सर्वोच्चता के लिए आंग्ल-मराठा संघर्ष (आंग्ल-मराठा युद्ध) (ANGLO-MARATHA STRUGGLE FOR SUPREMACY) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
सर्वोच्चता के लिए आंग्ल-मराठा संघर्ष (ANGLO-MARATHA STRUGGLE)
- अपनी-अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए अंग्रेजों और मराठों के मध्य तीन बड़े युद्ध हुए.
पहला आंग्ल-मराठा युद्ध, 1775-82 (First Anglo-Maratha war, 1775-82)
- लार्ड क्लाइव द्वारा बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में स्थापित द्वैध प्रणाली को कम्पनी महाराष्ट्र में भी स्थापित करना चाहती थी.
- पेशवा माधवराव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नारायण राव पेशवा बना.
- नारायण राव के चाचा रघुनाथ राव ने नारायण राव के अधिकार को चुनौती दी और स्वयं पेशवा बनने के लिए सूरत की संधि (1775) के द्वारा अंग्रेजों से सहायता प्राप्त की.
- दोनों पक्षों के मध्य सात वर्ष तक अनिर्णायक युद्ध हुआ.
- सालबई की संधि (1782) के बाद युद्ध समाप्त हुआ.
- दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रदेशों को लौटा दिया.
दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध, 1803-1806 (Second Anglo-Maratha War, 1803-1806)
- आंग्ल मराठा संघर्ष का दूसरा दौर मुख्य रूप से फ्रांसीसी भय के कारण प्रारंभ हुआ.
- लार्ड वैल्ज़ली 1798 में भारत आया.
- उसने यह अनुभव किया कि फ्रांसीसी भय से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि समस्त भारतीय राज्यों पर कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो जाए.
- इस उपाय की सफलता हेतु उसने सहायक संधि की प्रणाली का विकास किया.
- नाना फड़नवीस सहायक संधि के कुपरिणामों को जानते थे.
- अतः उन्होंने मराठा राज्य को सहायक संधि से दूर रखा.
- किन्तु 1800 में उनकी मृत्यु के बाद मराठा सरदार अपने आपसी झगड़ों के कारण सहायक संधि की परिधि में आते चले गए.
बसीन की संथि, 1802 (The Treaty of Bassein, 1802)
- पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेजों के मध्य 31 दिसम्बर, 1802 को बसीन की संधि हुई, इस संधि के अनुसार —
- पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार किया.
- भारतीय और अंग्रेज पदातियों की सेना पूना में रख दी गई.
- पेशवा ने सूरत नगर कम्पनी को दे दिया.
- पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने के अधिकार का त्याग कर दिया.
- पेशवा ने निजाम तथा गायकवाड़ के मध्य अपने संबंधों में कम्पनी की मध्यस्थता स्वीकार की.
- पेशवा ने ब्रिटिश विरोधी सभी यूरोपीय लोगों को अपनी सेवा से निवृत्त कर दिया.
- पेशवा ने अपने विदेशी संबंध भी कम्पनी के अधीन कर दिए.
- बसीन की संधि के द्वारा पूना में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया.
- इससे मराठा संघ का एक प्रमुख नेता सहायक संधि के बंधन में फंस गया.
- इस संधि के द्वारा सहायक सेना मैसूर, हैदराबाद लखनऊ और पूना में तैनात कर दी गई.
- ये भारत के प्रमुख केन्द्रीय स्थान थे.
- मराठों के लिए यह घोर राष्ट्रीय अपमान सहना अत्यन्त कठिन था, अतः भोसले, सिंधिया और होल्कर ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
- अंग्रेजों ने शीघ्र ही उन्हें परास्त कर दिया.
- मराठों की इस पराजय से अंग्रेजों के अधीन मराठों का काफी क्षेत्र आ गया.
- कुल मिलाकर आंग्ल-मराठा संघर्ष के इस दूसरे दौर से मराठा शक्ति समाप्त तो नहीं हुई किन्तु निर्बल अवश्य हो गई.
