Friday, January 25, 2019

नेहरु रिपोर्ट (Nehru Report) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)

नेहरु रिपोर्ट (Nehru Report in hindi) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)

नेहरु रिपोर्ट (Nehru Report) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)

  • ब्रिटिश कैबिनेट के अनुदार दल के भारत मंत्री लार्ड बर्केनहेड ने 24 नवम्बर, 1027 में भारतीयों के सामने यह चुनौती रखी कि वे एक ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष पेश करें जिससे सारे भारतीय संतुष्ट हों.
  • उनका मानना था कि भारत की भिन्न परिस्थितियों में यह संभव नहीं है.
  • अत: विभिन्न पार्टियों तथा संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने ‘सर्वदलीय सम्मेलन’ का आयोजन कर सांविधानिक सुधारों की रूप-रेखा बनाने का प्रयास किया.
  • सभी पक्ष इस बात पर सहमत थे कि ‘पूर्ण उत्तरदायी शासन’ को आधार बनाकर नया संविधान बनाया जाए.
  • मई, 1928 में पुनः सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया गया जिसमें संविधान का ड्राफ्ट बनाने के लिए पंडित मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई.
  • इस समिति के अन्य सदस्य थे-
  1. अली इमाम,
  2. सुएव कुरेशी (मुस्लिम),
  3. एम. एस. एने,
  4. एम. आर. जेकर (हिन्दू महासभा),
  5. मंगल सिंह (सिख लीग),
  6. तेज बहादुर सप्रू (लिबल्स),
  7. एन. एम. जोशी (लेबर),
  8. जी. पी. प्रधान (नॉन-ब्राह्मण) तथा
  9. पं. जवाहर लाल नेहरु जो कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव थे.
  • नेहरु समिति ने अपनी रिपोर्ट अगस्त, 1928 में पेश की जिसे नेहरु रिपोर्ट कहा गया.
  • नेहरु रिपोर्ट की कुछ सिफारिशें विवादास्पद थी.
  • दुर्भाग्य से कलकत्ता में दिसम्बर, 1928 में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन रिपोर्ट को स्वीकार न कर सका.
  • मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और सिख लीग के कुछ साम्प्रदायिक रुझान वाले नेताओं ने इसे लेकर आपत्तियां कीं.
  • इस तरह सांप्रदायिक दलों ने राष्ट्रीय एकता का दरवाजा बंद कर दिया.
  • इसके बाद लगातार साम्प्रदायिक भावनाएं विकसित होती गई.
  • पंडित जवाहरलाल नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस तथा अनेकों अन्य युवा राष्ट्रवादी भी नेहरु रिपोर्ट से पूर्णतया सहमत नहीं थे.
  • ये लोग औपनिवेशिक शासन के विपरीत पूर्ण-स्वाधीनता के पक्ष में थे.
  • अतः दिसम्बर, 1928 में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन रिपोर्ट को स्वीकार न कर सका.

क्रान्तिकारी-आतंकवाद का दूसरा चरण (Second Phase of Revolutionary Terrorism) 

साइमन कमीशन (Simon Commission)

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साइमन कमीशन (Simon Commission) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन

साइमन कमीशन (Simon Commission) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)

साइमन कमीशन (Simon Commission in Hindi)

साइमन कमीशन (Simon Commission) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)

साइमन कमीशन का गठन और उद्देश्य

  • साइमन कमीशन के गठन के बाद आंदोलन के इस नए चरण को बल मिला.
  • 1919 के भारतीय शासन अधिनियम की अन्तिम धारा में कहा गया था कि भारत में संवैधानिक सुधारों की छानबीन के लिए ब्रिटिश संसद दस वर्ष बाद एक शाही आयोग नियुक्त करेगी.
  • इसलिए सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में 8 नवम्बर, 1927 को ब्रिटिश संसद द्वारा एक आयोग या कमीशन नियुक्त किया गया, जिसे ‘साइमन कमीशन’ कहा गया.
  • इसका उद्देश्य आगे सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था.

साइमन वापस जाओ (Simon go back)

  • साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे.
  • जिस कारण सम्पूर्ण देश में सभी लोगों द्वारा इसका बहिष्कार हुआ.
  • 7 फरवरी, 1928 को आयोग के बम्बई उतरने से लेकर, जब तक आयोग भारत में रहा उसका सभी जगह हड़तालों, काले झण्डों और ‘साइमन वापस जाओ’ (साइमन गो बैक) आदि के नारों से स्वागत हुआ.
  • जब यह कमीशन लाहौर पहुंचा वहां लाला लाजपत राय ने एक विशालकाय विरोध जुलूस लिकाला.
  • पुलिस अधिकारी साण्डर्स के इशारे पर जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया.
  • जिसमें लाला लाजपत राय गम्भीर रुप से घायल हो गये और बाद में उनका देहान्त हो गया.

सामइन कमीशन रिपोर्ट की सिफारिशें

  • मई, 1930 में प्रकाशित सामइन कमीशन रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार थी –
  1. प्रान्तों में वैध शासन को समाप्त करके उत्तरदायी शासन स्थापित कर दिया जाए.
  2. भारत के लिए संघ शासन की स्थापना की जाए.
  3. अल्पसंख्यकों के हितों के लिए गर्वनरों तथा गवर्नर जनरल को विशेष शक्तियाँ प्रदान की जाएं.
  4. मताधिकार का विस्तार करने अर्थात् इसे 2.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात कही गई.
  5. रिपोर्ट में कहा गया कि संघ की स्थापना से पहले भारत में एक ‘वृहत्तर भारतीय परिषद्’ की स्थापना की जाए, जिसमें भारत के प्रान्तों और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि शामिल हों. इस परिषद् के माध्यम से प्रान्त व रियासतें अपनी समस्याओं पर विचार-विमर्श करेंगे.
  6. केन्द्रीय शासन के अपरिवर्तित रहने की बात कही गई.
  7. प्रान्तीय विधान मण्डल के सदस्यों की संख्या में वृद्धि करने और सरकारी सदस्यों की व्यवस्था समाप्त करने की बात कही गई.
  8. बर्मा को स्वतंत्र करने की बात कही गई.
  9. 1919 के अधिनियम की यह व्यवस्था कि प्रति 10 वर्ष बाद जांच-पड़ताल के लिए एक समिति नियुक्त हो, को समाप्त करने की बात कही गई. साथ ही नए संविधान को ऐसा लचीला बनाने की बात कही गई कि वह स्वयं ही विकसित होता रहे.
  • सभी महत्वपूर्ण भारतीय नेताओं और दलों ने परस्पर एकजुट होकर तथा संवैधानिक सुधारों की एक वैकल्पिक योजना बनाकर साइमन कमीशन की चुनौती का जवाब देने का प्रयास किया.
  • प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अनेक सम्मेलन और संयुक्त बैठकें आयोजित की गई.
  • इसका परिणाम नेहरु रिपोर्ट के रूप में सामने आया.

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Thursday, January 24, 2019

क्रान्तिकारी-आतंकवाद का दूसरा चरण (Second Phase of Revolutionary Terrorism) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन

क्रान्तिकारी-आतंकवाद का दूसरा चरण (Second Phase of Revolutionary Terrorism) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन Indian National Movement

क्रान्तिकारी-आतंकवाद का दूसरा चरण (Second Phase of Revolutionary)

  • असहयोग आंदोलन के पूर्णतया असफल होने से आतंकवाद में पुनः उग्रता आई.
  • अक्टूबर, 1924 में समस्त क्रान्तिकारी दलों का कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें सचिन्द्रनाथ सान्याल, जगदीश चन्द्र चैटर्जी तथा राम प्रसाद बिस्मिल जैसे पुराने क्रान्तिकारी नेताओं तथा भगत सिंह, शिव वर्मा, सुख देव, भगवतीचरण वोहरा तथा चन्द्रशेखर आजाद जैसे युवा क्रान्तिकारियों ने भाग लिया.

