स्वतंत्र राज्यों का उदय | (Rise of Autonomous States) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
हैदराबाद
- 1724 ई. में चिनकिलिच खाँ (निजामउलमुल्क आसफजाह) ने हैदराबाद राज्य की स्थापना की.
- सैयद बन्धुओं को हटाने में उसने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी.
- 1720 ई. से 1722 ई. के बीच उसने दक्कन में अपनी स्थिति सुदृढ़ की.
- 1722 से 24 तक वह मुगल साम्राज्य का वजीर रहा, किन्तु सम्राट के ढुमुल रवैये से तंग आकर दक्कन वापस जाने का निश्चय कर लिया.
- उसे दक्कन के वाइसराय का खिताब प्राप्त हुआ था.
- हैदराबाद राज्य की स्थापना कर उस पर कठोर शासन किया.
- उसने केन्द्रीय सरकार से अपनी स्वतंत्रता की खुलेआम घोषणा कभी नहीं की, किन्तु उसने व्यवहार में स्वतंत्र शासक की तरह ही काम किया.
- उसने दिल्ली सरकार से बिना पूछे लड़ाईयाँ लड़ी, सुलह किए, खिताब बांटे तथा जागीरें एवं ओहदे प्रदान किए.
- उसने हिन्दुओं के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई तथा एक हिन्दू, पूरनचन्द को अपना दीवान बनाया.
- दक्कन में उसने मुगलों की तर्ज पर जागीरदारी प्रथा चलाकर सुव्यवस्थित प्रशासन की स्थापना की.
- मराठों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा .
- राजस्व व्यवस्था को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की कोशिश की.
- इसके पूर्व जुल्फीकार खाँ ने भी दक्कन में स्वतंत्र राज्य की स्थापना का सपना देखा था, जब वह 1708 में दक्कन का वायसराय बना था, किन्तु 1713 ई. में उसकी मृत्यु से यह योजना समाप्त हो गई.
- निजामुलमुल्क को मराठों के कारण कुछ समय तक कठिनाई रही.
- बाजीराव के विरुद्ध युद्ध में वह पराजित हुआ.
- उसने नादिरशाह के विरुद्ध हुए करनाल के युद्ध में साथ दिया था.
- दिल्ली से लौटने के पूर्व नादिरशाह ने सम्राट को निजामुलमुल्क के विरुद्ध सचेत भी किया कि वह व्यक्ति आवश्यकता से अधिक चालाक और महत्वाकांक्षी है.
- 1748 ई. में निजाम की मृत्यु के पश्चात् ऐसा कोई योग्य निजाम नहीं था, जो अंग्रेजों से टक्कर ले सकता तथा हैदराबाद भारतीय राज्यों में ऐसा प्रथम राज्य बना जिसने वेलेजली की सहायक संधि स्वीकार कर आश्रित सेना रखना स्वीकार किया.
कर्नाटक
- कर्नाटक, मुगल दक्कन का एक सूबा था और तरह वह हैदराबाद के निजाम के अधिकार क्षेत्र में आता था.
- किन्तु, जिस प्रकार व्यवहार में निजाम दिल्ली की सरकार से स्वतंत्र था, उसी प्रकार कर्नाटक का नायब सूबेदार भी, जिसे कर्नाटक का नवाब कहा जाता था, अपने को दक्कन के नवाब से मुक्त कर स्वतंत्र हो चुका था तथा अपने ओहदे को वंशानुगत बना चुका था.
- वहाँ का नवाब सआदतुल्ला खाँ ने ‘आरकाट’ को अपनी राजधानी बनाया.
- उसने अपने भतीजे दोस्त अली को हैदराबाद के निजाम की अनुमति के बिना ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया.
- मराठों ने 1740 ई. में दोस्त अली की हत्या कर दी.
- दोस्त अली का उत्तराधिकारी सफदर अली बना.
- यहीं से योग्य उत्तराधिकारियों के अभाव में यूरोपीय कंपनियों को कर्नाटक की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका मिला.
बंगाल
- धर्म परिवर्तन के बाद मुसलमान बने दक्षिण भारत के ब्राह्मण मुर्शीद कुली खाँ ने तथा अलीवर्दी खाँ ने, जो असाधारण योग्यता वाले व्यक्ति थे, बंगाल को स्वतंत्र बना दिया.
- औरंगजेब ने 1700 ई में मुर्शीद कुली खाँ को बंगाल का दीवान बनाया.
- 1713 में फर्रुखसियर ने सूबेदार के रूप में उसकी नियुक्ति की तथा 1717 में बंगाल का सूबेदार बना दिया.
- किन्तु, वह वास्तविक शासक 1700 से ही था जब उसे दीवान बनाया गया था.
- हालांकि वह बादशाह को नियमित रूप से नजराने की काफी रकम भेजता रहा.
बंगाल के विद्रोह
- उसके शासन काल के दौरान बंगाल में केवल तीन विद्रोह हुए.
- पहला, सीताराम राय, उदय नारायण तथा गुलाम मुहम्मद ने किया.
- दूसरा विद्रोह शुजात खाँ ने किया.
- तीसरा विद्रोह निजात खाँ ने किया.
- उन तीनों को हराने के बाद मुर्शीद कुली खाँ ने उनकी जमींदारियाँ अपने कृपा पात्र रामजीवन को सौंप दी.
- फर्रुखसियर ने उसे 1719 में उड़ीसा की भी सूबेदारी सौंप दी.
- वह अपनी राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद ले गया.
- उसने जागीर भूमि के काफी बड़े हिस्से को खालसा में परिवर्तित कर कर ‘कृषि प्रथा‘ (Revenue farming) की शुरुआत की.
