Friday, December 28, 2018

लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon) | बंगाल विभाजन, 1905

लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon, 1899-1905) बंगाल विभाजन, 1905 आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon)

  • 1899 में लॉर्ड एलगिन के उत्तराधिकारी के रूप में लॉर्ड कर्जन को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया.
  • लॉर्ड कर्जन के समक्ष प्रमुख चुनौती भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को पूर्णरूपेण सुधारना था.
  • उसने इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करते हुए भारतीय प्रशासन में निम्नलिखित सुधार किए

लॉर्ड कर्जन, 1899-1905 (Lord Curzon, 1899-1905) बंगाल विभाजन, 1905 आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड कर्जन के सुधार

पुलिस सुधार (Police Reforms)

  • लॉर्ड कर्जन ने 1902 में सर एण्ड्रयूफ्रेजर की अध्यक्षता में प्रत्येक प्रान्त के पुलिस प्रशासन की जांच पड़ताल हेतु एक आयोग गठित किया.
  • 1903 में आयोग द्वारा प्रस्तुत सुझावों में सभी स्तरों के कार्मिकों के वेतन में वृद्धि, कार्मिकों की संख्या में वृद्धि, सिपाहियों तथा पदाधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु पुलिस विद्यालयों की स्थापना करना, ऊंचे पदों के लिए सीधी भर्ती, प्रान्तीय पुलिस सेवा की स्थापना और एक निदेशक के अधीन केन्द्रीय गुप्तचर विभाग की स्थापना इत्यादि सुझाव सम्मिलित थे.
  • इन सुझावों में से अधिकतर को स्वीकार कर लिया गया.

शैक्षणिक सुधार (Educational Reforms)

  • 1902 में लॉर्ड कर्जन ने भारतीय विश्वविद्यालयों की स्थिति का निरीक्षण करने और उनकी कार्यक्षमता में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए एक आयेाग की नियुक्ति की.
  • आयोग के सुझावों के आधार पर 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया.
  • इस अधिनियम के द्वारा विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया गया.
  • इस अधिनियम के बाद गैर सरकारी कॉलेजों का विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित होना अधिक कठिन हो गया.

वित्तीय सुधार (Financial Reforms)

  • 1899-1900 की अवधि में दक्षिणी, मध्य और पश्चिमी भारत में दुर्भिक्ष और सूखे के कारण कर्जन ने इस स्थिति से निपटने के लिए किए गए.
  • राहत कार्यों का मूल्यांकन करने के लिए सर एण्टनी मैकडौनल की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया.
  • 1901 में भारतीय सिंचाई व्यवस्था के अध्ययन हेतु सर कॉलिन स्कॉट मॉन क्रीफ की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया.
  • आयोग ने साढे चार करोड़ रुपये आगामी 20 वर्षों में सिंचाई व्यवस्था पर व्यय किए जाने का सुझाव दिया.
  • आयोग की सिफारिशों के मद्देनज़र झेलम नहर का कार्य पूरा किया गया तथा अपर चिनाब, अपर झेलम और लोअर बारी दोआब नहरों पर निमार्ण कार्य शुरू किया गया.
  • इसके अलावा 1900 में पंजाब भूमि अन्याक्रमण अधिनियम (Punjab Land Alienation Act) पारित किया गया.
  • इसके द्वारा कृषकों की भूमि का गैर-कृषकों के पास हस्तान्तरित होना समाप्त हो गया.
  • 1904 में सहकारी समिति अधिनियम (Cooperative Credit Societies Act) पारित किया गया.
  • इसके द्वारा कृषकों को कम दर पर ऋण मिलना सुलभ हो गया.
  • भारत के औद्योगिक और वाणिज्यिक हितों की देखरेख के लिए एक नए विभाग का गठन किया गया.
  • इस विभाग को डाक-तार कारखानों, रेलवे प्रशासन, खानों तथा बन्दरगाहों की देख-रेख का अतिरिक्त कार्य भार भी सौंपा गया.
  • 1899 में भारतीय टंकण तथा पत्र मुद्रा अधिनियम (Indian Coinage and Paper Currency Act) पारित किया गया.
  • इस अधिनियम के द्वारा अंग्रेजी पौण्ड भारत में विधिमान्य मुद्रा बन गई.
  • इसका मूल्य 15 रुपये निश्चित हुआ.

न्यायिक सुधार (Judicial Reforms)

  • लॉर्ड कर्जन ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए उसके न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर दी.
  • उसने उच्च न्यायालयों के और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन और पेंशन में भी वृद्धि की.

सैनिक सुधार (Military Reforms)

  • लॉर्ड कर्जन ने भारतीय सेना को दो कमानों में बांट दिया-
  1. उत्तरी कमान, इसका मुख्य कार्यालय मरी में और प्रहार केन्द्र (Striking Point) पेशावर में था.
  2. दक्षिणी कमान, इसका मुख्य कार्यालय पूना में और प्रहार केन्द्र क्वेटा में था.
  • इन दोनों कमानों में तीन-तीन ब्रिगेडियर होते थे.
  • इन ब्रिगेडियरों में दो-दो स्थानीय और एक-एक अंग्रेजी बटालियनों का था.
  • सैनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण हेतु इंग्लैण्ड के केम्बरले कॉलेज (Camberley College) की तर्ज पर एक कॉलेज क्वेटा में स्थापित किया गया.

कलकत्ता निगम अधिनियम, 1899 (Calcutta Corporation Act, 1899)

  • इस अधिनियम के द्वारा स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में लॉर्ड रिपन द्वारा किए गए समस्त उत्तम कार्यों को लॉर्ड कर्जन ने कार्यकुशलता की आड़ में समाप्त कर दिया.
  • इस अधिनियम के अनुसार, निगम में चुने हुए सदस्यों की संख्या कम कर दी.
  • निगम और उसकी अन्य समितियों में अंग्रेजों की संख्या बढ़ा दी गई.
  • इस प्रकार निगम एक आंग्ल-भारतीय सभा के रूप में परिवर्तित हो गया.

प्राचीन स्मारक परिरक्षण अधिनियम 1904 (Ancient Monuments Act, 1904)

  • लॉर्ड कर्जन ने भारत के प्राचीन स्मारकों की मरम्मत, प्रत्यास्थापन एवं रक्षण के लिए 1904 में एक महत्वपूर्ण अधिनियम पारित किया.
  • उसने भारतीय रियासतों को भी इस प्रकार के महत्वपूर्ण अधिनियम पारित करने के लिए बाध्य किया.

बंगाल विभाजन, 1905 (Partition of Bengal, 1905)

  • लॉर्ड कर्जन के शासनकाल की सर्वाधिक अप्रिय घटना बंगाल का विभाजन था.
  • तत्कालीन बंगाल प्रान्त में बंगाल, बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे.
  • इसका क्षेत्रफल 189,000 वर्ग मील था.
  • यहां लगभग 8 करोड़ जनसंख्या निवास करती थी.
  • लॉर्ड कर्जन ने पुर्नसंरचना के नाम पर अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बंगाल का विभाजन कर दिया.
  • विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाया गया.
  • जिसमें राजशाही, चटगांव और ढाका के तीन डिवीजन सम्मिलित थे.
  • दूसरी ओर एक अन्य प्रान्त पश्चिमी बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे, अस्तित्व में आया.
  • पूर्वी बंगाल का मुख्य कार्यालय ढाका में था और यह एक लेफ्टिनेंट के अधीन था.
  • इसमें एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू निवास करते थे.
  • पश्चिमी बंगाल में चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और मात्र 90 लाख मुसलमान निवास करते थे.
  • शीघ्र ही कर्जन की यह राजनीतिक चाल जगजाहिर हो गई कि बंगाल का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए किया गया है.
  • लॉर्ड कर्जन के इस कार्य का तीव्र विरोध हुआ.
  • 1911 में यह विभाजन रद्द कर दिया गया.

लॉर्ड कर्जन की विदेश नीति (The Foreign Policy of Lord Curuon)

  • लॉर्ड कर्जन एक साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था.
  • उसने एशिया के अन्य देशों के प्रति अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि हम इन देशों पर अपना अधिकार नहीं करना चाहते, किन्तु हम यह भी नहीं चाहेंगे कि कोई अन्य शक्ति इन क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करे.
  • लॉर्ड कर्जन के इस कथन के परिप्रेक्ष्य में उसकी विदेश नीति का अध्ययन किया जा सकता है.

फारस की खाड़ी के प्रति नीति

  • फारस की खाड़ी में स्थित अंग्रेजी रेजिडेन्ट खाड़ी देशों के आपसी विवादों में मध्यस्थता का कार्य करते थे.
  • अंग्रेजों की फारस की खाड़ी में साम्राज्य विस्तार की कोई योजना नहीं थी, किन्तु उन्हें यह स्वीकार्य नहीं था कि कोई अन्य शक्ति इस प्रदेश में अपना प्रभुत्व स्थापित करे.
  • 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में रूस, फ्रांस, जर्मनी और तुर्की ने इस क्षेत्र पर अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अभियान आरम्भ कर दिए, किन्तु लॉर्ड कर्जन ने शीघ्र ही फ्रांस, रूस, जर्मनी और तुर्की के इन अभियानों को निष्फल कर दिया और नवम्बर-दिसम्बर, 1903 तक पुनः इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.