क्रान्तिकारी-आतंकवाद का दूसरा चरण (Second Phase of Revolutionary Terrorism) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन Indian National Movement

भारतीय गणतंत्र समिति अथवा सेना (Hindustan Republican Association or Army)

  • 1924 में ‘भारतीय गणतंत्र समिति अथवा सेना’ (Hindustan Republican Association or Army) का जन्म हुआ तथा बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब तथा मद्रास आदि प्रान्तों में की शाखाएं स्थापित की गई.
  • इस दल (भारतीय गणतंत्र समिति अथवा सेना) के निम्नलिखित तीन प्रमुख आदर्श थे –
  1. भारतीय जनता में महात्मा गांधीजी की अहिंसावाद की नीतियों की निरर्थकता के प्रति जागृति उत्पन्न करना.
  2. पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही तथा क्रान्ति की आवश्यकता का प्रदर्शन करना.
  3. अंग्रेजी साम्राज्यवाद के स्थान पर समाजवादी विचारधारा से प्रेरित संयुक्त राज्य भारत में संघीय गणतंत्र की स्थापना करना.

काकोरी षड्यंत्र

  • इन्होंने अपने कार्यों के लिए धन एकत्रित करने हेतु सरकारी कोषों को अपना निशाना बनाने का निश्चय किया.
  • 9 अगस्त, 1925 को क्रान्तिकारियों ने सहारनपुन-लखनऊ लाइन पर काकोरी जाने वाली गाड़ी को सफलतापूर्वक लूटा.
  • इस सम्बन्ध में 1925 में काकोरी षड्यंत्र केस नामक मुकदमा चलाया गया.
  • सत्रह लोगों को लम्बी सजाएं, चार को आजीवन कारावास तथा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाह तथा रोशनालाल समेत चार लोगों को फांसी दे दी गई.

भगत सिंह और चन्द्र शेखर आजाद 

  • क्रान्तिकारी जल्दी ही समाजवादी विचारों के प्रभाव में आ गये तथा वे अब धीरे-धीरे व्यक्तिगत वीरता के कामों और हिंसात्मक गतिविधियों से भी दूर हटने लगे.
  • परन्तु 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन विरोधी एक प्रदर्शन पर पुलिस के बर्बर लाठी चार्ज के कारण एक आकस्मिक परिवर्तन आया.
  • इसमें लाठियों की चोट खाकर पंजाब के महान नेता लाला लाजपत राय शहीद हो गये.
  • अतः इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद और राजगुरु ने लाहौर के सहायक पुलिस कप्तान साण्डर्स की 17 दिसम्बर, 1928 को हत्या कर दी.
  • पुलिस ने जन-साधारण पर दमन-चक्र चलाया.
  • लोगों में यह भावना सी हो गई कि क्रान्तिकारी तो निकल भागते हैं और जनता पिस जाती है.
  • इस पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान भवन में 8 अप्रैल, 1929 को खाली बेंचों पर बम मारे और गिरफ्तार हो गए.
  • उनकी इच्छा किसी की हत्या करने की नहीं थी, बल्कि आतंकवादियों के एक पर्चे के अनुसार “बहरों को सुनाना” था.
  • वे जानबूझकर इसलिए गिरफ्तार हुए क्योंकि वे क्रान्तिकारी प्रचार के लिए अदालत को एक मंच के रूप में उपयोग करना चाहते थे.
  • 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई.

चटगांव सरकारी शास्त्रागार

  • अप्रैल, 1930 में चटगांव के सरकारी शास्त्रागार पर क्रान्तिकारियों ने योजनाबद्ध ढंग से एक बड़ा छापा मारा.
  • इसका नेतृत्व सूर्यसेन ने किया.
  • सूर्यसेन बाद में पकड़े गए और 1933 में फांसी पर लटका दिए गए.
  • क्रान्तिकारी आतंकवाद का आंदोलन बहुत जल्दी समाप्त हो गया, हालांकि इक्कीदुक्की घटनाएं अनेक वर्षों तक जारी रही.
  • चन्द्र शेखर आजाद ने 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के एक पार्क में पलिस से मुकाबला करते हुए अन्तिम गोली खुद को मार ली और शहीद हो गए.
  • सरकार ने सैकड़ों अन्य क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें लम्बी-लम्बी सजाएं दी तथा अनेकों की अंडमान की सेलुलर जेल भेज दिया.

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Monday, January 21, 2019

आधुनिक भारत में दलित जातीय आन्दोलन (DEPRESSED CLASS MOVEMENT IN INDIA)

आधुनिक भारत में दलित जातीय आन्दोलन (DEPRESSED CLASS MOVEMENT IN INDIA) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

आधुनिक भारत दलित जातीय आन्दोलन (DEPRESSED CLASS MOVEMENT IN INDIA)

  • 19वीं शताब्दी के सामाजिक और धार्मिक सुधार आन्दोलनों के प्रवर्तक उच्च वर्गीय हिन्दू थे.
  • इन्होंने अस्पृश्यता और जात-पांत की समाप्ति के लिए अनेक प्रयास किए.
  • किन्तु इन्हें अपने प्रयासों में आंशिक सफलता ही मिली.
  • कालान्तर में इन दलित जातियों में से ऐसे नेता उभर कर सामने आए.
  • जिन्होंने स्वयं समानता के अधिकार के लिए आन्दोलन चलाया.

आधुनिक भारत में दलित जातीय आन्दोलन (DEPRESSED CLASS MOVEMENT IN INDIA) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

न्याय दल (The Justice Party) 

  • श्री पी. त्यागराज और डॉ. टी. एम. नैयर के प्रयासों से 1917 में दक्षिण भारतीय उदारवादी संघ या न्याय पार्टी की स्थापना की गई.
  • 1937 में रामास्वामी नाइकर इस दुल के सभापति चुने गए.
  • उन्होंने हिन्दू धर्म की भत्र्सना की और कहा कि यह ब्राह्मणों के अनियंत्रित अधिकारों का पक्षपोषक है.
  • 1949 में इस दल का विभाजन हो गया और असन्तुष्ट सी. एन. अन्नादुराए ने द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) की स्थापना की.
  • 1967 में अन्नादुराए ने प्रथम द्रमुक सरकार का गठन किया.

श्री नारायण धर्म परिपालक योग 

  • श्री नारायण गुरू ने केरल तथा केरल के बाहर कई स्थानों पर एस. एन. डी. पी. या श्री नारायण धर्म परिपालन योगम नामक संस्था की स्थापना की.
  • श्री नारायण “एझवा” (एक अस्पृश्य जाति) जाति के थे.
  • उन्होंने दलित जातियों के उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए.
  • उन्होंने कई मन्दिर बनवाए जो सभी वर्गों के लिए खुले थे.
  • उन्हें अस्पृश्य जातियों को पिछड़ी जातियों में परिवर्तित करने में विशेष सफलता मिली.
  • श्री नारायण गुरू ने महात्मा गांधी की भी निम्न जातियों के प्रति केवल मौखिक सहानुभूति प्रकट करने के लिए आलोचना की.

