आरम्भिक पेशवाओं की उपलब्धियाँ (Achievements of the Early Peshwas) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
मराठा शक्ति के प्रवर्तक पेशवा
- 1689 ई. में शिवाजी के उत्तराधिकारी सम्भाजी मुगलों के साथ युद्ध में शहीद हो गए.
- उनके पुत्र साहूजी को मुगल सेना ने बन्दी बना लिया.
- यह औरंगजेब के नेतृत्व में मुगलों की उल्लेखनीय सफलता थी.
- 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद अस्त-व्यस्त हुए मुगल साम्राज्य ने मराठों को पुनः शक्तिशाली होने के लिए अवसर प्रदान किया.
- इस नवोदित मराठा शक्ति के प्रवर्तक पेशवा थे जो छत्रपति साहू के पैतृक प्रधानमंत्री थे.
- इन पेशवाओं के वंश को चलाने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बालाजी विश्वनाथ थे.
- उन्होनें पेशवा के पद को वंशानुगत बनाकर पहले अपने प्रतिद्वन्द्वियों को तथा बाद में स्वयं राजा की शक्ति को निःशक्त कर दिया.
बालाजी विश्वनाथ (Balaji Vishwanath), (1713-1720 ई.)
- बालाजी विश्वनाथ कोंकण के एक ब्राह्मण कुल में जन्मे थे.
- यह कुल आज भी अपनी बुद्धि और प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध है.
- बालाजी विश्वनाथ में अभूतपूर्व कर एवं राजस्व संबंधी ज्ञान तथा सैन्य संगठन की क्षमता थी.
- इन्हें इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मराठों के अधीन कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ.
- 1696 ई. में उन्हें पूना का सभासद बनाया गया.
- आगे चलकर वह पूना (1699-1702 ई.) तथा दौलताबाद के (1704 से 1707 ई.) सर सूबेदार रहे.
- 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद राजकुमार आजम ने साहूजी को मुगल हिरासत से मुक्त कर दिया.
- शीघ्र ही साहूजी और उनकी चाची ताराबाई के मध्य सत्ता प्राप्त करने के लिए युद्ध प्रारंभ हो गया.
- सत्ता प्राप्ति के इस युद्ध में बालाजी विश्वनाथ ने साहूजी का साथ दिया.
- बालाजी ने अपनी कूटनीति से ताराबाई के खेमे में फूट डलवा दी.
- 1708 ई. में ताराबाई के सेनापति धन्नाजी की हत्या करवा दी गई और उसके पुत्र चन्द्रसेन को साहूजी का सेनापति नियुक्त कर दिया गया.
- चन्द्रसेन के संभावित विश्वासघात की आशंका से साहूजी ने एक नया पद ‘सेनाकर्ता’ (सेना को संगठित करने वाला) का सृजन किया और बालाजी विश्वनाथ को इस पद पर नियुक्त कर दिया.
- 1712 ई. में पुनः बालाजी विश्वनाथ ने साहू की डांवाडोल राजनीतिक स्थिति को स्थिरता प्रदान की.
- 1713 ई. में फर्रुखसियर, सैय्यद बन्धु, हुसैन अली और अब्दुल्ला खाँ की सहायता से मुगल राजगद्दी पर बैठा, किन्तु शीघ्र ही सम्राट की सत्ता कमजोर पड़ने लगी.
- सम्राट ने अपने प्रमुख प्रतिद्वन्दी मुख्य सेनापति हुसैन अली की योजनाओं को निष्फल करने के लिए उसे दक्षिण का वाइसराय नियुक्त कर दक्षिण भेज दिया.
- इसके बाद सम्राट ने गुजरात के गवर्नर दाऊद खाँ को साहू के साथ मिलकर हुसैन अली को खत्म करने के लिए प्रेरित किया.
- सैय्यद बंधुओं ने शीघ्र ही इस संकट को भाँप कर बड़ी ही चतुराई से मुगल बादशाह के विरुद्ध मराठों को एक संधि के द्वारा अपने पक्ष में कर लिया.
