Saturday, October 13, 2018

अकबर महान् (जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर) Jalal-ud-din Muhammad Akbar

अकबर महान् (जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर) (1556-1605 ई.) Jalal-ud-din Muhammad Akbar

अकबर महान्

  • 23 नवम्बर, 1542 ई. के विकट परिस्थितियों में हमीदा बानू बेगम के गर्भ से अकबर का जन्म हुआ था.
  • हुमायूँ शरणार्थी की दशा में भटक रहा था.
  • अकबर का बचपन क्रमशः उसके चाचा अस्करी तथा कामरान के यहाँ बीता.
  • अकबर पर्याप्त शिक्षा प्राप्त न कर सका, किन्तु यह सैनिक और प्रशासनिक कार्यों में निपुण हो गया.
  • 1551 ई. में मात्र 9 वर्ष की आयु में अकबर को हुमायूँ ने मूनीम खाँ के संरक्षण में गजनी का गवर्नर नियुक्त किया.
  • 1555 ई. में हुमायूँ ने उसे लाहौर का गवर्नर बना दिया.

अकबर महान् (जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर) (1556-1605 ई.) Jalal-ud-din Muhammad Akbar

  • हुमायूँ की मृत्यु होने पर बैरम खाँ ने ‘कलानौर’ (गुरुदासपुर-पंजाब) में 14 फरवरी, 1556 ई. को अकबर का राज्याभिषेक कर दिया.
  • उधर दिल्ली में हेमू ने मुगल गवर्नर तार्दीवेग खाँ को मार भगाया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया.
  • ऐसी स्थिति में अनेक सरदारों ने बैरम खाँ को अकबर सहित गजनी भाग जाने की सलाह दी.
  • किन्तु बैरम खाँ और अकबर ने मुगल सेना सहित दिल्ली की ओर कूच किया .

पानीपत का दूसरा युद्ध

  • यह युद्ध अकबर और हेमू के मध्य 9 नवम्बर, 1556 ई. को पानीपत के मैदान में हुआ.
  • आरम्भ में हेमू की सेना मुगलों पर भारी पड़ी, किन्तु दुर्भाग्यवश हेमू की आँख में तीर लग गई तथा उसकी सेना में भगदड़ मच गई.
  • हेमू को पकड़ कर उसका वध कर दिया गया तथा अकबर की विजय हुई तथा मुगल वंश की पुनः स्थापना की गई.

मेवात की विजय

  • हेमू की मृत्यु के पश्चात् बैरम खाँ ने मेवात पर विजय प्राप्त की तथा वहाँ की सारी सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया.

सिकन्दर सूरी पर आक्रमण

  • सिकन्दर सूरी को पराजित करके बैरम खाँ ने 1557 ई. में मानकोट के दुर्ग पर अधिकार कर लिया.
  • इन विजयों के अतिरिक्त अकबर ने बैरम खाँ के संरक्षण में 1558 ई. से 1560 ई. तक अजमेर, जौनपुर तथा ग्वालियर पर भी अधिकार कर लिया.

पेटीकोट शासन (1560-64 ई.)

  • बैरम खाँ के पतन के पश्चात् 1560 ई. से 1564 ई. तक शासन में अकबर के सम्बन्धियों और हरम की स्त्रियों का बहुत अधिक प्रभाव रहा.
  • इसी शासन काल को अनेक इतिहासकारों ने ‘पेटीकोट शासन’ का नाम दिया है.

अकबर की विजयें

मालवा की विजय

  • 1560 ई. में अकबर ने बाजबहादुर से ‘मालवा प्रदेश जीत कर पीर मुहम्मद को सौंपा.
  • किन्तु बाजबहादुर ने मालवा पर फिर अधिकार कर लिया. 1562 ई. में अकबर ने फिर मालवा के विरुद्ध विशाल सेना भेजी.
  • बाजबहादुर ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली और मालवा मुगल साम्राज्य का अंग बन गया.

गोंडवाना की विजय

  • 1564 ई. में अकबर ने रानी दुर्गावती को पराजित करके गोंडवाना प्रदेश पर अधिकार कर लिया है.

