Sunday, August 19, 2018

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास (1296-1316 ई.) Alauddin Khilji in Hindi

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास (1296-1316 ई.) Alauddin Khilji in Hindi-अलाउद्दीन जिसे अली या गुरशस्प भी कहा जाता था, जलालुद्दीन खिलजी के भाई शहाबुद्दीन मसऊद खिलजी का पुत्र था. वह एक महत्वाकांक्षी पुरुष था तथा जलालुद्दीन खिलजी के समय उसने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए.

 

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास (1296-1316 ई.) Alauddin Khilji in Hindi

 

अपने चाचा की हत्या करवा कर वह सुल्तान बना. उसका राज्यारोहण दिल्ली में स्थित बलबन के ‘लाल महल’ में हुआ. उसने सिकन्दर द्वितीय (सानी) की उपाधि धारण की तथा खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए ‘यास्मिन-उल-खिलाफत-नासिरी-अमीर-उल-मिमुनिन’ की उपाधि ग्रहण की.

उसके शासन के आरम्भिक वर्षों में ही अनेक विद्रोह खड़े हुए जिन्हें कुशलता पूर्वक दबा लिया गया. अपने विरोधियों को समाप्त करने के लिए अलाउद्दीन ने अत्यन्त कड़ाई व निष्ठुरता से काम लिया. उसने मलिका जहाँ को कारावास में डाल दिया व उसके दो पुत्रों को अन्धा करवा दिया.

उसने लगभग 2000 मंगोलों (जो इस्लाम ग्रहण करके दिल्ली के आसपास बस गए थे तथा गुजरात की लूट का बड़ा हिस्सा मांग रहे थे और विद्रोह पर उतारू हो गए थे) को मौत के घाट उतार दिया. उनका दमन नुसरत खाँ ने किया.

सुल्तान ने अपने विद्रोही भतीजे अकत खाँ का भी वध करवा दिया. सुल्तान के भांजे मलिक उमर व गंगू खाँ ने भी विद्रोह कर दिया, जिन्हें मौत की घाट उतारा गया. दिल्ली के हाजी मौला का विद्रोह सरदार हमीदुद्दीन ने दबाया.

 

अलाउद्दीन खिलजी(Alauddin Khilji) का साम्राज्य विस्तार

 

(1) मुल्तान विजय

दिल्ली में पूर्ण रूप से जम जाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी(Alauddin Khilji) ने अपने दो योग्य सेनापतियों-उलुग खाँ तथा जफर खाँ को मुल्तान विजय के लिए भेजा. जलालुद्दीन खिलजी के दो पुत्रों अरकली और रुक्नुद्दीन को बन्दी बना कर अन्धा करवा दिया गया व मलिका जहाँ को भी बन्दी बना लिया गया. तत्पश्चात् उसने जलालुद्दीन खिलजी के समर्थक सरदारों को कड़ा दण्ड दिया तथा उनकी जागीरें छीन ली. अरकली खाँ, रुक्नुद्दीन, इब्राहिम, उलुग खाँ तथा अहमद चाप तथा उनके परिवारों को कठोर दण्ड दिए गए. अरकली खाँ के पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया गया.

(2) गुजरात विजय

24 फरवरी, 1299 ई. को शाही सेनाओं ने नुसरत खाँ व उलुग खाँ के नेतृत्व में गुजरात की ओर प्रस्थान किया. वहाँ का शासक कर्ण बघेला शीघ्र ही पराजित हुआ और पर्याप्त लूटपाट के पश्चात् इस राज्य को सल्तनत में मिला लिया गया. सोमनाथ के मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट किया गया तथा खिलजी सेना ने कैम्बे (खम्भात) नामक समृद्ध बन्दरगाह को भी लूटा.

(3) रणथम्भौर

सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी रणथम्भौर को जीतने में असफल रहा था. अतः यहाँ के राजपूत शासक राणा हम्मीर देव ने अपनी शक्ति का संचय कर लिया. 1299 ई. में उलुग खाँ व नुसरत खाँ को हम्मीर देव के विरुद्ध भेजा गया. प्रथम चरण में शाही सेना पराजित हुई तथा नुसरत खाँ मारा गया. सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) ने स्वयं रणथम्भौर की ओर प्रस्थान किया तथा दुर्ग को घेर लिया. राजपूत बड़ी वीरता से लड़े तथा अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए व राजपूत नारियों ने जौहर का मार्ग अपनाया. रणथम्भौर की विजय से सुल्तान को आगे की विजयों के लिए प्रोत्साहन मिला.

