उत्तरी-पश्चिमी सीमा (THE NORTH-WEST FRONTIER) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
उत्तरी-पश्चिमी सीमा (THE NORTH-WEST FRONTIER)
- अफगानिस्तान और सिंध नदी का बंजर प्रदेश भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा थी.
- यह सीमा उत्तर में पामीर के पठार से अरब सागर के तट तक फैली थी.
- इसकी चौड़ाई भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न थी.
- यह प्रदेश 1200 मील लंबा था.
- यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिम से आए विदेशी आक्रान्ताओं के लिए पांच दरों, यथा-खैबर, कुर्रम, टोची, गोमल और बोलान के मार्ग को छोड़कर एक प्रकार के अभेद्य प्रतिरोध का कार्य करता था.
- प्रकृति ने इस प्रदेश के साथ बहुत कठोर व्यवहार किया, यहां वर्षा और वनस्पति दोनों ही बहुत थोड़ी होती थी.
- यहां सर्दी भी बहुत पड़ती थी. जिससे जीवन यापन और कठिन हो जाता था.
- इस प्रदेश में भिन्न-भिन्न कबीलों के लोग और जनजातियां रहती थी.
- इनके मध्य आपसी वैमनस्य और वैर प्रायः वंशानुगत आधार पर चलते रहते थे.
- इस कारण यहां एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना न हो सकी.
- भारत सरकार ने इस सीमावर्ती क्षेत्र के प्रति कभी भी एक समान और व्यवस्थित नीति का अनुसरण नहीं किया.
प्रारंभिक उत्तर-पश्चिम सीमा नीति (Earlier North West Froritier Policy)
- सर चार्ल्स नेपियर ने सिंध की 150 मील की सीमा पर बसे बूगली, डोम्बकी, जकरानी एवं बलोची कबाइलियों से रक्षा के लिए स्थान स्थान पर दुर्ग बनाए और इन दुर्गों में सेना भी तैनात की.
- इसके अलावा उसने इन सीमावासियों को अपनी रक्षा के लिए हथियार भी दिए, किन्तु उसकी यह नीति अधिक सफल सिद्ध न हो सकी.
- जेकब के काल में यह नीति पूर्णत: परिवर्तित कर दी गई.
- उसने सभी दुर्ग तुड़वा दिए और सीमावर्ती लोगों को दिए गए हथियार वापस ले लिए.
- उसने अनियमित घुड़सवारों की दो रेजीमेंट तैयार की.
- इन रेजिमेन्ट का कार्य इन कबाइलियों पर नियंत्रण रखना था.
- जेकज की यह व्यवस्था पर्याप्त मात्रा में सफल रही.
पंजाब की सीमा समस्या (The Frontier Problem of Purnjab)
- पंजाब की सीमा समस्या अधिक जटिल थी.
- जेकब की प्रणाली द्वारा इस सीमा की रक्षा नहीं की जा सकती थी.
- इस सीमा का प्रशासन पंजाब सरकार के अधीन था.
- पंजाब सरकार का एकमात्र उद्देश्य इस सीमा पर शान्ति बनाए रखना था.
- इस कारण लगभग 25 वर्ष तक किसी अंग्रेज अधिकारी ने सीमा पार करके कबाइली प्रदेश में प्रवेश नहीं किया.
- पंजाब की सीमा समस्या का दूसरा दौर इन कबाइलियों को सभ्य बनाने के प्रयत्नों से आरंभ हुआ.
- इन प्रयत्नों के तहत इस प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाई गई, भूमिहीनों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध करवाई गई.
- इस क्षेत्र में व्यापार के अवसर पैदा किए गए तथा इन कबाइलियों को सेना और पुलिस में सेवा प्रदान करने के अवसर प्रदान किए गए.
- दूसरी ओर अपराधिक और हिंसक प्रवृत्ति वाले कबाइलियों के विरुद्ध वधिक और वज्र (Butcher and Bolt) की नीति अपनाई गई.
- इस नीति के तहत दोषी कबाइलियों की फसलें नष्ट कर दी जाती थी.
- ग्राम जला दिए जाते थे और उनके रक्षात्मक दुर्ग तोड़ दिए जाते थे.
- किन्तु कबाइलियों को सभ्य बनाने का यह प्रयत्न सफल नहीं हुआ और ये कबाइली पूर्व की तरह उपद्रवी बने रहे .
- 1876 में लार्ड लिटन के आने के बाद इन कबाइली प्रदेशों में ब्रिटिश हस्तक्षेप प्रारंभ हो गया और शीघ्र ही सामरिक महत्व के अनेक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया गया.
