अरबों द्वारा सिंध की विजय मध्यकालीन भारत (MEDIEVAL INDIA)–चीनी यात्री ह्वेनसाँग के समय सिन्ध में शूद्र शासक का राज्य था. शूद्र वंश का अन्तिम शासक साहसी (Sahasi) था. उसके उपरान्त उसुके ब्राह्मण मन्त्री छाछा (Chhachha) ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी विधवा रानी से विवाह कर लिया. छाछा के पश्चात् क्रमशः चन्द्र व दाहिर गद्दी पर बैठे. इसी राजा दाहिर ने सिंध में अरबों का सामना किया.
अरबों ने 637 ई. में फारस (ईरान) को जीत लिया तो उनका ध्यान भारत की ओर गया. भारत की अपार सम्पत्ति, ईरान से इसकी निकटता, इस्लाम प्रसार का अरबों में जोश तथा भारत की दयनीय राजनीतिक एवम् दोषपूर्ण सामाजिक अवस्था, विदेशी व्यापार पर नियन्त्रण की लालसा आदि ने उन्हें ऐसा करने की प्रोत्साहित किया.
खलीफा उमर साहिब के काल (634-44 ई.) में अरबों ने थाना (बम्बई के समीप) भड़ौच और देवले (सिन्ध) को जीतने का प्रयास किया परन्तु उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली. अरबों ने दूसरा प्रयास 663 ई. में किकान (सिन्ध) को जीतने का किया. 663 ई. से 683 ई. तक के 20 वर्षों में उन्होंने किकान पर 6 बार आक्रमण किये. लेकिन मकरान के अतिरिक्त उन्हें कोई प्रदेश नहीं मिला.
708 ई. में श्रीलंका से ईराक जा रहे एक जहाज को देवल (सिन्ध) के बन्दरगाह के निकट कुछ लुटेरों ने लूट लिया तथा अनेक अरबों को कैद कर लिया. ईराक के गवर्नर हजरत ने सिन्ध के राजा को पत्र लिखा कि “वह लूट का माल वापस करे तथा लुटेरों को उचित दण्ड भी दे.” किन्तु सिन्ध के राजा ने उपेक्षापूर्ण उत्तर लिखा कि ‘‘डाकू मेरे नियन्त्रण से बाहर हैं.” इस उत्तर से चिढ़कर खलीफा तथा अरबों के सम्मान की रक्षा के लिए हज्जाज ने क्रमशः तीन सेनापति भेजे. प्रथम दो को दाहिर ने मार भगाया. तीसरे सेनापति मुहम्मद-बिन-कासिम (हज्जाज का भतीजा व दामाद) को 711 ई. में भेजा गया.
मुहम्मद-बिन-कासिम सिराज व मकरान होता हुआ 712 ई. की बसंत ऋतु में देवल (सिन्ध) के बन्दरगाह पर पहुंचा. राजा दाहिर के भतीजे ने उसका सामना किया किन्तु पराजित हुआ. 3 दिन तक देवल में जन-संहार होता रहा. विजेता को बहुत धन-राशि तथा बुद्ध की शरण में रहने वाली 700 कन्याएं आदि लूट में प्राप्त हुई. यहाँ के मन्दिरों को तोड़ा गया तथा उनके स्थान पर मस्जिदें बनाई गईं. लोगों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया. इसके पश्चात् नीरुन (Nerun) नगर (जो बौद्ध भिक्षुओं के हाथ में था) पर अधिकार कर लिया गया.
सेहवान (Sehwan) में दाहिर के चचेरे भाई बजहरा (Bajhra) ने थोड़े से विरोध के पश्चात् उसकी अधीनता स्वीकार कर ली. उसके पश्चात् अरबों ने जाटों की राजधानी शीसम पर अधिकार कर लिया. इसके पश्चात् मुहम्म्द-बिन-कासिम ने एक देशद्रोही सरदार मोकाह की सहायता से सिन्धु नदी को पार किया और राजा दाहिर पर आक्रमण कर दिया. रावोर के किले के समीप दाहिर ने डटकर उसका सामना किया किन्तु वीरगति को प्राप्त हुआ. दाहिर की विधवा रानाबाई ने 1500 सैनिकों के साथ बड़ी वीरता से रावोर के किले की रक्षा की, किन्तु असफल होने पर उसने जौहर की प्रथा द्वारा अपने सम्मान की रक्षा की.
इसके पश्चात् मुहम्मद-बिन-कासिम ने द्राह्मणाबाद पर आक्रमण किया. दाहिर का छोटा बेटा जयसिंह पराजित होकर चित्तौड़ भाग गया. इसके पश्चात् दाहिर के एक अन्य पुत्र को पराजित करके मुहम्मद-बिन-कासिम ने अरोर (Aror) पर अधिकार किया और इस प्रकार सिन्ध की विजय पूर्ण हुई.
इसके पश्चात् मुल्तान को भी विजय कर लिया गया. कहा जाता है कि एक देशद्रोही एवं भेदिए ने कासिम को मुल्तान के किले में उस जलधारा का पता दे दिया, जहाँ से दुर्ग के लोगों को जल प्राप्त होता था. कासिम ने तुरन्त पानी को रोक दिया और किले के अन्दर के सैनिकों ने तुरन्त आत्म-समर्पण कर दिया. मुल्तान में कासिम को अपार सम्पत्ति मिली. 715 ई. में मुहम्मद-बिन-कासिम की खलीफा सुलेमान ने (किसी बात पर रुष्ठ होकर) हत्या करवा दी.
मुहम्मद-बिन-कासिम की मृत्यु से सिन्ध की विजय अधूरी रह गई. 750 ई. में दमिश्क में एक क्रांति हुई और 761 ई. में उमैय्यदों के स्थान पर अबासिद खलीफा बने. 781 ई. लगभग सिन्ध पर खलीफा का अधिकार नाममात्र भी न रहा. अरब सरदारों ने दो स्वतंत्र राज्य–एक अरोर, मनसूराह अथवा सिन्ध में सिन्धु नदी के तट पर और दूसरा मुल्तान में स्थापित किया .
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