जलियाँवाला बाग हत्याकांड 1919 (Jallianwala Bagh Tragedy 1919)–सत्याग्रह का सम्पूर्ण देश में जबरदस्त प्रभाव पड़ा. देश भर में जन आंदोलन चल रहा था. ब्रिटिश सरकार इस जन आंदोलन को कुचल देने पर आमादा थी.
बंबई, अहमदाबाद, कलकत्ता, दिल्ली और दूसरे नगरों में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर बार-बार लाठियों और गोलियों का प्रहार हुआ तथा उन पर अनेकों जुल्म ढाये गये.
इस समय महात्मा गांधीजी और कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगे होने के कारण वहां की जनता में आक्रोश व्याप्त था. यह आक्रोश, उस समय अधिक बढ़ गया जब पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉ. सतपाल एवं डॉ. सैफुद्दीन किचलू को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के गिरफ्तार कर लिया.
जनता ने एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला. पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ने से रोका और रोकने में सफल न होने पाने पर आगे बढ़ रही भीड़ पर गोली चला दी. जिसके परिणाम स्वरूप दो लोग मारे गये. जुलूस ने उग्र रूप धारण कर लिया और कई इमारतों को जला दिया तथा साथ ही करीब 5 श्वेतों को जान से मार दिया.
अमृतसर की इस घटना से बौखला कर सरकार ने 10 अप्रैल, 1919 को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल आर डायर को सौंप दिया. इसने 12 अप्रैल को कुछ गिरफ्तारियां करवाई. अगले दिन 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी के दिन शाम को करीब साढ़े 4 बजे अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें करीब 20,000 लोगों ने हिस्सेदारी की. उसी दिन साढ़े नौ बजे सभा को अवैधानिक घोषित कर दिया गया था.
सभा में महात्मा गांधीजी,डॉ. सैफुद्दीन किचलू एवं डॉ. सतपाल की रिहाई एवं रोलट एक्ट के विरोध में भाषणबाजी की जा रही थी. ऐसे में डायर ने फौज द्वारा बाग को घेर लिया और तीन मिनट के अन्दर भीड़ को हटने का आदेश देकर स्वयं एक सैनिक दस्ते के साथ बाग के निकास-द्वारा पर खड़ा हो गया. उसके बाद जल्दी उसने फौज को भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया.
वे तब तक गोली बरसाते रहे जब तक कि गोलियां खत्म न हो गई. हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा तथा अनेकों लोग घायल हो गये. जलियाँवाला बाग हत्याकांड(Jallianwala Bagh Tragedy) के बाद सम्पूर्ण पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया और लोगों पर तरह-तरह के जुल्म ढाये गए.
पंजाब की घटनाओं से सम्पूर्ण देश में भय का वातावरण उत्पन्न हो गया. विदेशी शासन का वास्तविक स्वरूप तथा उसकी नीयत लोगों के सामने उजागर हो गई. महान कवि और मानवतावादी रचनाकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस घटना (जलियाँवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh Tragedy) के विरोध में अपनी ‘नाइट‘ की उपाधि लौटा दी. उन्होनें घोषणा की कि-
“वह समय आ गया है जब सम्मान के प्रतीक अपमान अपने बेमेल सन्दर्भ में हमारी शर्म को उजागर करते हैं और जहां तक मेरा सवाल है, मैं सभी विशिष्ट उपाधियों से रहित होकर अपने उन देशवासियों के साथ खड़ा होना चाहता हैं जो अपनी तथाकथित क्षुद्रता के कारण मानव जीवन के अयोग्य अपमान को सहने के लिए बाध्य हो सकते हैं.”
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