Wednesday, November 28, 2018

वॉरेन हेस्टिंग्ज़, (WARREN HASTINGS, 1772-1785)  रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 | आधुनिक भारत

वॉरेन हेस्टिंग्ज़, (WARREN HASTINGS, 1772-1785)  रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

वॉरेन हेस्टिंग्ज़, 1772-1785

  • 1772 में ब्रिटिश सरकार ने वॉरेन हेस्टिंग्ज़ को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया.
  • अपनी नियुक्ति के बाद वॉरेन हेस्जिग्ज़ ने कम्पनी की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने तथा उसके व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयत्न किए.
  • उसने बंगाल में एक सुदृढ़ प्रशासन की भी व्यवस्था की.
  • वॉरेन हेस्टिग्ज़ द्वारा प्रस्तुत प्रमुख सुधारों को निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन भली-भांति समझा जा सकता है

वॉरेन हेस्टिंग्ज़, (WARREN HASTINGS, 1772-1785)  रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)

  • 1772 में कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्ज ने क्लाइव द्वारा प्रस्तुत द्वैध प्रणाली को बंद करने का आदेश दिया.
  • कलकत्ता परिषद् और उसके प्रधान को यह निर्देश दिया गया कि वे स्वयं दिवान बने तथा बंगाल, बिहार और उड़ीसा का प्रबन्ध भी संभालें.
  • इस प्रकार परिषद् और उसके प्रधान को मिलाकर एक राजस्व बोर्ड (Boad of Revenue) का गठन किया गया.
  • बोर्ड ने अपने कर संग्राहक नियुक्त किए.
  • इन संग्राहकों का कार्य कर व्यवस्था करना था.
  • कोष को मुर्शिदाबाद से कलकत्ता लाया गया.
  • प्रशासन का समस्त कार्यभार कम्पनी के कार्यकर्ताओं पर डाला गया.
  • इससे प्रशासन के संबंध में नवाब के अधिकार और कम हो गए.
  • नवाब के निजी गृह-प्रबन्ध का पुनर्गठन किया गया तथा मीर जाफर की विधवा मुन्नी बेगम को अल्पवयस्क नवाब मुबारिकुद्दौला की संरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया.
  • नवाब का भत्ता 16 लाख रुपये कर दिया गया जबकि पहले यह 32 लाख रुपये था.
  • मुगल सम्राट से इलाहाबाद तथा कारा के जिले वापस ले लिए गए.
  • इन जिलों को 50 लाख रुपये में अवध के नवाब को बेच दिया गया.

रेग्युलेटिंग एक्ट 1773, और प्रशासनिक सुधार (Regulating Act 1773, and Administrative Reforms)

  • इस एक्ट के द्वारा भारत में शासन का भार गवर्नर जनरल तथा उसकी चार सदस्यीय परिषद् पर डाला गया.
  • परिषद् का अध्यक्ष गवर्नर जनरल होता था.
  • परिषद् में निर्णय बहुमत से किए जाते थे.
  • मत बराबर होने की स्थिति में गवर्नर जनरल को निर्णायक मत देने का अधिकार होता था.
  • इस एक्ट में परिषद् के पांचों (गवर्नर जनरल समेत) सदस्यों के नाम दिए गए थे.
  • इनमें से वॉरेन हेस्टिग्ज़ (गवर्नर जनरल) और बारवैल तो भारत में ही थे, शेष तीन सदस्य क्रमशः क्लेवरिंग, फ्रांसीस और मॉनसन अक्टूबर, 1774 में इंग्लैण्ड से भारत पहुंचे.
  • गवर्नर जनरल और उसकी परिषद् के मध्य प्राय: झगड़े होते रहते थे.

भूमिकर सुधार (Land Revenue Reforms )

