क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप,बंगाल में द्वैध प्रणाली (CLIVE’S SECOND GOVERNORSHIP IN BENGAL, The Dual System in Bengal) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप
- लार्ड क्लाइव ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी थी.
- अत: जब ब्रिटिश साम्राज्य को सुदृढ़ करने का अवसर आया तो ब्रिटिश सरकार ने क्लाइव को पुनः भारत में ब्रिटिश प्रदेशों का गवर्नर जनरल नियुक्त कर भारत भेजा.
- क्लाइव के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थिति अस्त-व्यस्त थी.
- बंगाल का प्रशासन पूर्णतया भ्रष्ट और अकार्यकुशल हो चुका था.
- ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापार कर्मचारियों की अयोग्यता के कारण ठप्प हो रहा था.
- अतः क्लाइव के समक्ष उपरोक्त स्थिति में सुधार करना प्रमुख चुनौती थी.
अवध के नवाब से संधि
- भारत आगमन के बाद क्लाइव का प्रथम कार्य परास्त शक्तियों के साथ सम्बन्धों को निश्चित करना था.
- इस कार्य के प्रथम चरण के रूप में उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से इलाहाबाद में 16 अगस्त, 1765 को एक संधि की.
- इस संधि में निम्नलिखित प्रावधान थे-
- नवाब इलाहाबाद तथा कारा के जिले सम्राट शाह आलम को देगा.
- नवाब युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए कम्पनी को 50 लाख रुपया देगा.
- नवाब बनारस के जागीरदार बलवन्त सिंह को उसकी जागीर वापस देगा.
- कम्पनी नवाब की सीमाओं की रक्षा के लिए सैनिक सहायता देगी.
- इस सहायता के बदले नवाब कम्पनी को धन देगा.
सम्राट शाह आलम से संधि
- अगस्त, 1765 में ही क्लाइव ने मुगल सम्राट शाह आलम से संधि की.
- इस संधि के अनुसार शाह आलम को ब्रिटिश सरंक्षण में ले लिया गया.
- इलाहाबाद तथा कारा के जिले शाह आलम को मिल गए.
- शाह आलम ने एक शाही फरमान के द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी कम्पनी को स्थाई रूप से दे दी.
बंगाल में द्वैध प्रणाली (The Dual System in Bengal)
- क्लाइव ने बंगाल की कठिन समस्या के समाधान हेतु द्वैध प्रणाली को प्रस्तुत किया.
- इस प्रणाली के तहत क्लाइव ने नवाब को नाममात्र का शासक बनाकर वास्तविक सत्ता कम्पनी को सौंप दी.
- फरवरी, 1765 में नवाब ने बंगाल सूबे की निजामत (सैन्य व्यवस्था) कम्पनी को सौंप दी.
- अगस्त 1767 में शाह आलम ने कम्पनी को दीवानी भी सौंप दी.
- इस प्रकार कम्पनी के हाथ में निजामत तथा दिवानी दोनों आ गई.
- यद्यपि कम्पनी वास्तविक सत्ता की स्वामी बन गई तथापि कानून की दृष्टि से नवाब ही बंगाल का शासक बना रहा.
- इस व्यवस्था को द्वैध प्रणाली की संज्ञा दी गई अर्थात् दो शासक-एक कम्पनी और दूसरा नवाब.
- इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह था कि प्रकट में ऐसा न लगे की कम्पनी का बंगाल पर कब्जा हो गया है.
- इस प्रकार द्वैध शासन से अंग्रेजों को वह सब कुछ मिल गया जो उन्हें चाहिए था.
द्वैध प्रणाली का औचित्य (Justification of the Dual System)
क्लाइव ने अपने द्वैध शासन के पक्ष में निम्नलिखित कारण दिए –
- यदि प्रत्यक्ष रूप से कम्पनी बंगाल की सत्ता अपने हाथ में ले लेती तो इससे यह लगता कि कम्पनी ने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया है. इसके फलस्वरूप सम्भवतः कम्पनी को अपार जन-आक्रोश का सामना करना पड़ता.
- प्रत्यक्ष नियंत्रण की स्थिति में फ्रांसीसी डच और डेन आदि विदेशी कम्पनियां ब्रिटिश कम्पनी को वे कर इत्यादि नहीं देती जो नवाब के फरमानों के अनुसार उन्हें देने होते थे.
- कम्पनी के पास प्रशासन चलाने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों का अभाव था. ये अधिकारी भारतीय रीति-रिवाजों तथा भाषा से अनभिज्ञ थे.
- कम्पनी का मुख्य उद्देश्य भारत में प्रदेश प्राप्त करना नहीं वरन् अपने को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना था.
- क्लाइव को यह आभास था कि यदि उसने प्रत्यक्ष रूप से बंगाल की सत्ता पर कब्जा कर लिया तो ब्रिटिश संसद् कम्पनी के कार्यों में हस्तक्षेप आरंभ कर देगी.
द्वैध प्रणाली के दोष (Shortcoming of the Dual System)
- क्लाइव ने प्रशासन की जो व्यवस्था स्थापित की वह अप्रभावी तथा अव्यावहारिक सिद्ध हुई.
द्वैध प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखत थे –
प्रशासनिक व्यवधान (Administrative Breakdown)
- द्वैध प्रणाली का प्रमुख दोष निजामत की शिथिलता के रूप में सामने आया.
- इससे देश में कानून और व्यवस्था लगभग ठप्प हो गई.
- नवाब में कानून लागू करने की क्षमता नहीं थी.
- वह जनता को न्याय दिलवाने में असमर्थ रहा.
