Thursday, September 20, 2018

SI यूनिट्स (SI-Units) मूल मात्रक (Fundamental Units) भौतिक विज्ञान (Physics)

SI यूनिट्स (SI-Units in Hindi) मूल मात्रक (Fundamental Units in Hindi)

SI यूनिट्स (SI-Units) मूल मात्रक (Fundamental Units) भौतिक विज्ञान (Physics)

 

(1) लम्बाई (Length)

  • SI मात्रकों में लंबाई का मात्रक है मीटर.
  • हम m को मीटर के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं मीटर को कई तरह से परिभाषित किया गया है
  1. मीटर को आरंभ में पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से भूमध्यरेखा के बीच की दूरी के एक करोड़ वे हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया था. पृथ्वी की परिक्रमा 40,000 Km या \( 4\times10^{7} \) है. उत्तरी ध्रुव से भूमध्य रेखा के बीच की दूरी परिक्रमा का ¼ भाग है, अर्थात् यह \(  10^{7} \)m है. इसका एक करोड़वौं हिस्सा मीटर है. लेकिन व्यवहार में यह कोई अधिक सुविधाजनक परिभाषा नहीं है.
  2. वर्ष 1889 में, फ्रांस में पेरिस के निकट सेवरिस में भार व माप के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो में किसी प्लैटिनियम-इरिडिभर की छड़ पर जिसे 273.16K के रिथर ताप तथा 1 bar दाब पर अंकित दो रेखाओं के बीच की दूरी के रूप में मानक भीटर को परिभाषित किया गया. अन्य सभी मीटरों को इस मीटर द्वारा अंशांकित करना पड़ता था. इससे बड़ी असुविधा होती है. यदि छड को स्थिर ताप पर परिरक्षित नहीं किया गया तो तापन या शीतलन के कारण इसकी लंबाई में परिवर्तन आ सकता है. भारत में मानक मीटर दिल्ली में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला में रखा गया है.
  3. वर्ष 1960 से मानक मीटर को प्रकाश की तरंग दैर्ध्य (Wavelength) के आधार पर परिभाषित किया जाता है .

“इसके अनुसार, मीटर को क्रिप्टोन-86 के परमाणुओं द्वारा उत्सर्जित संतरी- लाल रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य के आधार पर परिभाषित किया जाता है. 1 m  = क्रिप्टोन -86 के संतरी लाल रंग के प्रकाश की 1,650,763.73 तरंग दैर्ध्य .”

प्रमुख रूपान्तरण(Important Conversion)

  1. प्रकाश वर्ष (Light Year)-प्रकाश द्वारा निर्यात में 1 वर्ष में चली गई दूरी = \( 9.46\times10^{15} \) मीटर .
  2. खगोलीय मात्रक (Astronomical Unit)- पृथ्वी तथा सूर्य के बीच की औसत दूरी = \( 1.496\times10^{11} \) मीटर
  3. पार सेकंड (Par Sec.)—जो 1 सेकंड चाप का लम्बन प्रदर्शित करती है = \( 3\times10^{16} \) मीटर
  4. 1 माइक्रोन (Micron) = \( 10^{-6} \) मीटर
  5. 1 मिली माइक्रोन (Millimicron) = \( 10^{-9} \) मीटर
  6. 1 आगस्ट्राम मात्रक (Angstrom Unit) = \( 10^{-10} \) मीटर
  7. 1 फर्मी (Fermi) = \( 10^{-15} \) मीटर

(2) द्रव्यमान (Mass) | SI यूनिट्स (SI-Units)

  • द्रव्यमान, द्रव्य या पदार्थ का मूल गुण है.
  • यह किसी वरतु में विद्यमान द्रव्य की मात्रा को माप है.
  • यह समष्टि में वस्तु को ताप, दाब या उसके एथान पर निर्भर नहीं करता.
  • SI मात्रकों में द्रव्यमान का मानक किलोग्राम (Kg) है.
  • शुरू में किलोग्राम को 4°C पर एक घन डेसीमीटर (0.001 घन मीटर) पानी के द्रव्यमान के रूप में परिभाषित किया गया था.
  • इस ताप पर पानी का घनत्व अधिकतम होता है.
  • अब मानक किलोग्राम फ़्रांस में सेवरिस में मानकों के अंतर्राष्ट्रीय व्यूरो की किसी विशेष तिजोरी में रखे गए प्लेटिनियम-इरिडियम के सिलिंडर के द्वामान के बराबर है.
  • अनेक अन्य प्रयोगशालाओं में इस मानक की प्रतिलिपियों उपलब्ध हैं.
  • लेकिन परमाणुओं तथा अणुओं पर विचार करते समय हम अक्सर परमाण्विय भार व आण्विक भार शब्द का प्रयोग करते हैं.
  • परमाण्विय संहति मात्रक के लिए (amu) नाम का प्रयोग करते हैं.

“एक amu को कार्बन समस्थानिक (Isotopes)-12C\( _{6} \)​ के एक परमाणु के द्रव्यमान (जिसमें इलेक्ट्रॉनों का द्रव्यमान भी शामिल है) के ठीक ​\( \frac{1 }{12 } \)​ हिस्से के बराबर लिया जाता है.”

द्रव्यमान के कुछ और मात्रक निम्नलिखित है-

1 Tonne (t) = 1000 Kg = 10³ Kg

1 Gram (g) = \( \frac{1 }{1000 Kg } \)= \( 10^{-3} \)Kg

1 Milligram (mg) = \( \frac{1 }{1000000 Kg } \)= \( 10^{-6} \)Kg

(3) समय (Time) | SI यूनिट्स (SI-Units)

  • SI मात्रकों में समय का मात्रक सेकंड है.
  • समय के मापन का प्राकृतिक मानक पृथ्वी के घूर्णन से व्युत्पन्न किया जा सकता है.
  • वर्ष के औसत सौर दिवस को माध्यम सौर दिया कहते हैं.
  • इसमें एक सेकंड को एक माध्य सौर दिवस का 1/86400 वा हिस्सा माना जाता है.

लेकिन आज समय के बेहतर प्राकृतिक मानक हैं .

  • यह नया मात्रक सीजियम परमाणु में उत्पन्न आवर्त कंपनों पर आधारित है.
  • राष्ट्रीय मानकों में इस्तेमाल की जाने वाली घड़ी का यही आधारक है.
  • इसमें सेकंड की सीजियम-133 परमाणु की 9,192,631,770 कपनों के संगत माना जाता है .

(4) एम्पीयर (Ampere) | SI यूनिट्स (SI-Units)

  • यदि अंनत लम्बाई के और उपेक्षणीय अनुप्रस्थ प्रतिच्छेद (क्रास सेक्शन) वाले दो सीधे और समांतर चालक एक मीटर की दूरी पर रखे जाएं तो इन चालकों के बीच जो धारा प्रति मीटर \( 2\times10^{-7 } \) न्यूटन बल उत्पन्न करती है उसे ऐपीयर कहते हैं.

(5) केल्विन (Kelvin)

  • पानी के त्रिगुण विंदु के ऊष्मागतिकीय तापमान का 1/273.16 वाँ अंश केल्विन कहलाता है.

(6) कैन्डेला (Candela)

  • प्लेटिनम के हिमांक तापमान पर और 101.325 न्यूटन प्रति वर्ग मीटर दाब पर किसी कृष्णिका (ब्लैक बाडी) के 1/600000 वर्ग मीटर पृष्ठ पर लंब दिशा में मापी गई ज्योति तीव्रता को कैडेला कहते हैं.

(7) मोल (Mole)

  • किसी तरल पदार्थ की उस मात्रा को मोल कहते हैं जितनी कि 0.021 कि. ग्रा. कार्बन-12 के परमाणु में निहित मूल सत्ता के बराबर है.

व्युत्पन्न मात्रक (Derived Units)| SI यूनिट्स (SI-Units)

  • लंबाई, द्रव्यमान, समय, ताप, ज्योति तीव्रता, विद्युत धारा और पदार्थ की मात्रा के मानकों को मूल मात्रक कहते हैं.
  • अन्य सभी भौतिक राशियों को इन मूल मात्रकों के आधार पर व्यक्त किया जा सकता है.

रेडियन (Radian)

  • रेडियन वह समतलीय कोण है जिसका शीर्ष किसी वृत्त के केन्द्र पर हो तो वृत्त की परिधि में कोण द्वारा त्रिज्या के बराबर चाप कट जाता है.

स्टे रेडियन (Steradian)

  • स्टे रेडियन वह धन कोण है जिसका शीर्ष किसी गोलक के केन्द्र पर हो तो गोलक के पृष्ठ पर कोण द्वारा उस पृष्ठ के बराबर क्षेत्रफल कट जाता है, जितना कि गोलक की त्रिज्या पर बने हुए वर्ग का क्षेत्रफल है.

