Friday, May 24, 2019

भारतीय संविधान- स्रोत एवं विशेषताएँ (Indian Constitution- Sources & Features)

भारतीय संविधान- स्रोत एवं विशेषताएँ (Indian Constitution- Sources and Features)

भारतीय संविधान- स्रोत एवं विशेषताएँ (Indian Constitution- Sources and Features)

  • डॉ राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में हमारे भारतीय संविधान-निर्माताओं ने विश्व के सर्वोत्तम संविधानों का गहन अध्ययन किया और देश की तत्कालीन आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार उनके महत्त्वपूर्ण उपबन्धों को ग्रहण किया.
  • इसके साथ ही अपने देश की प्राचीन प्रथाओं एवं अभिसमय (Customs and Conventions), पुराने संवैधानिक अधिनियमों, अध्यादेश (Old Constitutional Acts and Ordinances) इत्यादि को ध्यान में रखते हुए कि ऐसे संविधान का निर्माण किया जो कि भारत की तत्कालीन ही नहीं भविष्य की असाधारण परिस्थितियों में भी भली-भांति कार्य कर सके.

संविधान के मुख्य स्रोत (Main Sources of Indian Constitution)

भारतीय शासन अधिनियम 1985, (Government of India Act, 1935)

  • यद्यपि 1858, 1892, 1909, 1919 के संवैधानिक अधिनियम भारतीय संविधान के प्रेरणा स्रोत रहे किन्तु 1935 के भारत शासन अधिनियम का भारतीय संविधान पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा.
  • इसमें करीब दो-तिहाई प्रावधान 1935 के अधिनियम से लिये गए हैं.
  • उदारणार्थ, नए संविधान की 256वीं धारा और 1935 के एक्ट की 126वीं धारा लगभग समान हैं.
  • इनके तहत केन्द्र, राज्यों को उचित निर्देश देने का अधिकार रखता है या नए संविधान की 352 व 356वीं धारा, जिनका संबंध राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों से है.
  • 1935 के अधिनियम की धारा 103 से मिलती-जुलती है या शक्ति-विभाजन की तीन सूचियाँ (संघ, प्रांतीय, समवर्ती) के प्रावधान भी लगभग समान हैं या केन्द्र अथवा राज्य स्तर पर विधान मंडल का द्विसदनीय होना, संबंधी प्रावधान 1919 के अधिनियम से मिलते-जुलते हैं.

विश्व के प्रमुख संविधानों का प्रभाव (Borrowing from the Constitutions of Other Countries)

  • सर्वप्रथम ब्रिटिश संविधान ने हमारे संवैधानिक कलेवर का निर्माण किया और हमने ब्रिटिश आदर्श की संसदीय शासन प्रणाली (British Model of Parliamentary System of Government) अपनायी और मंत्रिमंडल को सामूहिक रूप से “लोक सभा” (House of the people) के प्रति जवाबदेह बनाया.
  • राष्ट्रपति को ब्रिटिश सम्राट की भांति औपचारिक प्रधान बनाया गया.
  • संसदीय परिपाटी एवं प्रक्रिया भी ब्रिटिश संसद के समान भारतीय संसद को प्राप्त है.
  • यही बात संसदीय विशेषाधिकारों (Parliamentary Privileges) के सम्बन्ध में लागू है.
  • संघात्मक शासन व्यवस्था (Federal System), मौलिक अधिकार (Fundamental Rights), स्वतंत्र और निष्पक्ष सर्वोच्च न्यायालय एवं न्यायिक पुनर्निरीक्षण (Independence of Judiciary and Judicia! Review) का सिद्धांत निसन्देह अमेरिकी संवैधानिक आदर्श पर आधारित है.
  • नए स्वतंत्र भारतीय लोकतंत्र को ‘‘गणतंत्र’ (Republic) फ्रांसीसी संविधान की तर्ज पर बनाया गया है.
  • संघ और राज्यों के मध्य शक्ति-विभाजन (Distribution of Powers Between the Union and the State) की प्रेरणा कनाडा के संविधान से ली गई है.
  • किन्तु समवर्ती सूची (Concurrentist) का प्रावधान आस्ट्रेलिया के संविधान से लिया गया है.
  • राज्य-नीति के निदेशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy) आयरलैंड के संविधान से प्राप्त हुए हैं.
  • जर्मनी के संविधान (वाइमर संविधान , 1933) से आपात-उपलब्ध (अनुच्छेद 352, 356, 360) प्राप्त हुआ हैं.
  • भूतपूर्व सोवियत संघ के संविधान से मूल कर्त्तव्य (भाग-चार, अनुच्छेद 51-क) प्राप्त हुए हैं.

प्रथाएं एवं अभिसमय (Customs and Conventions)

  • लिखित संविधान के बावजूद हमारे देश में अनेक परम्पराएं विकसित हो गयी हैं–जैसे, यद्यपि कार्यापालिका का प्रधान राष्ट्रपति है, किंतु वह अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमंडल के परामर्श से करता है.
  • राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है किंतु प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को नियुक्त करेगा किंतु लोकसभा में बहुमत दल के नेता को .
  • अंत में कहा जा सकता है कि हमारी संसदीय शासन-प्रणाली का विकास पूर्ण रूप से प्रथागत ही हुआ है.

