पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Administration Under the Peshwas) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)
पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Under the Peshwas)
- पेशवाओं के अधीन मराठों की शासन व्यवस्था हिन्दू शासन-शास्त्र, छत्रपति शिवाजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों तथा स्वयं पेशवाओं के द्वारा किए गए सुधारों का सम्मिश्रण थी.
- संक्षेप में, हम पेशवाओं के अधीन मराठों की शासन व्यवस्था का उल्लेख इस प्रकार कर सकते हैं
राजा (छत्रपति)
- मराठा साम्राज्य का मुखिया छत्रपति शिवाजी का वंशज छत्रपति साहू था.
- वह सतारा का राजा कहलाता था.
- राज्य में सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां वही करता था.
- मुख्यतः पेशवा बालाजी विश्वनाथ के शासनकाल से राजा की प्रतिष्ठा एवं शक्तियां कम होने लगी थीं.
- बाद में साहू के उत्तराधिकारी नाममात्र के राजा रह गए थे.
- उनके आदेश प्रायः पेशवा रद्द कर देता था.
- राजा को विशेष मदों के लिए अनुदान मांगना पड़ता था.
पेशवा
- प्रारंभ में पेशवा छत्रपति शिवाजी की अष्ट प्रधान समिति अर्थात् आठ मंत्रियों का एक समूह का एक सदस्य होता था.
- बालाजी विश्वनाथ ने अपनी अद्भुत योग्यताओं एवं राजमर्मज्ञता से इस पद को परम शक्तिशाली बनाया.
- उन्होंने इस पद को अपने वश में वंशानुगत बनाया.
- उनके पुत्र बाजीराव प्रथम ने इस पद को मराठा प्रशासन में सर्वोच्च बना दिया.
केन्द्रीय प्रशासन
- पूना में स्थिति पेशवा का सचिवालय मराठी प्रशासन का केन्द्र था.
- इसे ‘हजूर दफ्तर’ कहते थे.
- एलबेरीज का संबंध सभी प्रकार के लेखों से था.
- यह विभाग एक खतौनी भी तैयार करता था.
- यह खतौनी व्यय का अनुवर्णिक क्रम सारणी (Alphabetically arranged) रूप में वर्णित सारांश होता था.
- चातले दफ़्तर सीधे फड़नवीस के अधीन होता था.
- नाना फड़नवीस ने इसकी कार्यप्रणाली में अनेक सुधार किए, किन्तु पेशवा बालाजी बाजीराव के काल में यह दफ्तर अस्त-व्यस्त हो गया.
प्रान्तीय तथा जिला प्रशासन
- प्रायः सूबे को प्रान्त कहते थे और तरफ या परगने को महल भी कहते थे.
- खानदेश, गुजरात तथा कर्नाटक जैसे बड़े-बड़े प्रान्त सर सूबेदारों के अधीन होते थे.
- कर्नाटक का सूबेदार अपने मामलतदार स्वयं नियुक्त करता था.
- सर सूबेदार के अधीन एक मामलतदार होता था जिस पर मण्डल, जिले, सरकार और सूबा इत्यादि का कार्यभार होता था.
- मामलतदार तथा कामविसदार दोनों ही जिले में पेशवा के प्रतिनिधि होते थे.
- यह सभी प्रकार के कार्यों की देख रेख करते थे.
- जैसे–कृषि एवं उद्योग का विकास, दीवानी तथा फौजदानी न्याय और पुलिस आदि.
- गांवों में कर निर्धारण मामलतदार स्थानीय पटेलों के परामर्श से करता था.
- मामलतदार तथा कामविसदार के वेतन और भत्ते अलग-अलग जिलों के महल के अनुसार होते थे.
- छत्रपति शिवाजी के काल में ये अधिकारी हस्तांतरण होता रहता था, किन्तु पेशवाओं के काल में ये प्रायः वंशानुगत हो गए.
- इससे अकुशलता तथा भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला.
- देशमुख तथा देशपाण्डे अन्य जिला अधिकारी थे.
- ये मामलतदार एक नियंत्रण के रूप में कार्य करते थे.
- इनकी पुष्टि के बिना कोई लेखा स्वीकार नहीं किया जाता था.
- एक अन्य अधिकारी दरखदार था.
- यह एक वंशानुगत तथा मामलतदार से स्वतंत्र अधिकारी था.
- यह अधिकारी देशमुख तथा देशपाण्डे पर नियंत्रण के रूप में कार्य करता था.
- प्रत्येक जिले में कारकुन भी होता था.
- यह विशेष घटनाओं की सूचना सीधे केन्द्र को देता था.
- महल या तरह का प्रशासन भी जिलों की तरह ही था.
- महल में मुख्य कार्यकर्ता हवलदार होता था.
- उसके सहायकों के रूप में महूमदार तथा फड़नवीस की व्यवस्था थी.
स्थानीय अथवा ग्राम प्रशासन
- मुख्य ग्राम अधिकारी पटेल (पाटील) होता था.
- यह अधिकारी कर संबंधी, न्यायिक और अन्य प्रशासनिक कार्य करता था.
- ग्राम तथा पेशवा के अधिकारियों के मध्य एक कड़ी थी.