Some of the Common Derived Units

Quantity Definition of Quantity SI Unit
Area Length Square
Volume Length Cube
Density Mass per Unit Volume kg/m³
Speed Distance Travelled per Unit Time m/s
Acceleration Speed Changed per Unit Time m/s²
Force Mass Times Acceleration of Object kg.m/s²(= Newton)
Pressure Force per Unit Area Kg/cm.s² (Pascal)
Energy Force Times Distance Travelled Kg.m²/s² (Joule)

 

The post SI यूनिट्स (SI-Units) मूल मात्रक (Fundamental Units) भौतिक विज्ञान (Physics) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2pnDjsJ
via IFTTT

दस (10) की घातों का संक्षेपण (Abbreviations in Powers of 10) भौतिक विज्ञान (Physics)

दस (10) की घातों का संक्षेपण (Abbreviations in Powers of 10) भौतिक विज्ञान (Physics)-उदाहरण, के लिए हमें लंबाई के मापन पर विचार करते हैं. मीटर को लंबाई का कोई मात्रक मान सकते हैं. सभी मापनो के लिए हमेशा मीटर का इस्तेमाल करना ठीक है लेकिन कभी-कभी यह असुविधाजनक भी है.

दस (10) की घातों का संक्षेपण (Abbreviations in Powers of 10) भौतिक विज्ञान (Physics)

जैसे—

  • हम कहें कि दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी लगभग 14 00,000 मीटर है.
  • इसकी बजाए हम कह सकते हैं कि यह 1400 किलोमीटर है.
  • संक्षेप में 1000 मीटर को 1 किलोमीटर कहा जाता है .
  • किलो 1000 का संक्षेपण है.
  • इसी प्रकार एक किलो ग्राम का अर्थ है 1000 ग्राम .
  • किलो के अलावा 10 की घातों के लिए ऐसे कई पूर्व प्रत्यय हैं.

दस (10) की घातों के लिए पूर्व-प्रत्यय

दस की घात पूर्व प्रत्यय (Prefix) प्रतीक (Symbol)
\( 10^{12} \) टेरा T
\( 10^{9} \) जाइगा G
\( 10^{6} \) मेगा M
\( 10^{3} \) किलो K
\( 10^{2} \) हैक्टो h
\( 10^{1} \) डेका da
\( 10^{-1} \) डेसी dc
\( 10^{-2} \) सेंटी C
\( 10^{-3} \) मिली m
\( 10^{-6} \) माइक्रो u
\( 10^{-9} \) नैनो n
\( 10^{-12} \) पीको p
\( 10^{-15} \) फैन्टो f
\( 10^{-18} \) एटो a

 

The post दस (10) की घातों का संक्षेपण (Abbreviations in Powers of 10) भौतिक विज्ञान (Physics) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2xpX6MK
via IFTTT

मात्रकों की प्रणालियाँ (System of Units) भौतिक विज्ञान (Physics)

मात्रकों की प्रणालियाँ (System of Units) भौतिक विज्ञान (Physics)मापनों का वर्णन करने के लिए मात्रकों की कई प्रणालियाँ इस्तेमाल की गई हैं . CGS प्रणाली (सेंटीमीटर के लिए C, ग्राम के लिए G, से सेकंड के लिए S)

मात्रकों की प्रणालियाँ (System of Units) भौतिक विज्ञान (Physics)

 

तीन मूल मात्रकों-लंबाई, द्रव्यमान और समय मापन के लिए क्रमशः सेंटीमीटर, ग्राम और सेकंड पर आधरित है.

लंबाई सेंटीमीटर
द्रव्यमान ग्राम
समय सेकंड
  • FPS प्रणाली या ब्रिटिश प्रणाली में लंबाई, द्रव्यमान तथा समय के मापन के लिए क्रमशः फुट, पांउड तथा रोकड का इस्तेमाल किया जाता है.
  • ‘MKS’ प्रणाली लंबाई के लिए मीटर, द्रव्यमान के लिए किलोग्राम और समय के लिए सेकंड पर आधारित है.
  • 1954 में आयोजित माप-तौल महासम्मेलन ने मीट्रिक प्रणाली को अंतर्राष्ट्रीय रूप से उपयुक्त प्रणाली के रूप में अपनाया.
  • 1960 से अब यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रणाली है जिसे ‘सिस्टम इंटरनेशनल ‘डी यूनिटस’ तथा संक्षेप में SI लिखा जाता है.

अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक पद्धति [(System International (S.I.) Units]

  • इस पद्धति में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मूल मात्रक प्रयुक्त किए जाते हैं .
  • सात मूल मात्रक हैं-
  1. लम्बाई (Length),
  2. द्रव्यमान (Mass),
  3. समय (Time),
  4. ताप (Temperature),
  5. विद्युत धारा (Electric Current)
  6. ज्येाति तीव्रता (Luminous Intensity)
  7. अणुभार के बराबर पदार्थ की ग्राम में मापी गई मात्रा के लिए मोल (Mole) प्रयुक्त किये जाते हैं.

इसके अतिरिक्त दो पूरक मूल मात्रक हैं–

  1. रेडियन (तलीय कोण के लिए)
  2. स्टे रेडियन (घन कोण के लिए).
राशि (Quantity) मात्रक (Unit) प्रतीक (Symbol)
लम्बाई (Length) मीटर (Metre) M
द्रव्यमान (Mass) किलो ग्राम (Kilogram) Kg
समय (Time) सेकंड (Second) S
ताप (Temperature) केल्विन (Kelvin) K
पदार्थ की मात्रा (Amount of Substance) मोल(Mole) mol
विद्युत-धारा (Electric Current) एम्पियर (Ampere) A
ज्योति-तीव्रता (Luminous Intensity) कैंडेला (Candela) Cd

 

The post मात्रकों की प्रणालियाँ (System of Units) भौतिक विज्ञान (Physics) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2poNzkl
via IFTTT

भौतिक विज्ञान (Physics) | सामान्य विज्ञान (General Science)

भौतिक विज्ञान (Physics) सामान्य विज्ञान (General Science)-हम संस्कृत में चिरकाल से ही “भौतिक” शब्द का प्रयोग करते आए हैं. इसका अर्थ है प्राकृतिक . इसी से “भौतिकी” शब्द बना है. अंग्रेजी शब्द Physics का वर्णन हम इसी शब्द से करते हैं.

भौतिक विज्ञान (Physics) सामान्य विज्ञान (General Science)

 

  • शब्द Physics भी ग्रीक शब्द से बना है जिसका अर्थ है प्रकृति .
  • वास्तव में भौतिकी के अंतर्गत प्रकृति तथा प्राकृतिक परिघटनाओं पर विचार किया जाता है.
  • अतः भौतिक विज्ञान की परिभाषा हम निम्न प्रकार से दे सकते हैं .

“भौतिक विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों तथा द्रव्य से उसकी अन्योन्य क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है.”

  • आज जीवन के हर पहलू में हम भौतिकी के अनुप्रयोगों को देखते हैं .
  • रेडियो, दूरदर्शन, बेतार संचार में विद्युत्-चुंबकीय तरंगों के संचरण का प्रयोग होता है .
  • तुल्यकाली उपग्रह मौसम के पूर्वानुमान तथा भू-भौतिक सर्वेक्षण में हमारी सहायता करता है.
  • यह पता लगाने के लिए कि हड्डी कहाँ से टूटी है, एक्स-किरण जनित्र का प्रयोग किया जाता है.
  • विद्युत-बल्ब, सोडियम लैम्प और ट्यूब लाइट विद्युत ऊर्जा को प्रकाश में परिवर्तित करके प्राप्त किया जाता है.
  • इसी प्रकार पृथ्वी की गहराई में उपलब्ध ऊष्मा को भू-ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.
  • समुद्र में उपलब्ध ज्वारीय ऊर्जा को और सौर ऊर्जा को भी ऊर्जा की दूसरी किस्मों में परिवर्तित व उसका प्रयोग किया जा सकता है.
  • इन सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि प्रौद्योगिकी तथा दैनिक जीवन में भौतिकी को बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है.

The post भौतिक विज्ञान (Physics) | सामान्य विज्ञान (General Science) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2OELlse
via IFTTT

मापन (Measurements) | भौतिक विज्ञान (Physics) | सामान्य विज्ञान (General Science)

मापन (Introduction to Measurements) भौतिक विज्ञान (Physics)-मापन के लिए नापी जाने वाली राशि की किसी निर्देश मानक के साथ तुलना आवश्यक है.

मापन के लिए जितनी मुक्त राशियाँ होती हैं उतने ही निर्देश मानकों की हमें आवश्यकता पड़ती है.

मापन (Measurements) भौतिक विज्ञान (Physics) सामान्य विज्ञान (General Science)

 

  • मापन के निर्देश मानक को ही हम मात्रक कहते हैं.
  • हमें लंबाई के लिए मात्रक की जरूरत है.
  • इतिहास में इस तरह के मात्रक के लिए कई भिन्न विकल्प चुने गए हैं.
  • इसके उदाहरण हैं मीटर, फुट, क्यूविट.