- हिन्दुओं और मुसलमानों को समान रूप से रोजगार के अवसर प्रदान किए.
- स्थानीय हिन्दू जमींदारों तथा साहूकारों के कर-कृषकों के रूप में नियुक्ति से बंगाल में एक नए अभिजात वर्ग का उदय हुआ, जो भूमि पर आश्रित थे.
- उसने भारतीय तथा विदेशी व्यापारियों को बढ़ावा दिया.
- नियमित थानों एवं चौकियों की व्यवस्था कर सड़कों एवं नदियों की सुरक्षा का इंतजाम किया.
- उसने 1717 में फर्रुखसियर द्वारा जारी फरमान के दुरुपयोग को रोकने के लिए कदम उठाए.
- शुजाउद्दीन 1727-39 तक बंगाल का नवाब रहा.
- वह मुर्शीद कुली खाँ का दामाद था.
- मुहम्मदशाह ने उसे 1733 में उसे बिहार की सूबेदारी भी सौंप दी.
- इसके बाद से बंगाल के नवाब बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा पर शासन करने लगे.
- 1739 ई. में शुजाउद्दीन का बेटा सरफराज खाँ (1739-40) नवाब बना,किन्तु अलीवर्दी खाँ ने घिरिया नामक स्थान पर उसकी हत्या कर दी.
- गद्दी प्राप्त करने के बाद अलीवर्दी खाँ ने मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को दो करोड़ रुपये प्रदान किए तथा उससे फरमान प्राप्त कर अपनी स्थिति को वैध कर लिया.
- पुनः बादशाह द्वारा धन की मांग करने पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया.
- उसने प्रशासन के सभी प्रमुख पदों पर खुद नियुक्ति की और इसके लिए मुगल दरबार की अनुशंसा लेने की भी कोशश नहीं की.
- उसने पटना, ढाका और कटक में अपनी पसंद के उप-नवाबों की नियुक्ति की .
- मुगल दरवार को वार्षिक नजराना बंद कर दिया.
- इसी के काल से व्यवहारिक रूप से मुगल दरबार से बंगाल का संबंध-विच्छेद प्रारंभ हो गया.
- 10 अप्रैल, 1756 ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर दरवार के विभिन्न समुदायों के बीच मनमुटाव उत्पन्न हो गया.
- अलीवर्दी खाँ ने अपने पोते सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी बनाया.
- 10 अप्रैल 1756 ई. को सिराजुद्दौला ने बंगाल के नवाब का पद संभाला.
- उसके प्रमुख शत्रुओं में उसका चचेरा भाई शौकत जंग, उसकी माँ घसीटी बेगम तथा उसकी सेना का सर्वोच्च सेनापति मीर जाफर शामिल थे.
- सिराज-उद्-दौला ने घसीटी बेगम की सारी सम्पत्ति जब्त कर ली तथा मीर जाफर को अपदस्थ करके मीर मर्दान को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया.
- अक्टूबर, 1756 ई. में उसने शौकत जंग को पराजित किया व मार डाला.
- 23 जून, 1757 ई. को ‘प्लासी की लड़ाई‘ में अंग्रेजों की विजय हुई तथा सिराज-उद्-दौला को पकड़ कर उसका वध कर दिया गया.
- 1757 ई. से 1760 ई. तक मीर जाफर ने नाममात्र का शासन किया तथा असली सत्ता क्लाइव के हाथों में रही.
- 1760 से 1763 ई. तक मीर कासिम को नवाब बनाया गया किन्तु, 1763 ई. में पुनः मीर जाफर को नवाब बनाया गया तथा वह 1765 ई. तक बंगाल का नवाव रहा.
- 1765 ई. में मीर जाफर की मृत्यु के बाद उसके दूसरे पुत्र व उत्तराधिकारी नजम-उद्-दीन को गद्दी पर बिठाया, गया परन्तु सारी सत्ता अंग्रेजों के हाथों में रही.
- 1765 ई. में क्लाइव ने बंगाल में दोहरी सरकार (Dyarchy) व्यवस्था की स्थापना की और वह 1772 ई. तक चली जब अंग्रेजों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने प्रशासन सीधा अपने हाथों में ले लिया.
- इस प्रकार बंगाल का सूबा सबसे पहले स्वंतत्र हुआ तथा सबसे पहले ब्रिटिश शासन के अधीन हुआ.
- अलीवर्दी खाँ को मराठों के बार-बार आक्रमण से तंग होकर अंततः उड़ीसा का एक बड़ा भाग देना पड़ा.
- अलीवर्दी खाँ ने यूरोपियनों के बारे में कहा था कि-
“यदि इन्हें न छेड़ा जाय तो शहद देंगी और यदि छोड़ा जाए काट-काट कर मार डालेंगी.”
अवध
- सआदत खाँ बुरहान-उल-मुल्क अवध के स्वायत्त राज्य का संस्थापक था.
- उसे 1722 में अवध का सूबेदार बनाया गया था.
- वह निडर, तेज, दृढ़ प्रतिज्ञ तथा कर्मठ व्यक्ति था.
- इसके पूर्व वह 1720-22 ई. तक वह आगरा का सूबेदार था.
- उसके बगावती जमींदारों को अनुशासित किया तथा अपनी वित्तीय संसाधनों को बढ़ाया.
- सआदत खाँ ने 1723 ई. में नया राजस्व बन्दोबस्त किया.
- बंगाल के नवाबों की तरह उसने भी हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कोई भेद नहीं किया.
- उसने जागीरदारी प्रथा को जारी रखा.
- 1739 ई. में मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने उसे नादिरशाह के विरुद्ध लड़ने के लिए दिल्ली बुलाया.