तिब्बत के प्रति नीति

  • लॉर्ड कर्जन के भारत आगमन तक आंग्ल-तिब्बत संबंध गतिरोध की स्थिति में पहुंच चुके थे.
  • एक तरफ चीनी प्रभुसत्ता को तिब्बत स्वीकार नहीं करता था दूसरी ओर तिब्बत पर रूस का प्रभाव बढ़ता जा रहा था.
  • लॉर्ड कर्जन ने तिब्बत पर रूसी प्रभाव को समाप्त करने के लिए सितम्बर, 1904 में तिब्बत को अपने प्रभुत्व में ले लिया.
  • इस पराजय के बाद तिब्बत को युद्ध क्षति के रूप में एक लाख रुपये वार्षिक की दर से 75 लाख रुपये देने थे.
  • इसकी जमानत के रूप में अंग्रेजों ने सिक्किम और भूटान के मध्य स्थित चुम्बीघाटी को अपने अधिकार में ले लिया.
  • इसके अलावा यह भी निश्चय हुआ कि तिब्बत इंग्लैंड के अलावा किसी अन्य विदेशी शक्ति को रेलवे, सड़के और तार इत्यादि की स्थापना में रियायतें नहीं देगा.
  • भारत सचिव के भारी दबाव के कारण 1908 में चुम्बीघाटी पर से ब्रिटिश नियंत्रण उठा लिया गया.

कर्जन-किचनर विवाद (Curzon-Kitchener Controversy)

  • वायसराय की परिषद् में सैनिक विभाग की ओर से दो अधिकारी होते थे- 
  1. प्रधान सेनापति, जो सेना का प्रशासक और मुखिया होता था.
  2. साधारण कार्यकारी पार्षद या सैनिक सदस्य, जो सेना के प्रशासन का कार्यवाहक होता था. वह गवर्नर जनरल को सैनिक मामलों में मंत्रणा भी देता था.
  • 1902 में लॉर्ड किचनर को भारत का प्रधान सेनापति बनाया गया.
  • लॉर्ड किचनर सैनिक सदस्य के पद का उन्मूलन करके उसके सभी कार्य अपने अधिकार में लेना चाहता था, लेकिन लॉर्ड कर्जन ने इसका तीव्र विरोध किया.
  • यह विवाद बढ़ता ही गया और अंत में यह तय हुआ कि सैनिक सदस्य का पद समाप्त नहीं किया जाएगा किन्तु यह पद अब सैनिक सम्भरण सदस्य का कर दिया गया जिसका मुख्य कार्य असैनिक था सैनिक नहीं.
  • मुख्य सैनिक कार्य अब प्रधान सेनापति के अधीन कर दिए गए.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • लॉर्ड कर्जन एक सामाज्यवादी गवर्नर जनरल था.
  • उसकी ह एवं विदेश नीतियां केवल इस भावना से प्रेरित थी कि भारत में अंग्रेजों की स्थिति को अधिकाधिक सुदृढ़ बनाया जाए.
  • वह रूस, जर्मनी और फ्रांस के फार की खाड़ी में बढ़ते हुए प्रसार को रोकने में सफल रहा.
  • वह शिक्षा पर अत्यधिक सरकारी नियंत्रण का पक्षपाती थी.
  • उसने सिंचाई, धूमिकर, कृषि, रेलवे, राजस्व और मुद्रा टंकण संबंधी आर्थिक नीतियों में दक्षता पर अधिक तथा जनता की दयनीय स्थिति को सुधारने पर कम बल दिया.
  • उसके साम्राज्यवादी उद्देश्यों से भारत में राजनीतिक अशान्ति बढ़ी.
  • अगस्त, 1905 में उसने त्यागपत्र दे दिया.

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लॉर्ड एलगिन द्वितीय, 1894-99 (Lord Elgin-II, 1894-99) आधुनिक भारत

लॉर्ड एलगिन द्वितीय, 1894-99 (Lord Elgin-II, 1894-99) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड एलगिन द्वितीय, 1894-99 (Lord Elgin-II, 1894-99) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड एलगिन द्वितीय, 1894-99 (Lord Elgin-II)

  • लॉर्ड एलगिन के समय में देश को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.
  • जिनमें अकाल, प्लेग तथा सीमान्त युद्ध प्रमुख थे.
  • 1897 में अंग्रेजों की गतिविधियों से सन्देह उत्पन्न होने के कारण अफ़रीदियों ने दर्रा लैबर बन्द कर दिया तथा आंदोलन शुरू कर दिया.
  • दो बार सेना भेजने के बाद विद्रोहियों को शान्त किया जा सका.
  • 1896 में पूना तथा बंबई के आस-पास जरदस्त प्लेग फैला, जिससे अत्यधिक जन-हानि हुई.
  • सरकार ने उसे नियंत्रित करने के लिए जो कार्यवाहिया की उनसे जनता में अनेक गलतफहमियां तथा कटुता फैली.
  • फलस्वरूप पूना के प्लेग कमिश्नर रैंड सहित दो अधिकारियों की हत्या कर दी गई.
  • इसी समय 1896 तथा 1898 के वर्षों में पंजाब, उत्तर-प्रदेश, मध्य-प्रदेश तथा बिहार के कुछ भागों में भयंकर अकाल पड़े.
  • 1898 में इस संबन्ध में जांच हेतु एक आयोग नियुक्त किया गया.
  • 1893 में एक अफीम आयोग नियुक्त किया गया जिसका काम अफीम के प्रयोग का जनता के स्वास्थ्य पर प्रभाव के सम्बन्ध में जांच करना तथा सरकार को रिपोर्ट करना था.
  • अफीम पर सरकारी नियंत्रण था तथा सरकार इसका चीन को निर्यात करके अत्यधिक लाभ अर्जित कर रही थी.
  • इस प्रथा का विरोध कर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अफीम के बुरे प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया था.
  • परिणामस्वरूप चीन को भेजी जाने वाली अफीम को कम किया गया.
  • सेना में सुधार किया गया.
  • पूर्व में तीन प्रैजिडेन्सियों के पृथक मुख्य सेनापति होते थे.
  • नये प्रबन्धानुसार एक मुख्य सेनापति रखने व उसके अधीन विभिन्न प्रान्तों में सहायक जनरल रखने का प्रावधान किया गया.

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लॉर्ड लैन्सडौन, 1888-93 (Lord Lansdowne, 1888-93) आधुनिक भारत

लॉर्ड लैन्सडौन, 1888-93 (Lord Lansdowne, 1888-93) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड लैन्सडौन, 1888-93 (Lord Lansdowne, 1888-93) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड लैन्सडौन, 1888-93 (Lord Lansdowne)

  • लॉर्ड लैन्सडौन के शासनकाल में 1892 में प्रसिद्ध कौसिल अधिनियम स्वीकार हुआ.
  • इसके अधीन लेजिस्लेटिव कौंसिलों के कार्य और अधिकार बढ़ाये गए और इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल तथा प्रान्तीय लेजिस्लेटिव कौंसिलो के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गयी.
  • इस एक्ट के द्वारा चैम्बर्स ऑफ कामर्स, विश्वविद्यालयों, जमीदारों और म्यूनिस्पेलिटीज को अपने प्रतिनिधि चुनने का हक दिया गया.
  • 1881 के कारखाना अधिनियाम पर अनेक सुधार संशोधन किए गए.
  • इसके तहत स्त्रियों के लिए काम के घंटे दिन में 11 सीमित कर दिये गये.
  • काम करने वाले बच्चों की कम से कम आयु 7 वर्ष से 9 वर्ष कर दी गई, तथा उनके कार्य के घण्टे 7 निश्चित कर दिये गये.
  • बच्चों के लिए रात्रि में कार्य करना पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित कर दिया गया.

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लॉर्ड डफरिन, 1884-88 (Lord Dufferin, 1884-88) आधुनिक भारत

लॉर्ड डफरिन, 1884-88 (Lord Dufferin, 1884-88) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड डफरिन, 1884-88 (Lord Dufferin, 1884-88) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड डफरिन, 1884-88 (Lord Dufferin)

  • भारत का गवर्नर जनरल बनने से पूर्व लॉर्ड डफरिन तुर्की तथा रूस में ब्रिटिश राजदूत में रह चुका था.
  • 1872 से 1878 तक वह कैनेडा का गवर्नर जनरल भी रहा था.
  • डफरिन के शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना 1885-88 का तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध था, जिसमें बर्मा की पराजय हुई थी.
  • 1885 में ही ए. ओ. ह्युम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस की स्थापना की गई.
  • लॉर्ड डफरिन के शासनकाल में अर्थात 1885-86 और 87 में क्रमशः बंगाल किराया अधिनियम, अवध किराया अधिनियम तथा पंजाब किराया अधिनियम पास हुए.

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Wednesday, December 26, 2018

लॉर्ड रिपन, 1880-1884 (Lord Ripon) आधुनिक भारत

लॉर्ड रिपन, 1880-1884 (Lord Ripon, 1880-1884) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड रिपन, 1880-1884 (Lord Ripon)

  • लॉर्ड रिपन 1880 में भारत का गवर्नर जनरल बना.
  • उसने भारत के प्रति अपनी नीति का इन शब्दों में वर्णन किया.
  • भारत में रहने का हमारा अधिकार इस तर्क पर आधारित है कि भारत में हमारा शासन भारतीयों के लिए हितकर हो.
  • साथ ही भारतीय भी यह अनुभव करें कि यह उनके लिए हितकर है.
  • लॉर्ड रिपन ने लॉर्ड लिटन की दमनकारी नीतियों से घायल भारत के घावों को भरने का प्रयास किया.
  • उसने स्थानीय स्वशासन की योजना निर्धारित की और भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं की नीव डाली.