- दूसरी तरफ कम्पनी ने किसी प्रकार के उत्तरदायित्व को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया.
- प्रशासन में सर्वत्र भ्रष्टाचार छा गया.
- इस प्रकार पूरे सूबे में कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत ही शोचनीय हो गई.
कृषि का ह्रास (Decline of Agriculture)
- बंगाल की उन्नत कृषि व्यवस्था अब चौपट हो चुकी थी.
- अधिकाधिक बोली देने वाले को प्रतिवर्ष कर एकत्र करने का भार सौंप दिया जाता था.
- कृषकों से लगान वसूलने के लिए उन पर अमानवीय अत्याचार किये जाते थे.
- अतः शीघ्र कृषक समुदाय खेतीबाड़ी छोड़कर लूटमार में लग गया.
- 1770 में भीषण अकाल पड़ा.
- किन्तु कर वसूल करने वाले ब्रिटिश नुमाइंदों का जुल्म कम न हुआ.
व्यापार तथा वाणिज्य का ह्रास (Decline of Trade and Commerce)
- कृषि के ह्रास का व्यापार तथा वाणिज्य पर भी कुप्रभाव पड़ा.
- 1717 से ही अंग्रेजों को बंगाल में बिना कोई कर दिए व्यापार करने की अनुमति थी.
- धीरे-धीरे कम्पनी का व्यापार पर लगभग एकाधिकार हो गया.
- अनेक भारतीय उद्योग बंद हो गए.
उद्योगों का ह्रास (Ruination of Industry)
- द्वैध प्रणाली से सर्वाधिक हानि बंगाल के कपड़ा उद्योग को हुई.
- कम्पनी ने बंगाल के रेशम-उद्योग को समाप्त करने में कोई कसर न छोड़ी.
- उल्लेखनीय है कि बंगाल के रेशम उद्योग से इंग्लैड के रेशम उद्योग को क्षति पहुँचती थी.
- कम्पनी ने रेशम के कारीगरों को कम्पनी के लिए काम करने पर बाध्य किया.
- अनेक जुलाहों ने कम्पनी के उत्पीड़न से बचने के लिए अपने अंगूठे कटवा लिए.
- रेशम के इन कुशल कारीगरों को दासत्व की स्थिति में पहुँचा दिया गया.
क्लाइव के प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms of Clive)
क्लाइव ने सैनिक तथा असैनिक दोनों ही क्षेत्रों में कुछ सुधार किए –
असैनिक सुधार
- कम्पनी के कर्मचारी पूर्णतया भ्रष्ट बन चुके थे.
- उनके मध्य घूस, बेईमानी तथा अन्य उपहार लेने की परम्परा बन चुकी थी.
- इन कर्मचारियों ने अपना निजी व्यापार भी शुरू कर दिया था तथा कर-चोरी के अनेक उपाय उन्हें अब पता लग गए थे.
- क्लाइव ने इस स्थिति से निपटने के लिए उपहार लेने और निजी व्यापार करने पर प्रतिबंध लगा दिया तथा आन्तरिक कर देना प्रत्येक कर्मचारी के लिए अनिवार्य कर दिया गया.
- क्लाइव ने एक व्यापार समिति का भी गठन किया.
- इस समिति को नमक, सुपारी और तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार भी प्रदान किया गया.
- इस समिति के लाभ को कम्पनी के कर्मचारियों के मध्य बांटने की भी व्यवस्था थी.
- किन्तु इस समिति के कार्यकलापों से दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दाम आसमान छूने लगे.
- वास्तव में कम्पनी की यह एक संगठित लूट थी.
सैनिक सुधार
- सैनिकों को पहले केवल युद्ध काल में ही विशेष भत्ता मिलता था किन्तु मीर जाफर के शासन काल से यह शांति काल में भी मिलने लगा.
- आगे चलकर यह सैनिकों के वेतन का भाग बन गया.
- इस दोहरे भत्ते से कम्पनी पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ने लगा.
- अत: क्लाइव ने जनवरी, 1766 में इस दोहरे भत्ते को समाप्त कर दिया.
- अब यह भत्ता केवल उन सैनिकों को ही मिलने लगा जो बंगाल तथा बिहार की सीमा से बाहर कार्य करते थे.
मूल्यांकन (Evaluation)
- कुल मिलाकर क्लाइव के संबंध में यह कहा जा सकता है कि वह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था.
- उसने शीघ्र ही ईस्ट इंडिया कम्पनी जो कि एक व्यापारिक संस्था थी, को एक प्रादेशिक संस्था बना दिया.
- उसने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रमुख प्रतिद्वन्दी डूप्ले को पराजित कर दिया.
- फ्रांसीसियों के विरुद्ध अरकाट को घेरना (1751) उसकी एक महत्वपूर्ण योजना थी.
- बाद कर्नाटक से फ्रांसीसियों का सफाया हो गया.
- प्लासी के युद्ध (1757) के बाद बंगाल का नवाब उसके हाथ की कठपुतली बन गया.
- बंगाल से प्राप्त धन के बल पर उसने शीघ्र ही दक्षिण को भी जीत लिया.
- क्लाइव की अलोचना करते हुए यह कहा जाता है कि उसने अपनी व्यापार समिति के माध्यम से बंगाल को लूटने की योजना बनाई.
- उसकी वैध प्रणाली का उद्देश्य ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना था न कि जनता का हित .
- उसने बंगाल को ईस्ट इंडिया कम्पनी की जागीर के रूप में परिणत कर दिया.
- वह एक सफल राजनीतिज्ञ नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके कार्यों से सर्वत्र अव्यवस्था ही फैली, व्यवस्था नहीं.
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