तुर्को का आगमन (Advent of Turks)-नवीं शताब्दी के अन्त में ट्रांस-ऑक्सियाना, खुरासान तथा ईरान के कुछ भागों पर सामानी शासकों का राज्य था, जो मूलतः ईरानी थे. इन्हें अपनी उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर निरन्तर तुर्की से संघर्ष करना पड़ता था.
तुर्क अधिकतर प्रकृति की शक्तियों की पूजा करते थे अतः मुसलमानों की दृष्टि में काफिर थे. समय के साथ-साथ अनेक तुर्क इस्लाम के अनुयायी, प्रचारक और रक्षक बन गए.
सामानी साम्राज्य के एक तुर्क दास अधिकारी अलप्तगीन गज़नवी (खुरासान का राज्यपाल) ने मध्य एशिया के कुछ भागों पर अधिकार करके गज़नवी वंश (गजनी वंश) की नींव रखी.
अलप्तगीन के बाद उसका पुत्र अबू इस्हाक और फिर दी दास बिल्कतगीन और पिराई उसके उत्तराधिकारी हुए. पिराई बड़ा अत्याचारी था और उसे 977 ई. में अलप्तगीन के एक अन्य दास सुबुक्तगीन गज़नवी को स्थान देना पड़ा.
सुबुक्तगीन गज़नवी (977-999 ई.) ने तुरन्त अपना ध्यान उत्तर भारत की ओर दिया. 986 ई. में उसने जयपाल के विरुद्ध एक विशाल तुर्क सेना भेजी तथा कहा जाता है कि उसने अपनी मृत्यु से पूर्व सम्पूर्ण बल्ख, खुरासान तथा अफगानिस्तान के अलावा भारत की पश्चिमोत्तर सीमा को भी अपने अधिकार में ले लिया.
उसके पुत्र महमूद गजनी (गज़नवी) (999-1030 ई.) के राज्यारोहण के साथ ही इस्लाम के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ. उसने सीस्तान के खलङ्ग बिन अहमद को पराजित करके सुल्तान की पदवी धारण की.
कई विद्वान उसे अजाम का प्रथम सुल्तान मानते हैं. उसके सिक्कों में उसे केवल अमीर महमूद ही कहा गया है. बारथोल्ड के अनुसार “उसके समय में गजनी (गज़नवी) साम्राज्य का सर्वोत्तम रूप प्रकट हुआ.”
उसने सर्वप्रथम खलीफा कादिर से मंसूर प्राप्त किया तथा अपने राज्य को कानूनन मान्यता तथा प्रतिष्ठा दिलवाई. भारत में आगमन से पूर्व तुर्क न केवल इस्लाम के अनुयायी बन गए थे बल्कि फारसी भी बन गए थे. महमूद गजनी (गज़नवी) ने भारत पर 1000 ई. से 1026 ई. तक सत्रह बार आक्रमण किया.
तुर्को का आगमन (Advent of Turks) मध्यकालीन भारत (MEDIEVAL INDIA)
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