- इस संधि की प्रमुख बातें इस प्रकार थी-
- साहू को शिवाजी के अधीन वाले सम्पूर्ण भू-भाग का स्वामी माना जाएगा,
- खानदेश, बरार, गोंडवाना, हैदरावाद तथा कर्नाटक के सभी भूतपूर्व मराठा क्षेत्र साहू को सौंप दिए जाएंगे,
- मराठों को दक्कन के मुगल प्रान्तों से चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार होगा,
- साहू कोल्हापुर के शम्भूजी को किसी प्रकार ही हानि नहीं पहुँचाएगा,
- मुगल बादशाह साहू की माता एवं अन्य संबंधियों को रिहा कर देगा,
- साहू सम्राट को कर या खिराज के रूप में 10 लाख रुपया देगा. इस संधि को सर रिचर्ड टेम्पल ने मराठा साम्राज्य के मैगना कार्टा (Magna Carta) से संबोधित किया है.
- इस संधि के बाद बालाजी विश्वनाथ ने अपने 15,000 सैनिकों को लेकर हुसैन अली के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान किया.
- मराठों के इस सहयोग से हुसैन अली ने मुगल बादशाह फर्रुखसियर को सत्ताच्युत कर रफी-उद्द-रजात को सम्राट बनाया.
- रफी-उद्द-रजात ने उक्त संधि को सहर्ष स्वीकार कर लिया.
- इस स्वीकारोक्ति का एकमात्र अर्थ यह था कि मराठों की तुलना में मुगलों की स्थिति अत्यन्त क्षीण हो गई थी.
- इस प्रकार बालाजी विश्वनाथ ने मराठों की शक्ति को पुनः स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया.
- 2 अप्रैल, 1720 को इस महान योद्धा का स्वर्गवास हो गया.
बाजीराव प्रथम (Baji Rao I in Hindi), (1720-1740)
- बालाजी विश्वनाथ के पुत्र बाजीराव प्रथम को 1720 ई. में साहू ने अपना पेशवा नियुक्त किया.
- नियुक्ति के समय बाजीराव की आयु मात्र 19 वर्ष थी, किन्तु उन्होंने अपने पिता से प्रशासन तथा कूटनीति के संबंध में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया था.
- उनकी नियुक्ति के बाद सर्वप्रथम दक्षिण में निजाम मराठों के चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करने के अधिकार को चुनौती दे रहा था.
- मराठा राज्य के एक भाग पर जंजीरा के सिद्दियों ने कब्जा कर रखा था.
- कोल्हापुर के शम्भाजी साहू को सर्वोच्च मराठा शासक के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार न थे.
- बाजीराव प्रथम ने इन समस्त चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया.
- बाजीराव ने मुगल साम्राज्य की पतनात्मक स्थिति का लाभ उठाने का निश्चत किया और सम्पूर्ण भारत से मुगलों को बाहर निकालने के लिए साहू को प्रेरित किया.
- इस प्रकार बाजीराव प्रथम ने हिन्दू पाद-पदशाही के आदर्श का प्रचार एवं प्रसार किया.
- बाजीराव में अद्भूत पारखी क्षमता भी थी.
- अपनी इस क्षमता के कारण ही उन्होंने सिंधिया, होल्कर, पवार, रेत्रेकर और फड़के जैसे नेताओं एवं योद्धाओं को खोज निकाला.
- 1725-26 ई. में दक्कन के निज़ाम आसफजाह निज़ाम-उल-मुल्क ने साहू को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए लगभग बाध्य कर दिया था, किन्तु बाजीराव ने तुरंत स्थिति को संभाल लिया.
- बाजीराव ने 7 मार्च, 1728 को पालखेड़ के समीप न केवल निजाम को परास्त कर दिया, बल्कि मुंगी शिवगांव की संधि स्वीकार करने के लिए बाध्य भी किया.
- इस संधि के अनुसार निज़ाम ने साहू को चौथ तथा सरदेशमुखी देना, शम्भूजी की सहायता न करना, विजित प्रदेशों को लौटाना और युद्ध बंदियों को छोड़ना स्वीकार किया.