सत्य शोधक समाज 

  • भारत के पश्चिमी भाग में ज्योतिराव गोविन्दराव फूले ने दलित या निम्न जातियों के लिए संघर्ष किया.
  • उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं की कमजोर वर्गों के लोगों के हितों की अनदेखी करने के लिए आलोचना की.
  • 1873 में उन्होंने सत्य शोधक समाज (सत्य की खोज करने वाला समाज) की स्थापना की.
  • इस समाज का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्ग को सामाजिक न्याय दिलवाना था.

डॉ.भीमराव अम्बेडकर की भूमिका 

  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को एक महार कुल (एक अस्पृश्य हिन्दू कुल) में महू में हुआ.
  • 1923 में वे बैरिस्टर बन गए.
  • जुलाई, 1924 में उन्होंने बम्बई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की.
  • इसका उद्देश्य अस्पृश्य लोगों की नैतिक और भौतिक उन्नति करना था.
  • 1930 में अम्बेडकर ने राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया.
  • उन्होंने अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की.
  • लन्दन में हुए तीनों गोलमेज सम्मेलनों में अम्बेडकर ने अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया.
  • 17 अगस्त, 1932 के ब्रिटिश प्रधानमंत्री की साम्प्रदायिक निर्णय में दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रावधान था.
  • महात्मा गांधी इससे बहुत दु:खी हुए.
  • उन्होंने इस व्यवस्था को हटाने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया.
  • अन्ततः “पूना समझौते” के द्वारा दलित वर्गों के लिए साधारण वर्ग में ही सीटों का आरक्षण किया गया.
  • अप्रैल, 1942 में उन्होंने अनुसूचित जातीय संघ का एक अखिल भारतीय दल के रूप में गठन किया.
  • भारत के संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया.
  • उनके प्रयासों से भारत के संविधान में दलित जातियों के उत्थान के लिए समुचित प्रावधान किए गए.

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Sunday, January 20, 2019

Mahabhulekh महाभूलेख महाराष्ट्र (7/12 8अ) ऑनलाइन देखें mahabhulekh.maharashtra.gov.in


Mahabhulekh महाभूलेख महाराष्ट्र राज्य भूमि अभिलेख (7/12 व 8अ) ऑनलाइन देखें mahabhulekh.maharashtra.gov.in




यू पी भूलेख (UP Bhulekh) ऑनलाइन देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें
अपना खाता राजस्थान ऑनलाइन देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें

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Friday, January 18, 2019

UP Bhulekh यूपी भूलेख, खसरा खतौनी, ऑनलाइन नक़ल upbhulekh.gov.in (उत्तर प्रदेश सरकार)

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें

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राजस्थान अपना खाता (apna khata)

  • राजस्थान सरकार द्वारा बनाई गई नई परियोजना में राजस्थान के सभी लोग अपना खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देख सकते हैं.
  • इस योजना का नाम अपना खाता (apna khata) रखा गया है.
  • इस योजना (apna khata) के तहत हर कोई जमीन मालिक अपनी जमीन का पूर्ण विवरण देख सकता है.
  • अपना खाता (apna khata) योजना के तहत राजस्थान के सभी लोग अपनी जमाबंदी ऑनलाइन देख सकते हैं.
  • अपनी भूमि, जमीन या खेत की जमाबंदी की नकल खसरा नंबर, जमीन का नक्शा अब हर कोई इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन देख सकते हैं.
  • अपना खाता (apna khata) योजना का मुख्य उद्देश्य राजस्थान की जनता को उनकी भूमि या जमीन के बारे में जानकारी देने के लिए यह योजना बनाई गई है.

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें apnakhata

अपना खाता (apna khata) के फायदे

  • अपना खाता (apna khata) में आप अपना खसरा नंबर, खतौनी नंबर जमाबंदी नंबर पता कर सकते हैं.
  • राजस्थान में अपना खाता (apnakhata) आप सभी अपने जमीन का विवरण घर बैठे देख सकते हैं.
  • अगर आपको अपनी जमीन के बारे में पता करवाना है तो पटवारी के पास पटवारखाने जाने की जरूरत नहीं है.
  • राजस्थान अपना खाता (apna khata) में सिर्फ रजिस्ट्रेशन करने के बाद आपको यह सुविधा मिल सकती है.

अपना खाता (apna khata) ऑनलाइन देखें

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें (apnakhata)

  • वेबसाइट पोर्टल खोलने के बाद अपना खाता पर क्लिक करें या टच करें.
  • अब आपके सामने राजस्थान राज्य का मानचित्र या नक्शा खुल जाएगा.
  • अपने जिले का नाम सेलेक्ट करें या टच करें.
  • अब आपको अपने तहसील का नाम सेलेक्ट करें.

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें (apnakhata) 2

तहसील गांव पटवार मंडल

  • तहसील सेलेक्ट करने के बाद एक नया पेज खुल जाएगा.

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें (apnakhata) 3

  • तब इसके बाद आपको जमाबंदी वर्ष गत या चालु में चयन करना होगा.
  • अब आपको गांव पटवार मंडल-भू-अभि.निरी.वृत्त(संवत) का चयन करना होगा.

नकल (NAKAL) प्राप्त करें

  • गांव पटवार मंडल चुनने के लिए आपको अपने गांव के प्रथम अक्षर पर क्लिक या टच करना होगा.
  • अपना गांव का नाम दिख रहे सूची में खोजें और उस पर क्लिक या टच करें.
  • इसके बाद आपको अपना खाता – खाता से, खतरा से, नाम से, विकल्प का चुनाव करना होगा.

राजस्थान राज्य अपना खाता (apna khata) जमाबंदी नकल खसरा खतौनी नंबर ऑनलाइन देखें (apnakhata) 4

  • अब इसके बाद काश्तकार का नाम सेलेक्ट करें.
  • अब आपको काश्तकार का विवरण पते सहित और चयनित खाता संख्या भी दिख रहा है तो नकल प्राप्त करें .

महत्वपूर्ण सूचना

  • अगर वेबसाइट नहीं चल रही है तो संभवत यह कारण हो सकते हैं-

इस समय  राजस्थान सरकार के अपना खाता पोर्टल  का एक साथ बहुत सारे लोग इस्तेमाल कर रहे हैं.

इस कारणवश सर्वर (server) काम नहीं कर रहा है.

  • अपना खाता (apna khata) वेबसाइट पर राजस्थान राज्य के कृषि भू अभिलेख के अंतर्गत जमाबंदी की प्रति उपलब्ध है.
  • इस सूचना का  हेतु सामान्य जानकारी प्राप्त करना है.
  • इस नकल का न्यायालय या अन्य कार्यालय में प्रमाणित/ प्राधिकृत प्रति के रूप में इस समय तो भी प्रयुक्त नहीं किया जा सकता.
  • प्रमाणित/ प्राधिकृत प्रति के लिए दिए गए निर्धारित कियोस्क सेंटर पर कृपया आवेदन करें.
  • भविष्य में डिजिटल साइन वाला सभी कार्यालयों में मान्य ऐसी नकल राजस्थान सरकार द्वारा मिलने की हम आशा करते हैं.