लॉर्ड रिपन, 1880-1884 (Lord Ripon, 1880-1884) आधुनिक भारत (MODERN INDIA) इलबर्ट बिल विवाद

भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम को रद्द करना (Repeal of the Vernacular Press Act)

  • समाचार पत्रों कि स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाले इस घृणित अधिनियम को लॉर्ड रिपन ने 1882 में रद्द कर दिया.
  • उसने भारतीय भाषा के समाचार पत्रों को अंग्रजी भाषा के समाचार पत्रों के समान स्वतंत्रता दे दी.
  • किन्तु सरकार ने समुद्र आशुल्क अधिनियम (Sea Customs Act) के माध्यम से प्रैस पर कुछ अंकुश बनाए रखा.

पहला फैक्टरी एक्ट, 1881 (The First Factory Act, 1881)

  • लॉर्ड रिपन ने भारतीय मिल मजदूरों की शोचनीय स्थिति को सुधारने के लिए प्रथम फैक्टरी एक्ट पारित करवाया.
  • यह एक्ट उन कारखानों पर लाग किया गया जिनमें 100 से अधिक श्रमिक कार्य करते थे.
  • इस एक्ट की व्यवस्थाओं के अनुसार सात वर्ष से कम आयु के बच्चों से कारखानों में काम नहीं करवाया जा सकता था.
  • 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए काम के घटे निर्धारित किए गए.

वित्तीय विकेन्द्रीयकरण, 1882 (Financial Decentralization, 1882)

  • लॉर्ड रिपन ने लॉर्ड मेयो द्वारा प्रतिपादित वित्तीय विकेन्द्रीयकरण की नीति को जारी रखा.
  • उसने प्रान्तों का आर्थिक उत्तरदायित्व बढ़ाने के लिए कर के साधनों को निम्नलिखित तीन भागों में बांट दिया—

साम्राज्यीय मदें (Imperial Heads)

  • इसमें सीमा शुल्क, डाक तार, रेलवे, अफीम, नमक, टकसाल, सैनिक, आय और भूमिकर आदि रखे गए.

प्रान्तीय मदें (Provincial Heads)

  • इसमें स्थानीय महत्व की मदें जैसे- जेलों, चिकित्सा सेवाओं, मुद्रण, राजमार्ग और सामान्य प्रशासन आदि आती थी.
  • इनसे प्राप्त समस्त आय प्रान्तीय सरकारों को दी जाती थी.

विभाजित मदें (Divided Heads)

  • इसमें आबकारी कर, स्टाम्प कर, जल, पंजीकरण शुल्क आदि में सम्मिलित थी.
  • इनसे प्राप्त आय प्रान्तीय और केन्द्रीय सरकारों के मध्य बराबर बराबर बांट दी जाती थी.

स्थानीय स्वशासन की स्थापना (Establishinent of Local Self Government LSG)

  • भारत में लॉर्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का पिता कहा जाता है.
  • लॉर्ड रिपन के शासन काल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य स्थानीय स्वशासन पर 1882 का सरकारी प्रस्ताव था.
  • इस प्रस्ताव के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय बेड की स्थापना की गई.
  • प्रत्येक जिले में जिला उपविभाग, तालुका या तहसील बोर्ड की स्थापना की गई.
  • नगरों में नगरपालिकाएं स्थापित की गई.
  • इन स्थानीय संस्थाओं को निश्चित कार्य तथा आय के साधन दिए गए.
  • इन संस्थाओं में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या अधिक होती थी.
  • इन संस्थाओं के संबंध में हस्तक्षेप बहुत कम कर दिया गया.
  • यह आशा की गई कि सरकार इन संस्थाओं को आज्ञादे बल्कि इनका उचित मार्ग दर्शन करे.
  • इन संस्थाओं के अध्यक्ष सरकारी अधिकारी नहीं होते थे वरन् इनके सदस्यों द्वारा चुने जाते थे.
  • किन्तु कुछ कार्यों के संबंध में सरकारी अनुमति आवश्यक होती थी.
  • ये कार्य थे-ऋण लेना, किसी कार्य पर निश्चित राशि से अधिक व्यय, प्राधिकृत मदों से भिन्न पदों पर कर लगाना और नगरपालिका की सम्पत्ति को बेचना आदि.

भूमिकर व्यवस्था पर प्रस्ताव (Resolution on Land Revenue)

  • लार्ड कॉर्नवालिस ने 1793 में बंगाल में जिस भूमिकर व्यवस्था को स्थापित किया उसमें लार्ड रिपन ने कुछ सुधार करने का निश्चय किया.
  • लार्ड रिपन किसानों को उनकी भूमि के संबंध में स्थाई अधिकार दिलवाना चाहता था.
  • वह कृषकों को यह भी आश्वासन देना चाहता था कि सरकार भूमिकर केवल भूमि के मूल्य की वृद्धि की अवस्था में ही बढ़ाएगी.
  • किन्तु बंगाल के जमींदारों ने इसका उग्र विरोध किया.
  • भारत सचिव भी लार्ड रिपन को उक्त योजनाओं से सहमत न हो सका.
  • अतः यह योजना क्रियान्वित न हो सकी.

शैक्षणिक सुधार (Educational Reforms) हन्टर आयोग

  • 1854 के वुड-निर्देशपत्र (wood’s Despatch) के पश्चात् शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए 1882 में सर विलियम हन्टर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया.
  • हन्टर आयोग ने सरकार के प्रारभिक शिक्षा के प्रसार और उन्नति के उत्तरदायित्व पर जोर दिया.
  • हन्टर आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि यह कार्य नव स्थापित स्थानीय संस्थाओं को सौंप दिया जाए.
  • इन संस्थाओं पर सरकार कड़ी निगरानी रखे.
  • माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में दो प्रकार की पद्धतियों का सुझाव दिया गया —
  1. साधारण साहित्यिक शिक्षा जिसमें विद्यार्थियों को प्रवेशिका परीक्षा के लिए तैयार किया जाए.
  2. तह वाणिज्यिक शिक्षा जो विद्यार्थियों को वाणिज्यिक और उपव्यवसायिक जीवनयापन के लिए तैयार कर सके.
  • हन्टर आयोग ने सहायक अनुदान व्यवस्था का समर्थन किया.
  • हन्टर आयोग ने स्त्री शिक्षा पर भी जोर दिया.

इलबर्ट बिल विवाद, 1883-84 (The Ilbert Bill Controversy, 1883-84)

  • सर पी. सी. इलबर्ट वाइसराए की परिषद् के विधि सदस्य थे.
  • 2 फरवरी, 1883 को उन्होंने विधान परिषद् में एक प्रस्ताव (बिल) प्रस्तुत किया.
  • यह बिल इलबर्ट बिल के नाम से प्रसिद्ध है.
  • इस बिल का उद्देश्य यह था कि जाति – भेद पर आधारित सभी न्यायिक आयोग्यताएं तुरन्त समाप्त कर दी जाएं और भारतीय तथा यूरोपीय न्यायाधीशों को समान शक्ति प्रदान की जाएं.
  • इलबर्ट बिल को यूरोपीय लोगों ने अपने विशेषाधिकारों पर कुठारधात बतलाया.
  • यूरोपीय लोग भारतीयो से दासो जैसा व्यवहार करते थे.
  • विरोध करने पर प्रायः इन्की हत्या तक कर दी जाती थी.
  • इन तथाकथित यूरोपीय स्वामियों को यूरोपीय न्यायाधीश बिना दण्ड के ही अथवा थोड़ा सा दण्ड देकर छोड़ देते थे.
  • इलबर्ट बिल से यूरोपीय लोगों और न्यायाधीशों की इस मनमानी पर अंकुश लग जाता.
  • अतः इस बिल का तीव्र विरोध हुआ. इस बिल को रद्द करने के लिए लॉर्ड रिपन पर भारी दबाव पड़ने लगा.
  • अन्ततः इस बिल के संबंध में एक समझौता हो गया जिससे इस बिल का मूल उद्देश्य समाप्त हो गया.
  • उक्त समझौते के अनुसार 26 जनवरी, 1884 को एक नया प्रस्ताव स्वीकार किया गया.
  • इसके अनुसार यदि यूरोपीय लोगों के मुकदमे दण्डनायकों या सेशन जजों के सामने आए तो वे लोग (यूरोपीय लोग) 12 व्यक्तियों की शपथ जन (Jury) द्वारा मुकदमें की सुनवाई की मांग कर सकते थे.
  • इन 12 व्यक्तियों में कम से कम सात का यूरोपीय अथवा अमेरिकन होना अनिवार्य था.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • लॉर्ड रिपन को प्रायः “भारत के उद्धारक” को संज्ञा दी जाती है.
  • उसके शासन काल को भारत में स्वर्ण युग के आरंभ की संज्ञा दी जाती है.
  • रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक भी कहा जाता है.
  • लॉर्ड रिपन ने 1831 में विलियम बैंटिक द्वारा मैसूर के प्रति किए गए अन्याय को समाप्त करने की भावना से मैसूर के स्वर्गवासी राजा के दत्तक पुत्र को मैसूर पुनः लौटाकर अपनी उदारता का परिचय दिया.
  • 1882 में लॉर्ड रिपन ने अपने कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व ही अपना त्यागपत्र दे दिया.

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लॉर्ड लिटन, 1876-80 (Lord Lytton, 1876-1880)आधुनिक भारत

लॉर्ड लिटन, 1876-80 (Lord Lytton, 1876-1880)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड लिटन 1876-80 (Lord Lytton)

  • अप्रैल 1876 में लॉर्ड लिटन ने लॉर्ड नार्थबुक के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के गवर्नर जनरल का पद भार सम्भाला.

