भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े नेता
(Leaders Associated with India’s Struggle for Freedom)
Gopalkrishna Gokhale in Hindi
Gopalkrishna Gokhale 1866-1915 गोपालकृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 को कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के एक ब्राह्मण वंश में हुआ. 1884 में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे रानाडे द्वारा स्थापित दक्कन शिक्षा सभा (Deccan Education Society) में सम्मिलित हो गए. उन्होंने 1889 से अपना राजनीतिक जीवन आरम्भ किया. 1902 में वे बम्बई संविधान परिषद् तथा बाद में Imperial Legislative Council के लिए चुने गए.
लम्बे समय तक कांग्रेस के संयुक्त सचिव के पद पर कार्य करने के बाद उन्होंने कांग्रेस के 1905 के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता की. 1909 के मिन्टो मोर्ले सुधारों को बनाने में भी इनकी भूमिका अग्रणी थी. 1910 में वे पुनः साम्राज्यीय विधान परिषद् के लिए चुने गये. 1912-15 तक उन्होंने भारतीय लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में काम किया. भारत में राष्ट्रीय प्रचारक तैयार करने के उद्देश्य से गोखले ने 1905 में “भारत सेवक मण्डल’ की स्थापना की. उन्होंने नमक कर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में भारतीयों को अधिक स्थान देने के मुद्दे को कांउन्सिल में उठाया.
गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ एक सच्चे राष्ट्र भक्त भी थे. उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह कड़वी से कड़वी बात भी मीठे से मीठे शब्दों में व्यक्त कर सकते थे. वे स्वभाव से मृदु और न्यायप्रियता में विश्वास करते थे. वे साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास रखते थे. गोखले के इन्हीं गुणों के कारण गांधीजी इनके राजनीतिक शिष्य बन गए. गोखले ने प्रायः शासक और शासित वर्ग के बीच एक मध्यस्थ की कठिन भूमिका निभाई. गरम दल वालों ने उनकी संयम की नीति की बड़ी आलोचना की और उन्हें शिथिल-उदारवादी (faint-hearted Moderate) की संज्ञा दी. 1915 में इनकी मृत्यु हो गई.
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