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Tuesday, January 15, 2019

आधुनिक भारत में पुनर्जागरण (THE RENAISSANCE IN MODERN INDIA)

आधुनिक भारत में पुनर्जागरण (THE RENAISSANCE IN MODERN INDIA) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

आधुनिक भारत में पुनर्जागरण (THE RENAISSANCE IN MODERN INDIA)

  • ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज को बहुत गहन रूप से प्रभावित किया.
  • अंग्रेजों से पूर्व भी अनेक विदेशी आक्रान्ता भारत में आए किन्तु वे भारतीय समाज और संस्कृति में घुलमिल गए.
  • उन्होंने भारतीय धर्म, संस्कृति और सभ्यता को अपनाया और भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन गए, परन्तु अंग्रेजी आक्रान्ता इन सब से पूर्णत: भिन्न थे.
  • 18वीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक लहर का सूत्रपात हुआ.
  • तर्कवाद और अन्वेषण की भावना ने यूरोपीय समाज को एक नवीन दिशा प्रदान की.
  • विज्ञान तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक सभी पक्षों को प्रभावित किया.
  • इससे यूरोप आधुनिक सभ्यता का एक अग्रणी महाद्वीप बन गया.
  • इसके विपरीत भारत एक परम्परावादी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा था.
  • अत: अंग्रेजी आक्रान्ताओं के रूप में भारत का सामना एक ऐसे आक्रान्ता से हुआ जो अपने आप को सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से अधिक उत्तम समझता था, सम्भवतः था भी.
  • ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद पाश्चात्य शिक्षा की जो लहर चलो उसने भारत के प्रबुद्ध वर्गीय युवा वर्ग को गहन रूप से प्रभावित किया.
  • इनमें राजा राम मोहन राय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है.
  • उन्हें आधुनिक भारत का जन्मदाता कहा जाता है.
  • उन्होंने पाश्चात्य शिक्षा, तर्कवाद, विज्ञानवाद और मानववाद से प्रभावित होकर भारतीय समाज और संस्कृति में व्याप्त गंभीर दोषों को समाप्त करने के लिए प्रभावी प्रयास किए.

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ब्रह्म समाज (The Brahmo Samaj)

  • भारत में लगभग सभी सामाजिक कुरीतियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित थी.
  • अतः धर्म को सुधारे बिना समाज में सुधार सम्भव न था.
  • हिन्दू धर्म में पहला सुधारवादी आन्दोलन ब्रह्म समाज था.
  • 1828 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की.
  • उन्होंने सती प्रथा, बाल विवाह, शिशु वध और विधवा-पुनर्विवाह की मनाही आदि के खिलाफ आवाज उठाई.
  • 1829 में उनके गम्भीर प्रयासों के कारण सती प्रथा, शिशु वध और बाल विवाह को गैर कानूनी घोषित किया गया तथा विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी गई.
  • 1833 में इंग्लैण्ड में उनकी अकाल मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज में नेतृत्व हीनता के कारण शिथिलता आ गई.
  • 1842 में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज को पुनः जीवित किया.
  • उनके प्रमुख सहयोगी श्री केशवचन्द्र सेन ने अपनी शक्ति, वाकपटुता और उदारवादी दृष्टिकोण के कारण इस आन्दोलन को बहुत लोकप्रिय बना दिया.
  • किन्तु शीघ्र ही ब्रह्म समाज में फूट पड़ गई.
  • 1865 में देवेन्द्र नाथ टैगौर ने अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए.
  • केशवचन्द्रसेन को ब्रह्म समाज के आचार्य के पद से पदमुक्त कर दिया.
  • केशवचन्द्र सेन ने एक नवीन ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसको “आदि ब्रह्म समाज” कहा गया.
  • 1878 में इस नवीन समाज में भी फूट पड़ गई.
  • इसके बाद एक नवीन ब्रह्म समाज अर्थात् ‘साधारण ब्रह्म समाज’ अस्तित्व में आया.
  • ब्रह्म समाजियों ने अवतारवाद, बहुदेववाद, मूर्ति पूजा और वर्ण व्यवस्था की कटु आलोचना की.
  • उन्होंने बहु-विवाह, सती प्रथा, बाल-विवाह और पर्दा प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई.
  • उन्होंने विधवा पुनः विवाह और स्त्री शिक्षा के लिए भी कदम उठाए.

प्रार्थना समाज (The Prarthana Samaj)

  • 1867 में श्री केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना की गई.
  • इस समाज के प्रमुख नेता न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे और एन. जी. चन्द्रावरकर थे.
  • इनका विश्वास था कि ईश्वर की सच्ची पूजा उसके मनुष्यों की सेवा है.
  • इन्होंने जात-पांत का विरोध, स्त्री-पुरुष समानता, विधवा-पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा के पक्ष में वातावरण तैयार किया.
  • प्रार्थना समाज द्वारा स्थापित “दलित जाति मण्डल”समाज सेवा संघ‘, और ‘दक्कन शिक्षा सभा‘ ने समाज सुधार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया.

आर्य समाज (The Arya Samaj) 

  • स्वामी दयानंद ने 1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की.
  • इस समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनः स्थापना करना था.
  • स्वामी दयानंद ने ‘पुनः वेदों की ओर लौट चलने’ का नारा दिया.
  • वे वेद को ईश्वरीय ज्ञान मानते थे और उपनिषद् काल तक के साहित्य को स्वीकार करते थे.
  • स्वामी दयानंद ने अद्वैतवादी दर्शन को वैदिक परम्परा के विपरीत बताया.
  • आर्य समाज ने धार्मिक क्षेत्र में मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, श्राद्ध और झूठे कर्मकाण्डों के विरुद्ध आवाज उठाई.
  • सामाजिक क्षेत्र में छुआ-छूत वर्णव्यवस्था, बाल-विवाह आदि बुराइयों पर कुठराघात किया.
  • राजनीतिक दृष्टि से आर्य समाज का यह मत था कि बुरे से बुरा स्वदेशी राज्य अच्छे से अच्छे विदेशी राज्य से अच्छा होता है.
  • इस मत के कारण आर्य समाज को “भारतीय अशान्ति का जन्मदाता” कहा जाता है.
  • स्वामी दयानंद सम्भवत: पहले भारतीय थे जिन्होंने शूद्र तथा स्त्री को वेद पढ़ने, ऊँची शिक्षा प्राप्त करने और यज्ञोपवीत धारण करने के अधिकार के लिए आन्दोलन चलाया.
  • स्वामी दयानंद के प्रमुख विचार उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” में वर्णित हैं.
  • 1886 में दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक संस्थाएं देश भर में स्थापित की गई.

आर्य समाज के प्रमुख सिद्धांत और नियम निम्नलिखित थे –

  1. समस्त पदार्थों का मूल परमेश्वर है.
  2. ईश्वर निराकार और सर्वशक्तिमान है.
  3. वेदों का अध्ययन आर्यों का परमधर्म है.
  4. सत्य को ग्रहण करने तथा असत्य को त्यागने के लिए सदैव उद्यत रहना चाहिए.
  5. अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि हेतु प्रयत्न करने चाहिए.
  6. मनुष्य को सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए.
  • इसके अलावा आर्य समाज ने शुद्धि आन्दोलन भी चलाया इसके अन्तर्गत लोगों को अन्य धर्मों से हिन्दू धर्म में लाने का प्रयास किया गया.

रामकृष्ण मिशन (The Ramakrishna Mission)

  • स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरू स्वामी रामकृष्ण परमहंस की स्मृति में 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी.
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 1862 में हुआ था.
  • प्रारंभ में उनका नाम नरेन्द्र दत्त था.
  • उन्होंने 1893 में शिकागो में हुई “विश्व धर्मों की संसद (सभा)” में भाग लिया और अपनी विद्वतापूर्ण विवेचना द्वारा विश्व भर के धर्मानुयायियों को प्रभावित किया.
  • उनके भाषण का मुख्य तत्व यह था कि हमें भौतिकवाद तथा अध्यात्मवाद के मध्य एक स्वस्थ संतुलन स्थापित करना चाहिए.
  • दूसरे शब्दों में पश्चिम के भौतिकवाद और पूर्व के अध्यात्मवाद का सांमजस्यपूर्ण सम्मिश्रण विश्वभर को प्रसन्नता प्रदान कर सकता है.
  • स्वामी विवेकानंद ने सभी धर्मों की समानता पर बल दिया.
  • उन्होंने भारतीयों के स्वाभिमान को जगाया.
  • उनका दृष्टिकोण यह था कि भूखे व्यक्ति को धर्म की बात कहना ईश्वर और मानवता दोनों का अपमान है.
  • उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन की शाखाएं आज भी समाज सुधार के क्षेत्र में कार्यरत हैं.

