मुगल साम्राज्य का पतन (Decline of the Mughal Empire) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
औरंगजेब के उत्तराधिकारी
- 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में औरंगजेब की मृत्यु के बाद से मुगल साम्राज्य का पतन तेजी से आरंभ हो गया.
- मुगल बादशाहों ने अपनी सत्ता की महिमा खो दी.
- हालांकि अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय (1837-57 ई.) तक यह किसी तरह चलता रहा.
- मुगलों की सत्ता दिल्ली के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई.
- 1803 ई. में ब्रिटिश का दिल्ली पर कब्जा हो जाने के पश्चात् तो मुगल बादशाह केवल अंग्रेजों के पेंशनधारी बनकर ही रह गए.
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उसके तीनों बेटे मुअज्जम, आजम तथा कामबख्श के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया.
- मुअज्जम ने 18 जून, 1707 को ‘जाजू’ नामक स्थान पर आजम को तथा 13 जनवरी, 1709 को हैदराबाद के निकट कामबख्श तथा उसके पुत्रों को हराकर मार डाला.
बहादुरशाह प्रथम (1707-12 ई.)
- उत्तराधिकार संघर्ष जीतने के बाद मुअज्जम, बहादुरशाह-प्रथम के नाम से सिंहासन पर बैठा.
- इसे शाहआलम भी कहा जाता है.
- 65 वर्षीय बहादुरशाह-प्रथम ने समझौते तथा मेल-मिलाप की नीति अपनाई.
- उसने हिन्दू सरदारों और राजाओं के प्रति अधिक सहिष्णुतापूर्ण रूख अपनाया.
- वह विद्वान, योग्य और आत्मगौरव से परिपूर्ण व्यक्ति था.
- उसने औरंगजेब द्वारा अपनाई गई कई संकीर्णतावादी नीति को बदल दिया.
- आरंभ में उसने आमेर और मारवाड़ (जोधपुर) के राजपूत राज्यों पर पहले से अधिक नियंत्रण रखने की कोशिश की.
- उसने आमेर की गद्दी पर जयसिंह को हटाकर विजय सिंह (जयसिंह का छोटा भाई) को बैठाया तथा मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को मुगल सत्ता की अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया.
- कड़ा प्रतिरोध के कारण तुरंत ही दोनों राज्यों से समझौता कर लिया.
- जयसिंह और अजीत सिंह को अपने राज्य वापस मिल गए, किन्तु मालवा और गुजरात के सूबेदार के ओहदों की माँग को अस्वीकार कर दिया गया.
- मराठों को दक्कन की सरदेशमुखी दे दी गई, किन्तु चौथ का अधिकारी नहीं दिया गया.
- उसने शाहू को मराठों का विधिवत राजा नहीं माना.
- इस प्रकार वह मराठों को पूरी तरह खुश नहीं कर सका.
- मराठे आपस में लड़ते रहे तथा दक्कन अव्यवस्था का शिकार बना रहा.
- बहादुरशाह ने गुरु गोविंद सिंह के साथ संधि कर तथा एक बड़ा मनसब देकर सिखों के साथ मेल-मिलाप की नीति अपनाई.
- गोविंद सिंह की मृत्यु के पश्चात् बंदा बहादुर के नेतृत्व में बगावत शुरू हुई तथा बहादुरशाह ने उनके विरुद्ध सैनिक अभियान किया.
- किन्तु सिखों को दबाया नहीं जा सका और लौहगढ़ का किला, जिसपर बहादुरशाह ने अधिकार कर लिया था तथा उसे गोविंद सिंह ने अम्बाला के आर-पूर्व में हिमालय की तराई में बनाया था, वापस ले लिया.
- बहादुरशाह ने बुंदेला सरदार छत्रसाल से मेल-मिलाप कर लिया तथा जाट सरदार चूरामन से भी दोस्ती कर ली.
- चूरामन ने बंदा बहादुर के खिलाफ बहादुरशाह का साथ दिया.
- इसके शासन काल में अंधाधुंध जागीरें तथा पदोन्नति देने के काल मुगल राजकोष, जो 1707 ई. में करीब 17 करोड़ थी, खाली हो गया.
- इसी बीच बहादुरशाह की 1712ई. में दुर्भाग्यवश मृत्यु हो गई.
- बहादुरशाह ने जुल्फीकार खाँ को मीर बख्शी के पद पर नियुक्त किया था तथा साथ ही दक्कन की सूबेदारी भी प्रदान की थी.
