खिलाफत आन्दोलन में बाधा (Suspension of the Khilafat Movement)–असहयोग आन्दोलन में रुकावट के बाद खिलाफत आन्दोलन भी अप्रासंगिक बन गया. तुर्की की जनता मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में उठ खड़ी हुई और उसने नवंबर, 1922 में सुल्तान को सत्ता से वंचित कर दिया.
मुस्तफा कमाल पाशा(Mustafa kemal Pasha) ने तुर्की के आधुनिकीकरण के लिए अनेक कदम उठाये तथा खलीफा का पद समाप्त कर दिया. उसने शिक्षा का राष्ट्रीयकरण किया, स्त्रियों को व्यापक अधिकार दिए तथा खेती के विकास व आधुनिक उद्योग धन्धों की स्थापना के लिए कदम उठाये.
खिलाफत आन्दोलन अपने आप में अत्यधिक महत्वपूर्ण था. इसके कारण ही मुसलमान राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हुए और इस तरह देश में उन दिनों राष्ट्रीय उत्साह तथा उल्लास का जो वातावरण था उसे बनाने में इसकी भूमिका अग्रणी थी. मुस्तफा कमाल पाशा ने 1924 में खिलाफत को समाप्त कर दिया.
असहयोग आन्दोलन की राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही. इसने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन आन्दोलन का रूप प्रदान किया. प्रोफ़ेसर कूपलैण्ड के अनुसार,-
“महात्मा गांधीजी ने वह काम किया जो तिलक नहीं कर सके थे.”
उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को एक क्रान्तिकारी आन्दोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया. आन्दोलन ने देश को स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर अग्रसर किया.
वैधानिक साधनों द्वारा नहीं या वाद-विवाद और समझौते के द्वारा नहीं, अपितु अहिंसा की शक्ति के द्वारा. महात्मा गांधीजी ने आन्दोलन को क्रान्तिकारी बनाने के साथ लोकप्रिय भी बना दिया. अभी तक आन्दोलन नगरों तक ही सीमित था, परन्तु अब वह ग्रामीण जनता तक पहुंच गया…. महात्मा गांधीजी के व्यक्तित्व ने भारतीय ग्रामों में जागृति उत्पन्न कर दी थी.
आन्दोलन ने लोगों में निर्भीकता व उत्साह का संचार किया. इस दौरान कांग्रेस अनेकों रचनात्मक कार्य करवाने में भी सफल रही. इस प्रकार जनता को अपनी वास्तविक शक्ति का आभास हो गया. आगे चलकर ऐसे ही तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकी.
खिलाफत आन्दोलन में बाधा(Suspension of the Khilafat Movement)
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