चित्तौड़ की विजय

  • 1568 ई. में अकबर ने राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह को पराजित करके मेवाड़ के रणथम्भौर प्रसिद्ध दुर्ग चित्तौड़ को जीत लिया.
  • उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात् महाराणा प्रताप ने अकबर के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा.

रणथम्भौर तथा कालिंजर की विजय

  • 1569 ई. में अकबर ने रणथम्भौर पर आक्रमण कर दिया.
  • यहाँ के शासक राणा सूजान राय ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली.

राणा प्रताप के विरुद्ध युद्ध

  • मेवाड़ के राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया.
  • 1567 ई. में राजपूतों (राणा प्रताप) तथा मुगल सेना के मध्य हल्दी घाटी का प्रमुख युद्ध हुआ.
  • राजपूत शक्ति को बहुत क्षति पहुंची.
  • किन्तु फिर भी उन्होंने मुगलों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा और अन्त तक मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की.

गुजरात की विजय

  • 1572 ई. में अकबर गुजरात के विरुद्ध बड़ा .
  • यहाँ के शासक मुजफ्फर खाँ तृतीय ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली.

बिहार और बंगाल की विजय

  • 1576 ई. में अकबर ने टोडरमल के नेतृत्व में बिहार तथा बंगाल के विरुद्ध सेना भेजी.
  • यहाँ के शासक दाऊद खाँ को पराजित करके यह प्रदेश मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया.

काबुल की विजय

  • 1585 ई. में अकबर ने अपने सौतेले भाई मिर्जा मुहम्मद हकीम की मृत्यु के पश्चात् काबुल पर भी अपना अधिकार कर लिया.

कश्मीर पर अधिकार

  • 1586 ई. में अकबर ने राजा भगवानदास की सहायता से कश्मीर पर अधिकार कर लिया.

सिन्ध और कन्धार की विजय

  • अकबर ने 1591 ई. में सिन्ध और 1596 ई. में कन्धार पर विजय प्राप्त की.

अहमदनगर की विजय

  • 1600 ई. में अकबर ने मुराद और खानखाना के नेतृत्व में अमदनगर के विरुद्ध सेना भेजी.
  • मुगल सेनाओं ने वहाँ के शासक निजाम शाह को बन्दी बना लिया और अहमदनगर पर अधिकार कर लिया.

खानदेश की विजय

  • 1601 ई. में खानदेश के शासक मिर्जा बहादुर को पराजित करके इस पर अधिकार कर लिया गया.
  • इस प्रकार अकबर ने अनेक विजयें कीं तथा उसका साम्राज्य हिमालय से नर्मदा नदी तक विस्तृत हो गया.

अकबर के समय हुए विद्रोह

उजबेगों का विद्रोह

  • उजबेग पुराने अमीर थे.
  • अब्दुल्ला खाँ, खानजमाँ या अलीकुली खाँ, आसफ खाँ, बहादुर खाँ, इब्राहिम खाँ, अवध का सूबेदार खाने आलम आदि इस विद्रोह के प्रमुख नेता थे.
  • 1564 ई. में अब्दुल्ला खाँ ने अकबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया.
  • कालान्तर में अन्य उजबेग सरदार भी उससे मिल गए.
  • 1565 ई. में खानजमों ने भी विद्रोह कर दिया तथा आसफ खाँ भी उससे जा मिला.
  • अकबर ने खानजमाँ के विरुद्ध सेना भेजी, किन्तु मुगल सेना को 1565 ई. में मुँह की खानी पड़ी.
  • अकबर ने दूसरी बार स्वयं सेना का नेतृत्व किया, किन्तु उसे अपने भाई हकीम मिर्जा के कार्यों के कारण यह अभियान स्थगित करना पड़ा.
  • अपने भाई से निपटने के पश्चात् 1567 ई. में अकबर की सेनाओं ने रात के समय गंगा नदी को पार करके प्रातः ही उजबेगों पर आक्रमण कर दिया.
  • खानजमाँ मारा गया.
  • यह स्पष्ट है कि विद्रोह केवल अकबर की वीरता और उपयुक्त समय पर कार्य करने के कारण ही दब सका था.