लॉर्ड लिटन, 1876-80 (Lord Lytton, 1876-1880)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड लिटन और मुक्त व्यापार (Lord Lytton and Free Trade):

  • जुलाई, 1877 में ब्रिटिश सरकार ने लॉर्ड लिटन को यह आदेश दिया कि भारत में कपास के आयात पर लगने वाला कपास शुल्क (Cotton Duties) समाप्त कर दिया जाए.
  • लॉर्ड लिटन ने अकाल के कारण शोचनीय वित्तीय स्थिति के होते हुए भी कपास शुल्क समाप्त कर दिया.
  • इस कृत्य से जनता में काफी आक्रोश फैल गया.

वित्तीय सुधार (Financial Reforms)

  • लॉर्ड मेयो द्वारा प्रस्तुत वित्तीय विकेन्द्रीयकरण की नीति यथावत चलती रही.
  • इस दिशा में लॉर्ड लिटन ने एक सुधार किया.
  • उसने प्रान्तीय सरकारों को साधारण प्रान्तीय सेवाओं जैसे- भूमिकर, उत्पादन कर एवं आबकारी, टिकटें, कानून और व्यवस्था एवं सामान्य प्रशासन आदि पर व्यय करने का अधिकार दे दिया.
  • यह कहा गया कि प्रान्तीय सरकारें इस कार्य के लिए अपने साधनों से धन की व्यवस्था करें.
  • इससे यह आशा की गई कि प्रान्तीय सरकारें अपने साधनों का विकास करेंगी जिससे सरकार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाएगी.

1876-78 का अकाल (Famine of 1876-78)

  • सन् 1876 से 1878 तक भारत में भयंकर अकाल पड़ा.
  • अकाल से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र थे- मद्रास, बम्बई मैसूर, हैदराबाद, मध्यभारत के कुछ भाग और पंजाब .
  • अकाल से निपटने के सरकार के तथाकथित प्रयासों की असफलता शीघ्र हो सामने आ गई.
  • 1878 में रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में एक “अकाल आयोग” का गठन किया गया.

राज-उपाधि अधिनियम, 1876 (Royal Titues Act, 1876) :

  • ब्रिटिश संसद् ने 1876 में महारानी विक्टोरिया को ‘केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि से विभूषित करने के लिए एक राज-उपाधि अधिनियम पारित किया.
  • इस उपाधि को प्रदान करने के लिए दिल्ली में करोड़ों रुपये खर्च करके एक वैभवशाली दरबार का आयोजन किया गया.
  • एक तरफ यह करोड़ों रुपये का आयोजन था और दूसरी ओर भयंकर अकाल से जूझती भारत की असहाय जनता.
  • सरकार के इस कृत्य ने जनता को गम्भीर रूप से नाराज किया.

भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम मार्च, 1878 (Vernacular Press Act March, 1878) :

  • सरकार की दमनकारी नीतियों को भारतीय भाषाई समाचार पत्रों में खुलकर निंदा की जा रही थी.
  • सरकार ने इन समाचार पत्रों पर अंकुश लगाने के लिए मार्च, 1878 में भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम पारित किया.
  • इस अधिनियम के द्वारा भारतीय भाषाई के समाचार पत्रों के प्रकाशकों को दण्डनायक उचित एवं बाध्यकारी आदेश दे सकता था.
  • आदेश का उल्लंघन करने पर प्रायः छापाखाने जब्त कर लिए जाते थे.
  • दण्डनायक की आज्ञा के विरुद्ध किसी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती थी.

भारतीय शस्त्र अधिनियम 1878 (Indian ArrIs Act, 1878) :

  • लिटन की दमन कारी नीति का ही एक रूप 1878 का भारतीय शस्त्र अधिनियम था.
  • इस अधिनियम के अनुसार भारतीयों के लिए बिना लाइसेंस के हथियार रखना या इनका व्यापार करना एक दण्डनीय अपराध घोषित कर दिया था.
  • यह व्यवस्था यूरोपीय, ग्लो इंडियन और सरकारी अधिकारियों के संबंध में लागू न थी.

वैधानिक लोक सेवा (Statutory Civil Service) :

  • लॉर्ड लिटन ने 1878-1879 में वैधानिक लोक सेवा की एक योजना प्रस्तुत की.
  • इस योजना के अनुसार उच्च कुलीन भारतीयों की वैधानिक लोक सेवा में युक्ति की व्यथा की गई.
  • ये नियुक्तियां प्रान्तीय सरकारों की सिफारिश पर भारत सचिव की अनुमति से की जाती थी.
  • किन्तु यह “वैधानिक लोक सेवा” को वरथा भारतीयों में बहुत लोकप्रिय न हो सकी.
  • अत: आठ वर्ष बाद यह सेवा बन्द कर दी गई.

दूसरा अफगान युद्ध (The Second Afghan war) :

  • लॉर्ड लिटन ने पश्चिम में साम्राज्य के विस्तार के लिए अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया.
  • किन्तु यह अभियान पूर्णत: असफल रहा.
  • इस युद्ध में सरकार का करोड़ों रुपया व्यय हो गया.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • लॉर्ड लिटन को भारत में एक दमनकारी शासक के रूप में याद किया जाता है.
  • यह एक शासक के रूप में असफल रहा.
  • उसकी अप्रिय और दमनकारी नीतियों से भारत की जनता में व्यापक असन्तोष फैल गया.

 

लॉर्ड डलहौजी, 1848-1856 (Lord Dalhousie) व्यपगत का सिद्धांत (The Doctrine of Lapse)

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Tuesday, December 25, 2018

लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning, 1856-1862) आधुनिक भारत

लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning, 1856-1862) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning)

  • लॉर्ड कैनिंग के शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1857 का विद्रोह था.
  • इसी के फलस्वरूप 1858 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी समाप्त कर दी गई थी तथा भारत सरकार का उत्तरदायित्व सम्राट ने अपने हाथों में ले लिया.

लॉर्ड कैनिंग, 1856-1862 (Lord Canning, 1856-1862) अन्तिम गवर्नर जनरल तथा सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

  • इस प्रकार लॉर्ड कैनिंग अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अन्तिम गवर्नर जनरल तथा सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था.
  • कैनिंग के शासनकाल में निम्नलिखित प्रमुख सुधार लागू किए गये थे.
  • 1859 में बंगाल किराया अधिनियम स्वीकृत हुआ जिसमें वे किसान जो पिछले 12 वर्षों से लगातार किराये की भूमि पर खेती कर रहे हों या लगातार 20 वर्षों से समान किराये पर खेती कर रहे हों, को भूमि का अधिकारी समझा गया.
  • 1861 में प्रसिद्ध भारतीय कॉसिल अधिनियम स्वीकृत हुआ जिसके अनुसार प्रैजिडेंसियों में विधान मण्डलों को स्थापित किए जाने तथा वाइसराय की प्रबन्धकारिणी कौंसिल में वैधानिक कार्यों के लिए अधिक सदस्यों को लिए जाने का उपबन्ध किया गया.
  • 1861 में एक कानून स्वीकृत हुआ जिसके द्वारा उच्चतम न्यायालयों तथा अंग्रेजी कम्पनी की अदालतों के स्थान पर अधिकृत हाई कोर्ट स्थापित किए गये.
  • इंग्लैण्ड का एक महान अर्थशास्त्री जान विल्सन अपने सहयोगी सैम्युअल लैंग के साथ 1859 में भारत आया.
  • जिसे आर्थिक पुनर्व्यवस्था का कार्य सौंपा गया.
  • उसने निम्नलिखित तीन नये करों का सुझाव दिया.
  1. आय कर,
  2. व्यापार तथा
  3. पेंशों पर लाइसेंस कर,
  • घरेलू तम्बाकू पर चुंगी. उसने नागरिक तथा सैनिक व्यय में कटौती का प्रस्ताव किया.
  • विद्रोह से शिक्षा लेते हुए फौज में सुधार किए गये व भारतीय तथा यूरोपीय सैनिकों के मध्य एक निश्चित अनुपात के लिए नियम बनाये गये.
  • 1861 में आगरा, अवध के उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों, पंजाब व राजपूताना के अनेक भागों में अकाल पड़ा जिससे कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत भाग मृत्यु के मुंह में चला गया.
  • इस समय सरकार ने उदारता से काम लिया तथा हर सम्भव सहायता की.
  • 1859-60 में नील उगाने वाले यूरोपियनों तथा बंगाल के कृषकों के मध्य भयंकर झगड़े हुए.
  • मामले की जांच के लिए आयोग नियुक्त किया गया.
  • अन्त में इस सम्बन्ध में यह निर्णय लिया गया कि दीवानी समझौते को पूरा करने में इन्कार करने के कारण किरायेदार पर फौजदारी अभियोग नहीं चलाना चाहिए.
  • लॉर्ड कैनिंग के सम्बन्ध में यह बात सही है कि कोई भी गवर्नर जनरल बौद्धिक गुणों में उससे आगे नहीं बढ़ सका.
  • यद्यपि वह बहुत कठोर था लेकिन उसमें कर्तव्यपरायणता, सौजन्यता तथा उदारता की भावना थी.