- मार्च, 1730 ई. में बाजीराव का छोटा भाई चिमनाजी गुजरात के मुगल सूबेदार सरबुलन्द खाँ से एक महत्वपूर्ण संधि पर हस्ताक्षर करवाने में सफल हो गया.
- इस संधि के द्वारा मराठों को गुजरात से चौथ तथा सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्राप्त हो गया.
- 1728 ई. में बुन्देल नरेश छत्रसाल ने मुगलों से अपनी रक्षा के लिए मराठों से सहायता की याचना की.
- मराठों ने अपनी अद्भूत सैन्य क्षमता का परिचय देते हुए बुन्देलखण्ड के सभी विजित क्षेत्रों को मुगलों से वापस ले लिया.
- कृतज्ञ छत्रसाल ने काल्पी, सागर, झांसी और हृदयनगर की अपनी जागीरें पेशवा बाजीराव को भेंट की.
- अप्रैल, 1731 ई. में बाजीराव ने वारना की संधि के द्वारा एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की.
- इस संधि के द्वारा शिवाजी के वंशज कोल्हापुर के शम्भाजी ने साहू की अधीनता स्वीकार कर ली.
- 1719 ई. में बालाजी विश्वनाथ ने मालवा से चौथ इत्यादि वसूल करने का अधिकार प्राप्त करने का एक असफल प्रयास किया था.
- बालाजी के इस प्रयास को बाजीराव ने अपने वाहुवल से सफल सिद्ध किया.
- उनके नेतृत्व में मालवा पर मुगलों की सत्ता लुप्तप्राय हो गई.
- 1735 ई. में पेशवा बाजीराव ने उत्तर की ओर प्रस्थान किया और मुगल बादशाह को मराठा शक्ति की एक झलक दिखाने के लिए दिल्ली पर आक्रमण कर दिया.
- मात्र 500 सवारों के साथ, जाटों और मेवातियों के क्षेत्रों को तीव्र गति से पार करते हुए 29 मार्च, 1737 को दिल्ली पर आक्रमण कर दिया.
- मुगल सम्राट ने इस आक्रमण से भयभीत होकर दिल्ली से भाग जाने की योजना बनाकर अपने खोखलेपन का स्पष्ट रूप से प्रदर्शन किया.
- इस प्रकार उत्तर भारत में भी मराठों के प्रभुत्व का उदय हुआ.
- 1740 ई. में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गई.
बालाजी बाजीराव (Balaji Baji Rao or Nana Saheb) (1740-1761 ई.)
- पेशवा का पद अव एक पैत्रिक पद वन गया था.
- बाजीराव प्रथम के शासन काल में ही मराठा शक्ति छत्रपति साहू के हाथ में केन्द्रित न रहकर बाजीराव के हाथ में चली गई थी.
- 1740 ई. में साहू ने बालाजी बाजीराव को अपना पेशवा नियुक्त किया.
- 1750 ई. में संगालो की महत्वपूर्ण संधि हुई.
- इस संधि के द्वारा एक महत्वपूर्ण संवैधानिक क्रान्ति हुई, जिसके पश्चात् मराठा छत्रपति नाममात्र के राजा रह गए.
- इन्हें ‘महलों के महापौर’ (Mayor of the Palace) की संज्ञा दी गई.
- बालाजी बाजीराव ने अपने पिता बाजीराव प्रथम के अधूरे कार्यों को पूरा करते हुए मराठा साम्राज्य का उत्तर और दक्षिण में और अधिक प्रसार किया.
- 1745 ई. में दक्कन निज़ाम आसफजाह निजामुलमुल्क की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों में सत्ता प्राप्ति के लिए युद्ध छिड़ गया.
- पेशवा बालाजी वाजीराव ने इस स्थिति का लाभ उठाकर खानदेश तथा वरार में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रयास आरंभ कर दिए.
- इन प्रयासों के कारण निजाम और मराठों के मध्य युद्ध छिड़ गया.