मिर्जा वर्ग का विद्रोह

  • मिर्जा वर्ग के लोग अकबर के सम्बन्धी थे.
  • इब्राहिम मिर्जा, मुहम्मद हुसैन मिर्जा सिकन्दर मिर्जा, महमूद मिर्जा, मसूद मिर्जा आदि इस वर्ग के प्रमुख विद्रोही थे.
  • बादशाह के सम्बन्धी होने के कारण ये लोग कुछ विशिष्ट अधिकार चाहते थे.
  • अतः उन्होंने विद्रोह कर दिया.
  • 1573 ई. तक अकबर मिर्जाओं के विद्रोह को पूर्ण रूप से कुचलने में सफल हो गया.

बंगाल एवं बिहार में हुए विद्रोह

  • 1580 ई. में बंगाल में बाबा खाँ काकशल एवं बिहार में मासूम काबुली तथा अरव बहादुर ने विद्रोह कर दिया.
  • 1581 ई. में राजा टोडरमल के नेतृत्व में मुगल सेना ने इस विद्रोह को को कुचला.

अफगान वलूचियों का विद्रोह

  • अकबर के कश्मीर अभियान के समय 1585 ई. में पश्चिमोत्तर सीमा पर अफगानों एवं बलूचियों ने विद्रोह कर दिया.
  • इस विद्रोह में बीरबल की हत्या कर दी गई.
  • राजा टोडरमल एवं राजा मानसिंह ने इस विद्रोह को कुचला..

शाहजादा सलीम का विद्रोह

  • सम्राट अकबर शाहजादा सलीम को बहुत लाड़-प्यार करता था.
  • अतः यह बिगड़ चुका था.
  • वह बादशाह बनना चाहता था.
  • 1599 ई. में अकबर की आज्ञा के बिना अजमेर से इलाहाबाद चला गया तथा वहाँ स्वतन्त्र शासक के रूप में रहने लगा.
  • 1602 ई. में अकबर ने सलीम को समझाने का प्रयत्न किया.
  • इस दौरान इसी संदर्भ में ओरछा के बुन्देल सरदार वीरसिंह द्वारा अबुल फजल की हत्या करवा दी गई.
  • 1603 ई. में सलीम ने आगरा आकर अकबर से माफी मांग ली.
  • उसे क्षमा कर दिया गया.
  • अकबर ने उसे मेवाड़ को जीतने के लिए भेजा, किन्तु वह फिर अकबर की आज्ञा का उल्लंघन करके इलाहाबाद पहुंच गया.
  • 1604 ई. में उसने फिर आगरा आकर क्षमा मांग ली तथा अकबर ने एक बार फिर उसे क्षमा कर दिया.
  • इसके पश्चात् सलीम ने कभी विद्रोह नहीं किया.

अकबर की मृत्यु

  • 25-26 अक्टूबर, 1605 ई. की अर्द्धरात्रि को अकबर की अतिसार रोग (Dysentry) के कारण मृत्यु हो गई.
  • उसे सिकन्दराबाद के मकबरे में दफनाया गया.

अकबर की राजपूत नीति

  • अकबर हिन्दुओं की स्वेच्छा से साम्राज्य स्थापित करना चाहता था.
  • अतः उसने राजपूतों को अपने पक्ष में करने का संकल्प किया.
  • इस हेतु अनेक राजपूत योद्धा शासन में रखे गए. जिनमें से अनेक को मनसबदार बनाया गया.
  • ‘जजिया’ तथा ‘तीर्थ-यात्रा कर समाप्त कर दिया गया.
  • अकबर ने राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किए.
  • 1562 ई. में उसने जयपुर के राजा बिहारीमल की पुत्री से तथा 1570 ई. में जैसलमेर तथा बीकानेर की राजकुमारियों से विवाह किया.
  • 1584 ई. में शाहजादा सलीम का विवाह राजा भगवानदास की पुत्री से किया गया.
  • इस नीति से अकबर ने समस्त राजपूताने को अपने पक्ष में कर लिया.
  • किन्तु मेवाड़ के राज्य ने अकबर की शक्ति की अवहेलना की और परिणामतः अकबर को चित्तौड़ पर चढ़ाई करनी पड़ी.
  • उल्लेखनीय है कि मेवाड़ (चित्तौड़) के विरुद्ध संघर्ष में राजा मानसिंह और अन्य राजपूत योद्धाओं ने भी अकबर की सहायता की .
  • अकबर ने राजपूत शासकों को अपना अधीनस्थ साथी बनाए रखने की कोशिश की.
  • इस प्रकार सहकारिता की नीति के कारण अकबर मुगल साम्राज्य की नींव को इस देश में दृढ़ कर सका.
  • औरंगजेब के शासनकाल में इस नीति के विरुद्ध कार्य करने के कारण यह साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया.

