गयासुद्दीन बलबन (1266-86 ई.) Ghiyasuddin Balban in Hindi–नासिरुद्दीन के साथ ही इल्तुतमिश के ‘शम्शी वंश’ का अन्त हुआ व ‘बलवनी वंश‘ का सल्तनत पर अधिकार हो गया. बलबन सल्तनत काल का सबसे योग्य, सक्षम और प्रभावशाली शासक हुआ.
गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन बलबन था. उसे ख्वाजा जमालुद्दीन वसरी नामक व्यक्ति खरीद कर 1232-33 ई. में दिल्ली लाया था. इल्तुतमिश ने ग्वालियर को जीतने के उपरान्त बहाउद्दीन को खरीद लिया था.
अपनी योग्यता के आधार पर ही वह इल्तुतमिश और रजिया के समय में ‘अमीर-ए-आखर’ तथा मसूद शाह के समय में ‘अमीर-ए-हाजिब’ के रूप में राज्य की सम्पूर्ण शक्ति का केन्द्र बना. 1266 ई. में बह गयासुद्दीन बलबन के नाम से सुल्तान बना.
गयासुद्दीन बलबन (Ghiyasuddin Balban) ने इल्तुतमिश द्वारा स्थापित ‘चालीस’ सरदारों के दल को समाप्त किया तथा बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खाँ का दमन किया. तुगरिल खाँ को पकड़ने में मलिक मकद्दीर ने बहुत साहसिक व कठिन कार्य किया अतः बलबन ने उसे ‘तुगरिलकुश’ (तुगरिल की हत्या करने वाला) की उपाधि प्रदान की.
पश्चिमोत्तर में मंगोलों से निपटने के लिए बनबन ने इमादुलमुल्क को ‘दीवन-ए-अर्ज‘ नियुक्त किया तथा सीमांत प्रदेशों में कई किलों का निर्माण करवाया. उसने वृद्ध व अयोग्य सैनिकों को पेंशन देकर मुक्त करने की नीति चलाई और अपने सैनिकों को नकद वेतन दिया.
तुर्की प्रभाव को कम करने के लिए उसने सिजदा (घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाना), पाबोश (सुल्तान के पाँव चुमना) तथा नवरोज उत्सव की फारसी परम्पराओं का प्रचलन अनिवार्य कर दिया. विद्रोहियों के प्रति उसने ‘लौह एवं रक्त’ की नीति का अनुसरण किया. गयासुद्दीनबलबन ने एक अत्यन्त कुशल जासूस व्यवस्था का संगठन किया.
राजपद का सिद्धान्त – बलबन राजपद के दैवी सिद्धान्त को मानता था. वह राजा को पृथ्वी पर ‘निमायते खुदाई’ (ईश्वर का प्रतिबिम्ब) मानता था. उसने ‘जिल्ली इल्लाह’ (ईश्वर का प्रतिबिम्ब) की उपाधि धारण की.
उसने ईश्वर, शासक तथा जनता के बीच त्रिपक्षीय सम्बन्धों को राजपद का आधार बनाना चाहा. उसने कुरान के नियमों के आधार पर शासन चलाया तथा खलीफा के महत्व को स्वीकार करते हुए अपने द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर खलीफा के नाम को अंकित कराया तथा उसके नाम से खुतबे भी पढ़े.
1286 ई. में मंगोलों ने बलबन के पुत्र मुहम्मद की हत्या कर दी. इस सदमें को सुल्तान सहन न कर सका. जब उसने अपना अन्त समय निकट पाया तो उसने अपने पुत्र बुगरा खाँ को निमन्त्रण भेजा.
मगर अपने पिता के कठोर स्वभाव से डरकर बुगरा खाँ नहीं आया. फलस्वरूप गयासुद्दीनबलबन ने मुहम्मद के पुत्र खुसरों को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और कुछ ही समय बाद 80 वर्ष की अवस्था में 1286 ई. में ही बलबन की मृत्यु हो गई.
गयासुद्दीन बलबन (Ghiyasuddin Balban) शरीयत का कट्टर समर्थक था तथा वह दिन में 5 बार नमाज पढ़ता था. सुल्तान बनने के बाद उसने शराब व भोग-विलास पूर्णतः त्याग दिए. उसके राजदरबार में अनेक कलाकार एवं विद्धान थे.
फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरों व अमीर हसन तथा उनके अतिरिक्त ज्योतिषी एवं चिकित्सक मौलाना हमीमुद्दीन मुतरिज, प्रसिद्ध मौलाना बदरुद्दीन एवं मौलाना हिसानुद्दीन आदि बलबन के दरबार में थे.
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