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं (Main Features of the Constitution)

लोकप्रिय प्रभुसत्ता (Popular Sovereignty)

  • संविधान भारतीय जनता द्वारा निर्मित है जिसके द्वारा अंतिम शक्ति जनता को ही प्रदान की गई है.
  • अर्थात् प्रभुसत्ता जनता में निहित है किसी व्यक्ति विशेष में नहीं.

लिखित और विस्तृत संविधान (Written and Comprehensive Constitution)

  • हमारा संविधान ब्रिटिश संविधान के विपरीत अमेरिकी संविधान की भांति निर्मित और लिखित है.
  • आइबर जैनिंग्ज (Ivor Jennings) ने भारतीय संविधान को विश्व का सर्वाधिक विस्तृत संविधान कहा है.
  • हमारे मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ (Schedules) और 4 परिशिष्ट (Appendices) थे. वर्तमान में यह संख्या 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियों तक पहुंच गई है. जबकि अमेरिका के संविधान में केवल 7, कनाडा में 147, और आस्ट्रेलिया में केवल 128 अनुच्छेद हैं.

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न,लोकतंत्रात्मक राज्य और गणराज्य

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न (Sovereign State)

  • अर्थात् आंतरिक या बाहरी दृष्टि से भारत किसी विदेशी सत्ता के अधीन नहीं है.
  • किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौते को स्वीकार करने या न करने के लिए भारत बाध्य नहीं है.

लोकतंत्रात्मक राज्य (Democratic State)

  • अर्थात् सत्ता भारत की जनता में निहित है जो कि अपनी प्रभुता का प्रयोग अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करेगी.
  • ये प्रतिनिधि जनता के स्वामी न होकर सेवक होंगे.

गणराज्य (Republic)

  • अर्थात् भारतीय राज्य का सर्वोच्च प्राधिकारी (राष्ट्रपति) वंशक्रमानुगत न होकर भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष (Indirectly) रूप से निर्वाचित (Elected) राष्ट्रपति (President) है .

समाजवादी राज्य (Socialist State)

  • संविधान के 42वें संशोधन द्वारा संविधान की ‘प्रस्तावना’ (Preamble) में समाजवादी शब्द जोड़ा गया.
  • हमने ‘मिश्रित अर्थव्यवस्था‘ (Mixed Ec0nority) को अपनाकर भारतीय समाजवाद को शेष परिचित समाजवाद से भिन्न घोषित किया .

धर्मनिरपेक्ष राज्य (Secular State)

  • अर्थात राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और राज्य के द्वारा विभिन्न धर्मावलम्बियों में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.

कठोर एवं लचीला संविधान (Rigid and Flexible Constitution)

  • भारतीय संविधान न तो परम्पराओं से निर्मित ब्रिटिश संविधान की भांति लचीला है और न ही अमेरिकी संविधान की भांति अत्यधिक कठोर.
  • अनुच्छेद 368 के तहत कुछ विषयों में संशोधन करने के लिए संसद के दोनों सदनों के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साथ प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के बहुमत के अतिरिक्त न्यूनतम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुसमर्थन भी आवश्यक है.
  • जैसे, राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि, संघ और इकाइयों के बीच शक्ति-विभाजन, राज्यों के संसद में प्रतिनिधि आदि.
  • यह प्रक्रिया अत्यन्त कठोर है. जबकि कुछ विषय ऐसे हैं जिनमें संसद के साधारण बहुमत से ही संशोधन हो जाता है जैसे-नवीन राज्यों का निर्माण, वर्तमान राज्यों के पुनर्गठन और भारतीय नागरिकता के अर्थ परिवर्तन इत्यादि कार्य संसद अपने साधारण बहुमत से कर सकती है.

संघात्मक शासन व्यवस्था (Federal system)

  • संविधान ने भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित की है जिसके तहत केन्द्र और राज्यों की कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का अपना-अपना कार्यक्षेत्र है.
  • केन्द्र और राज्यों के मध्य संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के तहत स्पष्ट रूप से शक्ति विभाजन किया गया है.
  • हमारे संविधान का यह अनूठा लक्षण है कि यह आपातकाल में संघात्मक व्यवस्था को एकात्मक स्वरूप प्रदान करता है.
  • इसके अलावा इकहरी नागरिकता, एवं एकल न्यायपालिका, राज्यपालों की नियुक्ति, अखिल भारतीय सेवाएं, संसद द्वारा राज्यों के नाम, क्षेत्र तथा सीमाओं में परिवर्तन, एकल संविधान इत्यादि भी संविधान के एकात्मक स्वरूप को स्पष्ट करते हैं.