1857 के विद्रोह का स्वरूप Nature of the revolt of 1857

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Friday, December 21, 2018

लार्ड हार्डिंग, 1844-1848 (Lord Hardinge, 1844-1848) आधुनिक भारत

लार्ड हार्डिंग, 1844-1848 (Lord Hardinge, 1844-1848)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लार्ड हार्डिंग, 1844-1848 (Lord Hardinge, 1844-1848)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लार्ड हार्डिंग, 1844-1848 (Lord Hardinge)

  • भारत में गवर्नर जनरल के रूप में आने से पूर्व लार्ड हार्डिंग 20 वर्ष तक पार्लियामेंट में रहा था.
  • उसने युद्ध सचिव के रूप में कार्य किया था.
  • वह पेनिनसुलर युद्ध का नायक था तथा उसने वाटरलू की लड़ाई में भी भागेदारी की थी.
  • उसके शासन-काल की प्रमुख घटना दिसम्बर 1845 में शुरू हुआ सिक्ख युद्ध था, जो कि लाहौर को सन्धि द्वारा 1846 में समाप्त हुआ था.
  • इस सन्धि से अंग्रेजों को दोआब तथा क्षतिपूर्ति के रूप में डेढ़ करोड़ रुपये मिले.
  • हार्डिंग ने अपने शासन काल में अनेक सुधार किए जिनमें प्रमुख थेनमक-कर कम कर दिया गया, बहुत से चुंगी कर हटा दिये गए, फौजी व्यय कम कर दिया गया, सती प्रथा को समाप्त करने की बात कही गई तथा प्राचीन भारतीय स्मारकों की सुरक्षा के लिए उचित प्रबन्ध किए गए.

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लार्ड एलनबरो, 1842-1844 (Lord Ellenborough, 1842-1844) आधुनिक भारत

लार्ड एलनबरो, 1842-1844 (Lord Ellenborough, 1842-1844)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लार्ड एलनबरो 1842-1844 (Lord Ellenborough)

  • लार्ड एलनबरो को भारत की बागडोर सम्भालने के लिए ऐसे समय में भेजा गया जब अफगानिस्तान में अंग्रेजों की हार हो चुकी थी और स्थिति अत्यन्त गम्भीर थी.
  • एलनबरो के समय में सर्वप्रथम अफगान युद्ध को सफलतापूर्वक दबाया गया.
  • सिन्ध पर विजय प्राप्त कर उसे अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया तथा सिंधिया के साथ युद्ध हुआ.

लार्ड एलनबरो, 1842-1844 (Lord Ellenborough, 1842-1844)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

सिंध की विजय

  • यूरोप और एशिया में यूरोपियों और रूसियों की शत्रुता बढ़ रही थी और अंग्रेजों को भय था कि रूसी अफगानिस्तान या फारस के रास्ते भारत पर हमला कर सकते हैं.
  • सिंध की विजय इसी का परिणाम थी.
  • साथ ही सिंध नदी के व्यापारिक उपयोग की संभावनाएं भी इसी लालच का एक कारण थी.
  • 1832 की एक संधि के द्वारा सिंध की नदियों और सड़कों को .
  • ब्रिटिश व्यापार के लिए खोल दिया गया था.
  • सिंध के अमीर कहलाने वाले सरदारों से 1839 में एक सहायक संधि पर हस्ताक्षर कराए गए.
  • अंत में पहले के इन वादों को भुलाकर कि उनके राज्य को कोई आंच नहीं आयेगी, फौजी तथा राजनीतिक विभाग के सर्वोच्च नियंत्रक सर चार्ल्स नेपियर ने 1843 में एक संक्षिप्त अभियान के बाद सिंध का अधिग्रहण कर लिया.
  • इससे पहले सर चार्ल्स नेपियर ने अपने आक्रमण के कार्यक्रम में यह बात सिद्धान्त रूप में रखी कि, ‘इन्नस’ के अनुसार, –

“सिन्ध को अंग्रेजी राज्य में मिलाना लाभप्रद कुटिलता होगी. इसके लिए उसे कोई न कोई बहाना ढूँढना होगा. यह एक प्रकार की डकैती थी. जिसका प्रभाव प्रकट था.”

ग्वालियर से युद्ध 

  • 1846 में जनकजी सिंधिया का देहावसान हो गया. उनकी कोई सन्तान नहीं थी.
  • इसलिए उनकी विधवा ताराबाई ने एक बच्चा गोद ले लिया तथा गवर्नर जनरल की अनुमति से एक रीजेन्ट नियुक्त किया गया.
  • परन्तु यह आशंका कि फौज में विद्रोह न हो जाए उसे बर्खास्त कर दिया गया और गवर्नर जनरल ने फौज में कमी की मांग की.
  • इस बात को मानने से इन्कार करने पर दोनों में युद्ध आरम्भ हो गया और सिंधिया फौज को पराजित होना पड़ा.
  • डायरेक्टर भारत में लार्ड एलनबरो की शासन व्यवस्था से असंतुष्ट थे.
  • अत: जून 1844 में उचित कार्यवाही द्वारा उसे वापस आने का आदेश दिया गया.

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महाराजा रणजीत सिंह और उसके उत्तराधिकारीः आंग्ल-सिख युद्ध (MAHARAJA RANJIT SINGH AND HIS SUCCESSORS: ANGLO-SIKH WARS)

महाराजा रणजीत सिंह और उसके उत्तराधिकारीः आंग्ल-सिख युद्ध (MAHARAJA RANJIT SINGH AND HIS SUCCESSORS: ANGLO-SIKH WARS)

महाराजा रणजीत सिंह (MAHARAJA RANJIT SINGH)

  • महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 को शुकरचकिया मिसल के मुखिया महासिंह के घर हुआ.
  • 1760 के बाद से पंजाब में सिख मिसलों (बराबर के लोगों का संगठन) का प्रभाव बढ़ने लगा.
  • किन्तु अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में सिख मिसलें विघटित होने लगी.
  • रणजीत सिंह ने इस स्थिति का लाभ उठाया और शीघ्र ही तलवार के बल पर मध्य पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य स्थापित कर लिया.
  • 1799 में रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया.
  • 1805 में उसने अमृतसर पर भी अधिकार कर लिया.
  • इस प्रकार वह सिखों का सबसे महत्वपूर्ण सरदार बन गया.
  • उसने शीघ्र ही झेलम नदी से सतलुज नदी तक का समस्त प्रदेश अपने अधिकार में कर लिया.

महाराजा रणजीत सिंह और उसके उत्तराधिकारीः आंग्ल-सिख युद्ध (MAHARAJA RANJIT SINGH AND HIS SUCCESSORS: ANGLO-SIKH WARS)

डोगरों और नेपालियों से सम्बन्ध (Relationships with Dogrians and Nepalese)

  • जिस समय महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के मैदानी भागों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर रहा था उस समय कांगड़ा का डोगरा सरदार राजा संसार चन्द कटोच भी आस-पास के पहाड़ी क्षेत्रों में अपने प्रभुत्व का विस्तार कर रहा था.
  • 1804 में संसार चन्द ने मैदानी भाग पर अपना ध्यान दिया तथा बजवाड़ा और होशियारपुर पर आक्रमण किया किन्तु रणजीत सिंह के हाथों पराजय स्वीकार की.
  • कुछ समय बाद नेपाल के गोरखा सरदार अमरसिंह थापा ने कांगड़ा को घेर लिया.
  • संसार चन्द गोरखों का सामना करने में सक्षम न था अतः उसने रणजीत सिंह से सहायता की याचना की.
  • इस सहायता के बदले संसार चन्द ने उसे कांगडा का दुर्ग देने की भी पेशकश की.
  • रणजीत सिंह की सेना ने शीघ्र ही गोरखों की सेना को कांगड़ा से भगा दिया.
  • इस प्रकार कांगडा पर रणजीत सिंह का अधिकार हो गया और संसार चन्द रणजीत सिंह की सुरक्षा में आ गया.

अफगानों से संबंध (Relations with Afghanis)

  • 1773 में अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु के बाद अफगान सरदारों के मध्य झगड़े प्रारंभ हो गए.
  • अब्दाली के पुत्र शाहशुजा ने काबुल का राज्य प्राप्त करने के लिए रणजीत सिंह से सहायता की याचना की किन्तु रणजीत सिंह सहायता के संबंध में कोई निश्चित आश्वासन न दे सका.
  • अत: शाहशुजा ने कम्पनी का संरक्षण प्राप्त कर लिया.
  • 1831 में शाहसुजा ने पुन: रणजीत सिंह से सहायता मांगी किन्तु रणजीत सिंह ने बहुत कठोर शर्ते उसके सम्मुख पेश की.
  • 1834 में रणजीत सिंह ने पेशावर पर अधिकार कर लिया.

अंग्रेजों से संबंध (Relations with English)

  • रणजीत सिंह पंजाब के समस्त भू-भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था.
  • अतः उसने सतलुज के पार के प्रदेशों पर अधिकार करना शुरू किया.
  • 1806 के अपने अभियान से उसे दौलधी नगर, पटियाला, लुधियाना, डक्खा, रायकोट, जगराओं और घुघराना आदि प्रदेश प्राप्त हुए.
  • अगले वर्ष पुनः उसने सतलुज पार के प्रदेशों पर आक्रमण किया.
  • इस बार इन प्रदेशों ने अंग्रेजों से सहायता प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर ली थी.
  • अंग्रेज गवर्नर मैटकाफ ने रणजीत सिंह को सलाह दी कि वह सतलुज पार के प्रदेशों पर अपना अधिकार छोड़ दे.
  • किन्तु 1808 में रणजीत सिंह ने मैटकाफ की सलाह को धत्ता बताते हुए पुनः सतलुज पार किया तथा फरीदकोट मालेरकोटला और अम्बाला पर अधिकार कर लिया.
  • किन्तु 1809 में अमृतसर की संधि के बाद रणजीत सिंह यह स्वीकार करने के लिए बाध्य हो गया कि सतलुज पार के प्रदेशों पर अंग्रेजों का अधिकार है.
  • इस संधि के बाद यद्यपि महाराजा को पश्चिम में अपने राज्य का विस्तार करने के लिए खुली छूट मिल गई और उसने 1818 में मुल्तान, 1819 में कश्मीर और 1834 में पेशावर पर अधिकार कर लिया किन्तु इस संधि ने परोक्ष रूप से यह भी सिद्ध कर दिया कि रणजीत सिंह अग्रेजों का सामना करने में समर्थ नहीं है.
  • आगे चलकर सिंध और फिरोजपुर के संबंध में भी उसने अपनी असमर्थता ही प्रकट की.