- सआदत खाँ ने ही नादिरशाह को दिल्ली आक्रमण के लिए प्रेरित किया था तथा उसे 20 करोड़ की आशा दिलाई थी.
- नादिरशाह से किए गए अपने इस वादे को पूरा न कर पाने के कारण ही 1739 ई. में उसने आत्महत्या कर ली.
- सआदत खाँ की मृत्यु के बाद उसका दामाद तथा भतीजा सफदरजंग अवध का नवाब बना.
- 1748 ई. में वह साम्राज्य (मुगल साम्राज्य) का वजीर भी बन गया.
- इसके अतिरिक्त उसे इलाहाबाद का प्रान्त भी दिया गया.
- उसने रूहेलों और बंगश पठानों के खिलाफ लड़ाइयाँ छेड़ीं.
- 1750-51 में बंगश पठानों के खिलाफ लड़ाई में उसे मराठों और जाटों का समर्थन प्राप्त हुआ.
- इसके लिए उसने मराठों को प्रतिदिन 25,000 रुपये तथा जाटों को प्रतिदिन 15,000 रुपये देने पड़े.
- पेशवा के साथ एक करार के अनुसार पेशवा ने मुगल साम्राज्य को अब्दाली के खिलाफ मदद देने और उसे भारतीय पठानों तथा राजपूत राजाओं जैसे अंदरूनी विद्रोहियों से बचाने का वचन दिया, बदले में पेशवा को 50 लाख रुपये तथा पंजाब, सिंध और उत्तर भारत के कई जिलों का चौथ प्रदान करना था.
- इसके अतिरिक्त पेशवा को अजमेर और आगरा का सूबेदार बनाया जाना था.
- किन्तु पेशवा सफदरजंग के दुश्मनों से जा मिला, जिन्होंने उसे अवध और इलाहाबाद का सूबेदार बनाने का वचन दिया था.
- लखनऊ बहुत पहले से ही अवध का एक महत्वपूर्ण शहर था.
- 1775 ई. के बाद वह अवध के नवाबों का निवास स्थान बन गया.
- सफदरजंग ने महाराज नवाब राय को अपनी सरकार में उच्च पद प्रदान किया.
- 1754 ई. में सफदरजंग की मृत्यु के बाद शुजाउद्दौला अवध का नवाब और मुगल साम्राज्य का वजीर बना.
- उसने बक्सर युद्ध में हिस्सा लिया तथा 1774 में रूहेलों को परास्त कर रूहेलखण्ड पर अधिकार कर लिया.
- 1775 ई. में उसकी मृत्यु हो गई.
- उसके बाद आसफउद्दौला नवाब बना.
- इसके अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ हस्तांतरित किया.
- 1819 ई. में इस वंश के सातवें शासक सआदत खाँ ने राजा की उपाधि धारण की.
- अवध के स्वतंत्र शासकों की श्रृंखला में अंतिम शासक वाजिद अली शाह था.
- 1856 ई. में लार्ड डलहौजी ने अवध को ब्रिटिश शासन के अधीन कर लिया.
मैसूर
- दक्षिण भारत में हैदराबाद के पास हैदरअली के अधीन मैसूर का उदय हुआ.
- 18वीं सदी के आरंभ में नंजराज (सर्वाधिकारी) तथा देवराज (दुलनई) नाम के दो मंत्रियों ने मैसूर की शक्ति अपने हाथ में ले रखी थी, इस प्रकार वहां के राजा चिक्का कृष्णराज कठपुतली मात्र रह गया था.
- 1721 ई. में जन्मे हैदरअली के बड़े सुनियोजित ढंग से मैसूर पर अधिकार कर लिया.
- उसने अपना जीवन मसूर ने सेना में एक साधारण अधिकारी से शुरू किया था.
- 1755 ई. में वह डिंडिगुल का सूबेदार बना तथा 1761 ई. में मैसूर की सत्ता पर (नंजराज को हटाकर) कब्जा कर लिया.
- 1763 ई. में उसने बेडमोर पर अधिकार कर लिया तथा अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टम (एरिंगापट्टनम) में स्थापित की.
- 1755 ई. में उसने डिंडिगुल में एक आधुनिक शस्त्रगार स्थापित किया.
- इसमें उसने फ्रांसीसी विशेषज्ञों की मदद ली.
- उसने सुंदा, सेदा, कन्नड़ और मालाबार के इलाकों को जीत लिया.
- वह धार्मिक सहिष्णुता की नीति पर चला.
- उसने 1769 ई. में अंग्रेजी फौजों को हराया.
- 1782 ई. में द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान मर गया.
- उसके पश्चात् उसका बेटा टीपू गद्दी पर बैठा.
- उसने नए कैलेंडर को लागू किया तथा सिक्का ढलाई की नई प्रणाली को लागू किया.
- उसने फ्रांसीसी क्रांति में गहरी दिलचस्पी ली.
- श्रीरंगपट्टम में उसने ‘स्वतंत्रता-वृक्ष’ (फ्रांस-मैसूर मैत्री का प्रतीक) लगाया तथा एक जैकोबिन क्लब का सदस्य बन गया.
- वह पैदावार का एक-तिहाई भाग भू-राजस्व के रूप में लेता था.
- 1796 ई. में उसने एक नौसेना खड़ी की तथा नौकाघाट बनवाए.
- नौकाघाट का निर्माण मंगलौर, मोलीदाबाद तथा दाजिदाबाद में किया गया.
- टीपू ने विदेश व्यापार के विकास के लिए फ्रांस, तुर्की, ईरान और पेगू में दूत भेजे.
- चीन के साथ भी उसने व्यापार किया.
- देशी तथा अन्तर्देशी व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने गुमाश्तों की नियुक्ति व्यापारिक केन्द्र मस्कट, ओर्भुज जद्दाह तथा अदन में किया.
