हंटर कमेटी (Hunter Committee in Hindi)–जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए सम्पूर्ण देश में चल रहे जबरदस्त विरोध को देखते हुए सरकार ने मजबूरन 1 अक्टूबर, 1919 को लार्ड हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की.
इस आयोग में 5 अंग्रेज सदस्य लार्ड हंटर, मि. जस्टिन रैकिन, मि. राइस, मेजर जनरल सर जार्ज बैरो एवं सर टामस स्मिथ तथा तीन भारतीय सदस्य सर चिमन लाल सीतलवाड़, साहबजादा सुल्तान अहमद और जगत नारायण थे.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस नृशंस घटना की जांच के लिए मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में एक आयोग नियुक्त किया जिसके अन्य सदस्य थे पंडित मोतीलाल नेहरू और महात्मा गांधीजी. हंटर कमेटी(Hunter Committee in Hindi) ने मार्च, 1920 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.
इसके पहले ही सरकार ने दोषी लोगों को बचाने के लिए ‘इण्डेम्निटी बिल’ पास कर लिया था. कमेटी ने सम्पूर्ण प्रकरण पर लीपापोती का प्रयास किया. समिति ने पंजाब के गवर्नर को निर्दोष घोषित करते हुए जनरल डायर के बारे में कहा कि डायर ने कर्तव्य को गलत समझते हुए जरूरत से अधिक बल प्रयोग किया, पर जो कुछ किया निष्ठा से किया.
डायर को उसके अपराध के लिए नौकरी से हटने का दण्ड दिया गया. ब्रिटिश अखबारों ने उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक’ लार्ड सभा ने उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का शेर’ तथा सरकार ने उसकी सेवाओं के लिए उसे ‘मान की तलवार’ की उपाधि प्रदान की.
कांग्रेस द्वारा नियुक्त जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में अधिकारियों की कटु आलोचना की तथा मांग की कि दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही तथा मृतकों के आश्रितों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाए. परन्तु इस सम्बन्ध में सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. अत: महात्मा गांधीजी ने असहयोग आंदोलन के लिए आधार नीति बनाई.
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