संसदीय शासन एवं मंत्रिमण्डलीय सरकार (Parliamentary Systern and Cabinet Government)

  • अध्यक्षीय शासन प्रणाली (Presidential form of Government) के स्थान पर हमने संसदीय शासन का ब्रिटिश प्रतिमान (British Model of Parliamentary Democracy) अपनाया है जिसमें कार्यपालिका तभी तक अपने पद पर रह सकती है जब तक कि उसे विधायिका का विश्वास प्राप्त रहता है.
  • राष्ट्रपति नाम-मात्र का कार्यपालिका-प्रमुख होता है और वास्तविक शयितयाँ मंत्रिमंडल के पास होती हैं जो कि सामूहिक रूप से विधायिका (लोक सभा (House of the People)) के प्रति निरन्तर अपना उत्तरदायित्व निभाता है.
  • यह मंत्रिमण्लीय सरकार का प्रमुख लक्षण है.

मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)  

  • मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का आशय नागरिकों को प्रदत्त ऐसे अधिकार और स्वतंत्रताओं से है, जिन्हें राज्य तथा केन्द्र सरकार के विरुद्ध भी लागू किया जा सकता है.
  • संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 32 तक इन अधिकारों का वर्णन है.
  • ये कुल छह अधिकार हैं. अनुच्छेद 31 के तहत प्राप्त सम्पत्ति के मौलिक अधिकार को 1978 में संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम की धार 6 द्वारा समाप्त कर दिया गया है.
  • ये अधिकार लोकतंत्र के आधारस्तम्भ हैं.
  • अतः इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए छठे मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 39) के रूप में न्यायपालिका की सुरक्षा प्रदान की गई है.
  • न्यायालय इनकी सुरक्षा में उपचार स्वरूप निम्न लेख (Writ) जारी कर सकता है.
  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus),
  2. परमादेश (Mandamus),
  3. प्रतिषेद्य (Prohibition),
  4. उत्प्रेषण लेख (Certiorari),
  5. अधिकार-पृच्छा (Qu0-Warrailto)
  • इन अधिकारों का उल्लंघन करने वाला प्रत्येक कानून और आदेश उल्लंघन की सीमा तक अवैध होगा.
  • कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे – राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता या कल्याण के हित में इन अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
  • तथापि इन प्रतिबंधों का न्यायालय की दृष्टि में युक्ति-युक्त होना भी आवश्यक है.

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

  • 1976 में सविधान के 42वें संशोधन द्वारा भूल संविधान में एक नया भाग “चौथा अ” और “अनुच्छेद 51-क” (Part IV A and Article 51-A) जोड़ा गया जिसमें नागरिकों के दस मूल कर्त्तव्य बताए गए हैं.

नीति निदेशक तत्व (Directive Principles)

  • संविधान के भाग चार में शासन संचालन के लिए अनुच्छेद 36 से 51 तक कुछ निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है.
  • अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि –

“नीति निदेशक तत्वों को किसी न्यायालय द्वारा बाध्यता न दी जा सकेगी, तो भी ये तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं.”

संसदीय प्रभुता एवं न्यायिक सर्वांच्या में समन्वय (Coordination between Parliamentary Sovereignty and Judicial Supremacy)

  • संविधान ने जहां एक ओर न्यायालय को संविधान की अंतिम व्याख्या करने एवं संविधान का उल्लंघन करने वाले कानूनों एवं आदेशों को अवैध घोषित करने की शक्ति [ जिसे न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) कहते हैं.]
  • न्यायालय को देकर, न्यायिक सर्वोच्चता स्थापित की है वहीं दूसरी और संसद को यह अधिकार देकर कि वह न्यायालय की शक्तियों को आवश्यकतानुसार सीमित कर दे, संसदीय सर्वोच्चता को भी स्थापित किया है.
  • अतः संविधान संसदीय प्रभुता और न्यायिक सर्वोच्चता का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है.

वयस्क मताधिकार (Adult Franchise)

  • भारत का प्रत्येक वह नागरिक जो 18 वर्ष (मूल संविधान में 21 वर्ष) की आयु पूरी कर चुका है लोकसभा व विधान सभा और पंचायत के चुनावों में वोट देने का अधिकारी होगा.
  • राज्य उसके साथ इस सम्बन्ध में धर्म, जाति, वंश, रंग, लिंग, आर्थिक स्थिति, शैक्षिक योग्यता, निवास स्थान इत्यादि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा .
  • इसे “सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार” (Universal Adult Franchise) कहा गया है.

देशी रियासतों का विलय (Integration of Indian States)

  • 1935 के भारत शासन अधिनियम से जो समस्या हल न हो सकी.
  • और जिसके कारण परिसंघ की पूरी योजना ही असफल हो गयी उस समस्या को (अर्थात् 552 देशी रियासतों के भारत में विलय की समस्या) हमारे संविधान निर्माताओं ने हल कर दिया जिससे पूरा भारत एक हो गया और भारत संघ के रूप में सामने आया.
  • भारतीय संविधान की यह अनन्य विशेषता विश्व के इतिहास में अभूतपूर्व है.

 

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