(4) मेवाड़

मेवाड़ राजपूतों का दूसरा शक्तिशाली राज्य था तथा चित्तौड़ का दुर्ग सामरिक दृष्टिकोण से बहुत ही सुरक्षित स्थान पर था. 28 जनवरी, 1303 ई. को सुल्तान ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. 7 महीने के कठिन संघर्ष के पश्चात् 26 अगस्त, 1303 ई. को इस किले पर अधिकार कर लिया गया. राणा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुआ व रानी पद्मिनी या पद्मावती ने अनेक राजपूत नारियों के साथ जौहर की प्रथा का पालन किया. चितौड़ का नाम खिज्राबाद रखा गया तथा 7 या 9 वर्षीय युवराज खिज्रखाँ को वहाँ का प्रमुख नियुक्त किया गया, जिसका संरक्षक मलिक शाहीन ‘नायब बारबक’ (सुल्तान का एक दास) को बनाया गया. अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) को मंगोलों से निपटने हेतु दिल्ली वापस आना पड़ा. खिज्र खाँ राजपूतों के कड़े विरोध के कारण चित्तौड़ पर ज्यादा देर तक नियन्त्रण नहीं रख सका. सुल्तान ने खिज्र खाँ को चित्तौड़ खाली करने का आदेश दे दिया तथा वहाँ की जिम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी. हम्मीर देव (गुहिलोत राजवंश का) ने 1321 ई. में मालदेव को पराजित करके मेवाड़ को आजाद करवा दिया.

(v) मालवा

1305 ई. में सुल्तान ने एन-उल-मुल्क के नेतृत्व में मालवा के विरुद्ध एक सेना भेजी. मालवा के राय महलक देव तथा उसके प्रधानमन्त्री कोका प्रधान ने शाही सेना का विरोध किया, किन्तु नवम्बर-दिसम्बर, 1305 ई. में उनको पराजित करके उनका वध कर दिया गया. इस विजय ने मुसलमानों को उज्जैन, मांडू, धार व चन्देरी पर अधिकार करने योग्य बना दिया. एन-उन-मुल्क को मालवा का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

(vi) सेवाना

3 जुलाई, 1308 ई. को शाही सेनाओं ने सेवाना के परमार शासक शीतलदेव के विरुद्ध कूच किया. 10 नवम्बर, 1308 ई. को शीतलदेव मारा गया तथा सेवाना का प्रशासन कमालुद्दीन गुर्ग को सौंप दिया गया.

(7 ) जालौर

जालौर के शासक कन्हार देव ने 1304 ई. में सुल्तान की अधीनता स्वीकार की थी. मगर धीरे-धीरे उसने अपने को पुनः स्वतन्त्र कर लिया. 1305 ई. में कमालुद्दीन गर्ग ने उसे पराजित करके उसकी हत्या कर दी तथा जालौर पर मुसलमानों का अधिकार हो गया. जालौर के समर्पण के साथ ही राजपूताना की सारी प्रमुख रियासतें एक के बाद एक अधिकार में ले ली गई. जैसलमेर, रणथम्भौर, चित्तौड़, सेवाना तथा जालौर और उनके साथ लगी. रियासतें-बेंदी, मण्डोर तथा टोंक सब आक्रांत की जा चुकी थीं.

1311 ई. तक उत्तर भारत में केवल नेपाल, कश्मीर व असम ही ऐसे भाग शेष बचे थे जिन पर अलाउद्दीन अधिकार न कर सका था. उत्तर भारत को विजय करके सुल्तान ने दक्षिण भारत की ओर अपना ध्यान दिया.

 

अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय | मलिक काफूर

 

अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) के दक्षिण के अभियानों के पीछे सम्भवतः राजनीतिक और आर्थिक दानों ही कारण थे. एक उत्साही विजेता के लिए दक्षिण का धन बहुत बड़ा आकर्षण था. उस समय दक्षिण में चार मुख्य राज्य थे-

  1. रामचन्द्र देव के अधीन देवगिरी का यादव राज्य,
  2. काकतीय वंश के प्रताप रुद्रदेव प्रथम के अधीन तेलंगाना का राज्य (राजधानी-वारंगल),
  3. वीर वल्लाल तृतीय (1292-1349 ई.) के अधीन द्वारसमुद्र का होयसाल राज्य तथा
  4. भारवर्मन कुलशेखर (1268-1311 ई.) के अधीन मदुरा का पांड्य राज्य .

इनके अतिरिक्त कुछ छोटे-छोटे शासक भी थे जैसे नीलोर जिले का शासक मणमा सिद्ध, उड़ीसा का शासक भानुदेव, कोलूम का शासक रवि वर्मन और मंगलौर का शासक बंकीदेव अलुपेन्द्र आदि . दक्षिण को जीतने के पीछे सुल्तान की धन की चाह और विजय की लालसा थी. वह इन राज्यों को अपने अधीन करके वार्षिक कर वसूल करना चाहता था. दक्षिण भारत की विजय का मुख्य श्रेय ‘मलिक काफूर‘ को जाता है. मलिक काफूर गुजरात का हिन्दू जाति का एक तृतीयपंथी था जिसे 1000 दीनार में खरीदा गया था. अतः उसे ‘एक हजार दीनारी‘ भी कहा जाता है.

(i) देवगिरी की विजय (1307-08 ई.)

