Tuesday, December 4, 2018

मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान (RISE OF MYSORE: HYDER ALI & TIPU SULTAN)

मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान (RISE OF MYSORE: HYDER ALI AND TIPU SULTAN) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान

  • प्रारंभ में मैसूर के सरदार विजयनगर साम्राज्य के अधीन थे.
  • 1565 के तालीकोटा के ऐतिहासिक युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य का ह्रास हो गया.
  • 1612 में विजयनगर के राजा बैंकट द्वितीय ने राजा वडियार (‘राजा’ शब्द उसकी उपाधि नहीं वरन् उसके नाम का भाग था) को मैसूर की सत्ता सौंप दी.
  • 17वीं शताब्दी में वडियार वंश ने अपने राज्य का काफी विस्तार किया.

मैसूर का उदयः हैदर अली और टीपू सुल्तान (RISE OF MYSORE: HYDER ALI AND TIPU SULTAN) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

  • 1732 में राजा वडियार चिक कृष्णराज के काल में मैसूर में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया आरंभ हुई.
  • 1731-1734 के मध्य देवराज (मुख्य सेनापति) और नजराज (राजस्व और वित्त का अधीक्षक) नामक दो भाइयों ने राज्य की समस्त शक्ति अपने हाथ में केन्द्रित कर ली.
  • दक्षिण में निजाम, मराठों, अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य हुए संघर्ष से मैसूर धी अप्रभावित न रह सका.
  • 1753, 1754, 1757 और 1759 में मराठों ने मैसूर पर आक्रमण किए.
  • देबराज और नजज इन आक्रमणकारियों का सामना करने में असफल रहे.
  • इस स्थिति में हैदर अली (जन्म  1727) सामने आया.
  • उसने अपना जीवन एक घुड़सवार के रूप में आरंभ किया था किन्तु 1761 में वह मैसूर का वास्तविक शासक बन बैठा.
  • सत्ता प्राप्ति के साथ ही उसने एक शक्तिशाली सेना के संगठन हेतु प्रयास आरंभ कर दिए.
  • उसने फ्रांसीसियों की सहायता से डिंडीगुल में एक शस्त्रागार स्थापित किया.
  • 1763 तक उसने होजकोट, दोड़नेल्लापुर और बेदनूर आदि स्थानों तथा दक्षिण के पालिगारों (जमींदारों) पर अधिकार कर लिया.
  • पानीपत के तीसरे युद्ध की पराजय के बाद पेशवा माधवराव के नेतृत्व में मराठा पुनः शक्तिशाली हो गये.
  • 1764, 1766 और 1771 में मैसूर पर आक्रमण कर उन्होंने हैदर अली को हराया और उसे धन और कुछ प्रदेश देने के लिए बाध्य किया.
  • किन्तु 1772 में माधवराव की मृत्यु के बाद पैदा हुई अव्यवस्था की स्थिति का लाभ उठाकर हैदर अली ने 1774 से 1776 के मध्य न केवल अपने खोए हुए प्रदेशों को पुन: प्राप्त किया बल्कि कृष्णा-तुंगभद्रा घाटी के प्रमुख प्रदेश, बेल्लारी, कुड्डपा, गूरी और करनूल के प्रदेश भी प्राप्त किए.

पहला आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1767-69 (First Anglo-Mysore War, 1767-69)

  • 1766 में अंग्रेजों ने हैदराबाद के निजाम अली से एक संधि की.
  • इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने निजाम को हैदरअली के विरुद्ध सहायता देने का वचन दिया.
  • शीघ्र ही हैदर अली के विरुद्ध निजाम, मराठों तथा कर्नाटक के नवाब का एक संयुक्त मोर्चा बन गया.
  • हैदर अली ने इस संकट का बड़ी ही चतुराई से सामना किया.
  • उसने मराठों को धन देकर तथा निजाम को कुछ प्रदेश देकर अपनी ओर मिला लिया.
  • तत्पश्चात् उसने कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया.
  • यह युद्ध अनिर्णायक रहा.
  • कुछ ही समय बाद हैदर अली ने मद्रास को घेर कर अंग्रेजों को 4 अप्रैल, 1779 को तिरस्कार पूर्ण संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया.
  • इस संधि के द्वारा अंग्रेजों ने हैदर अली को सहायता का वचन दिया.

दुसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1780-84 (Second Anglo-Mysore War, 1780-84)

  • 1771 में मराठा आक्रमण के समय हैदर अली के समक्ष यह स्पष्ट हो गया कि 1769 की आंग्ल-मैसूर संधि एक संधि न होकर केवल युद्ध विराम का एक समझौता मात्र थी.
  • अतएव अंग्रेजों से निराश होकर हैदर अली ने फ्रांसीसी सहायता प्राप्त करने के सफल प्रयल किए.
  • उसने कम्पनी के विरुद्ध निज़ाम तथा मराठों से मिलकर एक संयुक्त मोर्चा तैयार किया.
  • जुलाई, 1780 में हैदर अली ने अंग्रेजी कर्नल बेली को हराकर कर्नाटक की राजधानी अरकाट पर अधिकार कर लिया.
  • कुछ ही समय बाद अंग्रेजों ने निजाम तथा मराठों को अपने साथ मिलाकर नवम्बर, 1781 में पोर्टो नोवा के स्थान पर हैदर अली को परास्त कर दिया.
  • 1782 में हैदर अली ने पुनः कर्नल ब्रेथवेट के अधीन अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया.
  • किन्तु 7 दिसम्बर, 1782 को हैदर अली की मृत्यु हो गई.
  • उसके बाद युद्ध का संचालन उसके पुत्र टीपू सुल्तान के हाथ में आ गया.
  • यह युद्ध भी अनिर्णायक रहा. मार्च, 1784 में मंगलौर की संधि के द्वारा दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रान्त वापस कर दिए.

तीसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1790-92 (Third Anglo-Mysore War, 1790-92)

  • 1790 में लार्ड कॉर्नवालिस ने निजाम तथा मराठों से मिलकर टीपू सुल्तान के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया.
  • टीपू सुल्तान ने इस मोर्चे के विरुद्ध तुर्की से सहायता प्राप्त करने का प्रयल किया.
  • अप्रैल 1790 में टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर पर आक्रमण कर दिया.
  • इस आक्रमण का मुख्य कारण टीपू सुल्तान के क्षेत्राधीन कोचीन रियासत पर त्रावणकोर के महाराजा द्वारा अपना अधिकार जताना था.
  • कॉर्नवालिस ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए त्रावणकोर के महाराजा का पक्ष लिया और टीपू सुल्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी.
  • शीघ्र ही कॉर्नवालिस वैल्लौर तथा अम्बूर से होता हुआ बंगलोर पर मार्च 1791 में अधिकार कर श्रीरंगपट्टम तक पहुंच गया.
  • टीपू ने कॉर्नवालिस का दृढ़ता से सामना किया किन्तु शीघ्र ही अपने आप को असमर्थ पाकर उसने मार्च, 1792 में श्रीरंगपट्टम की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.
  • इस संधि के अनुसार उसे अपने राज्य का लगभग आधा भाग अंग्रेजों और उनके मित्रों को देना पड़ा.

चौथा आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1799 (Fourth Anglo-Mysore War, 1799)

  • 1798 में लार्ड वैल्जली का आगमन हुआ.
  • लार्ड वेल्जली एक साम्राज्यवादी गवर्नर-जनरल था.
  • वह टीपू सुल्तान के विरुद्ध आर-पार की लड़ाई लड़ना चाहता था.
  • उसने टीपू के समक्ष सहायक संधि स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा.
  • टीपू के द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकार किए जाने पर फरवरी, 1799 में टीपू और अंग्रेजों के मध्य युद्ध छिड़ गया.
  • 4 मई, 1794 को श्रीरंगपट्टम का दुर्ग जीत लिया गया.
  • टीपू सुल्तान ने लड़ते-लड़ते वीर गति प्राप्त की.
  • मैसूर की सत्ता मैसूर के प्राचीन हिन्दू राजवंश को सौंप दी गई.
  • मैसूर पर सहायक संधि थोप दी गई.

टीपू सुल्तान की शासन व्यवस्था (Tipu’s Administration)

  • टीपू सुल्तान का प्रशासन केन्द्रोन्मुखी प्रशासन था.
  • सुल्तान ही समस्त सैनिक, असैनिक और राजनीतिक शक्ति का केन्द्र था.
  • सुल्तान स्वयं ही अफ्ना विदेश मंत्री, मुख्य सेनापति और न्यायाधीश था.

केन्द्रीय प्रशासन (Cerntral Attrmirnistration)

  • टीपू के प्रशासन में प्रधानमंत्री या वजीर का पद नहीं था.
  • केन्द्रीय प्रशासन के रूप में सात विभाग या बोर्ड थे.
  • ये विभाग मीर आसिफ के अधीन होते थे.
  • मीर आसिफ सुल्तान के प्रति उत्तरदायी होता था.
  • ये सात विभाग थे–
  1. राजस्व तथा वित्त (भीर आसिफ कचहरी के अधीन),
  2. सेना विभाग (मीरां आसिफ कचहरी के अधीन),
  3. जुमरा विभाग (एक अन्य मीर मीरा कचहरी के अधीन),
  4. तोपखाना तथा दुर्ग रक्षा विभाग (मीर सदर कचहरी के अधीन),
  5. वाणिज्य विभाग (मलिक-उत्तज्जाऱ के अधीन),
  6. नाविक विभाग (मीर याम कचहरी के अधीन),
  7. कोष और टंकन विभाग (मीर खजाना कचहरी के अधीन).
  • इन सात विभागों के अतिरिक्त तीन अन्य छोटे विभाग भी थे–
  1. डाक तथा गुप्तचर विभाग,
  2. लोक निर्माण विभाग,
  3. पशु विभाग.