- मेजर सन्टेमन की बलोचिस्तान में गवर्नर अनरल के एजेन्ट के रूप में नियुक्ति के साथ ही बलोचिस्तान के संबंध में ‘समझौते वाले हस्तक्षेप’ (Conciliatory Intervention) की नीति गई.
- 1876 में क्वेटा पर अधिकार कर लिया गया.
- लार्ड लैंसडाउन (1888-93) ने लॉर्ड लिटन की नीति को आगे बढ़ाते हुए कश्मीर, बोरी और जाब तक अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.
- 1892 में कुर्रम में और 1895-96 में मालाकन्द, टोची और गोमल में ब्रिटिश एजेंसियां स्थापित कर दी गई.
ड्यूरेंट समझौता (The Durand Agreement)
- ब्रिटिश सरकार की विस्तारवादी नीतियों से अफगान शासक अब्दुरहमान को ब्रिटिश इरादों पर सन्देह होने लगा.
- लार्ड लेन्सडाउन ने उसके सन्देह का निराकरण करने के लिए 1891 में सर मॉर्टिमर ड्ररेण्ड की अध्यक्षता में एक शिष्टमंडल काबुल भेजा.
- 1893 में डुरेन्ड ने काबुल की सरकार से एक समझौता किया.
- इस समझौते के अनुसार अमीर को सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता राशि 12 लाख वार्षिक से बढ़ाकर 18 लाख वार्षिक कर दी गई.
- उसे अपनी इच्छानुसार विदेशों से हथियार मंगाने की अनुमति भी दी गई.
- इसके बदले अमीर ने यह वचन दिया कि वह खैबर में रहने वाले अफरीदी, वीजीरी, स्वात, बजौर, दीर और चितराल में रहने वाले कबाइलियों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा.
- इसी वर्ष भारत सरकार ने गिलगित और चितराल की सीमा को अपने संरक्षण में ले लिया.
- डुरेण्ड समझौते से आंग्ल-अफगान मैत्री संबंध तो स्थापित हो गए किन्तु उत्तर पश्चिम सीमा पर शान्ति स्थापित न हो सकी.
लार्ड कर्जन की सीमा नीति (Frontier Policy of Lord CurZon)
- 1899 में लॉर्ड कर्जन भारत का गवर्नर जनरल बना.
- उसने कबाइलियों के प्रति पूर्व की समस्त नीतियों को त्याग कर एक वास्तविक और व्यवहारिक नीति का अनुसरण किया.
- उसने सैन्य विकेन्द्रीयकरण के स्थान पर केन्द्रीयकरण और कबाइली-उत्तेजना के स्थान पर उनसे समझौते की नीति अपनाई.
- लार्ड कर्जन ने नियमित अंग्रेजी सेन्र को खैबर, कुर्रम और वजीरी के प्रदेशों से हटा लिया.
- किन्तु साम्राज्यिक उद्देश्यों के कारण चितराल से सेना नहीं हटाई गई और गिलगित की सुरक्षा को भी परोक्ष रूप से अपने अधीन रखा गया.
- उसने कबाइली प्रदेश की रक्षा अंग्रेज अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षित कबाइली सेना को सौंप दी .
- इसके अलावा कर्जन ने अपनी नीति के समर्थन के लिए सीमा के पीछे के प्रदेशों में संचार साधनों का विकास भी किया.
- 1849 से उत्तर-पश्चिम सीमा का प्रशासन पंजाब सरकार चला रहीं थी.
- किन्तु यह प्रशासनिक व्यवस्था अधिक व्यवहार कुशल नहीं समझी गई.
- अत: लार्ड कर्जन ने 1901 में उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती जिलों अर्थात् हजारा, पेशावर, कोहाट, बन्नू और डेरा व कुछ अन्य प्रदेशों को मिलाकर उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त का गठन किया और इस प्रान्त को एक मुख्य आयुक्त के अधीन कर दिया.
- यह आयुक्त सीधे भारत सरकार के नियंत्रण और निरीक्षण में था.
- 1932 में इस प्रान्त को गवर्नर के प्राप्त की स्थिति प्रदान की गई.
- परन्तु लार्ड कर्जन की उक्त सीमा नीति को भी पूर्णतया संतोषजनक नहीं माना गया.
- अग्रेज अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षित कबाइली सेना वह भूमिका नहीं निभा सकी जो अंग्रेजी सेना निभाती.
- 1908-09 में अफरीदी, मोहम्मद और सूद इत्यादि कबीलों ने अफगानओ के उकसाने घर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया.
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