- इस युद्ध में फ्रांसीसी जनरल बुस्सी ने निज़ाम की सहायता की.
- काफी लम्बे संघर्ष के बाद भतकी की संधि, 1759 ई. के द्वारा निज़ाम ने बरार का आधा भाग मराठों को दे दिया.
- 1756 से 1763 ई. तक अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के मध्य गंभीर युद्ध हुआ.
- इस युद्ध के कारण फ्रांसीसी जनरल बुस्सा निज़ाम की सहायता न कर सका.
- 1757 ई. में गोदावरी के उत्तरी प्रदेश को लेकर निज़ाम और मराठों के मध्य सिन्दखेड में भीषण युद्ध हुआ.
- इस युद्ध के बाद निज़ाम 25 लाख रुपये वार्षिक कर देने योग्य प्रदेश और नालदुर्ग मराठों को देने के लिए बाध्य हो गया.
- 1760 ई. में हुए उदयगिर के युद्ध के बाद मराठों को अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर तथा बोजापुर के प्रदेश भी प्राप्त हो गए.
- परन्तु पेशवा बालाजी बाजीराव के शासन काल में हिन्दू पद-पादशाही को भावना को धक्का लगा.
- इनके शासन काल में होल्कर तथा सिधियों ने राजपूत प्रदेशों को लूटा तथा रघुनाथ राव ने खुम्वेर के जाट दुर्ग को आ घेरने का कुटिल प्रयत्न किया.
- 1751 ई. में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से भयभीत होकर मुगल सम्राट ने अपने वजीर सफदरजंग के माध्यम से मराठों से सहायता की याचना की.
- अप्रैल, 1752 ई. में संधि पत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिसके अनुसार 50 लाख रुपये वार्षिक के बदले मराठों ने मुगल बादशाह को आन्तरिक तथा बाह्य आक्रमणां से रक्षा का वचन दिया.
- इसके अलावा मराठों को अजमेर, पंजाब, सिंध तथा दोआब के मुगल प्रदशों के चौथ वसूल करने का अधिकार भी प्राप्त हो गया.
- 1757 ई. में अब्दाली ने पंजाब पर अधिकार कर लिया.
- 1758 ई. में मराठों ने लाहौर से अब्दाली के एजेन्ट को निकालकर सम्पूर्ण पंजाब पर अधिकार कर लिया. अहमदशाह अब्दाली ने मराठों के इस कृत्य को एक गंभीर चुनौती के रूप में लिया.
- अब्दाली ने तुरंत मराठों को परास्त करने का निर्णय लिया.
- 1759 ई. में उसने अटक पार किया और दिल्ली की ओर प्रस्थान किया.
- दत्ताजी ने थानेसर के समीप अहमदशाह की आक्रामक कार्यवाहियों को रोकने का असफल प्रयास किया और मारा गया.
- अतः पूना से सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना अफगानों से टक्कर लेने के लिए भेजी गई.
- 14 जनवरी, 1761 को पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में अफगानों एवं मराठों के मध्य गंभीर युद्ध प्रारंभ हो गया.
- इस युद्ध में मराठे परास्त हुए.
- इसी वर्ष बालाजी बाजीराव का भी देहान्त हो गया.
तृतीय पानीपत युद्ध
- प्रायः यह कहा जाता है कि मुख्यतः पेशवा बालाजी बाजीराव की दिल्ली की राजनीति में अत्यधिक दिलचस्पी तथा पंजाब में विवेकहीन हस्तक्षेप ने पानीपत के तृतीय युद्ध को जन्म दिया.
- उत्तर भारत में मराठा प्रभुत्व की स्थापना के लिए पेशवा बालाजी बाजीराव ने सदाशिव राव भाऊ को दिल्ली भेजा, जिसने 29 अगस्त, 1760 को दिल्ली पर अधिकार कर लिया.
- नवम्बर, 1760 में मराठा और अफगान सेनाएं पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में आमने-सामने खड़ी हो गई.
