भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT)
- 18वीं शताब्दी में देश में उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल के कारण हिन्दू और मुस्लिम शिक्षा केन्द्र लुप्तप्राय हो गए.
- शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही अपने कर्तव्यों को भूलकर राष्ट्रीय संघर्ष में लग गए.
- 1765 में कम्पनी के द्वारा राजनीतिक स्वरूप धारण करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु प्रयत्न आरंभ हो गए.
- प्रारंभ में भारत में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयत्न किया गया.
- 1781 में वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने कलकत्ता में एक मदरसा स्थापित किया.
- इसमें फारसी और अरबी का अध्ययन किया जाता था.
- 1791 में बनारस में एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई.
- भारत में इसाई धर्म प्रचारकों के आगमन के बाद प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था की कटु आलोचना की गई.
- यह कहा गया कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में केवल पाश्चात्य शिक्षा पद्धति और अंग्रेजी माध्यम से ही सुधार किया जा सकता था.
- वास्तव में अब कम्पनी को अपनी प्रशासनिक आवश्यकताओं के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी जो स्थानीय परिस्थितयों एवं भाषाओं के अच्छे ज्ञाता होने के साथ अंग्रेजी का भी पर्याप्त ज्ञान रखते हों.
- दूसरी ओर राजा राम मोहन राय सरीखे समाज सुधारक भी ऐसी शिक्षा चाहते थे जो भारतीयों को जीविका के साधन उपलब्ध करवा सकें तथा भारतीय समाज का सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक पुनरुद्धार कर सके.
- अत: भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र में वातावरण बनने लगा.
- 1800 में लार्ड वैल्ज़ली ने कम्पनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की.
- किन्तु 1802 में यह कॉलेज बन्द कर दिया गया.
लार्ड मैकाले का प्रस्ताव, 1853 (Lord Macaulay’s Resolution, 1853)
- भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य लार्ड मैकाले के 2 फरवरी, 1835 के प्रस्ताव का विशेष महत्व है.
- मैकाले ने अपने प्रस्ताव में अपने इस उद्देश्य को प्रकट किया कि भारत में व्यक्तियों की एक ऐसी श्रेणी तैयार की जाए जो रंग और रूप से तो भारतीय हों किन्तु ज्ञान, प्रवृत्ति और नैतिकता की दृष्टि से अंग्रेज.
- दूसरे शब्दों में मैकाले “ब्राउन रंग के अंग्रेज” तैयार करना चाहता था जो कम्पनी के निम्न स्तरीय कार्यभार को संभाल सकें.
- लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने मैकाले के प्रस्ताव को 7 मार्च, 1835 को स्वीकार कर लिया.
- इसका अर्थ यह था कि भविष्य में पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार हेतु ही सरकारी प्रयास किए जाएंगे तथा भविष्य में सभी धन-राशियां इसी निमित्त प्रदान की जाएंगी.
- मैकाले की पद्धति के अधीन अंग्रेजी सरकार ने भारत के उच्चवर्ग को अंग्रेजी माध्यम द्वारा शिक्षित करने का प्रयास किया.
चार्ल्स वुड का निर्देशपत्र, 1854 (Charles Wood’s Despatch, 1854)
- जुलाई, 1854 में सर चार्ल्स वुड ने भारत सरकार को एक नई शिक्षा योजना प्रस्तुत की.
- इस योजना को “वुड का निर्देशपत्र” कहा जाता है.
- इस योजना के आधार पर अखिल भारतीय शिक्षा की एक नियामक पद्धति का गठन किया गया.
- इस योजना को प्रायः भारतीय शिक्षा का मैग्ना कार्टा (Magna Carta) कहा जाता है.
- इस योजना में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थी –
- उच्च शिक्षा का सर्वोत्तम माध्यम अंग्रेजी है.
- ग्रामों में प्राथमिक पाठशालाएं स्थापित की जाएं और इनमें स्थानीय भाषा में शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था की जाए.
- जिला स्तर पर ऐंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूलों की स्थापना की जाए.
- प्रमुख नगरों में सरकारी कॉलेज और तीनों प्रेजिडेन्सी नगरों में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए.