- टीपू ने शृंगेरी के जगद्गुरु शंकराचार्य के सम्मान में मंदिरों के पुनर्निर्माण हेतु धन दान किया.
- उसके सिक्कों पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र तथा हिन्दू संवत् की आकृतियाँ अंकित थी.
- 4 मई, 1799 को श्रीरंगपट्टनम में अंग्रेजों से लड़ता हुआ मारा गया.
केरल
- 18वीं सदी के आरंभ में केरल के चार प्रमुख राज्य थे-
- कालीकट,
- चिरक्कल,
- कोचिन तथा
- त्रावणकोर.
- इनमें से त्रावणकोर को 1799 ई. में राजा मातंड वर्मा के नेतृत्व में प्रमुखता मिली.
- मार्तडवर्मा में विलक्षण दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, साहस तथा निर्भिकता का सामंजस्य था.
- उसके क्विनोन तथा इलायादाम को जीत लिया और डच लोगों को हराकर केरल में उनकी राजनीतिक सत्ता खत्म कर दी.
- उसने सिंचाई एवं संचार की व्यवस्था की तथा विदेशी व्यापार को सक्रिय प्रोत्साहन दिया.
- इस सदी के राजाओ ने मलयालम साहित्य को भरपूर संरक्षण दिया.
- 18वीं शती के उत्तरार्द्ध में त्रावणकोर की राजधानी त्रिवेंद्रम, संस्कृत विद्या का एक प्रसिद्ध केन्द्र बन गया.
- मार्तण्ड वर्मा का उत्तराधिकारी रामवर्मा एक उत्कृष्ट कवि, विज्ञान, संगीतज्ञ, अभिनेता तथा सुसंस्कृत व्यक्ति था.
- उसने यूरोपीय मामलों में गहरी दिलचस्पी ली.
- वह लंदन, कलकत्ता तथा मद्रास से निकलने वाले अखबारों और पत्रिकाओं को नियमित रूप से पढ़ता था.
- वह अंग्रेजी में धाराप्रवाह बातचीत करता था.
राजपूत राज्य
- मुगलों की कमजोरी का फायदा उठाकर प्रमुख राजपूत राज्यों ने अपने को केन्द्रीय सत्ता से स्वतंत्र कर लिया.
- फर्रुखसियर और मुहम्मदशाह के काल में आमेर और मारवाड़ के शासकों को आगरा, गुजरात और मालवा जैसे महत्वपूर्ण प्रान्तों का सूबेदार बनाया गया.
- अधिकतर बड़े राज्य निरंतर छोटे झगड़ों और गृह युद्धों में फंसे रहे.
सवाई जयसिंह (1681-1743)
- 18वीं सदी का सबसे श्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का सवाई जयसिंह (1681-1743) था.
- वह एक विख्यात, राजनेता, कानून-निर्माता और सुधारक था.
- इन सबसे अधिक वह विज्ञान-प्रेमी के रूप में प्रसिद्ध है.
- उसने जाटों से लिए गए इलाके में जयपुर शहर की स्थापना की और उसे विज्ञान और कला का महान् केन्द्र बना दिया.
- इस शहर का निमाण एक नियमित योजना के तहत किया गया.
जयसिंह एक खगोलशास्त्री
- जयसिंह एक महान् खगोलशास्त्री भी था.
- उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन तथा मथुरा में बिल्कुल सही और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित पर्यवेक्षणशालाएँ बनाई.
- उसने जिजमुहम्मदशाही तैयार किया.
- जिजमुहम्मदशाही सारणियों का एक सेट था, जिससे लोगों को खगोल शास्त्र संबंधी पर्यवेक्षण करने में सहायता मिलती थी.
- उसने युक्लिड की ‘रेखागणित के तत्व‘ का संस्कृत में अनुवाद कराया.
- नेपियर की रचना का भी संस्कृत में अनुवाद कराया, जिससे त्रिकोणमिति की बहुत सारी कृतियों और लघुगणकों को बनाने तथा उसके इस्तेमाल में सहायता मिली.
- उसने एक कानून लागू करने की कोशिश की, जिससे लड़की की शादी में किसी राजपूत को अधिक खर्च करने के लिए एजबूर न होना पड़े.
- वह एक महान समाज सुधारक था.
औरंगजेब को धार्मिक कट्टरता और अत्याचारों से तंग आकर राजपूत मुगल साम्राज्य के शत्रु बन गए.
- मुगल शासकों की दुर्बलता का लाभ उठाकर राजपूतों ने अपनी पुरानी सत्ता पुनः स्थापित कर थी.
- बहादुरशाह के शासन काल में मारवाड़ (जोधपुर) और बीकानेर के राठौर तथा आंबेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूतों ने मुगल बादशाह के सम्मुख प्रमुख चुनौती पेश की.
- मुगल सम्राट बहादुरशाह ने इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए 1708 ई. में जोधपुर पर आक्रमण कर दिया.
- इस आक्रमण में राजपूतों को पराजय का सामना करना पड़ा.
- बहादुरशाह की मृत्यु के बाद फैली अराजकता का लाभ उठाकर राजपूत राजा अजीत सिंह ने शाही अफसरों को जोधपुर से बाहर निकाल दिया और अपनी शक्ति में वृद्धि करने लगा.
- 1714 ई. में अजीत सिंह की शक्ति को कुचलने के लिए मुगल सेनापति हुसैन अली ने जोधपुर पर आक्रमण कर दिया.
- इस आक्रमण का अजीत सिंह सामना न कर सका और उसे अपनी पुत्री का विवाह मुगल सम्राट फर्रुखसियर से करके शांति-संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े.