- 14 जनवरी, 1761 को दोनों के मध्य युद्ध प्रांरभ हो गया.
- इस युद्ध में मराठे परास्त हुए और उन्हें गंभीर क्षति उठानी पड़ी.
- इस युद्ध ने सम्पूर्ण मराठा शक्ति को कुचल दिया.
- इस युद्ध में मराठों की पराजय के प्रमुख कारण इस प्रकार थे-
- अहमदशाह अब्दाली के पास सदाशिव राव भाऊ से अधिक सेना थी. एक अनुमान के अनुसार इनके मध्य का अनुपात 60,000 : 45,000 था.
- मराठा शिविर में अकाल पड़ा हुआ था तथा दिल्ली जाने का मार्ग बंद हो गया था. मनुष्यों के लिए रोटी तथा घोड़ों के लिए चारे का अभाव था.
- उत्तर भारत की समस्त मुस्लिम शक्तियां अब्दाली से मिल गई थीं . मराठों ने अपनी विवेकहीन लूटमार के कारण न केवल मुगलों का, अपितु जाट और राजपूत जैसे हिन्दुओं का विश्वास भी खो दिया था.
- मराठा सरदारों में परस्पर गंभीर द्वेष थे. सदाशिवराव भाऊ और मल्हार राव होल्कर ने सदैव एक दूसरे के साथ शत्रुतापूर्ण आचरण किया.
- अहमदशाह अब्दाली ने युद्ध में आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों जैसे-बन्दूकों आदि का प्रयोग किया, जबकि मराठे अभी भी तलवारों तथा भालों से लड़ रहे थे .
- पानीपत के तीसरे युद्ध के संबंध में कुल मिलाकर यह कहना होगा कि इस युद्ध के बाद भारत के इतिहास का एक नया अध्याय आरम्भ हुआ.
- इस युद्ध में मराठों और मुगलों ने एक दूसरे को परास्त कर अंग्रेजों को भारत में पैर जमाने के लिए सुअवसर प्रदान किया.
माधव राव नारायण (MadhavRao Narayan) (1761-72 ई.)
- पेशवा बालाजी बाजीराव का दूसरा पुत्र माधव राव नारायण 1761 ई. में पेशवा बना.
- उसने हैदराबाद के निजाम को पराजित किया तथा मैसूर के हैदरअली को नजराना देने के लिए मजबूर किया.
- उसने 1771-72 ई. में मालवा एवं बुन्देलखण्ड पर अधिकार कर लिया.
- उसने मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय, जो इलाहाबाद में ईस्ट इंडिया कंपनी की पेंशनयाफ्ता हो गया था, पुनः 1771 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया.
- इस तरह वह अव मराठों का पेंशनभोगी बन गया.
- इस प्रकार वह पानीपत की तृतीय युद्ध में मराठों की खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त कर लिया.
- 1772 ई. में इस पेशवा का देहान्त हो गया.
- माधवराव प्रथम की मृत्यु के बाद 18वीं सदी के अंतिम 30 वर्षों तक महादजी सिंधिया तथा नाना फड़नवीस प्रभावशाली हुए.
- महादजी सिंधिया उत्तर में तथा नाना फड़नवीस का दक्षिण में प्रभाव बढ़ा.
- मराठा पेशवा नाममात्र का अधिकारी रह गया.
- मराठा नेताओं में शक्ति के लिए संघर्ष होता रहा.
- इस संघर्ष का लाभ अंग्रेजों को मिला.
नारायण राव (Narayan Rao) (1772-73 ई.)
- माधव राव के बाद उसका भाई नारायण राव पेशवा बना, किन्तु एक वर्ष के अंतराल में ही उसके चाचा रधुनाथ राव ने हत्या कर दी.
- रधुनाथ राव ने अंग्रेजों की सहायता से पेशवा बनने का प्रयत्न किया.
- यहीं से अंग्रेजों का मराठों के मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने का मौका मिला तथा आंग्ल-मराठा युद्ध का आधार बना.
- नाना फड़नवीस नारायण राव का समर्थक था.