ये एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं. लेकिन यह जरूरी है कि एक ही मात्रक की, जैसे सभी मीटर पैमानों की, विभिन्न प्रतिलिपियां समान लंबाई की होनी चाहिए.

  • इसका विकल्प यह है कि हम किसी मानक लंबाई का एक मीटर पैमाना लें और बाकी सभी पैमानों को इसके आधार पर अंशांकित करें.
  • यद्यपि हमारे द्वारा मापी जाने वाली भौतिक राशियों की संख्या बहुत अधिक है लेकिन हमें बहुत अधिक संख्या में मात्रकों की जरूरत नहीं है.
  • सभी भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए मात्रकों की सीमित संख्या ही काफी है.
  • उदाहरण के लिए हमें गति को मापने की जरूरत हो सकती है.

गति के लिए कोई नया मात्रक परिभाषित करने की बजाय हम इस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं. गति से हमारा तात्पर्य है किसी आस समय में तय की गई दूरी . दूरी को, उदाहरण के लिए, मीटर में व्यक्त किया जा सकता है.

समय को, उदाहरण के लिए, सेकंड में व्यक्त किया जा सकता है. इसलिए गति को मीटर प्रति सेकंड के मात्रकों में व्यक्त किया जा सकता है.

  • इसी प्रकार घनत्व के यूनिट को ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर या किलो ग्राम प्रति (मीटर)³ लिया जा सकता है .
  • इसलिए हम कुछ मात्रकों को मूल मात्रक और कुछ को व्युत्पन्न मात्रक मान सकते हैं. मापी जाने वाली सभी संभव भौतिक राशियों को ले कर हम मूल मात्रकों की न्यूनतम सुविधाजन संख्या की सूची बना सकते हैं.
  • यह संख्या सात है-
  1. लंबाई,
  2. द्रव्यमान,
  3. समय,
  4. विद्युत धारा,
  5. ताप,
  6. प्रकाश तीव्रता और
  7. पदार्थ की मात्रा.

इन सात के मात्रकों को मूल मात्रक माना जाता है.

The post मापन (Measurements) | भौतिक विज्ञान (Physics) | सामान्य विज्ञान (General Science) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2xvVaRK
via IFTTT

Wednesday, September 19, 2018

विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Science in Hindi) सामान्य विज्ञान (General Science)

विज्ञान की शाखाएँ  (Branches of Science in Hindi) सामान्य विज्ञान (General Science) आधारभूत जानकारियाँ (Basic Informations)

विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Science) सामान्य विज्ञान (General Science)

 

कृषिजैविकी (Agrobiology)

  • यह पादप जीवन (Plant Life) तथा पादप पोषण (Plant Nutrition) से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है.

एग्रोनॉमिक्स (Agronomics)

  • यह भूमि व फसलें के प्रबन्ध से संबंधित विज्ञान है.

एग्रोनॉमी (Agronomy)

  • इसमें खाद्यान्नों के उत्पादन व कृषि से संबंधित तकनीकी एवं विकास का अध्ययन किया जाता है.

एग्रोस्टोलॉजी (Agrostology)

  • यह घास (Grass) के अध्ययन से संबंधित विज्ञान है.

एलकेमी (Alchemy)

  • रसायन सम्बन्धी विज्ञान की शाखा है .

शारीरिकी (Anatomy)

  • यह जीव-जन्तुओं तथा पौधों की शरीर रचना से सम्बन्धित विज्ञान है .

मानव विज्ञान (Anthropology)

  • विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत मानव के विकास, रीति रिवाज, इतिहास और सामाजिक परम्पराओं से संबंधित विषयों का अध्ययन किया जाता है.

मधुमक्खी पालन (Apiculture)

  • इसमें मधुमक्खियों के पालन तथा उनकी प्रजातियों के विकास का अध्ययन किया जाता है.

आरबरीकल्चर (Arboriculture)

  • यह पेड़ों (Trees) तथा सब्जियों के उगाने से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है.

पुरातत्व विज्ञान (Archaeology)

  • यह शाखा प्राचीन ऐतिहासिक स्मारकों, प्राचीन संस्कृति एवं प्राचीन तथ्यों व अभिलेखों के अध्ययन से संबंधित है.

ज्योतिष विज्ञान (Astrology)

  • इसमें ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों एवं तारों को सापेक्षिक गति का अध्ययन कर मानव जीवन पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है.

खगोल विज्ञान (Astronomy)

  • इसमें खगोलीय पिण्डों की गति का अध्ययन किया जाता है.

अन्तरिक्ष यानिकी (Astronautics)

  • इसमें अन्तरिक्ष यात्रा से संबंधित विषयों का अध्ययन किया जाता है.

खगोल भौतिकी (Astrophysics)

  • इसके अन्तर्गत आकाशीय पिण्डों में विद्यमान शक्तियों व उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है.

जीवाणु विज्ञान (Bacteriology)

  • यह जीवाणुओं की . संरचना, उनसे सम्बन्धित रोगों व निदान से सम्बन्धित विज्ञान है.

जैव रासायनिकी (Biochemistry)

  • यह सजीवों के शरीर में होने वाली रासायनिक क्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान है.

जीव विज्ञान (Biology)

  • यह सजीवों के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है, जिसकी अनेक उपशाखायें हैं.
  • इनमें दो प्रमुख शाखाएँ-
  1. जंतु विज्ञान (Zoology) तथा
  2. वनस्पति विज्ञान (Botany) 

जीवमिति (Biometry)

  • जीव विज्ञान में प्रयुक्त गणित व सांख्यिकी का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

जैवतांत्रिकी (Bionics)

  • विज्ञान की यह शाखा जन्तुओं के तंत्रिका तंत्र (Nervous System) के अध्ययन से सम्बन्धित है .

बायोनॉमिक्स (Bionomics)

  • किसी जन्तु या पौधे का वातावरण के साथ सम्बन्ध का अध्ययन इसी शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

बायोनॉमी (Bionormy)

  • जीवन के सिद्धान्तों (Law of Life) से सम्बन्धित विज्ञान है.

जैव भौतिकी (Biophysics)

  • सजीवों की जैविक क्रियाओं (Vital Processes) से सम्बन्धित भौतिक विज्ञान का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

वनस्पति विज्ञान (Botany)

  • पौधों के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है. इसमें वनस्पतियों का व्यापक अध्ययन किया जाता है.

मूर्तिका कला (Ceramics)

  • विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत कॉच चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है.

रसायन विज्ञान (Chemistry)

  • द्रव्य की संरचना तथा उसके गुणों का अध्ययन विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता हैं .

कीमोथैरेपी (Chemotherapy)

  • रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करके रोगों का इलाज करने की विधियों का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है .

क्रोनोबायोलोजी (Chronobiology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत जीवन की अवधि (Duration of Life) का अध्ययन किया जाता है .

क्रोनोलोजी (Chronology)

  • विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत ऐतिहासिक तिथियों और तथ्यों को क्रमबद्ध रूप में रखने का अध्ययन किया जाता है .

कोन्कोलॉजी (Conchology)

  • जन्तु विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत मोलस्का वर्ग के जन्तुओं के बाह्य आवरण (Shell) का अध्ययन किया जाता है .

ब्रह्माण्ड विज्ञान (Cosmology)

  • विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत ब्रह्माण्ड की संरचना, उत्पत्ति एवं इतिहास का अध्ययन किया जाता है .

सृष्टि विज्ञान (Cosmogony)

  • यह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति सम्बन्धी अध्ययन की शाखा है .

अपराध विज्ञान (Criminology)

  • इसमें अपराध एवं अपराधियों का अध्ययन किया जाता है.

क्रिस्टल विज्ञान (Crystallography)

  • इसमें क्रिस्टलों की संरचना, स्वरूप एवं गुणों का अध्ययन किया जाता है ..

क्रिप्टोग्राफी (Cryptography)

  • इसके अन्तर्गत गूढ लेखन सम्बन्धी ज्ञान का अध्ययन किया जाता है.

निम्न तापिकी (Cryogenics)

  • विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत अत्यन्त निम्न ताप की उत्पत्ति, नियंत्रण एवं अनुप्रयोग का अध्ययन किया जाता है .

कोशिका रासायनिकी (Cytochemistry)

  • कोशिका विज्ञान (Cytology) की इस शाखा के अन्तर्गत कोशिका की रासायनिक क्रियाओं से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है. 

कोशिकानुवांशिकी (Cytogenetics)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत कोशिका विज्ञान एवं आनुवंशिक विज्ञान के साथ आनुवंशिक गुणों का अध्ययन किया जाता है.

कोशिका विज्ञान (Cytology)

  • इसमें कोशिका की संरचना, उत्पत्ति एवं कार्यों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है.

क्रायोसर्जरी (Cryosurgery)

  • यह शल्य चिकित्सा की अत्याधुनिक विधि है.
  • जिसमें अतिशीतलन के द्वारा रोगाणु युक्त कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है.

