लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning, 1856-1862) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning)
- लॉर्ड कैनिंग के शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1857 का विद्रोह था.
- इसी के फलस्वरूप 1858 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी समाप्त कर दी गई थी तथा भारत सरकार का उत्तरदायित्व सम्राट ने अपने हाथों में ले लिया.
- इस प्रकार लॉर्ड कैनिंग अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अन्तिम गवर्नर जनरल तथा सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था.
- कैनिंग के शासनकाल में निम्नलिखित प्रमुख सुधार लागू किए गये थे.
- 1859 में बंगाल किराया अधिनियम स्वीकृत हुआ जिसमें वे किसान जो पिछले 12 वर्षों से लगातार किराये की भूमि पर खेती कर रहे हों या लगातार 20 वर्षों से समान किराये पर खेती कर रहे हों, को भूमि का अधिकारी समझा गया.
- 1861 में प्रसिद्ध भारतीय कॉसिल अधिनियम स्वीकृत हुआ जिसके अनुसार प्रैजिडेंसियों में विधान मण्डलों को स्थापित किए जाने तथा वाइसराय की प्रबन्धकारिणी कौंसिल में वैधानिक कार्यों के लिए अधिक सदस्यों को लिए जाने का उपबन्ध किया गया.
- 1861 में एक कानून स्वीकृत हुआ जिसके द्वारा उच्चतम न्यायालयों तथा अंग्रेजी कम्पनी की अदालतों के स्थान पर अधिकृत हाई कोर्ट स्थापित किए गये.
- इंग्लैण्ड का एक महान अर्थशास्त्री जान विल्सन अपने सहयोगी सैम्युअल लैंग के साथ 1859 में भारत आया.
- जिसे आर्थिक पुनर्व्यवस्था का कार्य सौंपा गया.
- उसने निम्नलिखित तीन नये करों का सुझाव दिया.
- आय कर,
- व्यापार तथा
- पेंशों पर लाइसेंस कर,
- घरेलू तम्बाकू पर चुंगी. उसने नागरिक तथा सैनिक व्यय में कटौती का प्रस्ताव किया.
- विद्रोह से शिक्षा लेते हुए फौज में सुधार किए गये व भारतीय तथा यूरोपीय सैनिकों के मध्य एक निश्चित अनुपात के लिए नियम बनाये गये.
- 1861 में आगरा, अवध के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों, पंजाब व राजपूताना के अनेक भागों में अकाल पड़ा जिससे कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत भाग मृत्यु के मुंह में चला गया.
- इस समय सरकार ने उदारता से काम लिया तथा हर सम्भव सहायता की.
- 1859-60 में नील उगाने वाले यूरोपियनों तथा बंगाल के कृषकों के मध्य भयंकर झगड़े हुए.
- मामले की जांच के लिए आयोग नियुक्त किया गया.
- अन्त में इस सम्बन्ध में यह निर्णय लिया गया कि दीवानी समझौते को पूरा करने में इन्कार करने के कारण किरायेदार पर फौजदारी अभियोग नहीं चलाना चाहिए.
- लॉर्ड कैनिंग के सम्बन्ध में यह बात सही है कि कोई भी गवर्नर जनरल बौद्धिक गुणों में उससे आगे नहीं बढ़ सका.
- यद्यपि वह बहुत कठोर था लेकिन उसमें कर्तव्यपरायणता, सौजन्यता तथा उदारता की भावना थी.
1857 के विद्रोह का स्वरूप Nature of the revolt of 1857
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