थियोसोफिकल सोसाइटी (The Theosophical Society)

  • 1875 में मैडम एच. पी. ब्लावेट्स्की (रूसी) और कर्नल एम. एस. ऑल्कोट (अमेरिकी) ने अमेरिका में थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की.
  • 1886 में इस सोसाइटी का मुख्य कार्यालय भारत में मद्रास के समीप अड्यार नामक स्थान पर स्थापित किया गया.
  • 1882 में एक ईसाई महिला श्रीमति एनी बेसेन्ट इस सोसाइटी के सम्पर्क में आयी.
  • 1889 में वह इसमें औपचारिक रूप से शामिल हो गई.
  • 1891 में मैडम ब्लावेट्स्की को मृत्यु के बाद वे भारत आई.
  • वे भारतीय विचार और संस्कृति से भली-भांति परिचित थी.
  • 1897 में कर्नल ऑलकोट की मृत्यु के बाद श्रीमति बेसेन्ट थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष बनी.
  • उनके नेतृत्व में सोसाइटी शीघ्र ही हिन्दू पुनर्जागरण का एक प्रमुख आन्दोलन बन गई.
  • श्रीमति बेसेन्ट ने भारतीयों में आत्मविश्वास और राष्ट्र निर्माण की भावना जागृत की.
  • उन्होंने 1898 में बनारस में सेन्ट्रल हिन्दू कालेज की नींव रखी.
  • 1916 से यह कॉलेज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है.
  • श्रीमती बेसेन्ट ने भारत में होम रूल लीग की भी स्थापना की.
  • थियोसोफिकल सोसाइटी ने एकेश्वरवाद का प्रचार किया.
  • सोसाइटी ने बाल-विवाह, कन्या वध, विधवा-उत्पीड़न और छुआछूत के विरुद्ध भी आवाज उठाई.
  • यह सोसाइटी मुख्यतः दक्षिणी भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार लाने में अधिक सफल हुई.

मुस्लिम सुधारवादी आन्दोलन (Muslim Reform Movement)

  • हिन्दू धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलनों के समान ही भारतीय मुसलमानों में भी अनेक सुधारवादी आन्दोलन हुए.
  • इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –
  1. वहाबी आन्दोलन (The Wahabi Movernment)
  2. अलीगढ़ आन्दोलन (The Aligarh Moverment) 
  3. अहमदिया आन्दोलन
  4. देवबन्द-आन्दोलन (The Deoband Movement)

वहाबी आन्दोलन (The Wahabi Movernment)

  • वहाबी आन्दोलन को भारतीय मुसलमानों की पाश्चात्य प्रभावों के विरुद्ध सर्वप्रथम प्रतिक्रिया के रूप में स्मरण किया जाता है.
  • यह मुसलमानों का प्रथम पुनर्जागरणवादी आन्दोलन था.
  • सैय्यद अहमद और इस्माइल हाजी मौलवी मोहम्मद वहाबी आन्दोलन के प्रमुख नेता थे.
  • यह आन्दोलन मुख्यतः भारतीय मुसलमानों के रीति-रिवाजों और मान्यताओं में प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध था.
  • इस आन्दोलन में इस्लाम की पवित्रता और एकता पर जोर दिया गया.
  • किंतु इस आन्दोलन का स्वरूप रूढ़िवादी अधिक था, अत: यह अधिक सफलता प्राप्त न कर सका.

अलीगढ़ आन्दोलन (The Aligarh Moverment)

  • 19वीं शताब्दी के मुस्लिम समाज सुधारकों में सर सैय्यद अहमद खां का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
  • वे यह चाहते थे कि मुसलमान अंग्रेजों के प्रति वफादार रहकर अपना कल्याण करे.
  • वे स्वयं 1857 के विद्रोह के समय कम्पनी की न्यायिक सेवा में कार्यरत थे.
  • उन्होंने मुस्लिम समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे- पीरी मुरीदी की प्रथा, दास प्रथा आदि को भी दूर करने का प्रयास किया.
  • उन्होंने अपने विचारों का प्रचार ‘तहजीब-उल-अखलाक’ (सभ्यता और नैतिकता) नामक पत्रिका के माध्यम से किया.
  • 1875 में उन्होंने अलीगढ़ में ऐंग्लो-मुस्लिम ओरिएंटल कॉलेज की भी नींव रखी.
  • इस कॉलेज में पाश्चात्य और मुस्लिम दोनों ही प्रकार की शिक्षाएं प्रदान की जाती थी.
  • शीघ्र ही अलीगढ़ मुस्लिम सम्प्रदाय के धार्मिक और सास्कृतिक पुनर्जागरण का केन्द्र बन गया.
  • 1920 में एंग्लो-मुस्लिम ओरिएन्टल कॉलेज का नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय रखा गया.

अहमदिया आन्दोलन

  • मिर्जा गुलाम अहमद कादिनी के नेतृत्व में अहमदिया आन्दोलन प्रारंभ हुआ.
  • इस आन्दोलन का प्रमुख लक्ष्य सभी धर्मों में सुधार करना था.

देवबन्द-आन्दोलन (The Deoband Movement)

  • मुस्लिम उलेमाओं ने देवबन्द आन्दोलन चलाया.
  • इस पुनर्जागरणवादी आन्दोलन के दो मुख्य उद्देश्य थे –
  1. मुसलमानों में कुरान तथा हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करना.
  2. विदेशी शासन के विरुद्ध “जिहाद’ की भावना को जीवित रखना.
  • मुहम्मद कासिम ननौवी और रशीद अहमद गंगोही के नेतृत्व में देवबन्द (सहारनपुर-उत्तर प्रदेश) में एक विद्यालय खोला गया.
  • इस विद्यालय में इस्लाम की शिक्षा दी जाती थी.
  • जिसका उद्देश्य यह था कि मुस्लिम सम्प्रदाय का नैतिक और धार्मिक पुनरुद्धार किया जाए.
  • यह अलीगढ़ आन्दोलन से पूर्णतया विपरीत था जो पाश्चात्य शिक्षा और ब्रिटिश सरकार की सहायता से मुसलमानों का कल्याण चाहता था.
  • खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में खुदाई खिदमदगार आन्दोलन चलाया गया.

सिख सुधार आन्दोलन (The Sikh Reform Movement)

  • अमृतसर में सिंह सभा ने आन्दोलन आरंभ किया.
  • यह एक छोटा सा आन्दोलन या “अकाली लहर” थी जो कि उन भ्रष्ट महंतों के विरुद्ध थी जो गुरुद्वारों को अपनी पैतृक सम्पत्ति मानते थे.
  • 1921 में अकालियों ने गुरुद्वारों के उद्धार के लिए इन महन्तों के विरुद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन आरंभ किया.
  • सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए काफी प्रयास किए, किन्तु अंत में सरकार को झुकना पड़ा.
  • 1922 में सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित हुआ.