अंगुलिछाप विज्ञान (Dactylography)

  • इसमें अंगुलिछाप (Fingerprints) से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है जिसका उद्देश्य विशिष्ट व्यक्ति की पहचान करना होता है.

संकेत विज्ञान (Dactyliology)

  • इसमें संकेतों द्वारा संदेश पहुँचाने की तकनीकी का अध्ययन किया जाता है .

पारिस्थितिकी (Ecology)

  • पौधों और जंतुओं पर वातावरण के प्रभाव का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

अर्थमिती (Econometrics)

  • आर्थिक सिद्धान्तों के परीक्षण के लिए गणित का अनुप्रयोग इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

अर्थशास्त्र (Economics)

  • इस शाखा के अन्तर्गत आर्थिक ज्ञान का अध्ययन किया जाता है.

भ्रूण विज्ञान (Embryology)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत भ्रूण की संरचना, प्रकार, उत्पत्ति एवं विकारों का अध्ययन किया जाता है.

कीट विज्ञान (Entomology)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत कीटों (Insects) का अध्ययन किया जाता है .

जनपादिक रोग निदान (Epidemiology)

  • यह चिकित्सा विज्ञान की शाखा है जिसमें जनपादिक रोगों (Epidemic Diseases) और उनके उपचार का अध्ययन किया जाता है.

व्यवहार विज्ञान (Ethology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत प्राणियों के व्यवहार (Behaviour) का अध्ययन किया जाता है.

सुजननिकी (Eugenics)

  • यह आनुवांशिक विज्ञान की एक शाखा है जिसके अन्तर्गत मनुष्य की संतति के विकास व नस्ल सुधारने सम्बन्धी क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है.

जेनेकोलॉजी (Genecology)

  • पादप जगत के आनुवांशिक संगठन का आवास एवं वातावरण के साथ अध्ययन इसके अन्तर्गत किया जाता है.

जेनेसियोलोजी (Genesiology)

  • इसके अन्तर्गत पीढ़ियों का अध्ययन किया जाता है.

भू-जैविकी (Geobiology)

  • यह पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीवों के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है .

भू-वनस्पतिकी (Geobotany)

  • यह वनस्पति विज्ञान की शाखा है जिसके अन्तर्गत पौधों और पृथ्वी के धरातलीय सम्बन्धों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है.

भू-रासायनिकी (Geochemistry)

  • इसमें भू-पर्पटी (earth’s crust) के रासायनिक संगठन एवं इसमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है.

भूगोल (Geography)

  • इसमें पृथ्वी के धरातल, भौतिक दशायें, मौसम, जलवायु और जनसंख्या से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है .

भूगर्भ-विज्ञान (Geology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत भूगर्भ सम्बन्धी अध्ययन, उसकी बनावट, संरचना एवं इसमें पाये जाने वाले पदार्थों का अध्ययन किया जाता है .

भू-आकारिकी (Geomorphology)

  • इसमें भूमि के विभिन्न प्रकारों के लक्षण, उत्पत्ति एवं विकास का अध्ययन किया जाता है.

भू-भौतिकी (Geophysics)

  • यह भू-गर्भ में पाये जाने वाले पदार्थों के भौतिक गुणों के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है.

जीरोन्टोलोजी (Gerontology)

  • इसमें वृद्धावस्था व इसमें होने वाले रोगों का अध्ययन किया जाता है ..

स्त्रीरोग विज्ञान (Gynaecology)

  • चिकित्सा विज्ञान की इस शाखा में स्त्री रोगों व प्रजनन से सम्बन्धित रोगों का अध्ययन किया जाता है.

आनुवांशिक अभियांत्रिकी (Genetic Engineering)

  • यह विज्ञान की अत्याधुनिक शाखा है जिसके अन्तर्गत राजीवों में अति सूक्ष्म जीन स्तर पर रचनात्मक परिवर्तन कर वांछित गुणों की प्राप्ति की जा सकती है .

सूर्य चिकित्सा विज्ञान (Heliotherapy)

  • इसमें सूर्य के प्रकाश द्वारा रोगों की चिकित्सा का अध्ययन किया जाता है.

ऊतिकी (Histology)

  • इसमें ऊतक अर्थात् कोशिकाओं के समूहों से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है.

उधान विज्ञान (Horticulture)

  • वनस्पति विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत फूल, फल, सब्जियाँ एवं आकर्षक पौधों को उगाने की कला का अध्ययन किया जाता है.

घड़ी साजी (Horology)

  • इसमें घड़ी बनाने और समय की माप से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है.

होलोग्राफी (Holography)

  • लेसर किरणों द्वारा त्रिविमीय चित्रों का लेना होलोग्राफी कहलाता है.

होम्योपैथी (Horneopathy)

  • यह चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है जिसका आरम्भ जर्मनी में हुआ.
  • इसमें रोग के कारकों को शर्करा से विभाजित कर उसी रोग के निदान में काम लिया जाता है .

जलगतिकी (Hydrodynamics)

  • गतिशील द्रव पदार्थों के बल, ऊर्जा एवं दाब का गणितोय अध्ययन इसके अन्तर्गत किया जाता है.

हाइड्रोग्राफी (Hydrography)

  • पृथ्वी पर जल स्तर का मापन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है जो कि समुद्री यात्रा के लिये उपयोगी है.

जल विज्ञान (Hydrology)

  • इसमें पानी के गुणों का अध्ययन किया जाता है .

हाइड्रोमेटेलर्जी (Hydrometallurgy)

  • इसमें सामान्य ताप पर द्रवों के साथ धातु अयस्कों (Metal Ores) को धो कर (Bleaching) उनसे धातुओं का निष्कर्षण (Extraction) करने की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है .

जल-चिकित्सा (Hydropathy)

  • जल के द्वारा रोगों की चिकित्सा का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

जलकृषि (Hydroponics)

  • इसमें मिट्टी के बिना पौधों को उगाया जाता है इसके लिए खनिज पदार्थों को द्रव में घोलकर उसमें पौधों को उगाया जाता है.
  • इसे मृदा-रहित कृषि या जल संवर्द्धन (Water Culture) भी कहते हैं.

जल ध्वनि शास्त्र (Hydrophonics)

  • विज्ञान की यह शाखा ध्वनि के माध्यम से जल सतह के नीचे की वस्तुओं का पता लगाने से सम्बन्धित है.

जल स्थैतिकी (Hydrostatics)

  • द्रवों में बल व दाब के गणितीय अध्ययन से सम्खंधित विज्ञान है .

स्वास्थ्य विज्ञान (Hygiene)

  • इस शाखा के अन्तर्गत स्वास्थ्य, इसकी सुरक्षा एवं वातावरण के स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है.

मेमोग्राफी (Mammography)

  • इसमें स्तन ग्रंथियों (Mammary Glands) की रेडियोग्राफी द्वारा स्तन कैंसर का अध्ययन किया जाता है.

धातु रचना विज्ञान (Metallography)

  • इसके अन्तर्गत विभिन्न धातुओं की आणविक संरचना व गुणों का अध्ययन किया जाता है .

धातुकर्म विज्ञान (Metallurgy)

  • इसके अन्तर्गत धातु के अयस्क (Ore) से धातु प्राप्त करने की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है .

मौसम विज्ञान (Meteorology)

  • इस शाखा में वातावरण तथा इसमें होने वाले परिवर्तनों एवं अन्तः क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है.

माप विज्ञान (Metrology)

  • इसमें तौल एवं नाप की विधियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है .

सूक्ष्म जैविकी (Microbiology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत जीवाणु, वायरस, माइक्रोप्लाज्मा आदि सूक्ष्म जीवों की संरचना एवं अन्य जीवों पर इनके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है.

आकारिकी (Morphology)

  • इसके अन्तर्गत जंतुओं एवं पौधों की बाहरी संरचना (External Structure) का अध्ययन किया जाता है.

कवक विज्ञान (Mycology)

  • इसमें कवक (Fungi) की संरचना एवं जैविक प्रक्रियाओं तथा कवकों द्वारा जीवों में होने वाले रोगों का अध्ययन किया जाता है.

प्राकृतिक चिकित्सा (Naturopathy)

  • इसमें जल, मिट्टी, वाष्प आदि प्राकृतिक पदार्थों से असाध्य रोगों की चिकित्सा की जाती है.
  • आजकल यह चिकित्सा पद्धति लोकप्रिय होती जा रही है.

तंत्रिका विज्ञान (Neurology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत तंत्रिका तंत्र (Nervous System) का विस्तार, कार्य एवं इसमें उत्पन्न होने वाले रोगों तथा अनियमितताओं का अध्ययन किया जाता है.

तंत्रिका रोग विज्ञान (Neuropathology)

  • इसमें तंत्रिका तंत्र में उत्पन्न होने वाले रोगों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है .