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज का यह दृढ़ मत था कि शासक ही सम्पूर्ण भूमि का मालिक है.
  • वह जमींदारों को केवल कर संग्रहकर्ता ही मानता था.
  • उसके मत में जमींदारी का कार्य केवल कृषकों से कर संग्रह करना तथा इसके बदले में अपनी आढ़त (Commission) प्राप्त करना था.
  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने एक संतोषजनक राजस्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रसिद्ध “परीक्षण तथा अशुद्धि” (Trial and Error) का नियम अपनाया.
  • वह जमींदारों को भूमि का स्वामी नहीं मानता था.
  • अतः 1772 में उसने कर संग्रहण के अधिकार को ऊंची बोली देने वाले को पांच वर्ष के लिए नीलाम कर दिया.
  • उसने इस संबंध में जमींदारों के श्रेष्ठता संबंधी किसी दावे पर विचार नहीं किया.
  • 1773 में उसने कर-संग्रह की व्यवस्था में अनेक सुधार किए.
  • इन सुधारों के तहत उसने जिलों में भ्रष्ट तथा निजी व्यापार में लगे कलक्टरों के स्थान पर भारतीय दीवानों को नियुक्त किया.
  • इनके कार्यों का निरीक्षण करने के लिए उसने छह प्रान्तीय परिषदें भी नियुक्त की.
  • ये परिषदें कलकत्ता स्थित राजस्व बोर्ड के अधीन होती थी.
  • 1776 में अनेक दोषों से ग्रस्त होने के कारण पंचवर्षीय कर-संग्रहण के ठेके की उक्त व्यवस्था समाप्त कर दी गई.
  • अब पुनः एक वर्षीय प्रणाली को अपनाया गया.
  • इसके अलावा अब जमींदारों को कर-संग्रहण के संबंध में अधिक श्रेष्ठ माना गया.
  • 1781 में पुन: इस व्यवस्था में सुधार किया गया.
  • अब प्रान्तीय परिषदें समाप्त कर दी गई.
  • जिलों में पुनः कलक्टरों की नियुक्ति की गई.
  • किन्तु इस बार इन्हें कर निश्चित करने का अधिकार नहीं दिया गया.
  • कानूनगो भी पुनः नियुक्त किए गए.
  • सर्वोपरि निरीक्षण की शक्ति अब भी कलकत्ता स्थित राजस्व बोर्ड के हाथ में थी.

न्यायिक सुधार (Judicial Reforms)

  • न्यायिक सुधार के संबंध में वॉरेन हेस्टिंग्ज ने अधिक सफलता अर्जित की.
  • उससे पूर्व बंगाल में जमींदार ही दीवानी और फौजदारी मुकदमों का निपटारा करते थे.
  • मध्यस्थता का बहुत प्रचलन था.
  • न्याय के क्षेत्र में धन का प्रभाव अधिक था.
  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने इस व्यवस्था में सुधार हेतु मुगलों की न्याय प्रणाली को अपनाने का प्रयास किया.
  • 1772 में उसने प्रत्येक जिले में एक दीवानी तथा एक फौजदारी न्यायालय की स्थापना करवाई.
  • दीवानी न्यायालय कलक्टरों के अधीन होता था.
  • हिन्दुओं पर हिन्दू विधि तथा मुसलमानों पर मुस्लिम विधि लागू होती थी.
  • इस न्यायलय में 500 रुपये तक के मामले सुने जा सकते थे.
  • इससे ऊपर सदर दीवानी अदालत में अपील की जा सकती थी.
  • सदर दीवानी अदालत में कलकत्ता परिषद् का प्रधान और दो अन्य सदस्य होते थे.
  • इनकी सहायता के लिए भारतीय अधिकारी होते थे.
  • जिला फौजदारी (निजामत) न्यायालय एक भारतीय अधिकारी के अधीन होता था.
  • इसकी सहायता के लिए एक मुफ्ती और एक काजी होता था.
  • इस न्यायालय में मुस्लिम कानून लागू होता था.
  • मृत्यु दण्ड तथा सम्पत्ति की जब्ती का दंड सदर निजामत न्यायालय द्वारा प्रमाणित किया जाना आवश्यक था.
  • जिला निजामत न्यायालय से सदर निज़ामत न्यायालय में अपील हो सकती थी.
  • सदर निज़ामत न्यायालय का अध्यक्ष उपनिजाम होता था.
  • उसकी सहायता के लिए एक मुख्य काजी एक मुख्य मुफ्ती और तीन मौलवियों की व्यवस्था थी.
  • कलकत्ता परिषद और उसके प्रधान को सदर निजामत न्यायलय के कार्यों का निरीक्षण करने का अधिकार था.