20वीं शताब्दी में सामाजिक सुधार (Social Reforms in 20th Century)

  • 20वीं शताब्दी में समाज सुधार हेतु अखिल भारतीय और प्रादेशिक स्तर पर अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई.
  • इनमें से प्रमुख संस्थाएं थी-
  1. भारतीय राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन (1887),
  2. बम्बई समाज सुधारक सभा (1903),
  3. अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारक संघ (1932),
  4. अखिल भारतीय महिला संघ (1926),
  5. अखिल भारतीय दलित जातीय सभा और
  6. अखिल भारतीय दलित जातीय संघ आदि.

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Monday, January 14, 2019

भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत

भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS)

  • भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ-साथ आरम्भ होता है.
  • सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने भारत में मुद्रणालय (Printing Press) की स्थापना की.
  • भारत में सर्वप्रथम 1557 में गोआ के पादरियों ने पहली पुस्तक प्रकाशित की.
  • 1684 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई में एक मुद्रणालय की स्थापना की.

भारतीय प्रेस का इतिहास (THE HISTORY OF INDIAN PRESS) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

  • जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने भारत में 1780 में पहला समाचार-पत्र प्रकाशित किया.
  • इस समाचार-पत्र का नाम “द बंगाल गैस गैजेट” (The Bengal Gazette) था.
  • किंतु सरकार की निष्पक्ष आलोचना के कारण यह समाचार-पत्र ज़ब्त कर लिया गया.
  • कालांतर में
  1. कलकत्ता गजट (1784),
  2. बंगाल जनरल (1785),
  3. द ओरिएन्टल मैग्जीन ऑफ कलकत्ता (The Oriental Magazine of Calcutta, 1785),
  4. कलकत्ता क्रॉनिकल (1786) और
  5. मद्रास कोरियर (1788)

आदि अनेक समाचार-पत्र छपने आरंभ हुए.

  • इन समाचार-पत्रों का दृष्टिकोण सरकार के पक्ष में था.
  • ये समाचार-पत्र पूर्णतया कम्पनी के अधिकारियों की दया पर निर्भर थे.

समाचार-पत्र पत्रेक्षण अधिनियम, 1799 (The Censorship of Press Act, 1799)

  • लार्ड वैल्ज़ली ने 1799 में समाचार-पत्र पत्रेक्षण अधिनियम पारित किया.
  • इस अधिनियम के अनुसार-
  1. समाचार-पत्र को अपने सम्पादक, मुद्रक और स्वामी का नाम स्पष्ट अक्षरों में छापना पड़ता था.
  2. समाचार-पत्र के प्रकाशक को प्रकाशित किए जाने वाले सभी तत्वों को सरकार के सचिव के सम्मुख पूर्व-पत्रेक्षण (Pre-censorship) के लिए भेजना पड़ता था.

1823 का अनुज्ञप्ति नियम (The Licensing Regulation of 1823)

  • इस नियम के अनुसार-
  • (1) मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने से पूर्व सरकार से अनुज्ञप्ति लेनी होगी.
  • (2) अनुज्ञप्ति के अभाव में किसी भी साहित्य का मुद्रण एवं प्रकाशन दण्डनीय अपराध घोषित किया गया.
  • अनुज्ञप्ति के नियम का उल्लंघन करने के कारण राजा राम मोहन राय की ‘मिरा-उल-अकबर’ पत्रिका को बन्द होना पड़ा.
  • लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने समाचार-पत्रों के प्रति उदारता की नीति अपनाई.

अनुज्ञप्ति अधिनियम, 1857 (Licensing Act, 1857)

  • 1857 के विद्रोह से उत्पन्न स्थिति का सामना करने के लिए अनुज्ञप्ति व्यवस्था कड़ी कर दी गई.
  • इस संबंध में एक अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार सरकार को किसी भी समाचार पत्र, पुस्तक या अन्य किसी मुद्रित सामग्री के संबंध में नियंत्रित अधिकार प्रदान किए गए.
  • यह एक संकटकालीन व्यवस्था थी जो कि एक वर्ष तक प्रभावी रही.

समाचार-पत्र पंजीकरण अधिनियम, 1867(The Newspaper Registration Act, 1867)

  • 1867 में पारित इस अधिनियम का उद्देश्य समाचार पत्रों पर रोक लगाना नहीं वरन् उन्हें नियमित करना था.
  • इसके द्वारा समाचार पत्रों का पंजीकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया.
  • अब प्रत्येक मुद्रित सामग्री पर मुद्रक, प्रकाशक और प्रकाशन स्थान का उल्लेख किया जाना अनिवार्य था.

भारतीय भाषा समाचार पत्र अधिनियम, 1878 (The Vernacular Press Act, 1878)

  • इस अधिनियम के द्वारा सरकार ने भारतीय भाषाई समाचार पत्रों को और अधिक नियंत्रित करने का प्रयास किया.
  • इस अधिनियम के द्वारा जिला दण्डनायकों को एक महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया.
  • इस अधिकार के तहत वह समाचार पत्र के प्रकाशक को यह आदेश दे सकता था कि वे कोई ऐसी सामग्री प्रकाशित नहीं करें जिससे सरकार विरोधी भावना भड़कती हो.
  • इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला अधिनियम कहा गया.
  • भारत सचिव लार्ड क्रेन बुक के प्रयत्नों से सितम्बर, 1878 में एक समाचार-पत्र आयुक्त की नियुक्ति की गई.
  • इस अधिकारी का काम सच्चे यथार्थ समाचार प्रदान करना था.
  • इस अधिकारी की नियुक्ति के बाद पूर्व-पत्रेक्षण की व्यवस्था समाप्त कर दी गई.

समाचार पत्र अधिनियम, 1908 (The Newspaper Act, 1908)

  • 1908 में पारित इस अधिनियम के अनुसार –
  1. जो समाचार पत्र आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करता था उसका मुद्रणालय जब्त कर लिया जाता था.
  2. सरकार किसी भी समाचार पत्र के पंजीकरण को रद्द कर सकती थी.
  3. मुद्रणालय के जब्त होने की स्थिति में 15 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती थी.

भारतीय समाचार-पत्र अधिनियम, 1910 (The Indian Newspaper Act, 1910)

  • इस अधिनियम के अनुसार सरकार किसी मुद्रणालय के स्वामी या प्रकाशक से पंजीकरण-जमानत मांग सकती थी, जो कम से कम 500 और अधिक 2000 रुपये थी.
  • सरकार को जमानत जब्त करने और पंजीकरण रद्द करने का भी अधिकार था.
  • पुनः पंजीकरण के लिए कम से कम 1000 रुपये और अधिक से अधिक से 10,000 रुपये जमानत के रूप में सरकार को देने पड़ते थे.
  • यदि समाचार पत्र पुन: आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करें तो सरकार पुनः उसका पंजीकरण रद्द कर सकती थी.
  • पीड़ित पक्ष दो मास के भीतर उच्च न्यायालय के विशेष न्यायाधिकरण में अपील कर सकता था.
  • प्रत्येक प्रकाशक को अपने समाचार-पत्र की दो प्रतिया बिना मूल्य के सरकार को देनी पड़ती थी.

सप्रू समिति, 1921 (The Supru Committee, 1921)

  • 1921 में सर तेजबहादुर सप्रू की अध्यक्षता में एक समाचार-पत्र समिति की नियुक्ति की गई.
  • इस समिति का उद्देश्य समाचार पत्रों से संबंधित कानूनों की समीक्षा करना था.
  • इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 1908 और 1910 के समाचार पत्र अधिनियम रद्द कर दिए गए.