- व्यवसायिक और तकनीकी शिक्षा का विकास किया जाए.
- चार्ल्स वुड की उपरोक्त सभी सिफारिशों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया.
- 1855 में लोक शिक्षा विभाग की स्थापना की गई.
- 1857 तक कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में एक-एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी
गई.
हंटर आयोग, 1882-83 (The Hunter Commission, 1882-83)
- सन 1854 के बाद शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का अध्ययन करने के लिए 1882 में श्री डब्लू डब्लू. हन्टर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की गई.
- आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
- सरकार प्राथमिक शिक्षा के सुधार और विकास पर विशेष ध्यान दे. प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए.
- माध्यमिक शिक्षा के दो भाग हो- (A)साहित्यिक शिक्षा जो विद्यार्थी को विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु तैयार करे (B)व्यावहारिक शिक्षा, जो विद्यार्थी को व्यवसायिक रूप से तैयार करे.
- शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयत्नों को बढ़ावा दिया जाए.
- स्त्री शिक्षा को पर्याप्त व्यवस्था की जाए.
- आयोग द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के बाद आने वाले 20 वर्षों में माध्यमिक और कॉलेज शिक्षा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ.
- 1882 में पंजाब और 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई.
- लॉर्ड कर्जन (1899-1905) ने अपने शासन काल में गुण और दक्षता के नाम पर विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बहुत कड़ा कर दिया.
भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 (The Indian University Act, 1904)
- 1904 में टामस रैले आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया.
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
- अध्ययन तथा शोध को बढ़ावा देने के लिए योग्य प्राध्यापकों और व्याख्याताओं की नियुक्ति की जाए तथा उपयोगी प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों की स्थापना की जाए.
- विश्वविद्यालय के अधिछात्रों (Fellows) की संख्या 50 से कम और 100 से अधिक नहीं होनी चाहिए.
- अधिछात्र मुख्य रूप से सरकार द्वारा मनोनीत होने चाहिए व इनकी नियुक्ति 6 वर्ष के लिए की जानी चाहिए.
- विश्वविद्यालय की सीनेट द्वारा पारित प्रस्तावों पर सरकार को ‘वीटो’ का अधिकार दिया गया.
- अशासकीय कॉलेजों को विश्वविद्यालय से संबंधित करने की शर्ते अधिक कड़ी कर दी गई.
- गवर्नर जनरल को इन विश्वविद्यालयों की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित करने का अधिकार दे दिया गया.
- इस अधिनियम की राष्ट्रवादी तत्वों ने कड़ी आलोचना की.
1913 का सरकारी प्रस्ताव (Government Resolution of 1913)
- 12 फरवरी, 1913 को सरकार ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया.
- इस प्रस्ताव के द्वारा प्रान्तीय सरकारों को यह निदेश दिया गया कि वह समाज के निर्धन और पिछड़े हुए वर्ग के बच्चों को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का प्रबन्ध करे.
- यह भी कहा गया कि माध्यमिक पाठशालाओं का भी विकास किया जाए.
- प्रत्येक प्रान्त में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का भी उपबन्ध किया गया.
सैडलर विश्वविद्यालय आयोग, 1917-19 (The Sadler University Commission, 1917-19)
- विश्वविद्यालय शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन के लिए 1917 में सरकार ने डॉ. एम. ई. सैडलर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
- आयोग ने, 1904 के एक्ट की कड़ी निंदा की.
- अयोग का विचार था कि विश्वविद्यालय की शिक्षा को सुधारने के लिए माध्यमिक शिक्षा में सुधार आवश्यक है.
- आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
- स्कूल की शिक्षा 12 वर्ष की होनी चाहिए.
- उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के बाद स्नातक स्तर की शिक्षा आरंभ होनी चाहिए.
- अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए ढाका और कलकत्ता विश्वविद्यालयों में एक पृथक शिक्षा विभाग स्थापित किया जाए.
- विश्वविद्यालय व्यावहारिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पाठ्यक्रमों का प्रबन्ध करे.