तंत्रिका शल्य-चिकित्सा (Neurosurgery)

  • इसके अन्तर्गत तंत्रिका तंत्र में उत्पन्न रोगों का शल्य क्रिया द्वारा इलाज किये जाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है.

दंत विज्ञान (Odontology)

  • दाँत की संरचना और दंत विन्यास का अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

प्रकाशिकी (Optics)

  • इसमें प्रकाश की प्रकृति, गुण तथा प्रकाश से संबंधित अन्य विषयों का अध्ययन किया जाता है.

पक्षी विज्ञान (Ornithology)

  • इसमें पक्षियों के स्वभाव, व्यवहार एवं उनके अन्य क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है.

आर्थोपेडिक्स (0rthopaedics)

  • पेशीय कंकाल तंत्र के रोगों के निदान, उपचार एवं उनके अन्य क्रिया-कलापों का अध्ययन किया जाता है.

अस्थि विज्ञान (Osteology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत अस्थियों का अध्ययन किया जाता है.

पेलियाबॉटनी (Paleobotany)

  • पौधों के जीवाश्मों (Fossils) से संबंधित अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

जीवाश्मिकी (Paleontology)

  • इसमें प्राचीन जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है .

रोग विज्ञान (Pathology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत रोग उत्पन्न करने वाले कारकों की पहचान, उनकी संरचना व रोगों के निदान से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है.

प्रकाश जैविकी (Photobiology)

  • यह जीव विज्ञान की शाखा है जिसके अन्तर्गत जीवों पर प्रकाश के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है .

कपाल विज्ञान (Phrenology)

  • इसमें मानव के कपाल (Skull) एवं मस्तिष्क (Brain) की सरचना का अध्ययन किया जाता है.

थिसियोलॉजी (Phthisiology)

  • इसमें क्षय रोग (Tuberculosis) का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है.

शैवाल विज्ञान (Phycology)

  • इसमें शैवाल से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है .

औषध विज्ञान (Pharmacology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत औषधियाँ बनाने की विधियों तथा उनके गुणों का अध्ययन किया जाता है .

भौतिक विज्ञान (Physics)

  • इसमें द्रव्य के गुणों जैसे श्यानता, प्रत्यास्थता, पृष्ठ तनाव, संपीड़यता एवं इनको प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है.

भौतिक भूगोल (Physiography)

  • इसमें भौतिक पदार्थों के भूगोल से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है. इसमें प्रकृति की आकारिकी तथा उससे सम्बन्धित प्रभावों एवं क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है.

शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत सजीवों की विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं, जैसेश्वसन, संवहन, परिसंरचना, वृद्धि, जनन आदि का अध्ययन किया जाता है.
  • इसकी दो शाखायें हैं-
  1. जन्तु शरीर क्रिया विज्ञान (Animal-physiology) तथा
  2. पादप शरीर क्रिया विज्ञान (Plant physiology).

पादप विकास विज्ञान (Phytogery)

  • इसके अन्तर्गत पौधों की उत्पत्ति एवं विकास का अध्ययन किया जाता है .

फल-कृषि विज्ञान (Pomology)

  • यह फलों के उत्पादन, विकास एवं सुरक्षा से संबंधित विज्ञान की शाखा है.

मनोविज्ञान (Psychology)

  • यह मानव एवं अन्य जंतुओं के व्यवहार से सम्बन्धित विज्ञान है .

विकिरण विज्ञान (Radiology)

  • इसमें रेडियो ऐक्टिवता (Radio Activity) तथा एक्स-किरणों का अध्ययन किया जाता है .

विकिरण-जैविकी (Radiobiology)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत सजीवों पर विकिरण (Radiation) के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है .

विकिरण चिकित्सा (Radiotherapy)

  • इसके अन्तर्गत विकिरणों के द्वारा रोगों के निदान व इससे उत्पन्न होने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है.

विकृति विज्ञान (Rheology)

  • पदार्थ की संरचना में उत्पन्न होने वाली विकृति तथा उसके प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है .

भूकम्प विज्ञान (Seismology)

  • इस शाखा के अन्तर्गत भूकंप के कारणों व उसकी भविष्यवाणियों से सम्बन्धित वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है.

चंद्र विज्ञान (Selinology)

  • चन्द्रमा का आकार, उत्पत्ति एवं गति से सम्बन्धित अध्ययन इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है.

रेशमकीट पालन (Sericulture)

  • यह कच्चे रेशम के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अच्छी नस्ल के रेशम कीटों के पालन करने से सम्बन्धित विज्ञान की शाखा है.

समाज शास्त्र (Sociology)

  • मानव समाज के वैज्ञानिक अध्ययन की शाखा है.

स्पेक्ट्रम विज्ञान (Spectroscopy)

  • स्पेक्ट्रोस्कोप का प्रयोग करके पदार्थ एवं ऊर्जा का वैज्ञानिक अध्ययन इसके अन्तर्गत किया जाता है.

वर्गिकी (Taxonomy)

  • जीव विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत जंतुओं और पौधों को उनके गुणों एवं संरचना के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है.

टेलीपेथी (Telepathy)

  • इसके अन्तर्गत संदेदी तंत्रिकाओं (Sensorynerves) के स्थान पर अन्य किसी माध्यम से मस्तिष्क तक संवेदनाएँ भेजने की क्रिया विधि का अध्ययन किया जाता है.

चिकित्सा विज्ञान (Therapeutics)

  • इसमें रोगों के उपचार से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता है.

ऊतक संवर्द्धन (Tissue Culture)

  • इसमें एक कोशिका को रासायनिक पदार्थों की उपस्थिति में विकसित कर पूरे शरीर का , निर्माण किया जाता है.
  • यह विज्ञान की अत्याधुनिक शाखा है, जिसमें कृत्रिम रूप से शरीर का निर्माण किया जा सकता है.

वायरस विज्ञान (Virology)

  • इसमें वायरस की सरचना व उससे उत्पन्न होने वाले रोगों का अध्ययन किया जाता है .

जंतु विज्ञान (Zoology)

  • इसमें जंतुओं की संरचना, लक्षण एवं जीवन-चक्र का अध्ययन किया जाता है.

The post विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Science in Hindi) सामान्य विज्ञान (General Science) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2pjDJAa
via IFTTT

क्या है विज्ञान ? (What is Science?) | सामान्य विज्ञान (General Science)

क्या है विज्ञान  ? (What is Science?) सामान्य विज्ञान (General Science)

“विज्ञान” शब्द का अर्थ (वि + ज्ञान) विशेष ज्ञान है. व्यापक रूप से इसका अर्थ है प्रकृति का व्यवस्थित अध्ययन . अंग्रेजी शब्द ‘Science’ का वर्णन हम इसी शब्द से करते हैं . शब्द ‘Science’ भी लैटिन क्रियात्मक शब्द ‘Scientia’ से बना है जिसका अर्थ है जानना .

क्या है विज्ञान ? (What is Science?) | सामान्य विज्ञान (General Science)

 

मनुष्य की जानने की संगठित कोशिश तथा उसके द्वारा अर्जित ज्ञान, विज्ञान बन जाता है. हमारे प्राचीन इतिहास के शास्त्र भी विज्ञान हैं. विज्ञान में ज्ञान अर्जित करने के लिए हमें कई चरणों में काम करना पड़ता है. वे हैं-

  • क्रमबद्ध प्रेक्षण,
  • अन्योन्य क्रिया,
  • तर्क और
  • सैद्धांतिक भविष्यवाणी .

इस प्रकार की विधि को वैज्ञानिक विधि कहा जाता है. अतः भौतिक तयों के व्यवहार की व्याख्या कुछ गिने चुने नियमों के आधार पर करनी होगी . किसी सिद्धांत के वैध होने के लिए यह आवश्यक है कि यह ज्यादातर संबद्ध मापनों की संतोषजनक व्याख्या कर सके .

थॉमस हॉब्स के अनुसार

“Science is the knowledge of consequence and dependence of one fact upon another”.

 

प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science)

आदिकाल से मानव अपने चारों ओर घटित प्राकृतिक दृश्यों, प्राकृतिक घटनाओं को देखता चला आ रहा है.

  • जैसे-आकाश का नीला दिखाई देना,
  • उगते व डूबते सूर्य का लाल दिखायी देना,
  • बादल में बिजली चमकना व कड़कना,
  • भूकम्प का आना,
  • समुद्र में ज्वार-भाटा आना,
  • वर्षा के बाद इन्द्र धनुष का दिखायी देना आदि,

अतः इन सब प्राकृतिक घटनाओं को जानने के लिये मानव उत्सुक रहा है तथा इनकी खोज अपनी मात्र बुद्धि एवं तर्क पूर्ण अनुमान से ही नहीं, बल्कि प्रयोगों द्वारा भी करता रहा है.

इन प्राकृतिक घटनाओं के अध्ययन से मानव ने यह निष्कर्ष निकाला कि हर घटना किसी प्राकृतिक नियम (Natural Law) के अनुसार होती है. इन्हीं नियमों की सुव्यवस्थित (Organised) जानकारी को प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) कहते हैं .