- पटेल (पाटील) का पद वंशानुगत था.
- पटेल (पाटील) पद का क्रय-विक्रय भी किया जा सकता था.
- पटेल (पाटील) पद का आंशिक हस्तांतरण भी हो सकता था.
- इस स्थिति में एक ग्राम में एक से अधिक पटेल भी हो सकते थे.
- प्रत्येक को सरकार से वेतन नहीं मिलता था.
- वह एकत्रित कर का एक छोटा-सा भाग अपने लिए रख लेता था.
- पटेल के लिए अनिवार्य था कि वह भूमि कर राज्य को दे .
- भूमि कर न देने की अवस्था में उसे जेल में भी डाल दिया जाता था.
- पटेल (पाटील) के नीचे कुलकर्णी होता था.
- कुलकर्णी अधिकारी ग्राम की भूमि का लेखा रखता था.
- कुलकर्णी के नीचे चौगुले होता था.
- यह (चौगुले ) अधिकारी पटेल (पाटील)और कुलकर्णी की सहायता करता था.
- इनके अलावा ग्रामों में 12 बलूते या शिल्पी भी होते थे.
- ये पदाधिकारी ग्रामवासियों की सेवा करते थे और बदले में अनाज प्राप्त करते थे.
- कुछ ग्रामों में वलूटों के अलावा 12 अलूटे भी होते थे.
- ये पदाधिकारी भी ग्राम वासियों के सेवक थे.
नगर प्रशासन
- मराठों का प्रशासन मौर्यो के नगर प्रशासन से काफी मिलता-जुलता था.
- कोतवाल नगर का मुख्य शासक होता था.
- उसका प्रमुख कार्य महत्वपूर्ण झगड़ों को निपटाना, मूल्यों को नियमित करना तथा सरकार को अपने कार्यों का मासिक वितरण भेजना होता था.
- कोतवाल नगर का मुख्य दण्डाधिकारी तथा पुलिस का मुखिया होता था.
न्याय प्रणाली
- मराठा न्याय व्यवस्था और कानून प्राचीन संस्कृत स्मृति ग्रंथों और मनु स्मृति आदि पर आधारित थे.
- न्याय के लिए ग्राम में पटेल, जिले में मामलतदार सूबे में सरसूबेदार और अन्त में सतारा का राजा होता था.
- नगरों में न्यायाधीश होते थे.
- ये न्यायाधीश शास्त्रों में पारंगत होते थे तथा सिर्फ न्याय का ही कार्य करते थे.
- अतएव मराठे न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के पथक्करण से अनभिज्ञ थे.
- इनके समय में मुकदमों की कार्यविधि निश्चित नहीं थी.
- कानुन भी संहिताबद्ध न था.
- दीवानी मुकदमों का फैसला पंचायतें करती थीं.
- पंचायतों के निर्णय के विरुद्ध मामलतदार के समक्ष अपील की जा सकती थी तथा मामलतदार के बाद पेशवा के समक्ष अपील की जा सकती थी.
- प्रायः दंड स्वरूप कोड़े लगाना, जेल भेजना या सम्पत्ति जब्त कर लेने की कार्यवाहियां होती थी.
- मराठा पुलिस व्यवस्था को प्रायः संतोषजनक कहा गया है.
कर व्यवस्था
- भूमिकर आय का मुख्य साधन था.
- शिवाजी खेत की वास्तविक उपज का भाग लेना पसंद करते थे, जबकि पेशवाओं के काल में यह लम्बी अवधि के लिए निश्चित कर दिया जाता था.
- इसका भूमि की वास्तविक स्थिति से कोई लेना-देना नहीं था.
- बालाजी बाजीराव के काल में कर वसूली का अधिकार नीलामी पर दिया जाने लगा.
राज्य की आय के अन्य स्त्रोत
- चौथ (25 प्रतिशत) तथा
- सरदेशमुख (10 प्रतिशत)
- राज्य की आय के अन्य स्त्रोत थे.
- ये कर प्रदेशों को देने पड़ते थे जो मराठों के अधिकार क्षेत्र में आ जाते थे.
सैन्य व्यवस्था
- मराठा सेना का संगठन मुगल व्यवस्था पर आधारित था.
- मराठा सैन्य विनियम दक्षिण के मुस्लिम राज्यों के विनियमों पर आधारित थे.
- सेना में पैदल सिपाहियों की अपेक्षा घुड़सवारों की संख्या अधिक थी.
- शिवाजी सामन्तशाही सेना को पसंद नहीं करते थे तथा सैनिकों को सीधे वेतन देते थे, किन्तु पेशवाओं ने सामंतवादी पद्धति को अपनाया और साम्राज्य का एक बड़ा भाग जागीरों में बांट दिया.
- अधिकांशतः पेशवा अपनी तोपों और गोलों की आवश्यकता की पूर्ति अंग्रेजों तथा पुर्तगालियों से करते थे.
- पेशवाओं ने एक नौसेना का भी गठन किया.
- इस नौसेना का प्रयोग उन्होंने मुख्यतः समुद्री डाकुओं को रोकने, आने-जाने वाले जहाजों से ‘जकात’ प्राप्त करने तथा मराठा बन्दरगाहों की रक्षा करने के लिए किया .
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