द्वैध शासन के अधीन शिक्षा (Education under Dyarchy)
- 1919 के माण्टेग्यु-चम्सफोर्ड सुधारों के अनुसार प्रान्तों में शिक्षा विभाग एक निर्वाचित मंत्री के अधीन कर दिया गया.
- केन्द्र सरकार ने अब शिक्षा में रुचि लेना बंद कर दिया.
- शिक्षा के लिए केन्द्रीय अनुदान भी बन्द कर दिया.
- केन्द्र की इस उपेक्षा के कारण शिक्षा का स्तर गिर गया.
- प्रान्तीय सरकारें वित्तीय अभाव के कारण प्रभावी शिक्षा की व्यवस्था न कर सकी.
हर्टोग समिति, 1929 (The Hartog Committee, 1929)
- शिक्षा के विकास के संबंध में प्रतिवेदन देने के लिए 1929 में सर फिलिप हर्टोग की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया.
- समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी
- प्राथमिक शिक्षा के शष्ट्रीय महत्व पर बल दिया गया.
- ग्रामीण प्रवृत्ति के विधार्थियों को वर्नेकुलर मिडिल स्कूल के स्तर पर रोक लिया जाए. अर्थात् उनके कालेजों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए. इसके बदले उन्हें व्यवसायिक और औद्योगिक शिक्षा दी जाए.
- उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य छात्रों को ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दी जाए.
मौलिक शिक्षा की वर्धा योजना (Wardha Scheme of Basic Education)
- 1937 में महात्मा गांधी ने शिक्षा की एक योजना प्रस्तुत की जिसे वर्धा योजना की संज्ञा दी जाती है.
- इस योजना का मूलभूत सिद्धांत “हस्त उत्पादक कार्य” था.
- इसके अन्तर्गत विद्यार्थी को मातृभाषा में सात वर्ष तक विद्याध्ययन करवाया जाता था.
- किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध और मंत्रिमण्डलों के त्यागपत्र के कारण यह योजना खटाई में पड़ गई.
सार्जेण्ट योजना, 1944 (Sargent Plan, 1944)
- केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने 1944 में एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना तैयार की जिसे प्रायः सार्जेण्ट योजना कहते हैं.
- इस योजना में प्राथमिक विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के स्तरों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया था.
- इस योजना में 6 से 11 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की भी व्यवस्था थी.
राधाकृष्णन आयोग, 1948-49 (The Radhakrishnan Commisslon, 1948-49)
- स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालय शिक्षा पर विचार करने के लिए नवम्बर, 1948 में भारत सरकार ने डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
- आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
- विश्वविद्यालय के प्रथम डिग्री कोर्स से पूर्व 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए.
- उच्च शिक्षा के तीन प्रमुख उद्देश्य होने चाहिए- सामान्य शिक्षा, संस्कारी शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा.
- प्रशासनिक सेवाओं के लिए विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि आवश्यक नहीं होनी चाहिए.
- शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए.
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की जाए.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (The University Grant Commission)
- भारत सरकार ने राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करते हुए 1953 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की.
कोठारी आयोग, 1964 (The Kothari Commission, 1964)
- जुलाई, 1964 में भारत सरकार ने डॉ. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया.
- इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
- शिक्षा के सभी स्तरों पर समाज सेवा और कार्य अनुभव के विषय शामिल किए जाएं.
- नैतिक शिक्षा और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास किया जाए.
- माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायिक बनाया जाए.
- उन्नत अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाए.
- कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर बल दिया जाए.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 (National Education Policy, 1968)
- कोठारी आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करते हुए भारत सरकार ने 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की.
- इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
- 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा.
- त्रिभाषाई फार्मूला स्वीकार किया गया.
- विज्ञान और अनुसंधान की शिक्षा का समानीकरण.
- कृषि तथा उद्योग के लिए शिक्षा का विकास.
- राष्ट्रीय आय का 6 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय करना.
नई शिक्षा नीति, 1986 (New Education Policy, 1986)
- भारत सरकार ने 1986 में नई शिक्षा नीति की घोषणा की.
- इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
- राष्ट्रीय साक्षरता की दर का विकास.
- प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण.
- माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण .
- शिक्षा का समाजीकरण .
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