माधवराव नारायण द्वितीय (Peshwa Madhav Rao II) (1774-95 ई.)
- पेशवा नारायण राव की मृत्यु के बाद उसकी विधवा गंगाबाई ने (नारायण राव की मृत्यु के बाद जन्मे) अपने पुत्र को 28 मई, 1774 ई. को माधवराव नारायण द्वितीय के नाम से पेशवा घोषित किया.
- राघोवा (रघुनाथ राव) 1775 ई. अंग्रेजों से सूरत की संधि की, जिसके अनुसार बंबई सरकार राघोवा से डेढ़ लाख रुपये मासिक खर्च लेकर 2,500 सैनिकों की सहायता देगी.
- इस सहायता के बदले राघोवा ने बंबई के समीप स्थित सालसेट, वसीन तथा थाना देने का वचन दिया.
- युद्ध का कोई निर्णय आने के पहले ही कलकत्ता की उच्च परिषद् ने इस युद्ध की वैद्धता को नकार दिया.
- फलतः मार्च 1776 ई. में पुरन्दर की संधि हुई.
- इस संधि के अनुसार कंपनी रघुनाथ राव को सहायता नहीं करेगी, परन्तु सालसेट एवं थाना पर कम्पनी का अधिकार बना रहेगा.
- इस प्रकार पुरन्दर की संधि निरर्थक सिद्ध हुई.
- बंबई की सरकार भी इस संधि को मानने के लिए तैयार नहीं थी, क्योंकि उसे सूरत की संधि अधिक लाभकारी लगी.
- बाद में संधि के महत्व को खत्म कर कंपनी ने पेशवा के विरुद्ध बंबई से एक सेना भेजी.
- दोनों पक्षों में बड़गांव में युद्ध हुआ.
- इस युद्ध में कंपनी पराजित हुई.
- परिणामस्वरूप 1779 ई. में बड़गांव की संधि हुई.
- इस संधि के तहत अंग्रेजों ने 1773 ई. के बाद जीते गए सभी मराठा क्षेत्रों को वापस करने का वचन दिया.
- वारेन हेस्टिंग्स ने युद्ध जारी रखा तथा 1780 ई. तक अहमदाबाद, गुजरात एवं ग्वालियर को जीतने में कंपनी को सफलता मिली.
- लगभग 7 वर्ष तक चले युद्ध के बाद सिंधिया की मध्यस्थता से 1784 ई. में सालाबाई की संधि हुई इस संधि के तहत् दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के जीते हुए क्षेत्रों को छोड़ने का वचन दिया.
- केवल सालसेट तथा एलीफेंटा द्वीप ही अंग्रेजों के अधिकार में रह गए.
- अंग्रेजों ने राघोवा का साथ छोड़ दिया.
- पेशवा ने राघोवा को पेंशन दी.
- कंपनी ने माधवराव नारायण को पेशवा के रूप में मान्यता दी.
- पेशवा की बाल्यावस्था के कारण ‘वारभाई परिषद्’ (12 सदस्यों वाली यह परिषद् मराठा राज्य की देख-रेख करती थी) के सदस्य महादजी सिंधिया एवं नाना फड़नवीस कोई भी निर्णय लेने के लिए स्वंत्रत थे.
- कालान्तर में दोनों द्वारा सत्ता पर अधिकार करने के लिए प्रतिद्वन्दिता प्रारंभ हो गई.
- इससे मराठों की आंतरिक शक्ति कमजोर हो गई.
- 1795 ई. में पेशवा ने आत्महत्या कर ली.
- इसी वर्ष महादजी सिंधिया की मृत्यु हो गई.
- 1800 ई. में नाना फड़नवीस की भी मृत्यु हो गई.
- इसी समय मराठा सरदारों द्वारा कुछ अर्द्धस्वतंत्र राज्यों की स्थापना की गई.
- इनमें इंदौर के होल्कर, बड़ौदा के गायकवाड़, नागपुर के भोंसले तथा ग्वालियर के सिंधिया शामिल थे.