प्रान्तीय तथा स्थानीय प्रशासन (Provincial and Local Administration)

  • टीपू सुल्तान ने 1784 के बाद अपने साम्राज्य को सात प्रान्तों में बांट दिया.
  • आगे चलकर इन प्रान्तों की संख्या 17 हो गई.
  • प्रान्तों में मुख्य अधिकारी आसिफ (असैनिक गवर्नर) और फौजदार (सैनिक गवर्नर) होते थे.
  • ये दोनों पदाधिकारी एक दूसरे पर नियंत्रण भी रखते थे.
  • प्रान्तों को जिलों और जिलों को गांवों में बांटा हुआ था.
  • पंचायतें स्थानीय प्रशासन का प्रबन्ध करती थी.

भूमि कर व्यवस्था (Land Revene System)

  • टीपू सुल्तान ने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर कृषक और सरकार के मध्य सीधा संपर्क कर स्थापित कर दिया.
  • उसने ईनाम में दी गई कर मुक्त भूमि पर पुनः अधिकार कर लिया.
  • पॉलिगारों (जमींदारों) के पैतृक अधिकार भी जब्त कर लिए गए.
  • टीपू ने “प्रेरणा संलग्न अनुरोध” (Inducement-Cum-Compulsion) की व्यवस्था द्वारा अधिकाधिक भूमि को जोत में लाने का प्रयास किया.
  • भूमिका प्रायः 1/3 से 1/2 भाग लिया जाता था.
  • यह कर भूमि की उर्वरता तथा सिंचाई की सुविधाओं पर निर्भर होता था.

वाणिज्य और व्यापार (Trade and Commerce)

  • टीपू सुल्तान ने राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास किया.
  • उसने अपने गुमाश्ते मस्कट आर्भुज, जेद्दाह और अदन आदि नारों में नियुक्त किए.
  • उसने पीगू (बर्मा) और चीन से भी व्यापार संबंध स्थापित करने का प्रयास किया.
  • उसने एक वाणिज्य बोर्ड की भी स्थापना की.
  • टीपू ने चन्दन, सुपारी, काली मिर्च, मोटी इलाइची, सोने तथा चांदी का व्यापार और हाथियों के निर्यात आदि पर सरकार का एकाधिकार स्थापित किया.
  • इसके अलावा उसने कुछ कारखानों की भी स्थापना की.
  • इन कारखानों में युद्ध के लिए गोला बारूद, कागज, चीनी, रेशमी कपड़ा और अन्य सजावटी वस्तुएं बनाई जाती धौ .

सैनिक प्रशासन (Military Administration)

  • टीपू ने एक शक्तिशाली सेना का गठन किया.
  • उपने अपनी पदाति सेना का गठन यूरोपीय नमूने पर किया.
  • उसने फांसीसी कमाण्डरों द्वारा अपनी सेना के प्रशिक्षण का प्रबन्ध किया.
  • टीपू के सैनिकों की संख्या उसको सैनिक आवश्यकताओं और साधनों के अनुसार बदलती रहती थी.
  • हैदर अली और टीपू सुल्तान दोनों ने नौसेना के महत्व को समझा था.
  • उन्होंने एक शक्तिशाली नौसेना का गठन भी किया.
  • किन्तु नौसेना ईस्ट इंडिया कम्पनी के स्तर को कभी प्राप्त न कर सकी.
  • 1796 में टीपू सुल्तान ने नौसेना के विकास हेतु नौसेना बोर्ड का गठन किया.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • 20 नवम्बर, 1750 को हैदर अली और उसकी पली फातिमा के घर बहुत प्रार्थना के बाद पुत्ररत्न के रूप में टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था.
  • टीपू को एक मुस्लिम राजकुमार के समान शिक्षा-दीक्षा प्राप्त हुई.
  • वह अरबी, फारसी, कन्नड़ और उर्दू का अच्छा ज्ञाता था.
  • उसने मैसूर में एक सुदृढ़ प्रशासन की नींव डाली.
  • 1787 में टोपू ने बादशाह की उपाधि ग्रहण की.
  • उसने अपने नाम के सिक्के चलवाए.
  • उसने वर्ष तथा माह के हिन्दू नामों के स्थान पर अरबी नामों का प्रयोग किया.
  • उसने नए पंचाग का प्रारंभ किया.
  • टीपू सुल्तान की आलोचना करते हुए विल्स ने कहा है कि – “हैदर अली का जन्म राज्य को बनाने के लिए हुआ तथा टीपू का जन्म राज्य को खोने के लिए.”

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