- दिल्ली में हुए फर्रुखसियर-सैयद बंधु विवाद में जोधपुर और जयपुर के राजपूत राजाओं ने अपने हितों को ध्यान में रखते हुए तटस्थता की नीति अपनाई.
- फर्रुखसियर गुट ने जयपुर के राजपूत राजा जयसिंह द्वितीय को 1721 ई. में आगरे का सूबेदार नियुक्त कर दिया.
- आगरे के सूबेदार के रूप में उसने अपनी शक्ति और प्रभाव का उपयोग अपनी खानदानी रियासत का विस्तार करने और उसे शक्तिशाली बनाने के लिए किया.
- सैय्यद बंधुओं ने जोधपुर के राजपूत राजा अजीत सिंह को अपनी ओर मिलाने के लिए उसे अजमेर तथा गुजरात की सूबेदारी प्रदान की.
- इस प्रकार एक समय ऐसा था जब दिल्ली के पश्चिम में 100 मील से लेकर भारत के पश्चिमी तट पर स्थित सूरत तक का समस्त क्षेत्र राजपूतों के अधीन था.
- परन्तु ये राजपूत शासक अपने आन्तरिक मतभेदों और परस्पर फूट के कारण अपनी सत्ता को अधिक समय तक कायम न रख सके तथा मराठों के हस्तक्षेप का शिकार बन गए.
फर्रुखाबाद
- एक अन्य अफगान शूरवीर मुहम्मद खाँ बंगश ने मुगल सम्राट फर्रुखसियर और मुहम्मदशाह के शासन काल में (1713 ई. से लेकर 1748 ई. तक) अलीगढ़ और कानपुर के मध्य स्थित फर्रुखाबाद की जागीर को एक स्वतन्त्र राज्य में बदल दिया.
- आगे चलकर इस अफगान शूरवीर ने बुन्देलखण्ड और इलाहाबाद के प्रदेशों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया.
- 1743 ई. में मुहम्मद खाँ बंगश की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कायम खाँ उसका उत्तराधिकारी बना.
रुहेलखण्ड
- 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर भारत में अफगानों का प्रभाव बढ़ने लगा.
- मुख्यतः पश्चिम में दिल्ली और आगरा के मध्य तथा पूर्व में अवध और इलााबाद के मध्य के क्षेत्रों में इन अफगानियों के सुदृढ़ गढ़ स्थापित हो गए.
- इस क्षेत्र में मुख्य रूप से रुहेले रहते थे.
- इन रुहेलों को एक अफगान वीर दाउद का प्रभावशाली नेतृत्व प्राप्त हुआ.
- 1721 ई. में दाउद की मृत्यु के बाद उसके दत्तक पुत्र अली मुहम्मद खाँ को उसका उत्तराधिकार प्राप्त हुआ.
- इसके बाद अली मुहम्मद खाँ ने दाउद द्वारा स्थापित रुहेलखण्ड राज्य की सीमा विस्तार का कार्यभार अपने ऊपर लिया.
- 1737 ई. में उसने मुगल बादशाह से नवाब का खिताब प्राप्त किया.
- नादिरशाह के आक्रमणों के दौरान मुगल सम्राट की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर अली मोहम्मद खाँ ने अपनी सत्ता सम्पूर्ण बरेली और मुरादाबाद तथा हरदोई और बदायूं के कुछ क्षेत्रों तक विस्तृत कर ली.
- आगे चलकर पीलीभीत, बिजनौर तथा कुमायूं पर भी उसका कब्जा हो गया.
- 1745 ई. में मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने अली मुहम्म्द खाँ के निरंतर बढ़ते प्रभुत्व को कुचलने के लिए अपने वजीर सफदरजंग के नेतृत्व में सेना भेजी.
- किन्तु शीघ्र ही मुगल सेना को अपनी सीमाओं का एहसास हो गया और बहुत कठिन परिश्रम के बाद बादशाह को अली मोहम्मद खाँ से समझौता करने पर राजी कर लिया गया.
- इस समझौते के अनुसार अली अहमद खाँ बनगढ़ की किलेबंदियों को तोड़ने तथा अपनी जागीरों को मुगल बादशाह को सौंपने के लिए राजी हो गया.
- इसके बदले में बादशाह ने उसे 4,000 का मनसबदार बना दिया और सरहिन्द का मुगल फौजदार बनाकर वहां भेज दिया.
- 1748 ई. में अहमदशाह अब्दाली की आक्रामक योजनाओं की सूचना पाते ही उसने शीघ्र ही सरहिंद का अपना पद त्याग कर अफगानों की अपनी पूरी टुकड़ी के साथ वापस रुहेलखण्ड की ओर कूच किया.
- अप्रैल 1748 ई. तक उसने पुनः रुहेलखण्ड में मुगल शासन का अंत कर अपनी सत्ता स्थापित की.
- 15 सितम्बर, 1748 ई. को अली मुहम्मद खाँ की मृत्यु के बाद हाफिज रहमत खाँ उसके मुख्य उत्तराधिकारी के रूप में सामने आया.
- मुगल वजीर सफदरजंग ने रुहेलों को कुचलने की एक नवीन योजना के तहत् बंगश प्रमुख कायम खाँ को रुहेलखण्ड का फौजदार नियुक्त किया.
- किन्तु कायम खाँ की सेना अफगानों का सामना न कर सकी.
- इसके विपरीत गंगा के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बंगश प्रमुख कायम खाँ के सभी क्षेत्रों पर हाफिज रहमत का अधिकार हो गया.