रणजीत सिंह का प्रशासन (Administration of Ranjit Singh)

  • रणजीत सिंह ने एक केन्द्रोन्मुखी प्रशासन की स्थापना की.
  • उसके प्रशासन में महाराजा ही समस्त प्रशासनिक और राजनीतिक शक्तियों का केन्द्र था.
  • वह अपने आप को खालसा का सेवक मानता था.
  • उसने अपनी सरकार को सरकार-ए-खालसा जी का नाम दिया.
  • महाराज की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् भी थी.
  • उसने अपने राज्य को प्रान्तों में बांट रखा था.
  • प्रत्येक प्रान्त एक नाज़िम के अधीन होता था.
  • प्रान्तों को जिलों में बांटा गया था.
  • प्रत्येक जिला एक कारदार के अधीन होता था.
  • गांवों में पंचायतें कार्य करती थीं.

भूमि कर व्यवस्था (Land Revenue System)

  • भूमिकर सरकार की आय का प्रमुख स्रोत था.
  • भूमिकर के रूप में सरकार उत्पादन का 33 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक लेती थी.
  • यह भूमि की उर्वरता पर निर्भर था.

न्याय व्यवस्था (Judicial System)

  • रणजीत सिंह की न्याय व्यवस्था में न्याय एक स्थानीय प्रश्न था न कि देश का.
  • स्थानीय प्रशासक स्थानीय परम्पराओं के अनुसार न्याय करते थे.
  • लाहौर में एक “अदालत-ए-आला” (उच्चतम न्यायालय) की स्थापना की गई थी.
  • इस न्यायालय में प्रान्तीय और जिला न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील की जा सकती थी.
  • दण्ड के रूप में अपराधियों पर बड़े-बड़े जुर्माने किए जाते थे.
  • इस प्रकार न्याय सरकार की आय का एक बड़ा साधन भी था.

सैन्य प्रणाली (Military System)

  • रणजीत ने सर्वाधिक ध्यान अपनी सैन्य व्यवस्था पर दिया.
  • उसने अपनी सेना का संगठन कम्पनी के नमूने पर किया.
  • उसने मुख्यत: फ्रांसीसी कमाण्डरों की सहायता से अपनी सेना के गठन, ड्रिल और अनुशासन का प्रबंध किया.
  • उसने तोपखाने पर भी समुचित ध्यान दिया.
  • लाहौर और अमृतसर में तोपें, गोला एवं बारूद बनाने के कारखाने स्थापित किए गए.
  • रणजीत सिंह ने सेना में मासिक वेतन देने की प्रणाली आरंभ की.
  • इस प्रणाली को “माहदारी” कहा जाता था.
  • 1822 में जनरल वन्तुरा और अलार्ड ने एक विशेष आदर्श सेना का गठन किया.
  • इसे ‘फौज-ए-खास’ कहते थे.
  • इस सेना का एक विशेष चिन्ह होता था.

मूल्यांकन (Evaluation) 

  • भारत के इतिहास में रणजीत सिंह का उल्लेखनीय महत्व है.
  • एक शासक के रूप में उसने सदैव जनहित पर ध्यान दिया.
  • उसने तलवार के बल पर पंजाब के मध्य भाग में अपने राज्य की स्थापना की परन्तु रणजीत सिंह को एक रचनात्मक और कुशल राजनीतिज्ञ नहीं कहा का सकता.
  • उसने अपने कठिन परिश्रम के बाद जो राज्य बनाया था वह उसकी मृत्यु के बाद 10 वर्ष के भीतर ही समाप्त हो गया.
  • इसका प्रमुख कारण यह था कि उसने शासन की समस्त शक्तियाँ अपने में इतनी अधिक केन्द्रित कर ली थी कि उसकी मृत्यु के बाद इस केन्द्रीकृत व्यवस्था को कोई संभाल न सका.

रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी (Successors of Ranjit Singh)

  • रणजीत सिंह पंजाब में एक स्थायी सिख राज्य की स्थापना न कर सका.
  • जून, 1839 में उसकी मृत्यु के बाद राज्य में अराजकता फैल गई और वास्तविक शक्ति खालसा सेना के हाथ में चली गई.
  • रणजीत सिंह के बाद उसके अयोग्य पुत्र खड़गसिंह को गद्दी पर बीठाया गया.
  • ध्यानसिंह को उसका वज़ीर बनाया गया.
  • अक्टूबर-नवम्बर, 1839 में ध्यानसिंह ने खड़गसिंह के विरुद्ध विद्रोह कर दिया.
  • खड़गसिंह को बन्दी बना लिया गया और उसके पुत्र नौनिहाल सिंह को गद्दी पर बिठाया गया.
  • ध्यान सिंह अब नौनिहाल सिंह का वजीर बन गया.
  • जनवरी, 1841 में पुनः राजा के विरुद्ध विद्रोह किया गया और महाराजा रणजीत सिंह के एक अन्य पुत्र शेरसिंह को गद्दी पर बिठाया गया.
  • सितम्बर, 1843 में अजीत सिंह सन्धावालिया ने शेरसिंह की हत्या कर दी.
  • सितम्बर, 1843 में ही महाराजा राणजीत सिंह के एक अन्य अल्पवयस्क पुत्र दलीपसिंह को गद्दी पर बिठाया गया.

आंग्ल-सिख युद्ध

पहला आंग्ल-सिख युद्ध, 1845-46 (First Anglo-Sikh War, 1845-46)

  • अफगान संघर्ष में अपनी पराजय के बाद अंग्रेज यह चाहते थे कि सिंध की तरह पंजाब का भी ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया जाए.
  • 1844 में लार्ड हार्डिंग गवर्नर जनरल बना.
  • उसने पंजाब की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर पंजाब की सीमाओं को सैनिक छावनियों में बदल दिया.
  • शीघ्र ही खालसा सैनिक यह समझ गए कि अंग्रेज उनसे युद्ध करना चाहते हैं.
  • काफी समय तक युद्ध के सम्बन्ध में अनिश्चितता की स्थिति बनी रही.
  • अन्तत: इस संबंध में सबराओं की लड़ाई (10 फरवरी, 1846) निर्णायक सिद्ध हुई.
  • लालसिंह और तेजासिंह के विश्वासघात के कारण खालसा सेना की पराजय हुई.
  • अंग्रेजों का लाहौर पर अधिकार हो गया.

लाहौर की संधि 9 मार्च, 1846

  • खालसा सेना की पराजय के बाद महाराजा को लाहौर की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया.
  • इस संधि के अनुसार
  1. महाराजा ने स्वयं और अपने उत्तराधिकारियों की ओर से सतलुज के पार के अपने समस्त प्रदेश सदैव के लिए अंग्रेजों को दे दिए.
  2. सतलुज और व्यास नदियों के मध्य स्थित सभी दुर्गों पर कम्पनी का अधिकार हो गया. 
  3. सिखों को डेढ़ करोड़ रुपया युद्ध के दण्ड के रूप में देना पड़ा.
  4. महाराजा की सेना 12,000 घुड़सवार और 20,000 पदाति तक ही सीमित कर दी गई.
  5. महाराजा कम्पनी की अनुमति के बिना किसी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं रख सकता था.
  6. अल्पवयस्क दलीपसिंह को महाराजा के रूप में स्वीकार किया गया.
  7.  सर हेनरी लॉरेन्स को लाहौर में कम्पनी का रेजीडेन्ट नियुक्त किया गया.
  • कुल मिलाकर उक्त संधि के संबंध में यह कहा जा सकता है कि इस संधि के द्वारा पंजाब को इतना शक्तिहीन कर दिया गया कि उसका ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल होना केवल समय का प्रश्न ही रह गया था.

दुसरा आंग्ल-सिख युद्ध, 1848-49 (Second Anglo-Sikh war, 1848-49)

  • यद्यपि लाहौर की संधि के प्रावधानों के तहत ब्रिटिश सेना को 1846 के अंत तक लौट जाना था किन्तु महाराजा के अल्पव्यस्क होने के बहाने लार्ड हार्डिंग ने सेना को यथावत् बनाए रखा.
  • महाराजा की अल्पावस्था के कारण पंजाब का शासन अंग्रेजों के द्वारा चलाया जाने लगा.
  • इसी प्रकार लाहौर पर अंग्रेजी रेजीडेन्ट का प्रभुत्व स्थापित हो गया.
  • 1846 में मुल्तान के गवर्नर मूलराज को 20 लाख रुपया और रावी नदी के उत्तर का प्रदेश कम्पनी को सौंपने के लिए बाध्य किया गया.
  • अंग्रेजों की इस मांग से खिन्न होकर मूलराज ने दिसम्बर 1847 में इस्तीफा दे दिया.
  • जनवरी, 1848 में लार्ड डलहौजी ने भारत के गवर्नर जनरल के रूप में कार्यभार संभाला.
  • वह एक साम्राज्य वादी गवर्नर जनरल था.
  • मार्च, 1848 को काहन सिंह को मुल्तान का गवर्नर नियुक्त किया गया.
  • कार्यभार संभालने में सहायता करने के लिए दो अंग्रेज अधिकारी भी उसके साथ भेजे गए.
  • इन अधिकारियों के निरंकुश व्यवहार के कारण मुल्तान के लोगों ने विद्रोह कर दिया.
  • शीघ्र ही विद्रोह की ज्वाला सारे पंजाब में फैल गई.
  • अंग्रेज भी यही चाहते थे कि विद्रोह सारे प्रान्त में फैल जाए ताकि उन्हें पंजाब को अपने साम्राज्य में मिलाने का बहाना मिल जाए.
  • अत: अवसर का लाभ उठाते हुए लार्ड डलहौजी ने अक्टूबर, 1848 में विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी.
  • जनवरी, 1849 तक पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया.