तीसरा आंग्ल-मराठा युध्द, 1817-18 (Third Anglo-Maratha war, 1817-18)
- लार्ड हेस्टिंग्ज के शासन काल में आंग्ल-मराठा संघर्ष का तीसरा चरण आरंभ हुआ.
- लार्ड हेस्टिंग्ज ने 27 मई, 1816 को नागपुर के राजा अप्पा साहेब को, 13 जून 1817 को पेशवा को तथा 5 नवम्बर, 1817 को सिंधिया को अपमानजनक सहायक संधि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया.
- इन मराठा सरदारों ने विवश होकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
- अंग्रेजों ने किक के स्थान पर पेशवा को, सीताबर्डी के स्थान पर भोंसलें को और महीदपर के स्थान पर होल्कर को पराजित कर दिया.
- पेशवा बाजीराव का समस्त प्रदेश ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया.
- इसके बाद मराठे कभी सिर न उठा सके.
मराठों की पराजय के कारण (Causes of Defeat of the Marathas)
मराठों की पराजय के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे —
अयोग्य नेतृत्व (Inept Leadership)
- उत्तरवर्ती मराठा सरदारों में कुशल नेतृत्व का पूर्णतः अभाव था.
- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपने निजी स्वार्थों के कारण बसीन की संधि के माध्यम से अपनी स्वखंत्रता गिरवी रख दी.
- दौलतराव सिंधिया, महादजी सिंधिया का अयोग्य उत्तराधिकारी था.
- वे मराठा संघ को एक न रख सके.
आर्थिक कारण (Economic Causes) :
- मराठे एक सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था की स्थापना न कर सके.
- इस कारण उनकी राजनीतिक व्यवस्था में भी स्थायित्व न रह सका.
- वास्तव में मराठा अर्थव्यवस्था महाराष्ट्र के साधनों पर नहीं वरन् बलपूर्वक एकत्रित की गई धनराशि पर आधारित थी.
- मराठा साम्राज्य के उत्कृष्ट सीमा पर पहुंचने से ये साधन समाप्त हो गए.
राजनीतिक व्यवस्था की दुर्बलताएं (weaknesses of Political Set up)
- मराठा साम्राज्य एक कमजोर संघ था जिसका नेता प्रांरभ में छत्रपतिं और बाद में पेशवा था.
- पेशवा ने जब छत्रपति की शक्तियों को ग्रहण कर लिया तो उनके अधीनस्थ सरदारों ने पेशवा की शक्तियां प्राप्त कर ली.
- गायकवाड़, होल्कर सिंधिया और भोंसले जैसे शक्तिशाली सरदारों ने शीघ्र ही अर्धस्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए.
- इन मराठा सरदारों की पेशवा के प्रति राजभक्ति केवल नाममात्र की ही थी.
सैनिक कारण (Military Causes)
- मराठा सैन्य संगठन, अस्त्र-शस्त्र, अनुशासन और नेतृत्व की दृष्टि से अंग्रेजी सैन्य संगठन से बहुत पिछड़ा हुआ था.
- उन्होंने युद्ध की वैज्ञानिक और आधुनिक प्रणाली नहीं अपनाई.
- वे उत्तम तोपखाना नहीं बना सके.
- वे एक शक्तिशाली नौसेना का संगठन करने में असमर्थ थे.
ब्रिटिश कूटनीति (British Diplomacy)
- अंग्रेजों को कूटनीति बहुत उत्तम थी.
- वे प्रायः युद्ध आरंभ करने से पूर्व शत्रु के मित्रों को अपना मित्र बनाकर अपने शत्रु को अकेला कर देते थे.
- द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में उन्होंने सफलतापूर्वक गायकवाड़ और दक्षिण के मराठा जमींदारों को अपनी ओर मिला लिया.
- उनकी कूटनीति सहायक संधि की प्रणाली में विशेष रूप से देखने को मिली.
- अपनी कूटनीति से उन्होंने शीघ्र ही भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.
- अपनी कूटनीति के द्वारा ही वे फ्रांसीसी चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर सके.
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