The post क्या है विज्ञान ? (What is Science?) | सामान्य विज्ञान (General Science) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2xna4uu
via IFTTT

Sunday, September 16, 2018

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidences from theories of the origin of the Earth)

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidences from the theories of the origin of the Earth)-

 

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidences from the theories of the origin of the Earth)

 

  • अलग-अलग विधानों ने पृथ्वी की उत्पत्ति की समस्या के हल होते हुए उसका मूल रूप ठोस, वायव्य और तरल भाग माना है.
  • चैम्बरलीन की ग्रहाणु परिकल्पना (Planetesimal Hypothesis) के अनुसार पृथ्वी ठोस ग्रहाणुओ के एकत्रित होने से बनी है जिसका अन्तरम ठोस अवस्था में हैं.
  • ज्वारीय परिकल्पना (Tidal Hypothesis) जो जेम्स जीन्स ने प्रतिपादित की थी और जेफरीज ने संशोधित की थी, के अनुसार पृथ्वी का निर्माण सूर्य से निस्तृत ज्वारीय पदार्थ से हुआ है और पृथ्वी का अन्तरतम तरल अवस्था में है.
  • लाप्लास जो वायव्य नीहारिका परिकल्पना के प्रतिपादक है, के अनुसार पृथ्वी का अन्तरतम तरल है.
  • नीहारिका परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति गैस से बनी भीहारिका से मानी जाती है जो इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वी के अन्तरतम को वायव्य अवस्था में होना चाहिए जबकि इसके प्रतिपादक इसे तरल मानते हैं.
  • जोयपरिज और रिटर ने भी पृथ्वी के अन्तरतम को गैस का बना हुआ माना है.
  • अतः दो ही मत पृथ्वी के अन्तरसम के बारे में सत्य के करीब हैं.
  • जो ठोस अवस्था में या फिर द्रव अवस्था में माना जाता है.

 

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidences from theories of the origin of the Earth)

The post पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बधित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidences from theories of the origin of the Earth) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2MCwzjJ
via IFTTT

अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources) | पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)

अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources) | पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)

 

पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth) अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources)

 

घनत्व (Density) अप्राकृतिक स्रोत

  • भू-वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का ऊपरी भाग परतदार शैलों (Rocks) का बना है जिसकी औसत 8.45 किमी. तक पाई जाती है.
  • इस परतदार सतह के नीचे पृथ्वी के चारों ओर रवेदार अथवा स्फटिकीय शैल (Crystalline Rocks) की एक दूसरी परत है.
  • इसका और इसकी निचली परत का घनत्व्  9.75 से 2.90 तक होता है.
  • इन सारी परतों को भूपर्पटी के नाम से जाना जाता है.
  • इसके नीचे मैटल पाया जाता है जो सिलिकेट और मैग्नेशियम शैलों (silicate and magnesium rocks) से बना है. इसका घनत्व् 3. 10 से 5.00 तक है और
  • इस परत के बाद धात्विक कोड या अन्तरतम (Core) मिलता है, जिसका घनत्व 5.10 से 13.00 तक पाया जाता है.
  • सम्पूर्ण पृथ्वी का औसत घनत्व 5,5 है.
  • 1950 के बाद स्पुतनिक (Satellite) आधार पर पृथ्वी के औसत घनत्व के परिकलने का सिलसिला शुरू हो गया है.

दाब (Pressure) अप्राकृतिक स्रोत

  • शुरू में यह कल्पना की गयी थी कि ऊपर से नीचे की ओर जाने पर चट्टानों का भार तथा दबाव बढ़ता जाता है,
  • इसलिए पृथ्वी के अन्तरतम का अधिक घनत्व बढ़ते हुए दबाव के कारण है, क्योंकि बढ़ते हुए दबाव के साथ चट्टान का घनत्व भी बढ़ जाता है. इसलिए पृथ्वी के अन्तरतम का अत्यधिक घनत्व् वहा पर स्थित अत्यधिक दबाव के कारण है.
  • लेकिन आधुनिक प्रयोगों द्वारा यह साबित कर दिया गया है कि प्रत्येक शैल में एक ऐसी सीमा होती है जिसके आगे उसका घनत्व् अधिक नहीं हो सकता, चाहे उसका दबाव कितना भी अधिक क्यों न कर दिया जाए.
  • इस बात से हमें यह संकेत मिलता है कि अन्तरतम् (Core) का घनत्व उन धातुओं की वजह से हैं जिन पदार्थों से इसका निर्माण हुआ है.
  • ये धातुएं हैं निकल और लोहे का मिश्रण जो इसको चुम्बकीय शक्ति भी प्रदान करती।

तापमान (Temperature)

  • सामान्यतः खानों और दूसरे स्रोतों से उपलब्ध विवरणों के आधार पर पृथ्वी की उपरी सतह से नीचे की ओर गहराई में जाने पर औसत रूप में तापमान प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेल्सियस, बढ़ जाता है.
  • लेकिन आठ किमी. से अधिक गहराई पर जाने पर तापमान की वास्तविक वृद्धि दर का पता लगाना मुश्किल है.
  • परीक्षणों के आधार पर महाद्वीपीय क्रस्ट में तापमान की वृद्धि दर की परिकलन भूताप ग्राफ (Geotherms graphs) के आधार पर किया गया है.
  • आठ किमी. के बाद गहराई के साथ-साथ तापमान वृद्धि की दर भी घटती जाती है.
  • यह हर गहराई पर एक सी नहीं रहती .
  • धरातल से केन्द्र तक तापमान विभिन्न दरों से बढ़ता है.

तापमान की यह वृद्धि लगभग इस प्रकार हैं,

  • धरातल से लगभग 100 किमी. की गहराई तक 12 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी.,
  • उसके नीचे 300 किमी. तक 2 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी.
  • और उसके नीचे 1 डिग्री सेल्सियस प्रति किमी.
  • इस गणना के अनुसार घात्विकक्रोड का तापमान 2,000 डिग्री सेल्सियस है.
  • इसके अलावा तापमान में और भिन्नता पाई जाती है.
  • विवर्तनिक रूप से सक्रिय (Texstorical Active) क्षेत्र में 40 किमी. की गहराई पर 1000 डिग्री सेल्सियस तापमान गंभीर क्वस्ट और मैटल की शैलो खासकर बेसाल्ट तथा पेरिओटाइट के प्रारम्भिक गलनांक (Initial melting) के करीब है.
  • इस प्रकार कस्ट के गर्म क्षेत्र में विवर्तनिक घटना और ज्वालामुखी क्रिया और गलनंक के करीब तापमान में गहरी सम्बन्ध स्थापित होता है.
  • विवर्तनिक रूप से स्थिर (Tetonically Stable) प्रदेशों में 40 किमी. की गहराई पर तापमान 500 डिग्री सेल्सियस तक ही राहता है जो दीर्घकालीन भूगर्भिक स्थिरता से सम्बन्धित हैं.

पृथ्वी के अन्दर की गर्मी और उसके तापमान में वृद्धि के मुख्य कारण हैं आन्तरिक शक्तियों, जैसे-रासायनिक प्रतिक्रिया, रेडिओधर्मी पदार्थों का स्वतः विखंडन इत्यादि .

 

पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth) | अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources)

The post अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources) | पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2pbGVxL
via IFTTT

भूगर्भ – पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)|भूआकृति विज्ञान (Geomorphology)

भूआकृति विज्ञान (Geomorphology) भूगर्भ – पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)पृथ्वी की आंतरिक संरचना से तात्पर्य उसकी आन्तरिक बनावट से है.

भूआकृति विज्ञान (Geomorphology) भूगर्भ - पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)

 

  • पृथ्वी की संरचना विभिन्न परतों से हुई है, जो प्याज के छीलके की तरह एक दूसरे के ऊपर स्थित हैं.
  • पर विभिन्न रासायनिक पदार्थों से बनी है और इन परतों का विकास पृथ्वी की उत्पत्ति के समय हुआ.
  • प्रारम्भ में पृथ्वी गैसीय तथा तरल अवस्था में थी जो बाद में ठंडी होकर बनी .
  • इस शीतलन एवं ठोसीयकरण की प्रक्रिया के समय अधिक घनत्व के कण सबसे नीचे बैठ गए.
  • इस प्रकार तीन प्रमुख परतों का निर्माण हुआ.
  • जो अपने घनत्य के अनुसार एक-दूसरे पर स्थित है.

वैसे तो पृथ्वी के भीतरी भाग का विस्तृत अध्ययन भूगोल की विषयवस्तु से अलग है जिसका अध्ययन भूगर्भ शास्त्र में किया जाता है, लेकिन इसकी कुछ जानकारी भूगोल में आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा धरातल पर होनेवाले परिवर्तनों को ठीक से समझने में मदद मिलती है.