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सिन्ध का विलय (THE ANNEXATION OF SINDH) आधुनिक भारत

सिन्ध का विलय (THE ANNEXATION OF SINDH)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

सिन्ध का विलय (THE ANNEXATION OF SINDH)

  • 18वीं शताब्दी में सिंध पर कल्लौरा सरदार राज्य करते थे.
  • 1783 में मीर फतह अली खां ने सिंध पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.

सिन्ध का विलय (THE ANNEXATION OF SINDH)आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

  • सन् 1800 में मीर फतह अली खां की मृत्यु के बाद उसके भाइयों (इन्हें प्रायः ‘चार यार‘ या ‘चार मित्र‘ का संबोधन दिया जाता था) ने सिंध को आपस में बांट लिया.
  • अब ये सिंध के अमीर कहलाने लगे.
  • अंग्रेजों ने 1809 में सिंध के अमीरों के साथ एक शाश्वत मित्रता की संधि की.
  • इस संधि के द्वारा यह निश्चित किया गया कि फ्रांसीसियों को सिंध में बसने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
  • 1832 में विलियम बैंटिंक ने कर्नल पोटिंगर के माध्यम से सिंध के अमीरों को अंग्रेजों के साथ एक नई व्यापार संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया.
  • इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने सिंध में अनेक महत्वपूर्ण व्यापारिक सुविधाओं को प्राप्त किया.
  • इस संधि के प्रावधानों के तहत कर्नल पोटिंगर को संधि में अंग्रेजों के राजनीतिक एजेण्ट के रूप में नियुक्त कर दिया गया.
  • इसी समय महाराजा रणजीत सिंह सिंध पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था.
  • इस आक्रमण से रक्षा के लिए कम्पनी ने सिंध के अमीरों को एक नई सहायक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया.
  • सिंध के अमीरों ने न चाहते हुए भी 1832 में अंग्रेजों के साथ एक संधि की.
  • इस संधि के द्वारा सिंध में सहायक सेना तैनात कर दी गई.
  • इसके अलावा सिंध के अमीरों ने अपने और सिखों के मध्य अपने संबंधों में कम्पनी की मध्यस्थता को भी स्वीकार किया.
  • फरवरी, 1839 में सिंध के अमीरों और अंग्रेजों के मध्य एक नई संधि पर हस्ताक्षर हुए.
  • इस संधि के अनुसार शिकारपुर और भक्कर के स्थानों पर सहायक सेना तैनात की गई.
  • इसके बदले अमीर को तीन लाख रुपया वार्षिक कम्पनी को देने के लिए बाध्य किया गया.
  • आंग्ल-अफगान युद्ध (1839-42) के समय भी सिंध के अमीरों को अंग्रेजी सेना की सहायता का भार उठाना पड़ा.
  • 1842 में ऑकलैण्ड के स्थान पर लार्ड एलनबरो गवर्नर जनरल के रूप में भारत आया.
  • उसने मेजर आउट्रम के स्थान पर चार्ल्स नेपियर को सिंध में कम्पनी का रेजीडेन्ट नियुक्त किया.
  • उसे पूर्ण सैनिक और असैनिक अधिकार दिए गए.
  • उत्तरी और दक्षिणी सिंध की सेना भी उसके अधीन कर दी गई.
  • लार्ड एलनबरो ने सिंध के अमीरों को एक नई संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया.
  • इस संधि में भविष्य के लिए अधिक प्रतिभूति (Security) और कुछ प्रदेशों की मांग की गई.
  • इसी समय सिंध में उत्तराधिकार का संघर्ष प्रारंभ हो गया.
  • अंग्रेजों ने पुराने सरदार मीर फतह अली खां के भाई अलीमुराद का समर्थन किया न कि मीर फतह अली खां के पुत्रों का.
  • यह संघर्ष शीघ्र ही आंग्ल-सिंध युद्ध में तब्दील हो गया.
  • अगस्त, 1843 तक सिंध के समस्त भू-भाग को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया गया.
  • सिंध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए अंग्रेजों द्वारा प्रयोग किए गए साधनों की इतिहासकारों ने कटु आलोचना की है.
  • वास्तव में सिंध के माध्यम से अंग्रेज अफगानिस्तान पर कब्जा करना चाहते थे.
  • जिससे भारत को रूसी प्रभाव से बचाया जा सके.
  • इसके अलावा सिंध की मरुभूमि का अपार सामरिक महत्व था.
  • रूस और ईरान की भारत पर सम्भावित आक्रमण कार्यवाहियों के विरुद्ध सिंध को एक आधार के रूप में प्रयोग किया गया.

 

सिन्ध का विलय (THE ANNEXATION OF SINDH)

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Thursday, December 20, 2018

विलियम केवेंडिश बेंटिक, 1828-1835 (William Cavendish Bentinck in Hindi)

विलियम केवेंडिश बेंटिक, 1828-1835 (William Cavendish Bentinck in Hindi, 1828-1835)

विलियम बेंटिक (William Cavendish Bentinck in Hindi)

  • विलियम बेंटिक  ने जुलाई, 1828 में लार्ड एमहर्ट के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के गवर्नर जनरल का पदभार संभाला.
  • विलियम बेंटिक एक उदारवादी राजनेता था.
  • विलियम बेंटिक भारत में उन्हीं आदर्शों से प्रेरित हुआ जिनसे ब्रिटेन में सुधारों के युग का सूत्रपात हुआ था.
  • भारतीय समाज और व्यवस्था में बेंटिकने निम्नलिखित प्रमुख सुधार किए–

विलियम केवेंडिश बेंटिक, 1828-1835 (William Cavendish Bentinck in Hindi, 1828-1835)

सती प्रथा का अंत (Abolition of Sati Systems)

  • विलियम बेंटिक  से पूर्व किसी गवर्नर जनरल ने भारत की सामाजिक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया था.
  • विलियम बेंटिक  ने हिन्दू समाज में सती और शिशुबध जैसी क्रूर प्रथाओं को समाप्त करने के लिए विशेष प्रयास किए.
  • ऐसा माना जाता है कि भारत में सती प्रथा को शक लोग लाए.
  • ऊंचे कुल के ब्राह्मण, क्षत्रियों और राजपूतों में यह प्रथा बहुत प्रचलित थी.
  • इस प्रथा का घृणित पक्ष यह था कि इसमें पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा को जबरन अपने पति की चिंता में जलने के लिए बाध्य किया जाता था.
  • अकबर समेत अनेक प्रबुद्ध भारतीय राजाओं ने इस प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रयास किए.
  • मराठों ने अपने क्षेत्र में इस प्रथा को बंद करवा दिया था.
  • राजा राममोहन राय सरीखे कुछ प्रबुद्ध भारतीय समाज सुधारकों ने विलियम बेंटिक को इस प्रथा को अवैध घोषित करने की प्रेरणा दी.
  • इन प्रयत्नों के फलस्वरूप 1829 में सती प्रथा उन्मूलन कानून पारित किया गया.
  • इस कानून की धारा 17 के अधीन सती प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया.
  • प्रारंभ में यह कानुन केवल बंगाल प्रेजीडेन्सी में लागू किया गया, 1830 में यह नियम बम्बई और मद्रास प्रेजिडेंसियों में भी ला कर दिया गया.
  • राजा राममोहन राय और देवेन्द्र नाथ टैगोर जैसे समाज सुधारकों ने उक्त कार्य के लिए बेंटिक के प्रति आभार प्रकट किया.
  • इसके अलावा देवी-देवताओं के सन्मुख नरबलि की प्रथा को भी बंद कर दिया गया.
  • राजपूतों में वर्षों से चली आ रही कन्या-वध की प्रथा पर भी अंकुश लगा दिया गया.

ठग समस्या का उन्मूलन (Abolition of Thugi Problem)

  • ‘ठग’ शब्द का तत्कालीन अभिप्राय डाकुओं और हत्यारों के एक समूह से था.
  • यह समूह निषि और अरक्षित व्यक्तियों को लूट कर एवं उनकी हत्या करके अपना निर्वाह करता था.
  • मुगल साम्राज्य के पतन की अवस्था में जब पुलिस प्रशासन अस्त-व्यस्त हो गया तो उस समय इन ठगों को अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाने को अवसर मिल गया.
  • छोटी-छोटी रियासतों के पदाधिकारी इससे निपटने में सक्षम न थे.
  • ये लोग(Thugs ठग ) मुख्य रूप से अवध से हैदराबाद तक, राजपूताना और बुन्देलखण्ड के समस्त क्षेत्र में सक्रिय थे.
  • इनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के अनुयायी शामिल थे.
  • इन ठगों का आपसी संगठन बहुत मजबूत था .
  • इनका अनुशासन इतना सफल और कठोर था कि इनके असफल प्रयत्न का एक भी मामला सरकारी रिकार्ड में नहीं आया.
  • विलियम बेंटिक  ने इन ठगों से निपटने के लिए एक योजना तैयार की.
  • सती प्रथा के प्रश्न या तो फिर भी कुछ मतभेद देखने को मिलता था किन्तु ठग समस्या के उन्मूलन हेतु जनता ने सरकार को भरपूर सहयोग दिया.
  • कर्नल स्लीनन के नेतृत्व में ठगों के विरुद्ध कार्यवाही आरंभ हुई.
  • लगभग 150 ठगों को बन्दी बनाया गया.
  • अनेक ठग को फांसी की सजा दी गई तथा शेष को दण्ड स्वरूप आजौवन निवासित कर दिया गया.
  • 1837 के बाद ठगों के संगठित स्वरूप का अंत हो गया.
  • Thugs Of Hindostan (ठग ऑफ हिंदुस्तान) फिल्म 2018 में कुछ हद तक इनका अनुशासन बताने का प्रयास किया गया है.

