- सतनामी मूलतः हिन्दू साधूओं का एक युद्धप्रिय मत था.
- नारनौल और मेवाड़ इनके मुख्य केन्द्र थे.
- मुगलों से इनके संघर्ष का तत्कालीन कारण एक मुगल पैदल सैनिक द्वारा एक सतनामी की हत्या तथा सतनामियों द्वारा उस मुगल प्यादे की हत्या था.
- शीघ्र इस झगड़े ने धार्मिक रूप लिया व यह हिन्दुओं का औरंगजेब के विरुद्ध स्वातन्त्रय संग्राम बन गया.
- नारनौल का फौजदार भी पराजित हुआ.
- अन्त में मुगल सेनापतियों रदनदाज खाँ आदि ने सतनामियों का दमन किया.
गोकुल का विद्रोह
- मथुरा में जाटों ने तिलपत के एक जमींदार गोकुल के नेतृत्व में विद्रोह करके यहां के फौजदार अब्दुलनबी खाँ (1660-69 ई.) का वध करके सादाबाद का परगना लूट लिया.
- औरंगजेब स्वयं जाटों के विरुद्ध बढ़ा.
- गोकुल सपरिवार पकड़ा गया तथा उसका वध कर दिया गया.
- मथुरा के नए फौजदार ने भी जनता पर अत्याचार किए.
- अतः 1686 ई. में जाटों ने राजाराम के नेतृत्व में एक बार पुनः विद्रोह किया.
- उन्होंने 1688 ई. में सिकन्दरा में स्थित अकबर के मकबरे को लूट लिया.
- राजाराम एक युद्ध में मारा गया तथा 1691 ई. में जाटों के कई गढ़ों पर कब्जा कर लिया गया.
- किन्तु जाटों ने चड़ामन के नेतृत्व में अपना संघर्ष औरंगजेब के सारे जीवन भर जारी रखा.
बुन्देले
- 1602 ई. में वीर सिंह बुन्देला ने अकबर के विरुद्ध खुला विद्रोह किया था.
- किन्तु बुन्देलों की छापामार युद्ध नीति के कारण अकबर इसे दण्ड देने में असफल रहा.
- चम्पतराय ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया.
- किन्तु उस पर इतना भयंकर आक्रमण किया गया कि उसे आत्महत्या करनी पड़ी.
- उसके चार पुत्रों में से छत्रसाल ने कालान्तर में छत्रपति शिवाजी के पद चिन्हों पर चलकर मुगल सत्ता की अवहेलना करने की ठानी.
- उसने अनेक विजयें प्राप्त की और पूर्वी मालवा में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करने में सफल हुआ.
- 1731 ई. में यह बुन्देलखण्ड से मुगल शासन को पूर्णतः उखाड़ कर मर गया.
सिक्ख
- औरंगजेब ने सिक्खों के प्रति भी संकीर्ण धार्मिक दृष्टिकोण अपनाया.
- सिक्खों के नौवें गुरु तेगबहादुर को 1695 ई. में उसके द्वारा प्रस्तुत मुसलमान बनने के प्रस्ताव को ठुकराए जाने के कारण बहुत यातनाएं देकर मार डाला गया.
- दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्म की रक्षा हेतु “खालसा‘ का संगठन सैनिक संस्था के आधार पर किया .
- कहा जाता है कि जब औरंगजेब की मृत्यु निकट थी, उसने सदव्यवहार का आश्वासन देकर गुरु गोबिन्द सिंह को बुलाया.
- गुरु अभी मार्ग में ही थे कि 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई.
- 1708 ई. में गुरु गोबिन्द सिंह की एक अफगान ने छुरा मारकर हत्या कर दी.
- इनके उत्तराधिकारी बन्दाबहादुर ने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा.
औरंगजेब की दक्षिण नीति
- दक्षिण के प्रति औरंगजेब ने आक्रमक व विजयात्मक नीति का अनुसरण किया.
- दक्षिण के युद्धों का ध्येय मराठों की शक्ति को नष्ट करना तथा बीजापुर और गोलकुण्डा राज्यों को जीतना था.
- 1567 ई. में बीजापुर के उत्तरपूर्व में कल्याणी और बीदर को विजय किया गया.
- 1660 ई. में घूस देकर दूर उत्तर में ‘परिन्दा’ प्राप्त किया,
- जुलाई 1668 की सन्धि द्वारा शोलापुर प्राप्त किया और फिर
- नलदुर्ग और कुलबुर्गा प्राप्त किया.
- इस प्रकार भीमा और पूर्व की ओर मंजरा नदी और बीदर से कुलबुर्गा तक काल्पनिक रेखा से घिरा हुआ विशाल प्रदेश मुगलों के हाथों में चला गया और शाही राज्य की दक्षिणी सीमा हलसाँगी के सामने भीमा के तट तक पहुँच गई.