बड़े पर्वतों के उत्थान, भूपर्पटी का फैलना और सिकुड़ना तथा इसके आंशिक अवतलन (नीचे की ओर धंसाव) का सीधा संबंध पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों से होता है जो पृथ्वी के अंदर कार्य करती हैं.

  • धरातल की आन्तरिक बनावट के बारे में ज्ञान प्राप्त करना मुश्किल काम है क्योकि पृथ्वी के नीचे की चट्टानों को आसानी से नहीं देखा जा सकता है.
  • दूसरे शब्दों में पृथ्वी के नीचे बहुत गहराई तक देखने की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि अभी तक खनिज तेल की खोज के लिए मनुष्य ने लगभग 6 किमी. गहरे छेद बनाये हैं, और ये गहराइयाँ पृथ्वी के केन्द्र की तुलना में कुछ भी नहीं हैं.
  • इसके बावजूद बिना छेद बनाए ही कई ऐसे स्रोत हैं जिनसे पृथ्वी के भीतरी भाग के बारे में खास जानकारी मिलती है.
  • पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी केवल परोक्ष वैज्ञानिक प्रमाणों पर ही आधारित है.

इन स्रोतों को तीन वर्षों में विभाजित किया जाता है.

अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources)

  • घनत्व (Density)
  • दबाव (Pressure)
  • तापमान (Temperature)

पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्तों के साक्ष्य (Evidence from the theories of the origin of the Earth)

प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)

  • ज्वालामुखी उद्गार (Volcanic Eruption)
  • भूकम्प (Earthquakes)

 

भूगर्भ – पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)|भूआकृति विज्ञान (Geomorphology)

The post भूगर्भ – पृथ्वी का आंतरिक भाग (Interior of the Earth)|भूआकृति विज्ञान (Geomorphology) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2QAa427
via IFTTT

Monday, September 10, 2018

पृथ्वी का भूगर्भिक इतिहास (Geological History of the Earth in Hindi)

ग्रहण क्या होता है ? चन्द्र ग्रहण,सूर्य ग्रहण( What is Eclipse in Hindi)

ग्रहण क्या होता है ?चन्द्र ग्रहण,सूर्य ग्रहण ( What is Eclipse)पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की गतियों के कारण जब सूर्य और चन्द्रमा के प्रकाशमय भाग का कुछ अंश थोड़ा समय के लिए अन्धकारमय हो जाता है. तो उसे ग्रहण कहते हैं.

ग्रहण क्या होता है ? चन्द्र ग्रहण,सूर्य ग्रहण ( What is Eclipse)

 

चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse)

  • जब पृथ्वी और चन्द्रमा की सूर्य के चारों ओर की गतियों के कारण पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा के बीच में आ जाती है तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर नहीं पड़ता है.
  • क्योंकि चन्द्रमा सूर्य से ही प्रकाशित होता है अतः ऐसी स्थिति में चन्द्रमा का प्रकाश पृथ्वी पर दिखाई नहीं पड़ता है इस अवस्था को चन्द्रग्रहण कहते हैं.
  • इस स्थिति में पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है और छायांकित भाग पृथ्वी से नहीं दिखाई देता है.
  • जब चन्द्रमा का सम्पूर्ण भाग पृथ्वी की छाया में आ जाती है तो उस समय पूर्ण ग्रहण और जब कुछ भाग ही छायांकित होता है तो खण्डग्रहण कहलाता है.
  • जैसे ही पृथ्वी या चन्द्रमा घूमते हुए उपरोक्त स्थिति से हट जाते हैं तभी यह ग्रहण समाप्त हो जाता है.
  • चन्द्र ग्रहण की स्थिति सदैव पूर्णिमा को ही सम्भव होती है.

सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse)

  • पृथ्वी और चन्द्रमा की गतियों के कारण जब कभी सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पड़ता है ऐसी स्थिति को सूर्य ग्रहण करते हैं.
  • सूर्य ग्रहण सदैव अमावस्या को ही पड़ता है.
  • जब चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है तो पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ता है.
  • जब चन्द्रमा सूर्य का कुछ ही अंश ढक पाता है.
  • तो उस समय खण्ड सूर्यग्रहण या आंशिक सूर्य ग्रहण पड़ता है.
  • चन्द्रमा के सूर्य व पृथ्वी के बीच से हट जाने पर सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाता है.
  • जब सूर्य एक चमकती हुई अंगूठी के रूप में दिखाई देता है तो इसे वलयाकार सूर्यग्रहण (Angular Solar Eclipse or Annular Solar Eclipse) कहते हैं.

The post ग्रहण क्या होता है ? चन्द्र ग्रहण,सूर्य ग्रहण( What is Eclipse in Hindi) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2MeC4VV
via IFTTT

पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth in Hindi)

पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth)पृथ्वी सौरमण्डल के ग्रहों में से एक प्रमुख और अनोखा ग्रह है क्योंकि केवल इसी पर विविध प्रकार के पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के विकास और जीवन के लिए उपयुक्त परिस्थितियां पाई जाती हैं.

 

पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth)

 

  • सौरमण्डल के सारे ग्रह अपनी धुरी पर अपने चारों ओर सूर्य का चक्कर लगाते हैं.
  • लेकिन इनमें सूर्य और चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी पर बहुत ज्यादा होता है.
  • इस प्रभाव से पृथ्वी पर दिन-रात का जन्म होना और छोटे-बड़े होना निर्भ करता है.
  • ऋतु और जलवायु परिवर्तन भी पृथ्वी के परिभ्रमण पर निर्भर करता है.

पृथ्वी की गतियाँ (Movements of the Earth)

पृथ्वी अपनी धुरी पर और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है जिससे पृथ्वी पर बहुत सारे परिवर्तन होते हैं. इस गति को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जाता है-

  1. दैनिक गति (Rotation)
  2. वार्षिक गति (Revolution)

दैनिक गति (Rotation) 

  • पृथ्वी अपनी कल्पित धुरी (Imaginary axis) या अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर गोल लट्टू की तरह घूमती है.
  • अक्ष वह कल्पित रेखा है जो पृथ्वी के केन्द्र से होकर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती है और यह अक्ष अपने कक्ष तल (Plane of Orbit) के साथ 66 ½ डिग्री का कोण बनाती है.
  • इसे पृथ्वी की घूर्णन या आवर्तन अथवा दैनिक गति के नाम से भी जाना जाता है.
  • इस गति की वजह से ही पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं.
  • जब कभी भी पृथ्वी मध्याह्न रेखा के ऊपर उत्तरोत्तर दो बार गुजर लेती है तो बीच की अवधि नक्षत्र दिवस (Sidereal day) कहलाती है
  • जिसकी लम्बाई 23 घंटे 56 मिनीट और 4 सैकेण्ड के बराबर होती है.
  • इसके विपरीत जब एक ही निश्चित मध्याह्न रेखा के ऊपर सूर्य उतरोत्तर दो बार गुजरता है तो गुजरने के बीच लगने वाला समय सौर दिवस (Solar day) कहलाता है
  • जिसकी औसत लम्बाई 24 घन्टे होती है.
  • इस 24 घंटे के समय को एक दिन कहते हैं
  • पृथ्वी का वह भाग जो सूर्य के सामने आता है उसे दिन कहते हैं और बाकी पीछे वाला भाग अन्धकार के कारण रात्रि कहलाता है.
  • इस प्रकार दिन रात का उपक्रम होता है.
  • यह दैनिक गति भूमध्य रेखा पर तीव्र और ध्रुवों पर मन्द होती है.
  • इस प्रकार वह भाग जो पृथ्वी के पूर्व में स्थित है वहां पर पहले दिन होते हैं एवं पश्चिम में स्थित भाग पर बाद में दिन होते हैं.
  • पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही हवाओं और समुद्री धाराओं की दिशा पर प्रभाव पड़ता है.
  • पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति का होना और ज्वार-भाटे का आना भी इसी पर निर्भर करता है.