धार्मिक विकास

  • अकबर वह प्रथम सम्राट था जिसके धार्मिक विचारों में क्रमिक विकास दिखाई देता है.
  • उसके इस विकास को निम्नलिखित तीन कालों में बाँटा जा सकता है

प्रथम काल (1556 से 1575 ई.)

  • इस काल में अकबर इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयायी था.
  • वह दिन में पाँच बार नमाज पढ़ता था तथा रमजान के महीने रोजे रखता था.
  • वह मुल्ला व मौलवियों का आदर करता था.
  • इस्लाम की उन्नति हेतु उसने अनेक मस्जिदों का निर्माण करवाया, परन्तु वह धार्मिक दृष्टि से असहनशील नहीं बना.
  • उल्लेखनीय है कि इसी काल में अकबर ने राजपूत नीति अपनाई थी.
  • वस्तुतः इस समय धर्म उसका व्यक्तिगत मामला था तथा राजपूत नीति आदि कार्य राजनीति से प्रेरित थे.

द्वितीय काल (1575 से 1582 ई.)

  • अकबर का यह काल धार्मिक दृष्टि से क्रान्तिकारी काल था.
  • इस काल में उसने ‘दीन-ए-इलाही‘ धर्म तथा ‘इबादतखाने‘ की स्थापना की.
  • 1581 ई. में उसने ‘दीन-ए-इलाही’ को राजकीय धर्म घोषित कर दिया.
  • ‘इबादतखाने’ में पहले केवल मुसलमान ही भाग लेते थे, किन्तु कालान्तर में सभी धर्मों के लिए धर्म सम्बन्धी वाद-विवाद हेतु इसे खोल दिया गया.
  • इस काल में अकबर का आत्म-चिन्तन बढ़ गया तथा उसने प्रत्येक शुक्रवार को माँस खाना छोड़ दिया.
  • पशुबलि तथा मुल्ला और मौलवियों पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया गया.

तृतीय काल (1582 से 1605 ई.)

  • इस काल के दौरान अकबर पूर्ण रूप से ‘दीन-ए-इलाही’ में अनुरक्त हो गया .
  • इस्लाम धर्म के प्रति उसकी निष्ठा कम हो गई.
  • बदायूँनी का यह कथन कि ‘इस काल में अकबर ने कई इस्लाम विरोधी कार्य भी किए सही प्रतीत नहीं होता, क्योंकि सहिष्णुता के युग में अकबर द्वारा किसी धर्म विरोधी कार्य किया जाना सम्भव नहीं था.