सरकार की सेवाओं में भेदभाव का उन्मूलन (Abolition of Distinctions in Government Services)

  • लार्ड कॉर्नवालिस के समय से चली आ रही सरकारी सेवाओं में भेदभाव की नीति को विलियम बेंटिक ने समाप्त कर दिया.
  • 1833 के चार्टर एक्ट की धारा 87 में यह व्यवस्था थी कि सरकार की सेवा में भर्ती हेतु योग्यता को ही एकमात्र आधार के रूप में स्वीकार किया जाए.

प्रेस के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण

  • समाचार पत्रों के प्रति विलियम बेंटिक ने उदारवादी नीति का पालन किया.
  • विलियम बेंटिक प्रेस को स्वतंत्रता का प्रबल पक्षधर था.
  • उसके मत में मद्रास में हुए सैनिक विद्रोह का प्रमुख कारण वहां समाचार पत्रों की स्वतंत्रता का अभाव था.
  • उसके मत में समाचार पत्रों के माध्यम से सरकार के प्रति जनता के दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति होती है.

 शैक्षणिक सुधार (Educational Reforms)

  • विलियम बेंटिक ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए.
  • उसने शिक्षा के उद्देश्य तथा माध्यम दोनों पर विचार किया.
  • उसने मैकाले की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक शिक्षा समिति का गठन किया.
  • मैकाले ने अपनी सिफारिशों को 2 फरवरी, 1835 के अपने सुप्रसिद्ध “स्मरणपत्र” (Minute) में प्रतिपादित किया.
  • मैकाले का यह मत था कि भारतीय भाषाओं में न तो कोई साहित्यिक तत्व है और न ही कोई वैज्ञानिक जानकारी.
  • वास्तव में मैकाले की योजना भारत में एक ऐसा वर्ग तैयार करने की दी जो रंग और रक्त से तो भारतीय हो परन्तु प्रवृत्ति, विचार, नैतिकता और बुद्धि से अंग्रेज हो.
  • मैकाले की यह योजना 7 मार्च, 1835 को अनुमोदित कर दी गई.
  • इससे यह तय हुआ कि उच्च स्तरीय प्रशासन की भाषा अंग्रेजी होगी.
  • अंग्रेजी भाषा, साहित्य, राजनीतिक विचार और प्राकृतिक विज्ञान में उच्च शिक्षा नीति का आधार बनाया गया.
  • 1835 में विलियम बेंटिक ने कलकता में एक मेडिकल कॉलेज की नींव रखी.

वित्तीय प्रशासन में सुधार (Reforms in Financial Administration)

  • बर्मा के युद्ध से कम्पनी का कोष रिक्त हो गया था.
  • शान्ति और सार्वजनिक व्यय में मितव्ययता लाना बेंटिक के समक्ष प्रमुख चुनौती थी.
  • उसने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए दो समितियां नियुक्त की एक सैनिक और दूसरी असैनिक.
  • इन समितियों का कार्य बक्ष के संबंध में सुझाव देना था.
  • कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्ज के विशेष आदेश से सैनिकों का पता कर कर दिया गया.
  • बंगाल में भूमि का संग्रहण के लिए प्रभावशाली कदम उठाए गए.
  • बैटिंक ने यथासम्भव भारतीयों को अच्छा वेतन पाने वाले अंग्रेज अधिकारियों के स्थान पर नियुक्त करके भी व्यय को कम करने का प्रयास किया.
  • उसने अफीम के व्यापार को नियमित तथा अनुपत्रित (Licensed) करके केवल बम्बई बन्दगाह से ही निर्यात करने की अनुमति दी.
  • इस प्रकार कम्पनी को निर्यात कर का भाग भी प्राप्त होने लगा.
  • इसके अलावा उसने लोहे और कोयले के उत्पादन को, चाय और कॉफी के बगीचों को तथा नहर परियोजनाओं को भी प्रोत्साहित किया.
  • इन प्रयत्नों से उसने कम्पनी के वार्षिक लाभ में काफी वृद्धि कर दी.

न्याय प्रशासन में सुधार (Reforms in Judicial Administration)

  • लार्ड कॉर्नवालिस द्वारा निर्मित प्रान्तीय अपीलीय और सरकिट न्यायालयों में कार्य के बढ़ जाने के कारण न्याय में प्रायः विलम्ब होता था.
  • विलियम बेंटिक  ने न्याय व्यवस्था के इस दोष को दूर करने के लिए प्रान्तीय और सरकिट न्यायालयों को बंद कर दिया.
  • इन न्यायालयों का कार्य दण्डनायकों (Magistrates) तथा कलक्टरों को सौंप दिया.
  • ये पदाधिकारी राजस्व तथा भ्रमणकारी आयुक्तों के अधीन होते थे.
  • दिल्ली और आधुनिक उत्तर प्रदेश के लिए पृथक सदर दीवानी और सदर निजामत न्यायालय इलाहबाद में स्थापित किए गये.
  • इससे यहां के निवासियों को अपील के लिए कलकत्ता नहीं जाना पड़ता था.

भारतीय रियासतों के प्रति नीति (Policy towards Indian States)

  • कोर्ट ऑफ डारेक्टर्ज की अपेक्षाओं के अनुसार बेंटिक ने भारतीय रियासतों के प्रति तटस्थता की नीति अपनाई.
  • उसने इस नीति का जयपुर, हैदराबाद, जोधपुर, बूंदी, कोटा और भोपाल के संबंध में तो पालन किया.
  • किन्तु 1831 में मैसूर तथा 1834 में कुर्ग और कछाड़ की रियासतों के संबंध में इस नीति का त्याग कर दिया.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • विलियम बेंटिक ने भारत में ब्रिटिश नियंत्रण को ढीला करने के स्थान पर और सुदृढ़ किया.
  • यह कार्य उसने अपने सामाजिक और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से किया.
  • नि:सन्देह बेंटिक ने सती प्रथा और शिशु वध जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए प्रभावकारी प्रयत्न किए.
  • उसने ठग समस्या का उन्मूलन किया.
  • उसने सरकारी सेवाओं के संबंध में भेदभाव को समाप्त करने हेतु विशेष प्रयास किए.
  • उसने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार किए और प्रेस की स्वतंत्रता का पक्ष लिया.

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Wednesday, December 12, 2018

लार्ड एमहर्स्ट, 1823-28 (Lord Amherst, 1823-28) | आधुनिक भारत

लार्ड एमहर्स्ट, 1823-28 (Lord Amherst, 1823-28) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

लार्ड एमहर्स्ट (Lord Amherst)

लार्ड एमहर्स्ट, 1823-28 (Lord Amherst, 1823-28) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

बर्मा का प्रथम युद्ध (Burma’s first war)

  • लार्ड एमहर्स्ट के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटनाएं बर्मा का प्रथम युद्ध तथा भरतपुर का युद्ध थीं.
  • बर्मा एक स्वतंत्र राष्ट्र या तथा इसके निवासी अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के उपनिवेश की शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरे का प्रमुख कारण थे.
  • 1822 में बर्मा द्वारा स्याम पर विजय के कारण भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ गई तथा अंग्रेज कम्पनी को हस्तक्षेप करना पड़ा.
  • 1823 में अंग्रेजों के साथ लड़ने को उत्सुक ब लोगों ने शाहपुरी पर आक्रमण कर दिया.
  • लार्ड एमहर्स्ट ने 1824 में युद्ध की घोषणा कर दी.
  • यद्यपि युद्ध लम्बा चला परन्तु अन्त में बर्मा वाले पराजित हो गए.

यन्दाबू की संधि (Treaty of Yandabo)

  • 1826 में भारत सरकार तथा बर्मा के बीच ‘यन्दाबू की संधि‘ द्वारा बर्मा नरेश महाबन्दादुला ने अंग्रेज कम्पनी को अराकान तथा तनासरिन के प्रान्त देना स्वीकार कर लिया.
  • असम तथा कछार से बर्फी फौजे हटानी पड़ी तथा मणिपुर की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया गया.
  • बर्मा ने अपनी राजधानी में एक अंग्रेज़ रेजीडेण्ट को रखना स्वीकार कर लिया तथा 10 लाख पौण्ड का हर्जाना देना भी स्वीकार कर लिया.

भरतपुर और ब्रिटिश सरकार (Bharatpur and British Government)

  • भरतपुर के नरेश की मृत्यु के पश्चात् वहां राजगद्दी के लिए परस्पर झगड़ा शुरू हो गया.
  • ब्रिटिश सरकार ने अल्प वय के दावे को स्वीकार कर लिया जिस कारण एक अन्य दावेदार दुर्जनसाल के लिए अपने अधिकार की रक्षा हेतु युद्ध करना आवश्यक हो गया.
  • भरतपुर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया गया तथा ब्रिटिश फौजों ने बहुत से व्यक्तियों को पकड़ लिया.
  • बर्मा युद्ध तथा बैरेक पुर में एक फौजी टुकड़ी के जुर्मा जाने से इन्कार कर देने पर सैनिकों को गोलियों से उड़ा देने के कारण गवर्नर जनरल अलोकप्रिय हो गया.
  • अतः 1825 के उत्तरार्द्ध से लार्ड एमहर्स्ट को अनेक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा और अन्त में मार्च, 1828 में लार्ड एमहर्स्ट कलकत्ता से वापस प्रस्थान कर गए.

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