- यह सीमा बीजापुर से काफी दूर और दक्षिण पूर्व में गोलकुण्डा राज्य की पश्चिमी सीमा पर स्थिति मालखेड दुर्ग को छूती थी.
औरंगजेब और मराठे
- 1663 ई. में छत्रपति शिवाजी के विरुद्ध मुगल सेनापति शाइस्ताखाँ असफल रहा.
- उसके बाद शाहजादा मुअज्जम और राजा जयसिंह को भेजा गया.
- जयसिंह ने 1665 ई.में शिवाजी को पोरबन्दर की सन्धि के लिए बाध्य कर दिया.
- 1666 ई. में शिवाजी को आगरा में मुगल दरबार में उपस्थित होना पड़ा.
- 1680 ई. में छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के पश्चात् औरंगजेब ने छत्रपति सम्भाजी के विरुद्ध युद्ध किया व उसे पकड़ कर मार डाला.
- छत्रपति सम्भाजी के पुत्र शाहू को कैद कर लिया गया जो 1708 ई. में मुक्त हुआ.
- 1689 ई. में सम्भाजी की हत्या के बाद राजाराम ने 1700 ई. तक मराठों का संघर्ष जारी रखा.
- उसके पश्चात् उसकी विधवा ताराबाई ने यह संघर्ष सफलतापूर्वक चलाया.
- भरसक प्रयत्न करने पर भी औरंगजेब मराठों के विरोध का दमन करने में असफल रहा.
औरंगजेब और अंग्रेज
- सर थोमस रो के समय अंग्रेज व्यापारियों ने मुगल सम्राट् के प्रति मित्रता की नीति अपनाई.
- 1616 ई. में अंग्रेजों को मछलीपट्टनम में एक कारखाना स्थापित करने की अनुमति मिल गई.
- 1639 ई. में फ्रांसीसी डे ने चन्द्रगिरि के राजा से थोड़ी-सी भूमि पट्टे पर ले ली.
- शाहजहाँ ने 1650-51 में अंग्रेजों को हुगली और कासिम बाजार में कारखाने बनाने की आज्ञा दे दी.
- औरंगजेब के समय दक्षिण में फैली अर्थव्यवस्था व असुरक्षा की स्थिति के कारण अंग्रेजों ने अपने स्थानों की किलेबन्दी कर ली.
- 1685 ई. में शाइस्ता खाँ द्वारा अंग्रेजों के व्यापार पर स्थानीय रूप से टैक्स लगाये जाने पर अंग्रेजों ने विरोध किया, किन्तु मुगल सेनाओं ने उन्हें पराजित किया तथा 1688 ई. में अंग्रेज व्यापारियों को सूरत, मछलीपट्टनम और हुगली छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा.
- बंगाल के नए राज्यपाल ने हुगली के अंग्रेजी कारखाने के उच्चाधिकारी चॉरनौक को शाही फारमान द्वारा एक छोटी-सी बस्ती बसाने की आज्ञा दे दी.
- यह छोटी-सी बस्ती बाद में आधुनिक नगर कलकत्ता बन गई.
औरंगजेब और उसके पुत्र
- औरंगजेब ने कभी अपने पुत्रों पर विश्वास नहीं किया.
- शाहजादा अकबर को विद्रोह करके फारस भाग जाना पड़ा.
- सबसे बड़े शाहजादे सुलेमान को अपने चाचा शाहशुजा से सहानुभूति जताने व उसकी पुत्री से शादी करने के कारण 18 वर्ष कैद में रहना पड़ा.
- शाहजादा मुअज्जम को भी बीजापुर व गोलकुण्डा के शासकों से सहानुभूति जताने के कारण 1687 ई. से 1695 ई. तक कैद में रखा गया.
- सबसे छोटे शाहजादे को भी कैद में रखा गया.
पश्चाताप और मृत्यु
- औरंगजेब ने सदैव अपने पुत्रों को अपने से दूर रखा और वह उनकी गतिविधियों को शंका की दृष्टि से देखता था.
- जीवन के अन्तिम समय पर उसने अपने पुत्रों को बहुत पश्चाताप भरे पत्र लिखे.
- इन पत्रों के विषय में स्मिथ का विचार है कि औरंगजेब को कठोर आलोचक भी इस पश्चाताप के दुःख की गहराई मानने से और मृत्यु-शय्या पर अकेले पड़े इस वृद्ध पुरुष के साथ सहानुभूति किए बिना नहीं रहेगा.
- मार्च, 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई.
मुगल काल के महत्वपूर्ण शासकों के मकबरे
शासक | मकबरा |
बाबर | काबुल |
हुमायूँ | दिल्ली |
अकबर | सिकन्दरा (आगरा) |
जहाँगीर | शाहदरा (लाहौर) |
शाहजहाँ | आगरा |
औरंगजेब | खुलताबाद (औरंगाबाद) |
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