दीन-ए-इलाही

  • 1581 ई. में अकबर ने सभी धर्मों के गुणों का संग्रह करके ‘दीन-ए-इलाही’ या ‘तौहिदे-इलाही’ या ‘तकहीद-ए-इलाही’ या दैवी एकेश्वरवाद’ (Divine Monotheism) नामक धर्म की स्थापना की.
  • अबुल फज़ल इसका प्रधान पुरोहित था.
  • इस मत में दिक्षित होने हेतु एक संस्कार प्रचलित किया गया.
  • दीक्षा प्राप्त करने वाला व्यक्ति अपनी पगड़ी एवं सिर को सम्राट के चरणों में रखता था.
  • सम्राट उसे पुनः उठा कर उसे शास्त (Shast) प्रदान करता था, जिस पर ‘परम नाम’ और सम्राट का स्वयं का गुरुमंत्र ‘अल्ला-हु-अकबर‘ खुदा होता था.
  • नव-दीक्षित व्यक्ति को यह दीक्षा मिलती थी कि–“पवित्र और दिव्य दृष्टि कभी त्रुटि नहीं करती. इस धर्म के प्रमुख सिद्धान्त थे
  1.  इसका मुख्य आधार भगवान की एकता थी.
  2. एक दूसरे का अभिवादन करते समय इस धर्म के सदस्य ‘अल्ला-हु-अकबर’ तथा ‘जल्ला जलालहु’ शब्दों का प्रयोग करते थे.
  3. माँस भक्षण वर्जित था.
  4. जन्म दिवस पर दावत देनी पड़ती थी.
  5. मछुआरों, कसाइयों तथा शिकारियों के साथ भोजन करने पर प्रतिबन्ध था.
  6. अपने जीवन काल में ही श्राद्ध भोजन देना होता था.
  7.  ‘इज्जत, समान धर्म, सम्पत्ति और सम्राट के प्रति स्वामि भक्ति, भक्ति की चार दिशाएं थीं.
  8. जैनबोस (Jainbos) दण्डवत् का आचरण करना.
  9. सूर्य के लिए आदर और अग्नि पूजा इस धर्म का मुख्य अंग हो गया. अरस्तु द्वारा उल्लिखित चार तत्वों ‘अग्नि, हवा, पानी तथा पृथ्वी या भूमि’ को अबुल फज़ल ने इस प्रकार वर्गीकृत किया
योद्धा अग्नि
शिल्पकार एवम् व्यापारी हवा
विद्वान पानी
किसान भूमि
  • शाही कर्मचारियों का वर्गीकरण अबुल फजल ने इस प्रकार किया
उमरा वर्ग अग्नि
राजस्व अधिकारी हवा
विधि वेत्ता, धार्मिक अधिकारी,ज्योतिषी, कवि एवं दार्शनिक पानी
बादशाह के व्यक्तिगत सेवक भूमि
  • अकबर ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की भावना रखी.
  • उसने आगरा एवं लाहौर में ईसाइयों को गिरजाघर बनाने की अनुमति दी.
  • उसने सूफी मत के ‘चिश्ती सम्प्रदाय‘ को आश्रय दिया.
  • अकबर ने जैनाचार्य हरिविजय सूरि को “जगद गुरु’ की उपाधि प्रदान की.
  • अकबर पर सर्वाधिक प्रभाव हिन्दू धर्म का पड़ा.
  • 1571 ई. में अकबर ने फतेहपुर सिकरी को अपनी राजधानी बनाया.
  • 1583 ई. में अकबर ने नया संवत् ‘इलाही संवत्’ जारी किया.

अकबर के दरबार के नौ रत्न

(1) अबुल फज़ल

  • अबुल फज़ल का जन्म 1550 ई. में हुआ था.
  • अबुल फज़ल शेख मुबारक का पुत्र था.
  • अबुल फज़ल ने 20 सवार के मनसब से अपना जीवन आरम्भ किया तथा अपनी योग्यता से 5000 सवार का मनसबदार बना.
  • अबुल फज़ल साहित्य, इतिहास तथा दर्शनशास्त्र का बहुत ज्ञान था.
  • धार्मिक तथा साहित्य सम्बन्धी वाद-विवाद में बहुत कम व्यक्ति ही उसका मुकाबला कर सकते थे.
  • अबुल फज़ल में धार्मिक कट्टरता नहीं थी.
  • अबुल फज़ल ने ‘अकबरनामा‘ तथा ‘आइने-अकबरी‘ की रचना की.
  • 1599-1600 ई. में उसने सैनिक प्रतिभा भी दिखाई.
  • वह एक कुशल राजदूत भी था.
  • 1602 ई. में शाहज़ादे सलीम के कहने पर वीर सिंह बुन्देला ने उसकी हत्या कर दी.

(2) बीरबल

  • बीरबल का जन्म ‘काल्पी’ में 1528 ई. में हुआ था.
  • बीरबल का बचपन का नाम ‘महेशदास’ था तथा वह ब्राह्मण वंश का था.
  • बीरबलअपनी स्वामिभक्ति, चतुराई और स्वाभाविक योग्यताओं के कारण उसने बहुत उन्नति की तथा वह 2,000 का मनसबदार नियुक्त किया गया.
  • बीरबल को 1586 ई. में न्याय विभाग का उच्चाधिकारी नियुक्त किया गया तथा उसे ‘राजा‘ को पदवी भी प्राप्त थी.
  • उच्च शिक्षा प्राप्त न कर सकने पर भी उसमें ‘हास्यरस’ और ‘हाजिर जवाबी’ के महान् प्रशंसनीय गुण थे.
  • उसे ‘कविराज’ की उपाधि भी प्राप्त थी.
  • बीरबल ‘दीन-ए-इलाही’ को मानने वाला एकमात्र हिन्दू था.
  • 1586 ई. में यूसुफजाइयों के विरुद्ध लड़ते समय बीरबल की मृत्यु हुई.
  • अबुल फज़ल तथा बदायूँनी के अनुसार अकबर को सब अमीरों से अधिक बीरबल की मृत्यु पर शोक पहुँचा था.