भारतीय समाचार पत्र (संकटकालीन शक्तियां) अधिनियम, 1931 (The Indian Newspapers (Emergency Powers) Act, 1931)

  • इस अधिनियम के द्वारा भारत सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन के प्रचार और प्रसार को दबाने के लिए प्रान्तीय सरकारों को विशेष संकटकालीन शक्तियां प्रदान की.
  • इस अधिनियम की धारा 4 के अनुसार वे सभी गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी गई.
  • जिनसे सरकार की प्रभुसत्ता को हानि पहुंचाई जा सकती थी.

समाचार-पत्र जांच समिति (The Newspaper Enquiry Committee)

  • 1947 में गठित इस समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं –
  1. 1931 का अधिनियम रद्द किया जाए.
  2. समाचार-पत्रों के पंजीकरण के अधिनियम में संशोधन किया जाए.
  3. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए और 153 ए में परिवर्तन किया जाए.

समाचार-पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम, 1951 (The Newspaper (Objectionable Matters) Act, 1951)

  • 26 जनवरी, 1950 को भारत का नया संविधान लागू हुआ.
  • 1951 में भारत सरकार ने समाचार पत्र (आपत्तिजनक विषय) अधिनियम पारित किया.
  • इस अधिनियम के द्वारा सरकार को समाचार पत्रों तथा मुद्रणालयों से आपत्तिजनक विषय प्रकाशित करने पर जमानत मांगने तथा जब्त करने का अधिकार दिया गया.
  • इसके अलावा सरकार डाक द्वारा भेजी गई आपत्तिजनक सामग्री को रोक सकती थी, उसकी जांच कर सकती थी, उसे नष्ट अथवा जब्त भी कर सकती थी.
  • यह अधिनियम 1956 तक लागू रहा.
  • सरकार ने 1955 में कार्यकर्ता पत्रकार (सेवाशर्त) एवं विविध आदेश अधिनियम, 1956 में “समाचार-पत्र पन्ना तथा मूल्य अधिनियम” और 1960 में “संसदीय कार्यवाही (सरंक्षण एवं प्रकाशन) अधिनियम” पारित किया.

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Saturday, January 12, 2019

भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT)

भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

भारतीय शिक्षा:उदय और विकास (INDIAN EDUCATION:RISE AND DEVELOPMENT)

  • 18वीं शताब्दी में देश में उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल के कारण हिन्दू और मुस्लिम शिक्षा केन्द्र लुप्तप्राय हो गए.
  • शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही अपने कर्तव्यों को भूलकर राष्ट्रीय संघर्ष में लग गए.
  • 1765 में कम्पनी के द्वारा राजनीतिक स्वरूप धारण करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु प्रयत्न आरंभ हो गए.
  • प्रारंभ में भारत में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयत्न किया गया.
  • 1781 में वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने कलकत्ता में एक मदरसा स्थापित किया.
  • इसमें फारसी और अरबी का अध्ययन किया जाता था.
  • 1791 में बनारस में एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई.
  • भारत में इसाई धर्म प्रचारकों के आगमन के बाद प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था की कटु आलोचना की गई.
  • यह कहा गया कि भारत शिक्षा के क्षेत्र में केवल पाश्चात्य शिक्षा पद्धति और अंग्रेजी माध्यम से ही सुधार किया जा सकता था.
  • वास्तव में अब कम्पनी को अपनी प्रशासनिक आवश्यकताओं के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता थी जो स्थानीय परिस्थितयों एवं भाषाओं के अच्छे ज्ञाता होने के साथ अंग्रेजी का भी पर्याप्त ज्ञान रखते हों.
  • दूसरी ओर राजा राम मोहन राय सरीखे समाज सुधारक भी ऐसी शिक्षा चाहते थे जो भारतीयों को जीविका के साधन उपलब्ध करवा सकें तथा भारतीय समाज का सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक पुनरुद्धार कर सके.
  • अत: भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र में वातावरण बनने लगा.
  • 1800 में लार्ड वैल्ज़ली ने कम्पनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की.
  • किन्तु 1802 में यह कॉलेज बन्द कर दिया गया.

लार्ड मैकाले का प्रस्ताव, 1853 (Lord Macaulay’s Resolution, 1853)

  • भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य लार्ड मैकाले के 2 फरवरी, 1835 के प्रस्ताव का विशेष महत्व है.
  • मैकाले ने अपने प्रस्ताव में अपने इस उद्देश्य को प्रकट किया कि भारत में व्यक्तियों की एक ऐसी श्रेणी तैयार की जाए जो रंग और रूप से तो भारतीय हों किन्तु ज्ञान, प्रवृत्ति और नैतिकता की दृष्टि से अंग्रेज.
  • दूसरे शब्दों में मैकाले “ब्राउन रंग के अंग्रेज” तैयार करना चाहता था जो कम्पनी के निम्न स्तरीय कार्यभार को संभाल सकें.
  • लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने मैकाले के प्रस्ताव को 7 मार्च, 1835 को स्वीकार कर लिया.
  • इसका अर्थ यह था कि भविष्य में पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार हेतु ही सरकारी प्रयास किए जाएंगे तथा भविष्य में सभी धन-राशियां इसी निमित्त प्रदान की जाएंगी.
  • मैकाले की पद्धति के अधीन अंग्रेजी सरकार ने भारत के उच्चवर्ग को अंग्रेजी माध्यम द्वारा शिक्षित करने का प्रयास किया.

चार्ल्स वुड का निर्देशपत्र, 1854 (Charles Wood’s Despatch, 1854)

  • जुलाई, 1854 में सर चार्ल्स वुड ने भारत सरकार को एक नई शिक्षा योजना प्रस्तुत की.
  • इस योजना को “वुड का निर्देशपत्र” कहा जाता है.
  • इस योजना के आधार पर अखिल भारतीय शिक्षा की एक नियामक पद्धति का गठन किया गया.
  • इस योजना को प्रायः भारतीय शिक्षा का मैग्ना कार्टा (Magna Carta) कहा जाता है.
  • इस योजना में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थी –
  1. उच्च शिक्षा का सर्वोत्तम माध्यम अंग्रेजी है.
  2. ग्रामों में प्राथमिक पाठशालाएं स्थापित की जाएं और इनमें स्थानीय भाषा में शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था की जाए.
  3. जिला स्तर पर ऐंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूलों की स्थापना की जाए.
  4. प्रमुख नगरों में सरकारी कॉलेज और तीनों प्रेजिडेन्सी नगरों में एक-एक विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए.
  5. व्यवसायिक और तकनीकी शिक्षा का विकास किया जाए.
  • चार्ल्स वुड की उपरोक्त सभी सिफारिशों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया.
  • 1855 में लोक शिक्षा विभाग की स्थापना की गई.
  • 1857 तक कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में एक-एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी

गई.

हंटर आयोग, 1882-83 (The Hunter Commission, 1882-83)

  • सन 1854 के बाद शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति का अध्ययन करने के लिए 1882 में श्री डब्लू डब्लू. हन्टर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की गई.
  • आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
  1. सरकार प्राथमिक शिक्षा के सुधार और विकास पर विशेष ध्यान दे. प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए.
  2. माध्यमिक शिक्षा के दो भाग हो- (A)साहित्यिक शिक्षा जो विद्यार्थी को विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु तैयार करे (B)व्यावहारिक शिक्षा, जो विद्यार्थी को व्यवसायिक रूप से तैयार करे.
  3. शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयत्नों को बढ़ावा दिया जाए.
  4. स्त्री शिक्षा को पर्याप्त व्यवस्था की जाए.
  • आयोग द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के बाद आने वाले 20 वर्षों में माध्यमिक और कॉलेज शिक्षा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ.
  • 1882 में पंजाब और 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई.
  • लॉर्ड कर्जन (1899-1905) ने अपने शासन काल में गुण और दक्षता के नाम पर विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बहुत कड़ा कर दिया.

भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 (The Indian University Act, 1904)

  • 1904 में टामस रैले आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया.
  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
  1. अध्ययन तथा शोध को बढ़ावा देने के लिए योग्य प्राध्यापकों और व्याख्याताओं की नियुक्ति की जाए तथा उपयोगी प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों की स्थापना की जाए.
  2. विश्वविद्यालय के अधिछात्रों (Fellows) की संख्या 50 से कम और 100 से अधिक नहीं होनी चाहिए.
  3. अधिछात्र मुख्य रूप से सरकार द्वारा मनोनीत होने चाहिए व इनकी नियुक्ति 6 वर्ष के लिए की जानी चाहिए.
  4. विश्वविद्यालय की सीनेट द्वारा पारित प्रस्तावों पर सरकार को ‘वीटो’ का अधिकार दिया गया.
  5. अशासकीय कॉलेजों को विश्वविद्यालय से संबंधित करने की शर्ते अधिक कड़ी कर दी गई.
  6. गवर्नर जनरल को इन विश्वविद्यालयों की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित करने का अधिकार दे दिया गया.
  • इस अधिनियम की राष्ट्रवादी तत्वों ने कड़ी आलोचना की.

1913 का सरकारी प्रस्ताव (Government Resolution of 1913)

  • 12 फरवरी, 1913 को सरकार ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया.
  • इस प्रस्ताव के द्वारा प्रान्तीय सरकारों को यह निदेश दिया गया कि वह समाज के निर्धन और पिछड़े हुए वर्ग के बच्चों को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का प्रबन्ध करे.
  • यह भी कहा गया कि माध्यमिक पाठशालाओं का भी विकास किया जाए.
  • प्रत्येक प्रान्त में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का भी उपबन्ध किया गया.

सैडलर विश्वविद्यालय आयोग, 1917-19 (The Sadler University Commission, 1917-19)

  • विश्वविद्यालय शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन के लिए 1917 में सरकार ने डॉ. एम. ई. सैडलर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
  • आयोग ने, 1904 के एक्ट की कड़ी निंदा की.
  • अयोग का विचार था कि विश्वविद्यालय की शिक्षा को सुधारने के लिए माध्यमिक शिक्षा में सुधार आवश्यक है.
  • आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
  1. स्कूल की शिक्षा 12 वर्ष की होनी चाहिए.
  2. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के बाद स्नातक स्तर की शिक्षा आरंभ होनी चाहिए.
  3. अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए ढाका और कलकत्ता विश्वविद्यालयों में एक पृथक शिक्षा विभाग स्थापित किया जाए.
  4. विश्वविद्यालय व्यावहारिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पाठ्यक्रमों का प्रबन्ध करे.

द्वैध शासन के अधीन शिक्षा (Education under Dyarchy)

  • 1919 के माण्टेग्यु-चम्सफोर्ड सुधारों के अनुसार प्रान्तों में शिक्षा विभाग एक निर्वाचित मंत्री के अधीन कर दिया गया.
  • केन्द्र सरकार ने अब शिक्षा में रुचि लेना बंद कर दिया.
  • शिक्षा के लिए केन्द्रीय अनुदान भी बन्द कर दिया.
  • केन्द्र की इस उपेक्षा के कारण शिक्षा का स्तर गिर गया.
  • प्रान्तीय सरकारें वित्तीय अभाव के कारण प्रभावी शिक्षा की व्यवस्था न कर सकी.

हर्टोग समिति, 1929 (The Hartog Committee, 1929)

  • शिक्षा के विकास के संबंध में प्रतिवेदन देने के लिए 1929 में सर फिलिप हर्टोग की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया.
  • समिति की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी
  1. प्राथमिक शिक्षा के शष्ट्रीय महत्व पर बल दिया गया.
  2. ग्रामीण प्रवृत्ति के विधार्थियों को वर्नेकुलर मिडिल स्कूल के स्तर पर रोक लिया जाए. अर्थात् उनके कालेजों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए. इसके बदले उन्हें व्यवसायिक और औद्योगिक शिक्षा दी जाए.
  3. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य छात्रों को ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति दी जाए.

मौलिक शिक्षा की  वर्धा योजना (Wardha Scheme of Basic Education)

  • 1937 में महात्मा गांधी ने शिक्षा की एक योजना प्रस्तुत की जिसे वर्धा योजना की संज्ञा दी जाती है.
  • इस योजना का मूलभूत सिद्धांत “हस्त उत्पादक कार्य” था.
  • इसके अन्तर्गत विद्यार्थी को मातृभाषा में सात वर्ष तक विद्याध्ययन करवाया जाता था.
  • किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध और मंत्रिमण्डलों के त्यागपत्र के कारण यह योजना खटाई में पड़ गई.

सार्जेण्ट योजना, 1944 (Sargent Plan, 1944)

  • केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने 1944 में एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना तैयार की जिसे प्रायः सार्जेण्ट योजना कहते हैं.
  • इस योजना में प्राथमिक विद्यालय और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के स्तरों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया था.
  • इस योजना में 6 से 11 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की भी व्यवस्था थी.

राधाकृष्णन आयोग, 1948-49 (The Radhakrishnan Commisslon, 1948-49)

  • स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालय शिक्षा पर विचार करने के लिए नवम्बर, 1948 में भारत सरकार ने डॉ. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
  • आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
  1. विश्वविद्यालय के प्रथम डिग्री कोर्स से पूर्व 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए.
  2. उच्च शिक्षा के तीन प्रमुख उद्देश्य होने चाहिए- सामान्य शिक्षा, संस्कारी शिक्षा और व्यवसायिक शिक्षा.
  3. प्रशासनिक सेवाओं के लिए विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि आवश्यक नहीं होनी चाहिए.
  4. शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए.
  5. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की जाए.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (The University Grant Commission)

  • भारत सरकार ने राधाकृष्णन आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करते हुए 1953 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की.

कोठारी आयोग, 1964 (The Kothari Commission, 1964)

  • जुलाई, 1964 में भारत सरकार ने डॉ. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन किया.
  • इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थी –
  1. शिक्षा के सभी स्तरों पर समाज सेवा और कार्य अनुभव के विषय शामिल किए जाएं.
  2. नैतिक शिक्षा और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास किया जाए.
  3. माध्यमिक शिक्षा को व्यवसायिक बनाया जाए.
  4. उन्नत अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाए.
  5. कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर बल दिया जाए.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 (National Education Policy, 1968)

  • कोठारी आयोग की सिफारिशों को क्रियान्वित करते हुए भारत सरकार ने 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की.
  • इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
  1. 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा.
  2. त्रिभाषाई फार्मूला स्वीकार किया गया.
  3. विज्ञान और अनुसंधान की शिक्षा का समानीकरण.
  4. कृषि तथा उद्योग के लिए शिक्षा का विकास.
  5. राष्ट्रीय आय का 6 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय करना.

नई शिक्षा नीति, 1986 (New Education Policy, 1986)

  • भारत सरकार ने 1986 में नई शिक्षा नीति की घोषणा की.
  • इस नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे –
  1. राष्ट्रीय साक्षरता की दर का विकास.
  2. प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण.
  3. माध्यमिक शिक्षा का व्यवसायीकरण .
  4. शिक्षा का समाजीकरण .

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