Wednesday, October 31, 2018

मुगल कालीन आर्थिक अवस्था (Financial status of Mughal era) मुगल कालीन भारत

मुगल कालीन आर्थिक अवस्था (Financial status of Mughal era) मुगल कालीन भारत (India During the Mughals)

मुगल कालीन आर्थिक अवस्था

  • इस काल की आर्थिक स्थिति की एक महत्वपूर्ण विशेषता शासक वर्ग एवं जन-साधारण के जीवन में पाई जाने वाली घोर आर्थिक विषमता थी.
  • लोग बिना सरकारी हस्तक्षेप के किसी भी व्यवसाय को चुन सकते थे.
  • मुख्य व्यवसाय कृषि था तथा गाँव प्रायः आत्म-निर्भर थे.

मुगल कालीन आर्थिक अवस्था (Financial status of Mughal era) मुगल कालीन भारत (India During the Mughals)

कृषि

  • लोग प्रायः गेहूँ, चावल, जौ, मटर, चना, तिल, तिलहन, ज्वार, बाजरा, कपास, गन्ना, दालें, फल, सब्जियाँ, तम्बाकू, पोस्त, चाय, कॉफी, जूट, चन्दन आदि की कृषि करते थे.
  • बाबर ने आगरा के आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई का वर्णन किया है.
  • अकबर ने कृषि की उन्नति हेतु विशेष ध्यान दिया.
  • प्राकृतिक विपत्तियों के समय कई बार किसानों की कठिनाइयां बढ़ जाती थीं, किन्तु ऐसी परिस्थिति में सरकार प्रायः सहायता तथा राहत कार्य करती थी.

मुगल कालीन उद्योग

  • कई बार गाँवों में कुटीर उद्योग स्थापित किए जाते थे तथा इनके श्रमिक प्रायः वंशानुगत रहते थे.
  • इस काल में कृषि पैदावार पर आधारित सबसे महत्वपूर्ण उत्पादन गुड़, इत्र तथा रावाब थे.
  • मुगल काल में शहरों के प्रमुख उद्योग धन्धे थे-वस्त्र उद्योग, धातु उद्योग, पत्थर तथा ईंटों के उद्योग, चीनी का उद्योग, चमड़े का उद्योग, हाथी दाँत, मूँगे और नकली जवाहरात बनाने के उद्योग आदि.
  • दिल्ली, आगरा, श्रीनगर, लाहौर, कैम्बे, अहमदाबाद, ढाका, खम्बात, मुल्तान, बरार, बरहानपुर आदि नगर विभिन्न उद्योग के लिए प्रसिद्ध थे.

 

  • बिहार, बंगाल, आगरा, बनारस, जौनपुर, पटना, मालवा इत्यादि सूती वस्त्र के प्रमुख केन्द्र थे.
  • बंगाल सूती तथा रेशमी वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र था.
  • बढ़िया किस्म की रेशम चीन से मंगाई जाती थी.
  • जहाँगीर ने ऊनी वस्त्र उद्योग अमृतसर में स्थापित किया था.
  • देश के कई स्थानों पर सुन्दर चादरें, फूलदार कालीन, साड़ियाँ, शालें आदि भी बनाई जाती थीं.
  • अंग्रेजों के सत्ता सम्भालने तक वस्त्र उद्योग निरन्तर प्रगति करता रहा.
  • इसके निर्यात के कारण भारत को काफी मात्रा में सोना चाँदी प्राप्त होता था.
  • आइने अकबरी के अनुसार लोहे और धातुओं के उपकरण और औजार बंगाल, पंजाब और गुजरात में बनाए जाते थे.
  • सोमनाथ बढ़िया और मजबूत तलवारों के लिए विख्यात था.
  • गया, कश्मीर, सियालकोट और शाहजुदपुर चीड़ की लकड़ी से कागज बनाने के प्रमुख केन्द्र थे.
  • सियालकोट में मानसिंगी एवम् सिल्फ नामक कागज का निर्माण होता था.
  • चमड़े का उद्योग गाँवों और शहरों में फैल हुआ था. इस उद्योग का बाजार अन्तर्देशीय था.
  • उत्तर-प्रदेश, पंजाब, गुजरात, बंगाल आदि में गन्ने पर आधारित गुड़, खाँडसारी, चीनी, शक्कर, मिस्री आदि का निर्माण होता था.
  • कई स्थानों पर शहद की मक्खियां पाली जाती थीं .
  • काँच का उत्पादन बरार, बिहार और फतेहपुरसिकरी में होता था.
  • अन्य कई लघु उद्योग भी अस्तित्व में थे.

मुगल कालीन आयात निर्यात

  • मुगल काल में आन्तरिक तथा बाह्य दोनों व्यापार प्रगति पर थे.
  • आन्तरिक व्यापार पर वैश्य, मारवाड़ी, चैट्टी, बंजारा आदि जातियों का एकाधिकार था.
  • व्यापार जल तथा स्थल दोनों मार्गों से होता था.
  • कैम्बे, सूरत, भड़ौच, गोआ, चटगाँव, सोनार गाँव, मच्छलीपट्टनम, कोचीन, कालीकट इत्यादि प्रमुख बन्दरगाह थे.
  • स्थल मार्ग में मुल्तान और कश्मीर प्रमुख थे.
  • सूती वस्त्र, रेशमी वस्त्र, गर्म मसाला, अफीम, नील, लाख, कालीमिर्च, चीनी आदि निर्यात की प्रमुख वस्तुएँ थी.
  • भारत ईरान से घोड़े, चीन से रेशम तथा चीनी मिट्टी के बर्तन, वेनिस और ईरान से काँच के बर्तन, तथा यूरोपीय शराव, अफ्रीकी दास, सोना-चाँदी इत्यादि का आयात करता था.

मुगल कालीन लेन-देन

  • मुगल काल में कोई व्यवस्थित बैंकिंग प्रणाली और बीमा कम्पनी नहीं थी.
  • ग्रामीण साहूकार और शहरी सर्राफ ऋण लेने-देन का काम करते थे.
  • हुण्डियों के माध्यम से रुपयों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेन-देन होता था.
  • बड़े स्तर के व्यापारियों का जीवन-स्तर बहुत ऊँचा था.
  • छोटे व्यपारी सरकारी अधिकारियों, चोरों तथा डाकुओं के डर से अपनी सम्पत्ति का अधिकांशतः प्रदर्शन नहीं करते थे.
  • उनका जीवन स्तर बहुत ऊँचा नहीं था.

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