- अप्रैल, 1751 में मुगल वजीर सफदरजंग केवल मराठों और जाटों से मित्रता करने में सफल रहा, बल्कि अपने नवीन मित्रों की सहायता से उसने रुहेलों पर भी एक महत्वपूर्ण सफलता प्रात की.
- पानीपत के तृतीय युद्ध (1761) में रुहेलों ने अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया.
- इस युद्ध के बाद रुहेल आजाद हो गए.
- कुछ समय के लिए उनका दिल्ली पर भी कब्जा रहा.
- वरेन हेस्टिंग्स के काल में अवध के नवाबों ने रुहेलखण्ड को अवध प्रान्त में मिला लिया.
- इसकी राजधानी पहले बरेली में आंवला में थी, बाद में रामपुर चली गई.
जाट
- दिल्ली, आगरा तथा मथुरा के समीपवर्ती क्षेत्रों में जाट लोग रहते थे.
- ये लोग मुख्यतः कृषक थे.
- ये अपनी वीरता, लड़ाकू भावना और धैर्य के लिए प्रसिद्ध थे.
- इनमें जातीय भवना बहुत तीव्र थी.
- इन्होंने औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध 1699 ई. में तिल्पत के जमींदार गोकला के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया.
- यह विद्रोह असफल रहा.
- आगे चलकर राजाराम, राम चेहरा और चूड़ामन आदि जाट नेताओं ने जाटों को संगठित किया.
- जाट नेता चूड़ामन ने ‘थीम’ नामक स्थान पर एक सुदृढ़ दुर्ग बनाया और मुगलों की शक्ति को चुनौती दी.
- आगरा के सूबेदार जयसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने थीम दुर्ग पर कब्जा कर लिया.
- चूड़ामन ने आत्महत्या कर ली.
- चूड़ामन के बाद उसके भतीजे बदन सिंह ने जाटों का नेतृत्व संभाला.
- बदन सिंह ने अपनी स्थिति को काफी सुदृढ़ किया और दीग, कुम्बेर, वेद तथा भरतपुर में चार दुर्गों का निर्माण किया.
- नादिरशाह के आक्रमण का लाभ उठाकर बदनसिंह ने आगरा और मथुरा पर कब्जा कर लिया.
- जाट नेता बदन सिंह ने ही भरतपुर राज्य की नींव डाली.
- अहमदशाह अब्दाली ने बदन सिंह को “राजा’ की उपाधि प्रदान की और इसके साथ “महेन्द्र” शब्द को भी जोड़ा.
- 1756 ई. में जाट नेता सूरजमल को इस राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया.
- 1763 ई. तक सूरजमल ने अपने राज्य को सुदृढ़ नेतृत्व प्रदान किया.
- 1763 ई. में उसकी मृत्यु के बाद जवाहरसिंह गद्दी पर बैठा.
- किन्तु 1768 ई. में जवाहर सिंह जयपुर के राजा माधो सिंह के हाथों पराजित हो गया.
- जवाहर सिंह के समय से ही इस जाट राज्य का पतन प्रारंभ हो गया था.
- जवाहरसिंह के उत्तराधिकारियों में वृद्धि और चरित्र दोनों का अभाव था.
- जवाहर सिंह के बाद रतन सिंह (1768-69 ई.) केसरी सिंह (1769-75 ई.) तथा रणजीत सिंह (1775-1805 ई.) गद्दी पर बैठे.
- अन्त में रणजीत सिंह (1775 से 1805 ई.) ने 1805 में ब्रिटिश अधीनता को स्वीकार कर लिया.
- सूरजमल को जाटों का अफलातून (प्लेटो) कहा जाता है.
बुन्देलखण्ड
- बुन्देलों ने मधुकर शाह के अधीन काफी शक्ति का अर्जन किया.
- इन्होंने ओरछा में अपनी राजधानी को स्थापित किया.
- 1592 ई. में मधुकरशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र वीरसिंह बुन्देलखण्ड का मुखिया बना .
- जहाँगीर के शासनकाल में वीरसिंह को 3000 का मनसबदार बनाया गया.
- वीरसिंह के अधीन बुन्देलों की शक्ति अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई.
- वीरसिंह ने मथुरा में 33 लाख रुपये की लागत से एक मन्दिर का निर्माण करवाया.
- 1627 ई. में वीरसिंह की मृत्यु के बाद जुझारसिंह उसका उत्ताराधिकारी बना.
- 1635 ई. में चंपतराय बुन्देलखण्ड का मुखिया बना .
- सामूगढ़ की लड़ाई में उसने औरंगजेब का साथ दिया.
- 1667 ई. के देवगढ़ अभियान के दौरान मुगलों का साथ दिया, किन्तु जब औरंगजेब ने हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करके अपनी धार्मिक कट्टरता का परिचय दिया तो छत्रसाल ने बुन्देलों की हिन्दू जनता के नायक के रूप में अपने को प्रस्तुत किया.
- 1710 ई. में पुनः छत्रसाल ने सिख नेता बन्दा बहादुर के विरुद्ध मुगलों के अभियान में अपना सक्रिय सहयोग दिया, किन्तु 1720 ई. में बुन्देलों ने पुनः मुगलों के विरुद्ध बगावत कर दी और काफी शक्ति का अर्जन कर लिया.
- 1723 ई. में मुगल सम्राट ने मुहम्मद खाँ से छत्रसाल के नेतृत्व में बढ़ती हुई बुन्देलखण्ड की शक्ति को कुचलने के लिए कहा.
- छत्रसाल ने मराठों की सहायता से मुहम्मद खाँ का सफलता पूर्वक सामना किया.
- किन्तु मराठा कैम्प में महामारी फैलने के कारण मराठा सेना वापस दक्षिण में चली गई.
- 1729 ई. में छत्रसाल ने मुहम्मद खाँ से समझौता कर लिया.