(3) राजा टोडरमल

  • यह उत्तर प्रदेश के क्षत्रिय वंश से सम्बन्धित था.
  • उसने आरंभ में शेरशाह सूरी के पास नौकरी की तथा सूरवंश के अन्त के बाद मुगल सेना में आया.
  • 1562 ई. में यह प्रमुख अधिकारी बन गया तथा 1572 ई. में वह गुजरात प्रदेश का दीवान नियुक्त हुआ.
  • 1582 ई. में वह प्रधानमंत्री वन गया.
  • वह सत्यवादी, साहसी, एक कुशल सैनिक, सेनानायक तथा राजदूत था.
  • वह शासन प्रबन्ध व अन्य विषयों का गूढ़ ज्ञाता था.
  • भूमि सम्बन्धी सुधारों के लिए राजा टोडरमल का नाम विख्यात है.
  • 1589 ई. में टोडरमल की मृत्यु हो गई.

(4) भगवानदास

  • भगवानदास आमेर के राजा भारमल का पुत्र था.
  • भगवान दास की बहन का विवाह अकबर के साथ हुआ था.
  • वह 1562 से 1589 ई. तक अकबर का साथी व मित्र रहा.
  • गुजरात से काबुल और कश्मीर तक उसने बहुत से युद्धों में भाग लिया.
  • उसे 5,000 का मनसबदार बना दिया गया तथा ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि दी गई.
  • वह मुगल राज्य के सम्मानित दरबारियों में-से एक था.
  • अबुल फज़ल के अनुसार भगवानदास सत्यवादी तथा वीर था.

(5) मानसिंह

  • मानसिंह आमेर के राजा भारमल का पौत्र था.
  • उसके सम्पर्क में आकर अकबर का हिन्दुओं के प्रति दृष्टिकोण और भी उदार हुआ.
  • अकबर के अधीन राजा मानसिंह ने काबुल, बिहार तथा बंगाल आदि प्रदेशों पर सफल सैनिक अभियान किए.

(6) तानसेन

  • प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन का जन्म ग्वालियर में हुआ था.
  • उसने कई रागों का निर्माण किया.
  • उसके समय ‘ध्रुपद गायन शैली का विकास हुआ.
  • तानसेन ने सम्भवतः इस्लाम ग्रहण किया था.
  • उसकी प्रमुख कृतियां थीं-मियाँ की टोड़ी’, ‘मियाँ की मल्हार’, मियाँ की सारंग’, ‘दरबारी कान्हड़ा’ आदि.
  • अकबर ने उसे ‘कण्ठाभरणवाणीविलास‘ की उपाधि दी.

(7) अब्दुर्रहीम खानखाना

  • यह बैरम खाँ का पुत्र था तथा उच्च कोटि का विद्वान और कवि था.
  • यह जहाँगीर (सलीम) का गुरु था तथा जहाँगीर सबसे अधिक अब्दुर्रहीम से ही प्रभावित था.
  • उसने तुर्की भाषा में रचित ‘बाबरनामा‘ का फारसी में अनुवाद किया.
  • अकबर ने उसे ‘खानखाना’ की उपाधि से सम्मानित किया.

(8) मुल्ला दो प्याजा

  • यह अरब का रहने वाला था तथा हुमायूँ के समय भारत आया था.
  • अकबर के नौ-रत्नों में इसे भी स्थान प्राप्त है.
  • भोजन में इसे दो प्याज अधिक पसन्द होने के कारण अकबर ने इसे ‘दो प्याजा’ की उपाधि प्रदान की.