पेशवा बाजीराव द्वितीय (Baji Rao II) (1796-1818 ई.)
- रघुनाथ राव का पुत्र बाजीराव द्वितीय अंग्रेजों की सहायता से पेशवा बना.
- यह अयोग्य स्वार्थी एवं महत्वाकांक्षी पेशवा अपने प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस से इष्र्या करता था.
- फड़नवीस की मृत्यु (1800 ई.) के बाद वह अपनी सर्वोच्चता सिद्ध करने के लिए स्वयं मराठों में आपसी झगड़े करवाने लगा.
- दौलत राव सिंधिया तथा जसवन्त होल्कर दोनों पुना में अपने को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करना चाहते थे.
- पेशवा बाजीराव द्वितीय सिंधिया का साथ दे रहा था.
- उसने 1801 ई. में जसवंत होल्कर के भाई की हत्या करवा दी.
- परिणामस्वरूप होल्कर की सेना ने पुना पर आक्रमण कर पेशवा व सिंधिया की संयुक्त सेना को पराजित कर दिया.
- बाजीराव द्वितीय ने 1801 ई. में भागकर बसीन में शरण ली.
- यहीं पर 31 दिसम्बर, 1802 को एक जहाज पर ‘बसीन की संधि’ की .
- इस संधि के अनुसार पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षकता स्वीकार कर ली.
- अंग्रेजों ने राजधानी पुना में उसे पुनः स्थापित करने का वचन दिया तथा .
- दोनों पक्षों ने एक-दसूरे के मित्र और शत्रु स्वीकार किया.
- अंग्रेजों ने अपने 60,000 सैनिक पेशवा की रक्षा के लिए उसके राज्य में रखने का वायदा किया तथा बदले में पेशवा ने 26 लाख रुपये वार्षिक आय वाले क्षेत्र को देने का वचन दिया.
- इस प्रकार पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों की सहायक संधि को स्वीकार किया.
- मराठा सरदारों ने बसीन की संधि के प्रति रोष व्यक्त करते हुए इस संधि को समाप्त करने के लिए युद्ध की तैयारी की, जिसका परिणाम द्वितीय अंग्ल-मराठा युद्ध के रूप में सामने आया.
- मुगल सुबेदार हुसैन अली तथा बालाजी विश्वनाथ के बीच 1719 ई. में हुई संधि को इतिहासकार रिचर्ड टेम्पेल ने मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी है.
- मुगल साम्राज्य के प्रति अपनी नीति की घोषणा करते हुए पेशवा बाजीराव प्रथम ने शाहू से कहा था कि हमें इस जर्जर वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिए, शाखाएँ तो स्वयं ही गिर जाएंगी शाहू ने बाजीराव प्रथम को योग्य पिता का योग्य पुत्र कहा है.
- बाजीराव प्रथम ने हिन्दू पादशाही का आदर्श रखा. हालांकि बालाजी बाजीराव ने इसे समाप्त कर दिया.
- सर जदुनाथ सरकार ने पानीपत के युद्ध के बारे में लिखा है-
“शायद महाराष्ट्र में ही ऐसा कोई परिवार होगा जिसने कोई-न-कोई सम्बन्धी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का सत्यानाश ही हो गया.”
- 1761 ई. के इस युद्ध में मराठों की पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट संदेश के रूप में इस प्रकार पहुंचाई गई – “दो मोती विलीन हो गए, बाइस सोने की मुहरें लुप्त हो गई और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती.”
- पानीपत के तृतीय युद्ध में विश्वासराव (बालाजी बाजी का ज्येष्ठ नाबालिग पुत्र), सदाशिव राव भाऊ (बालाजी बाजी का चचेरा भाई तथा वास्तविक सेनापति) के साथ जनकोजी सिंधिया, तुकोजी सिंधिया, जसवंत राव तथा तोपखाना के संचालक इब्राहिम खाँ गार्दी सहित कई सेनानायक मारे गए. .
- महादजी सिंधिया गंभीर रूप से घायल हो गए तथा जीवन भर के लिए अपंग हो गए.
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