वार्षिक गति (Revolution) 

  • पृथ्वी अपनी धुरी (अक्ष) पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर अण्डाकार मार्ग पर जिसे भू-कक्षा (Earth orbit) कहते हैं, 365 दिन और 6 घंटे में पूरा चक्कर लगा लेती है.
  • यह पृथ्वी की वार्षिक गति या परिक्रमण गति कहलाती है.
  • वर्ष की अवधि और ऋतु परिवर्तन इसी गति के द्वारा सम्भव है.
  • समय पूरा न होने के कारण प्रत्येक 4 साल बाद लींद के साल (Leap year) में फरवरी 29 दिन की होती

 

अक्षांश रेखायें (Latitudes)पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध

  • ये रेखायें पृथ्वी के चारों ओर खींचे गये कल्पित वृत्त हैं जो भूमध्य रेखा के समान्तर रहते हैं.
  • दूसरे शब्दों, में भूमध्य रेखा से उत्तर और दक्षिण में किसी भी स्थान की कोणिक दूरी को अक्षांश के नाम से जाना जाता है.
  • पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 डिग्री अक्षांश से एक और झुकी हुई है.
  • जिससे सूर्य उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में एक निश्चित सीमा तक ही चमकता है.
  • इस सीमा को उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (Tropics of Cancer) 23½ डिग्री उत्तरी
  • अक्षांश और दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (Tropics of Capricorn) 23½ डिग्री दक्षिणी अक्षांश कहते हैं.
  • इन अक्षांशों के बाहर सूर्य कभी भी लम्बवत नहीं चमकता है.
  • उत्तरायण (Aphelion) में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 15 करोड़ 12 लाख किमी. और दक्षिणायण (Perihelion) में 14 करोड़ 64 लाख किमी. होती है.
  • वर्ष के 187 दिन उत्तरायण में और 178 दिन दक्षिणायण में होते हैं.
  • पृथ्वी अपनी धुरी पर 667 डिग्री का कोण बनाती है, इसलिए दिन रात छोटे-बड़े होते हैं और ऋतु परिवर्तन होते हैं.
  • 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में दिन .
  • बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं. दक्षिणी गोलार्द्ध में इसके विपरीत होता है.
  • इस स्थिति को कर्क संक्रान्ति या ग्रीष्म अयनात (Summer Solstice) कहते हैं.
  • 22 दिसम्बर को जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लम्बवत पड़ती हैं. तो दक्षिणी गोलार्द्ध मे दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं.
  • अतः दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी की ऋतु और उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु की स्थिति को मकर संक्रान्ति (Winter Solstice) के नाम से जाना जाता है.
  • इससे सम्बन्धित और भी तथ्य हैं जैसे-21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर सीधी पड़ती हैं.
  • जिसके कारण प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है.
  • इस स्थिति को विषुवत अथवा सम रात-दिन (Equinox) कहते हैं.
  • भूमध्य रेखा 0° का अक्षांश वृत्त है.
  • अक्षांश भूमध्य रेखा से हर स्थान पर समानान्तर रहकर ध्रुव तक अनेक वृत्तों का निर्माण करता है.
  • अक्षांश रेखाएं 0° से 90° तक होती हैं.
  • भूमध्य रेखा के उत्तर में 0° से 90° उत्तरी ध्रुव तक उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिण में 0° से 90° दक्षिणी ध्रुव कहलाता है.
  • इस प्रकार 180° अक्षांश होते हैं.
  • उत्तरी गोलार्द्ध में 23½° उत्तर में कर्क रेखा, 66½° उत्तर में उपध्रुव वृत (Arctic Circle) और 90° उत्तर में उत्तरी ध्रुव (North Pole) स्थित हैं.
  • इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में 23½° दक्षिण में मकर रेखा (Tropic of Capricorn), 66½ ° दक्षिण में उपनुव वृत (Antarctic Circle) और 90° दक्षिणी में दक्षिण ध्रुव स्थित है.
  • 1° अक्षांशों के चाप की दूरी लगभग 111 किमी० के बराबर होती है जो पृथ्वी की गोलाई के कारण भूमध्य रेखा से छुर्वी तक भिन्न है.
  • भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने में रात दिन की अवधि में अन्तर आने लगता है.
  • जो नीचे दिए गए हैं.
अक्षांश दिन की अवधि
12 घंटे
17° 13 घंटे
49° 16 घंटे
66½° 24 घंटे
69½° 2 महीने
90° 6 महीने

 


देशान्तर (Longitude)पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध

  • ये भी कल्पित रेखायें हैं जो पृथ्वी के चारों ओर भूमध्य रेखा को काटती हुई उतरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती हैं.
  • पृथ्वी के पूर्ण वृत्त में 360 अंश होते हैं.
  • इसलिए भूमध्य रेखा को 360 अंशों में बाँट दिया जाता है.
  • इसके प्रत्येक अंश से गुजरने वाली रेखा को देशान्तर कहते हैं.
  • 0° देशान्तर रेखा ब्रिटेन के ग्रीनविच नामक नगर से होकर गुजरती है जो पूरी पृथ्वी को पश्चिमी एवं पूर्वी दो गोलाद्ध में विभाजित करती है.
  • देशान्तरों की कुल संख्या 360 होती है जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में 180 तक लायी जाती है.
  • भूमध्य रेखा पर 1° देशान्तर की दूरी 111.32 किमी० के बराबर होती हैं जो दों की ओर कम होती जाती है और वों पर 8 किमी. हो जाती है.
  • देशान्तर रेखाओं की पारस्परिक दूरी भूमध्य रेखा की ओर बढ़ती जाती है और ध्रुवों की ओर कम होती जाती है जहां पर वे एक साथ मिल जाती हैं.
  • देशान्तर रेखाएं समय निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
  • पृथ्वी को 360° घूमने में एक दिन या 24 घंटे का समय लग जाता है और 1°  की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट लगते हैं.
  • 24*60/360=4  मिनट
  • पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है और सूर्योदय पूर्व में पहले होता है.
  • जिसके कारण पूर्व का समय आगे और पश्चिम का समय पीछे रहता है.
  • जिसकी वजह से पृथ्वी के सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न अक्षाशों में समय अलग-अलग पाया जाता है.
  • 15° देशान्तर पर 1 घन्टे का अन्तर पाया जाता है जो 75° देशान्तरों पर 5 घंटे और 180° देशान्तर पर 12 घंटे और 360° देशान्तर पर 24 घटें हो जाता हैं.

स्थानीय और प्रमाणिक समय (Local and Standard Times)

  • प्रत्येक देशान्तर के पूर्व और पश्चिम में जाने पर 4 मिनट का अन्तर आता है.
  • किसी स्थान विशेष का सूर्य की स्थिति से परिकलित समय स्थानीय समय कहलाता है.
  • इस समय का आकलन उस समय किया जाता है जब सूर्य आकाश में सबसे उच्चतम स्थिति में पहुंच जाता है और भमि पर किसी वस्तु विशेष की छाया छोटी हो जाती है.
  • इसके विपरीत किसी देश के बीच से गुजरने वाली याम्योत्तर (Meredian) से लिए गए समय को उस देश का प्रमाणिक समय (Standard Time) कहते हैं जो सम्पूर्ण देश के लिए मान्य होता है .
  • अपने देश भारत का प्रमाणिक समय 82½° पूर्वी देशान्तर से लिया गया है जो इलाहाबाद से गुजरता है.
  • इसी प्रकार प्रत्येक देश की अपनी एक प्रमाणिक देशान्तर रेखा है जिससे देश का प्रमाणिक समय लिया जाता है.
  • लेकिन समस्या उस समय आती है जब देश का आकार बड़ा होता है खासकर पूर्व पश्चिम दिशा में.
  • ये देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस को अलग-अलग समय कटिबंधों (Time Zones) में बाँटा गया है जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका को पांच और रूस को 11 समय कटिबंधों में बांटा गया है.
  • इन्हीं समय कटिबंधों से इन देशों का प्रमाणिक समय निर्धारित होता है.

अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Lirne) 

  • यह देखा जाता है कि 15° देशान्तर पर एक घन्टे का अन्तर आता है जो बढ़कर 75° देशान्तर पर पांच घंटे हो जाता है और 180° देशान्तर पर 12 घंटे का अन्तर आ जाता है.
  • यह अन्तर 360° देशान्तर पर 24 घंटे का हो जाता है.
  • इस स्थिति को समाप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रो. डेविडसन ने अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा का निर्धारण किया जो पृथ्वी के स्थल खण्डों को छोड़ते हुये पृथ्वी पर 180° देशान्तर की समानता रखते हुए खींची गई है.
  • परन्तु स्थल के लोगों में समय सम्बन्धी कोई गड़बड़ न हो इसलिए कुछ भागों में यह रेखा मुड़ जाती है और जल से होकर गुजरती है.
  • जब कोई जहाज पूर्व से पश्चिम को आता हुआ इस रेखा को पार करता है तो वह एक दिन छोड़ देता है.
  • यदि वह रविवार को इस रेखा को पार करता है तो अगला दिन सोमवार न होकर मंगलवार होगा.
  • यदि जहाज ने 25 फरवरी को रेखा पार की है तो अगला दिन 26 फरवरी न होकर 27 फरवरी होगा.
  • इसके विपरीत पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाला जहाज पुनः उस दिन को गिन लेता है.
  • यदि उसने मंगलवार को इस रेखा को पार किया है तो वह अगला दिन भी मंगलवार मानेगा न कि बुधवार .
  • यदि उसने इस रेखा को 25 फरवरी को पार किया है तो अगला दिन भी 25 फरवरी मानेगा.

 

पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth in Hindi)

 

 

The post पृथ्वी के सौर्यिक सम्बन्ध (Planetary Relations of the Earth in Hindi) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2O1hMRj
via IFTTT