अरबों की सिंध विजय और उसके प्रभाव–डा. स्टैनले लेनपूल के अनुसार “यह एक ऐसी विजय थी जिसका कोई परिणाम नहीं निकला.” डा. ए. एल. श्रीवास्तव का विचार है कि “यह समझना गलत है कि अरब विजय ने भारतवासियों को प्रभावित ही नहीं किया, उसने हमारे देश में इस्लाम का बीज बोया.’ अरबवासी ही सर्वप्रथम इस्लाम के प्रचार के लिए भारत आये थे. सम्भवतः बाद में महमूद गजनवी को उन्हीं से इस्लाम प्रसार की प्रेरणा मिली थी.
अरबों ने 150 वर्ष सिन्ध तथा मुल्तान पर किसी न किसी प्रकार अपना अधिकार रखा. उन्होंने यहाँ के निवासियों से (सम्भवतः जो मुसलमान बन गये थे) वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए तथा अब और भारतीय रक्त को मिश्रित कर दिया. भारतीय तथा अब एक-दूसरे को संस्कृति के सम्पर्क में आये परन्तु इस बात के प्रमाण नहीं मिलते कि उनको संस्कृतियों ने एक-दूसरे के सामाजिक जीवन को बहुत प्रभावित किया हो.
उन्होंने भारतीय किसानों से भूमि छीन कर अरब वासियों को दे दी. सिन्ध मुस्लिम व्यापारियों का केन्द्र बन गया. चाचनामा के अनुसार कई मन सोना भारत से लूटा गया. अनेक मन्दिरों, इमारतों व पूजा-स्थलों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण करवाया गया.
अरबों के अरबों की सिंध विजय से लेकर मध्य युग के अन्त तक प्रायः बराबर सिन्ध पर मुसलमानों का प्रभुत्व रहा, चाहे सुदृढ़ राजनीतिक सत्ता उनके पास थोड़े हो समय रही.
अब व्यापारी भारत के विभिन्न भागों में गए और उन्होंने तुर्को को भारत को आन्तरिक दुर्बलता, राष्ट्रीयता की भावना का अभाव, शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार का अभाव एवं भारतीयों की पारस्परिक घृणा जैसो राजनीतिक कमजोरियों की जानकारी देकर भारत पर आक्रमण हेतु प्रोत्साहित किया.
अरबों को सिन्ध पर विजय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण, स्थायी एवं प्रभावशाली परिणाम सांस्कृतिक ही थे. हैदेत (Hayell) के अनुसार “इस्लाम के यौवन-काल में भारतवर्ष उसका गुरु रस, जिसने उसे अनेक विद्याएं सिखाई और साहित्य, कला इत्यादि को विशेष रूप दिया.” इस विजय के बाद अनेक अरब सन्त, विद्वान तथा फकीर आदि ने भारतीयों के निकट सम्पर्क में आकर दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, गणित, औषधि-विज्ञान आदि में बहुत कुछ सीखा.
हिंदसा संख्या का अरबी नामों का मूल स्थान भारत ही है. यह कार्य विशेष रूप से अब्बासी खलीफा अनमंसूर (753-74 ई.) तथा हारुल (786-809 ई.) के कालों में हुआ. भारतीय विद्वान बहला, मनका, आरीकल, बाजीगर, राजा, अनकू, सिंद्धबाद आदि बगदाद में अनुवाद विभाग में नियुक्त किए गए थे और उन्होंने ज्योतिष, चिकित्सा, रसायन, दर्शन आदि से सम्बन्धित अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद किया.
भारतीय चिकित्सक भंखर (माणिक्य) ने खलीफा हारून रशीद को उसकी बीमारी से ठीक किया तथा उसे बगदाद में शाही अस्पताल का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया गया. खलीफा हारुल रशीद ने ही ‘चरक’, सुश्रुत, वाग्भट्ट तथा माधक्कर नामक भारतीय विद्वानों की औषधि-विज्ञान सम्बन्धी पुस्तकों का अरबी में अनुवाद करवाया.
अरबों ने गणित के क्षेत्र में भारतीयों से ही अंक पद्धति, दशमलव पद्धति और शून्य का प्रयोग सीखा. अरब में शून्य का प्रयोग सर्वप्रथम 873 ई. में हुआ. अरबों ने | भारतीयों से शतरंज का खेल सीखा. भारतीय दर्शन’ की रहस्यवादी विचारधारा का प्रभाव सूफी मुसलमानों पर स्पष्ट नजर आता है.
अरबों की सिंध विजय और उसके प्रभाव-मध्यकालीन भारत (MEDIEVAL INDIA)
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