- इतिहासकार खाफी खाँ ने बहादुरशाह के बारे में कहा है कि बादशाह राजकीय कार्यों में इतना अधिक लापरवाह था कि लोग उसे “शाहे बेखबर” कहने लगे.
मुगल शासक एवं उनके शासन काल शासन
शासन | शासन काल |
जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर | 1526-1530 ई. |
नासिरुद्दीन हुमायूँ (1540 से 1545 तक दिल्ली पर अफगान शासक शेरशाह का शासन था) | 1530-1556 ई. |
जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर | 1556-1605 ई. |
जहाँगीर | 1605-1627 ई. |
शाहजहाँ | 1627-1653 ई. |
औरंगजेब | 1653-1707 ई. |
बहादुरशाह | 1707-1712 ई. |
जहाँदार शाह | 1712-1713 ई. |
फर्रुखसियर | 1713-1719 ई. |
मुहम्मदशाह | 1719-1740 ई. |
अहमदशाह | 1748-1753 ई. |
आलमगीर द्वितीय | 1753-1758 ई |
शाह आलम द्वितीय | 1758-1806 ई. |
अकबर द्वितीय | 1806-1837 ई. |
बहादुर शाह द्वितीय | 1837-1857 ई. |
जहाँदार शाह (1712-13 ई.)
- बहादुरशाह (शाहआलम) की मृत्यु के बाद उसके चार पुत्रों जहाँदार शाह, अजीम-उश-शान, रफी-उश-शान तथा जहाँशाह के बीच हुए गृहयुद्ध में उस समय के सबसे ताकतवर सामंत जुल्फीकार खाँ की सहायता से 52 वर्षीय जहाँदार शाह को सफलता मिली.
- इसी गृहयुद्ध के बाद उत्तराधिकारी की लड़ाईयों में एक नया तत्व आया.
- पहले सत्ता के लिए शाहजादों के मध्य संघर्ष में सामंत गद्दी हथियाने में उनका साथ देते थे, किन्तु अब सांगत सत्ता के सीधे .
- दावेदार बन गए तथा सत्ता पाने में वे शाहजादों का इस्तेमाल कठपुतली के रूप में करने लगे.
- जहाँदार शाह एक अयोग्य व कमजोर शासक सिद्ध हुआ.
- उसके काल में प्रशासन वस्तुतः जुल्फीकार खाँ के हाथों में था.
- जुल्फीकार खाँ साम्राज्य का वजीर बन गया.
- जहाँदार ने तेजी से औरंगजेब की नीतियों को बदला तथा जजिया कर को समाप्त कर दिया.
- आमेर के जयसिंह को मिर्जा राजा सवाई की पदवी देकर मालवा का सूबेदार बनाया गया तथा.
- मारवाड़ के अजीत सिंह को महाराजा की पदवी दी गई और गुजरात का सूबेदार बनाया गया.
- मराठा शासक को दक्कन का चौथ और वहाँ की सरदेशमुखी इस शर्त पर दे दी गई कि उसकी वसूली मुगल अधिकारी करेंगे और फिर मराठा अधिकारियों को दे देंगे.
- जुल्फीकार खाँ ने जाट चुरामन तथा छत्रसाल बुंदेला के साथ भी मेल-मिलाप कर लिया.
- केवल बंदा बहादुर और सिखों के प्रति उसकी नीति दमन की रही.
- जुल्फीकार खाँ ने वित्तीय हालत को सुधारने की कोशिश की.
- उसने अंधाधुन्ध जागीरों तथा ओहदों की वृद्धि पर रोक लगा दी तथा मनसबदारों को नियत संख्या में सैनिक रखने पर मजबूर किया.
- उसने इजारा व्यवस्था ठेकेदारी को बढ़ावा दिया, जो गलत साबित हुई.
- इस व्यवस्था ने किसानों का उत्पीड़न बढ़ा दिया.
- इस काबिल वजीर को बादशाह का पूरा विश्वास और सहायोग नहीं मिल सका .
- बेईमान कृपापात्र लोगों के द्वारा बादशाह का कान भरने के कारण खुद बादशाह ने ही वजीर के खिलाफ षड्यंत्र करना शुरू कर दिया.
- जहाँदार शाह पर उसकी प्रेमिका लालकुंवर का अत्यधिक प्रभाव था.
- जहाँदार के शासनकाल के बारे में खाफी खाँ ने लिखा है कि
“नया शासनकाल चारणों और गायकों, नर्तकों एवं नाट्यकर्मियों के समस्त वर्ग के लिए अनुकूल युग था.”