(9) फैजी

  • फैजी अबुल फज़ल का बड़ा भाई था.
  • वह ‘दीन-ए-इलाही धर्म का कट्टर समर्थक था.
  • अकबर के दरबार में वह राजकवि के पद पर आसीन था.
  • उसकी 1595 ई. में मृत्यु हो गई.

हकीम हुकाम

  • हकीम हुकाम को भी अकबर के दरबारियों में प्रमुख स्थान प्राप्त था.
  • वह अकबर के रसोई-घर का प्रधान था.

अकबर के कुछ महत्वपूर्ण कार्य

कार्य वर्ष
दास प्रथा का अन्त 1562 ई.
हरमदल से मुक्ति 1562 ई.
तीर्थ यात्रा कर समाप्त 1563 ई.
जजिया कर समाप्त 1564 ई.
फतेहपुरसिकरी की स्थापना 1571 ई.
राजधानी आगरा से फतेहपुर सिकरी स्थानान्तरण 1571 ई.
जागीरदारी प्रथा का अन्त 1575 ई.
इबादतखाने की स्थापना 1575 ई.
इबादतखाना में सभी धर्मों को प्रवेश की अनुमति 1578 ई.
मजहर की घोषणा 1579 ई.
दीन-ए-इलाही की स्थापना 1581 ई.
इलाही संवत्’ की स्थापना 1583 ई.

अकबर द्वारा विजित प्रदेश

प्रदेश शासक समय मुगल सेनापति
(i) दिल्ली हेमू 1556 ई अकबर तथा बैरम खाँ
(ii) मालवा बाजबहादुर 1561 ई. आदम खाँ, पीर मुहम्मद
1562 ई. अब्दुल्ला खाँ
(iii) चुनार अफगान 1561 ई. आसफ खाँ
(iv) गोंडवाना वीर नारायण तथा रानी दुर्गावती 1564 ई. आसफ खाँ
   
(v) राजस्थान
(A) आमेर भारमल 1562 ई. (स्वेच्दा से अधीनता स्वीकार की)
(B) मेड़ता जयमल
(C) मेवाड़ उदयसिंह 1568 ई. अकबर
   राणा प्रताप
1576 ई. मानसिंह, आसफ खाँ
(D) रणथम्भौर सूरजन हाड़ा 1569 ई. भगवान दास व अकबर
(E) कालिंजर रामचन्द्र 1569 ई. मजनु खाँ काकशाह
(F) मारवाड़ राव चन्द्र सेन  1570 ई. (स्वेच्दा से अधीनता स्वीकार की)
(H) जैसलमेर रावल हरिराय  1570 ई. (स्वेच्दा से अधीनता स्वीकार की)
(I) बीकानेर कल्याणमल  1570 ई. (स्वेच्दा से अधीनता स्वीकार की)
       
(vi) गुजरात मुजफ्फर खाँ तृतीय 1571-72 ई. खान कला, खाने आजम एवं सम्राट अकबर
(vii) बिहार-बंगाल दाऊद खाँ 1674-76 ई. मुनीम खाँ खानखाना
(viii) काबुल हकीम मिर्जा 1581 ई. मानसिंह एवं अकबर
(ix) कश्मीर युसुफ खाँ एवं याकूब खाँ 1586 ई. राजा भगवान दास एवं कासिम खाँ
(x) उड़ीसा निसार खाँ  1590-91 ई. राजा मानसिंह
(xi) सिन्ध जानी बेग 1591 ई. अब्दुर्रहीम खानखाना
(xii) बलूचिस्तान अफगान 1595 ई. मीर मासूम
(xiii) कन्धार मुजफ्फर हुसैन मिर्जा 1595 ई.  मीर मासूम
       
दक्षिण भारत की विजय      
(i) खानदेश अली 1591 ई. (स्वेच्छा से अधीनता स्वीकार की.) 
(ii) दौलताबाद चाँदबीबी 1599 ई. मुराद, अबुल फज़ल, अब्दुर्रहीम खानखाना एवं अकबर
(iii) अहमद नगर बहादुरशाह 1600 ई. राजकुमार दानियाल एवं अब्दुर्रहीम खानखाना
(iv) असीरगढ़ मीरन बहादुर 1601 ई. सम्राट अकबर

 

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