1307 ई. में मलिक काफूर के अधीन देवगिरी के विरुद्ध दूसरा अभियान भेजा गया. इसके दो कारण थे-प्रथम कि तीन वर्ष से देवगीरि के शासक ने नियमित कर शाही कोश में जमा नहीं करवाया था तथा द्वितीय कि देवगीरि के शासक रामचन्द्र ने गुजरात के शासक कर्ण बघेला व उसकी पुत्री देवल देवी को शरण दी थी. कर्ण को पराजित करके देवल देवी को पकड़ कर दिल्ली भेजा गया तथा राजकुमार खिज्र खाँ से उसका विवाह कर दिया गया. रामचन्द्र भी शीघ्र ही पराजित हुआ. सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) ने उसके साथ उदारतापूर्ण व्यवहार किया तथा उसे ‘राय रायन’ की उपाधि प्रदान करके उसे देवगीरि का गर्वनर नियुक्त कर दिया. वास्तव में सुल्तान रामचन्द्र की सहायता से दक्षिण पर अपना अधिकार बनाए रखना चाहता था.

(ii) वारंगल की विजय (1309-10 ई.)

1309 ई. में मलिक काफूर के अधीन एक सेना तेलंगाना पर विजय प्राप्त करने हेतु भेजी गई. सम्भवतः सुल्तान का उद्देश्य यहाँ से धन प्राप्त करना ही था. यहाँ के शासक प्रताप रुद्रदेव ने हार के बाद सन्धि करके अपार धन काफूर को दिया. उसने अपनी एक सोने की मूर्ति बनवाकर इसके गले में एक सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण स्वरूप काफूर के पास भेजी, साथ ही 100 हाथी, 7,000 घोड़े व बड़ी संख्या में रत्न, सिक्के व धन दिया. सम्भवतः इसी समय संसार का प्रसिद्ध ‘कोहिनूर हीरा‘ प्रताप रुद्रदेव ने मलिक काफूर को दिया. मलिक काफूर ने इसे सुल्तान अलाउद्दीन को सौंप दिया. प्रताप रुद्रदेव ने वार्षिक कर देना भी स्वीकार कर लिया. कहा जाता है कि काफूर लगभग 1000 ऊँटों पर सोना, चाँदी, हीरे-जवाहरात आदि दिल्ली लाया.

(iii) द्वारसमुद्र (1310-11 ई.)

1310 ई. में मलिक काफूर ने होयसल राज्य के विरुद्ध चढ़ाई की. देवगीरि के रामचन्द्र ने शाही सेना की पूर्ण मदद की. होयसल राजा वीर बल्लाल की 1311 ई. में पराजय हुई तथ काफूर ने यहाँ के नगरों व मन्दिरों को खूब लूटा. वीर बल्लाल ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली. सुल्तान अलाउद्दीन ने वीर बल्लाल देव को ‘खिलअत’, एक ‘मुकुट’, ‘छत्र’ एवं 10 लाख टंके की थैली भेंट की.

(iv) पाण्ड्य राज्य

पाण्ड्य राज्य में दो भाईयों सुन्दर पाण्ड्य तथा वीर पाण्ड्य के बीच उत्तराधिकार हेतु संघर्ष चल रहा था. वीर पण्ड्य सफल हुआ. सुन्दर पण्ड्य ने मुसलमानों की सहायता प्राप्त कर ली. वीर पाण्ड्य के विरुद्ध काफूर सेना सहित मदुरा की ओर बढ़ा मगर वीर पाण्ड्य पहले ही मदुरा छोड़ चुका था. काफूर ने मदुरा को खूब लूटा तथा यहाँ के मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया. काफूर का आक्रमण एक दृष्टि से सफल नहीं हुआ क्योंकि वह वीर पाण्ड्य को पराजित नहीं कर सका था और न ही उसके ऊपर कोई शर्त लाद सका था. परन्तु धन प्राप्ति की दृष्टि से यह आक्रमण अत्यधिक सफल रहा. अमीर खुसरो के अनुसार काफूर ने यहाँ से 50 मन रत्न, 7000 घोड़े व 512 हाथी प्राप्त किए.

(v) देवगिरी (1313 )

देवगिरी के शासक रामचन्द्र की मृत्यु के बाद उसके पुत्र शंकर देव ने अपने आप को स्वतन्त्र घोषित कर दिया तथा सुल्तान को वार्षिक कर देने से इन्कार कर दिया. मलिक काफूर ने उसके विरुद्ध 1313 ई. में कूच किया. शंकरदेव माया गया तथा देवगिरो का अधिकांश भाग सल्तनत में मिला लिया गया. 1315 ई. में काफूर को दिल्ली बुला लिया गया. इस प्रकार सम्पूर्ण दो भारत को अलाउद्दीन ने अपने अधीन रखा. इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) का सामान्य पश्चिमोत्तर भाग में सिन्धु नदो से दक्षिण में मदुरा तक और पूर्व में वाराणसी एवं अवध से लेकर पश्चिम में गुजरात तक विस्तृत हो गया.

 

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