- वजीर जुल्फीकार खाँ ने अपने एक चाटुकार सुभगचन्द्र को समस्त प्रशासकीय दायित्व सौंप रखा था.
- जहाँदारशाह को लोग लम्पट मूर्ख कहा करते थे.
फर्रुखसियर (1713-19 ई.)
- जहाँदारशाह के भतीजे एवं अजीम-उश-शान के दूसरे बेटे फर्रुखसियर ने 11 फरवरी, 1713 ई. को सैयद बंधुओं-अब्दुला खाँ तथा हुसैन अली खाँ-की सहायता से जहाँदारशाह की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया.
- फर्रुखसियर सुन्दर किन्तु कायर, क्रूर, अविश्वसनीय, बेईमान तथा नैतिक बल से रहित व्यक्ति था.
- वह चापलूसों के असर में जल्दी आ जाता था.
- फर्रुखसियर ने अब्दुला खाँ को बजीर तथा हुसैन अली खाँ को मीर बख्शी का ओहदा प्रदान किया.
- दोनों भाईयों ने जल्द ही शासन पर अपना दबदबा बना लिया.
- किन्तु कमजोरियों के बावजूद फर्रुखसियर उन्हें बेरोकटोक काम नहीं करने देता था.
- उसके दोनों भाईयों के खिलाफ षड्यंत्र किया, किन्तु हर बार असफल रहा. अंततः सैयद बंधुओं ने उसे गद्दी से उतार दिया और मार डाला.
- उसकी जगह उन्होंने बारी-बारी से दो युवा शाहजादों रफी-उद्-दरजात (शाहजहाँ द्वितीय) तथा रफी उद्-द्दौला को गद्दी पर बिठाया, किन्तु दोनों बहुत जल्द क्षय रोग से मर गए.
- इसके बाद सैयद बंधुओं ने शाहजहाँ द्वितीय के पुत्र रौशन अख्तर (मुहम्मदशाह) को अगला बादशाह बनाया.
- सैयद बंधुओं ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई.
- उन्होंने राजपूतों, मराठों तथा जाटों के साथ मेल-मिलाप कर उनका इस्तेमाल फर्रुखसियर और प्रतिद्वंद्वी सामंतों के खिलाफ करने की कोशिश की.
- उन्होंने जजिया को समाप्त किया तथा तीर्थयात्रा कर हटा दिया.
- जाट सरदार चूरामन के साथ दोस्ती कर ली तथा शाहू को शिवाजी का स्वराज एवं दक्कन के छह प्रांतों का चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार दे दिया.
- बदले में शाहू 15,000 घुड़सवारों के द्वारा दक्कन में समर्थन देने को तैयार हो गया.
- सैयद बंधुओं ने यद्यपि सभी प्रकार के सामंतों से मेल-मिलाप करने की कोशिश की, लेकिन निजाम-उल-मुल्क और उसका भाई (बाप के रिश्ते का) अमीन खाँ के नेतृत्व में सामंतों का एक शक्तिशाली गुट ईष्र्या के कारण उनके विरुद्ध षड्यंत्र करने लगा.
- बादशाह (फर्रुखसियर) की हत्या के कारण जनता में भी दोनों भाईयों के खिलाफ घृणा पैदा कर दी.
- बादशाह मुहम्मदशाह भी अपने को दोनों भाइयों के नियंत्रण से मुक्त करना चाहता था.
- इस कार्य में दक्कन का पूर्व सूबेदार चिनकिलिच खाँ (निजामुलमुल्क) तथा उसके सहायोगी सादात खाँ का सहयोग रहा.
- निजामुलमुल्क के नेतृत्व में एक तूरानी सैनिक हैदरबेग ने 9 अक्टूबर, 1720 को छोटे भाई हुसैन अली की चाकू भौंककर हत्या कर दी.
- अब्दुला खाँ को भी 15 नवम्बर, 1720 ई. में कैद कर लिया गया.
- इस प्रकार सैयद बंधुओं (जिन्हें राजा बनाने वाले के नाम से भी जाना जाता है) का आधिपत्य खत्म हो गया.
मुहम्मदशाह (1719-48 ई.)
- शाहजहाँ II या जहाँशाह का पुत्र रौशन अख्तर मुहम्मदशाह के नाम से 28 सितम्बर, 1719 ई. को गद्दी पर बैठा.
- प्रशासन के प्रति लापरवाह तथा युवतियों का शौकीन होने के कारण इसे ‘रंगीला’ कहा गया.