- मुहम्मद खाँ ने पुनः बुन्देलखण्ड पर हमला न करने का वचन दिया.
- 1731 ई. में छत्रसाल का निधन हो गया और उसकी रियासत को उसके पुत्रों ने आपस में बांट लिया.
सिक्ख
- औरंगजेब ने अपनी धार्मिक कट्टरता का परिचय देते हुए सिखों के दसवीं गुरु, गुरु तेग बहादुर का वध करवा दिया.
- इस महत्वपूर्ण घटना से सिख मुगलों के गंभीर शत्रु बन गए.
- गुरु गोविन्द सिंह (1664-1708 ई.) ने अपने सुदृढ़ नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और आनंदपुर साहब में अपने मुख्य कार्यालय की स्थापना की.
- 1699 ई. में उन्होंने “खालसा पंथ“ की स्थापना की.
- गुरु गोविन्द सिंह ने अपने आस-पास की समस्त पहाड़ी रियासतों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया.
- औरंगजेब ने सिखों की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए लाहौर के गवर्नर तथा सरहिन्द के फौजदार को पहाड़ी राजाओं की सहायता के लिए भेजा.
- प्रारंभ में सिख नेता ने वीरतापूर्वक मुगल सेना का सामना किए, किन्तु अचानक भुखमरी फैलने से सब अस्त-व्यस्त हो गया और मजबूरीवश गुरु गोविन्द सिंह को किले के दरवाजे खोलने पड़े.
- मुगल सेनापति वजीर खाँ ने अचानक उन पर हमला कर उनके दो पुत्रों को पकड़ लिया और बाद में उनका वध कर दिया गया.
- एक अन्य लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह ने अपने शेष दोनों बेटे भी खो दिए.
- 1708 ई. में सिखों का नेतृत्व बंदा बहादुर के सुयोग्य हाथों में आ गया.
- सरहिन्द के फौजदार वजीर खाँ से बदला लेने के लिए बंदा बहादुर ने सरहिन्द पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया और वजीर खाँ की हत्या कर दी.
- बंदा बहादुर ने अनेक कल्याणकारी कार्य भी किए.
- इन कार्यों में प्रमुख कार्य, जमींदारों का भूस्वामित्व समाप्त कर भूमि को जोतने वालों को उसका स्थायी स्वामी बनाना था.
- बंदा बहादुर ने 1716 ई. तक सिख राज्य को काफी शक्तिशाली बनाया.
- किन्तु एक युद्ध में अपने सहयोगियों द्वारा विश्वासघात किए जाने के कारण बंदा बहादुर बन्दी बना लिए गए.
- 1716 ई. में उनका वध कर दिया गया.
- बंदा बहादुर की मृत्यु के बाद सिखों में फुट पड़ गई और सिख ‘बन्दई’ तथा “तत खालसा’ नामक दो गुटों में विभाजित हो गए.
- 1721 ई. में भाई मणि सिंह और गुरु गोविन्द सिंह की विधवा माता सुन्दरी ने सिख एकता हेतु प्रयास किये.
- 1739 ई. में नादिरशाह के आक्रमण के बाद फैली अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति ने सिखों को पुनः शक्ति संचयन का अवसर प्रदान किया.
- इलेवाल नामक स्थान पर सिखों ने स्वयं को संगठित किया और एक किले का निर्माण किया.
- 1748 से 1767 ई. के मध्य मुहम्मदशाह अब्दाली द्वारा किए गए विभिन्न आक्रमणों ने सिख शक्ति के उदय पर निर्णायक प्रभाव डाला.
- 1752 ई. में पंजाब मुगल साम्राज्य का भाग न रहा.
- 1760 ई. के आते-आते सिखों का पंजाब पर पूर्ण प्रभुत्व स्थापित हो गया.
- 1764 ई. में सिखों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया.
- अब उनका प्रभाव सहारनपुर से अवध (अटक) तक तथा मुल्तान से कांगड़ा तथा जम्मू तक फैल गया.
- आगे चलकर सिखों का नेतृत्व महाराजा रणजीत सिंह के हाथों में आया.
- 1839 ई. में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिखों में फूट पड़ गई .
- 1849 ई. में पंजाब पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया.
जम्मू-कश्मीर
- जम्मू लम्बे समय से एक हिन्दू राजपूत वंश के अधीन था.
- मुगल बादशाह इस पहाड़ी रियासत पर नियंत्रण रखने के लिए एक मुस्लिम फौजदार की नियुक्ति करता था.
- मुगल साम्राज्य की पतनात्मक स्थिति का लाभ उठाकर जम्मू के राजा ने मुगल बादशाह को कर देना बन्द कर दिया तथा अपनी स्वतंत्रता हेतु प्रयत्न करने लगा.
- 1750 ई. 1781 ई. तक जम्मू राजा रणजीत देव के अधीन था.
- इस राजा के शासनकाल में जम्मू शहर काफी समृद्ध हुआ और व्यापार का प्रसिद्ध केन्द्र बन गया.
- 1781 ई. में रणजीत देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बृजराज देव उसका उत्तराधिकारी बना.
- बृजदेव के काल में जम्मू पूरी तरह सिखों के नियंत्रण में रहा.
- 1752 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने कश्मीर पर अधिकार कर लिया.
- इसके बाद 1819 ई. तक यहां अफगानों का शासन रहा.
- 1819 ई. में कश्मीर पर महाराजा रणजीत सिंह ने अधिकार कर लिया.
मराठे
- छत्रपति शिवाजी (1627-16803 ई.) ने मराठा साम्राज्य की नींव डाली .