- तूरानी दल, जो सैयद बंधुओं के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था, के नेता चिकिलिच खाँ को सैयद बंधुओं का पतन करने की खुशी में मुहम्मदशाह ने अपना प्रधानमंत्री (21 फरवरी 1722 ई. को) नियुक्त किया.
- अनुशासन प्रिय होने के कारण वह दरबार में कठोर नियम लागू करना चाहता था, किन्तु बादशाह के विलासी प्रवृत्ति के कारण कोई सहयोग प्राप्त न कर सका.
- अंततः निराश होकर वह 18 दिसम्बर, 1799 ई. को दिल्ली त्याग दिया तथा हैदराबाद के सूबेदार मुबारिज खाँ को अपदस्त कर हैदराबाद एवं दक्कन के 6 सूबों को अपने अधिकार में कर अक्टूबर, 1724 ई. में अपने को स्वतंत्र घोषित कर हैदराबाद को अपनी राजधानी बनायी तथा सम्राट मुहम्मदशाह से ‘आसफजाह’ की उपाधि ग्रहण की.
- निजामुलमुल्क का दिल्ली से प्रस्थान “साम्राज्य से निष्ठा एवं सद्गुण के पलायन का प्रतीक था.”
- मुहम्मदशाह के काल में हैदराबाद के निजामशाही वंश के साथ ही बंगाल में मुर्शीद कुली खाँ, अवध में सआदत खाँ, भरतपुर और मथुरा में बदन सिंह, गंगा-यमुना दोआब में कटेहर रूहेलों के नेतृत्व में और फर्रुखाबाद में बंगश पठानों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली.
- 1 मार्च, 1737 ई. में मराठों ने लगभग 500 घुड़सवारों के साथ दिल्ली पर अधिकार करने का प्रयास किया तथा अंत में 17 जनवरी, 1738 ई. में मुगल सम्राट तथा मराठों के मध्य सिरौंज के समीप संधि हुई, जिसके परिणामस्वरूप मुगल सम्राट ने मराठों का अधिकार नर्मदा से चंबल तक स्वीकार किया तथा साथ ही 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता भी देनी पड़ी.
- मुहम्मदशाह के शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1739 ई. में नादिरशाह का भारत पर आक्रमण था.
- दिल्ली के भयानक कत्लेआम में लगभग 30,000 लोगों की जाने गईं.
- वह दिल्ली को लूटते हुए शाही खजाने, मोती, हीरे, जवाहरात एवं संसार भर में प्रसिद्ध मयूर सिंहासन (तख्ते ताऊस) को भी लूट लिया.
- 16 मार्च, 1739 ई. को नादिरशाह भारत से वापस चला गया.
- अपने साथ वह विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा (जो तख्ते ताउस में लगा था) भी ले गया.
- 1739 ई. में ही नादिशाह की मृत्यु के बाद उसका सेनापति ‘अहमदशाह अब्दाली‘ अफगानिस्तान का शासक बना.
- उसने मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान पंजाब के सूबेदार शाहनवाज खाँ के निमंत्रण पर भारत पर आक्रमण किया.
- अब्दाली लाहौर जीतने के बाद दिल्ली पर आक्रमण के लिए आगे बढ़ा, किन्तु मुहम्मदशाह के पुत्र शाहजादा अहमद ने मार्च, 1748 ई. में मच्छीवाड़ा के समीप ‘मानूपुर’ में उसे पराजित किया.
- 28 अप्रैल, 1748 ई. को मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद अहमदशाह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा.
- नादिरशाह के आक्रमण के समय उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था.
- वह बिना किसी प्रतिरोध के भारतीय इलाकों में घुस आया.
- दिल्ली की सुरक्षा के लिए जल्दी-जल्दी तैयारियाँ की गई, किन्तु आपसी गुटाबाजी के कारण सामंतों ने सूत्रबद्ध होने से इंकार कर दिया था.
- वे सुरक्षा की योजना तथा सेनापति के नाम पर सहमत नहीं हो सके.
- परिणामस्वरूप 13 फरवरी, 1739 ई. को करनाल में हुए युद्ध में मुगल फौज ने जबरदस्त शिकस्त खाई.
- अब्दाली ने भी 1748 तथा 1767 ई. के बीच उत्तरी भारत, खासकर दिल्ली और मथुरा पर बार-बार आक्रमण किया.
अहमदशाह (1748-54 ई.)
- 28 अप्रैल, 1748 ई. को अहमदशाह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा.
- इसके शासन काल में प्रशासन का काम काज हिजड़ों और औरतों के एक गिरोह के हाथों में आ गया, जिसकी मुखिया राजमाता उधमबाई (उपाधि-किबला-ए-आलम) थी.
- उसने हिजड़ों के सरदार जाबेद खाँ को ‘नवाब बहादुर’ की उपाधि प्रदान की.
- उसे बुरहान-उल-मुल्क के दामाद एवं अवध के सूबेदार ‘सफदरजंग’ को अपना बजीर तथा कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क को पंजाब का सूबेदार बनाया.
- इसके काल में अब्दाली ने भारत पर कुल पाँच बार आक्रमण किए.
- वह अपने दूसरे तथा तीसरे आक्रमण में पंजाब तथा मुल्तान को जीतने में सफल रहा.
- वजीर सफदरजंग के अवध में स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर लेने के बाद निजामुलमुल्क के पुत्र गाजीउद्दीन फिरोज जंग की स्थिति मजबूत हो गई.
- उसने मुगल दरबार में बजीर का पद प्राप्त कर लिया तथा उचित अवसर पाकर बादशाह अहमदशाह को अपदस्थ कर उसकी आँखें निकलवाकर सलीमगढ़ की जेल में डाल दिया.
- अब गाजीउद्दीन ने जहाँदारशाह के पुत्र आलमगीर द्वितीय को दिल्ली के सिंहासन पर बिठाया.
आलमगीर द्वितीय (1754-59 ई.)
- 55 वर्षीय आलमगीर द्वितीय के शासन की वास्तविक शक्ति गाजीउद्दीन-इमाद-उल-मुल्क के हाथों में थी.
- आलमगीर ने गाजीउद्दीन के विरुद्ध षड्यंत्र करना शुरू किया, किन्तु षड्यंत्र का भेद खुल जाने पर गाजीउद्दीन ने उसे सत्ताच्युत कर हत्या करवा दी.
- उसने आलमगीर II के पुत्र अलीगौहर को ‘शाहआलम’ की उपाधि से गद्दी पर बिठाया.
शाहआलम द्वितीय (1759-1806)
- यह शासक अंग्रेजों, मराठों एवं अमीरों के हाथों का कठपुतली मात्र था.
- हालांकि यह कबिल और भरपूर हिम्मत वाला था, लेकिन आरंभ के वर्षों में अपनी राजधानी से दूर एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहा, क्योंकि उसे अपने ही वजीर से जान का खतरा था.
- उसने 1764 ई. में बंगाल के मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की.
- बक्सर की यह लड़ाई हार जाने के कारण वह इलाहाबाद में कंपनी का पेंशनधारी बन कर रहा.
- 1772 ई. में वह मराठों के संरक्षण में ब्रिटिश आश्रय छोड़ दिल्ली लौटा.
- 1803 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया.
- इसके शासन काल में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ तथा 1765 में अंग्रेजों को बंगाल एवं बिहार की दीवानी, 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन एवं कड़ा प्रदेश के बदले प्रदान कर दिया.
- बाद में मराठों से मिल जाने के कारण अंग्रेजों ने उसकी पेंशन बंद कर दी.
- 1806 ई. में गुलाम कादिर खाँ ने शाहआलम द्वितीय की हत्या करवा दी.
अकबर द्वितीय (1806-37 ई.)
- अगला मुगल बादशाह शाहआलम-द्वितीय का पुत्र अकबर द्वितीय बना.
- यह भी अंग्रेजों को पेंशनभोगी बना रहा.
- इसका अधिकार लाल किला तक ही सिमट कर रह गया.
- 1837 ई. में इसकी मृत्यु हो गई.
- अकबर द्वितीय अंग्रेजों के संरक्षण में बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह था.
बहादुरशाह द्वितीय (1837-62 ई.) मुगल साम्राज्य का पतन
- यह अंतिम मुगल बादशाह था.
- 1857 ई. के विद्रोह में भाग लेने के कारण इसे निर्वासित कर (अंग्रेजों ने) रंगून भेज दिया, जहाँ 1862 ई. में उसकी मृत्यु हो गई.
- इस प्रकार मुगल वंश का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया.
- बहादुरशाह द्वितीय ‘जफर’ के नाम से कविता तथा शायरी लिखते थे.
- इसलिए वह बहादुरशाह जफर के नाम से प्रसिद्ध थे.
सैयद बन्धुओं ने कुल छह शाहजादों को बादशाह बनायारफी-उद्-दरजात, रफी-उद्-दौला, नेकसियर, फर्रुखसियर, मुहम्मद इब्राहिम तथा मुहम्मदशाह .
मुगल साम्राज्य का पतन (Decline of the Mughal Empire) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
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