- इससे पूर्व उन्हें बीजापुर और गोलकुण्डा की मुस्लिम रियासतों से कड़ा संघर्ष करना पड़ा था.
- 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई 1707 से 1749 ई. तक छत्रपति शिवाजी के पोते साहू ने मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया, किन्तु साहूजी एक शान्तिप्रिय और आलसी व्यक्ति था.
- अतः उसके शासनकाल में विशेषतः 1714 से 1720 ई. के दौरान वास्तविक मराठा शक्ति का प्रयोग पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने किया और मराठा शक्ति को सुदृढ़ किया.
- 1720 से 1740 ई. तक पेशवा बाजीराव प्रथम ने मराठा शक्ति का विस्तार किया.
- पेशवा बाजीराव प्रथम ने सम्पूर्ण भारत में हिन्दू राज्य स्थापित करने की अपनी नीति का अनुसरण करते हुए मालवा और गुजरात पर अधिकार किया.
- जनवरी, 1738 ई. में उसने दक्षिण के मुगल सूबेदार आसफजाह निजाम-उल-मुल्क को प्रसिद्ध दुरई सराय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया.
- इस संधि के बाद चम्बल तथा नर्मदा नदी के बीच का सारा प्रदेश मराठों के अधिकार में आ गया.
- 1738 ई. में ही बाजीराव ने भारत के पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों का दमन किया.
- 1750 ई. तक ऐसा लगने लगा कि मराठे ही आने वाले वर्षों में मुगल साम्राज्य के अधिकारी बनेंगे, किन्तु पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) में मराठों को अहमदशाह अब्दाली ने परास्त कर दिया.
- आगे चलकर मराठों ने अंग्रेजों को भी गंभीर चुनौती दी, किन्तु कुछ समय बाद अंग्रेजों ने मराठों की शक्ति को कुचल दिया.
गुजरात
- मुगलों के आंतरिक झगड़ों ने गुजरात पर कब्जा करने के लिए मराठों को उपयुक्त अवसर प्रदान किया.
- 1724 ई. में मुगल बादशाह ने हामीद खाँ को नजरंदाज करते हुए सरबुलन्द खाँ को गुजरात का गवर्नर नियुक्त किया .
- हमीद खाँ गुजरात का शासक बनना चाहता था.
- मुगल बादशाह के उक्त कृत्य से रुष्ट होकर उसने बादशाह के विरुद्ध मराठों का समर्थन पाने के लिए मराठों को गुजरात से चौथ तथा सरदेशमुखी एकत्र करने का अधिकार दे दिया.
- हमीद खाँ के इस कृत्य से रुष्ट होकर सम्राट ने सरबुलन्द खाँ को गुजरात पर आक्रमण करने का आदेश दिया.
- सरबुलन्द खाँ हमीद खाँ की योजनाओं को तो निष्फल करने में सफल रहा.
- किन्तु वह मराठों को गुजरात से नहीं निकाल पाया.
- 1727 ई. में वह भी मराठों को गुजरात से चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने देने पर सहमत हो गया.
- सरबुलंद खाँ के इस कृत्य से सम्राट सहमत न था.
- सरबुलन्द खाँ को वापस बुला लिया गया और उसके स्थान पर राजा अभय सिंह को गुजरात का गवर्नर बनाया गया.
- आगे चलकर मुगल सम्राट द्वारा गुजरात में पुनः मुगल प्रभुत्व स्थापित करने के सारे प्रयास नाकाम रहे और अन्ततः 1737 ई. में गुजरात मुगल साम्राज्य से पृथक हो गया.
मालवा
- मालवा प्रान्त दक्कन तथा शेष हिन्दुस्तान को जोड़ने वाली कड़ी था.
- इस प्रकार की केन्द्रीय स्थिति होने के कारण इस प्रान्त का सामारिक महत्व बहुत अधिक था.
- व्यापार के मुख्यमार्ग तथा दक्कन और गुजरात को जाने वाले सैनिक रास्ते इस प्रान्त से होकर गुजरते थे.
- औरंगजेब को धार्मिक कट्टरता एवं अत्याचार से तंग आकर इस प्रान्त के राजपूत सामंत, जमींदार तथा उनकी हिन्दू प्रजा मुगल साम्राज्य के विरुद्ध हो गई.
- इन्होंने समय आने पर मुगलों के विरुद्ध मराठा आक्रमणकारियों का स्वागत किया.
- इस क्षेत्र पर मराठों का पहला आक्रमण 1699 ई. में हुआ.
- धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर मराठों का प्रभुत्व स्थापित होता चला गया.
- 1723-24 ई. में पेशवा बाजीराव ने मालवा पर आक्रमण किया.
- इस आक्रमण ने इस क्षेत्र में मुगलों की स्थिति को और अधिक दुर्बल कर दिया.
- 1738 ई. में मुगल सूबेदार निजाम-उल-मुल्क ने भोपाल में अपनी पराजय के बाद सम्पूर्ण मालवा तथा नर्मदा और चम्बल के बीच के क्षेत्र पर मराठों के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया.
- आगे चलकर 1741 ई. में पेशवा बालाजी बाजीराव के मालवा में बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने पेशवा को मालवा के डिप्टी गवर्नर का पद प्रदान किया.
- मुगल बादशाह का यह कृत्य अपनी लाज बचाने का एक उपाय मात्र था, क्योंकि इस उपाय के अभाव में मालवा दिल्ली के साम्राज्य (मुगल साम्राज्य) का एक भाग नहीं रह जाता.
The post स्वतंत्र राज्यों का उदय (Rise of Autonomous States) आधुनिक भारत (MODERN INDIA) appeared first on SRweb.
from SRweb https://ift.tt/2zh2FxG
via IFTTT
No comments:
Post a Comment