रेग्यूलेटिंग एक्ट, 1773 और न्यायिक सुधार (Regulating Act, 1773 and Judicial Reforms)

  • इस एक्ट के द्वारा कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की स्थापना की गई.
  • इसके अधिकार क्षेत्र में कलकत्ता में रहने वाले सभी भारतीय तथा अंग्रेज थे.
  • कलकत्ता से बाहर के भारतीयों के झगड़ों को यह न्यायालय तभी सुन सकता था जब दोनों पक्ष इस संबंध में अपनी स्वीकृति दें.
  • इस न्यायालय में अंग्रेजी कानून लागू होता था.
  • जबकि सदर निजामत और सदर दीवानी न्यायालयों में हिन्दू तथा मुस्लिम कानून लागू होते थे.
  • आगे चलकर इन न्यायालयों, विशेषत: सर्वोच्च न्यायालय और सदर न्यायालयों का कार्यक्षेत्र आपस में टकराने लगा.
  • 1780 में वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने इस टकराव को कम करने के लिए रम्पे (सुप्रीम कोर्ट का तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश) को सदर दीवानी न्यायालय का 5,000 रुपये मासिक पर अधीक्षक नियुक्त किया.
  • किन्तु डाइरेक्टरों ने इस समाधान को अस्वीकार कर दिया.
  • इस प्रकार न्याय प्रणाली में उक्त द्वैधता चलती रही.

वाणिज्य संबंधी सुधार (Commercial Reforms)

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने आन्तरिक व्यापार के क्षेत्र में उपस्थित व्यवधानों को दूर करने का प्रयास किया.
  • इन प्रयासों के तहत जमींदारों के क्षेत्रों में स्थित शुल्क गृह बन्द कर दिए गए.
  • अब केवल कलकत्ता, हुगली, मुर्शिदाबाद, ढाका और पटना में ही शुल्क गृह रह गए.
  • शुल्क अब ढाई प्रतिशत रह गया.
  • इसकी अदायगी सबके लिए अनिवार्य कर दी गई.
  • कम्पनी के कर्मचारियों के निजी व्यापार पर भी अंकुश कड़ा कर दिया गया.
  • कम्पनी के गुमाश्तों द्वारा जुलाहों का शोषण भी बंद करवा दिया गया.
  • तिब्बत और भूटान से व्यापार बढ़ाने का प्रयास किया गया.

वॉरेन हेस्टिंग्ज तथा शाह आलम द्वितीय (Warren Hastings and Shah Alarm II)

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की स्थिति को और कमजोर कर दिया.
  • उसने बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी के बदले 26 लाख रुपये वार्षिक की सम्राट को दी जाने वाली राशि बन्द कर दी.
  • इस कृत्य के पीछे तर्क यह दिया गया कि यह दीवानी उन्हें सम्राट की कृपा से नहीं वरन् अपनी शक्ति से प्राप्त हुई है.
  • हेस्टिंग्ज़ ने नवाब से इलाहाबाद और कारा के जिले भी वापस ले लिए.

वॉरेन हेस्टिंग्ज तथा अवध (Warren Hastings and Avadh)

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने अवध के संबंध में क्लाइव द्वारा अपनाई गई मध्यवर्ती राज्य (Buffer State) की नीति को अपनाया.
  • मराठों के भय के कारण उसने अवध के साथ अपने संबंधों को अच्छा बनाने की सोची.
  • 1773 में उसने अवध के नवाब से बनारस की संधि की, इलाहाबाद तथा कारा के जिले नवाब को 50 लाख रुपये में दे दिये.
  • साथ ही यह भी निश्चय किया गया कि आवश्यकता पड़ने पर कम्पनी धन के बदले नवाब को सैनिक सहायता भी प्रदान करेगी.

रुहेलों का युद्ध (The Rohilla’s War)

  • रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां ने मराठा आक्रमण के भय के कारण अवध के नवाब से 17 जून, 1772 को एक संधि की.
  • इस संधि के द्वारा उसने मराठों के विरुद्ध नवाब से सहायता मांगी तथा सहायता के बदले 40 लाख रुपये देने की पेशकश की.
  • जब कम्पनी तथा नवाब की संयुक्त सेना के प्रयास से रुहेला सरदार पर से मराठों का संकट टल गया तो रुहेला सरदार 40 लाख रुपये देने के अपने वचन से मुकर गया.
  • अतः फरवरी, 1774 में नवाब ने कम्पनी की सेना की सहायता से मीरपुर कटरा के युद्ध में रुहेलों की सेना को परास्त कर उनके सरदार हाफिज रहमत खां की हत्या कर दी.
  • इस प्रकार रुहेलखण्ड अवध में सम्मिलित कर लिया गया.

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (The First Anglo-Maratha War, 1776-82)

  • 1772 में पेशवा माधव राव की मृत्यु तथा पेशवा नारायण राव की हत्या के बाद महाराष्ट्र में उत्तराधिकार का संघर्ष प्रारंभ हो गया.
  • पेशवा नारायण राव के चाचा रघुनाथ राव ने नारायण राव के मरणोपरांत जन्मे पुत्र माधवराव नारायण के अधिकार को चुनौती दी.
  • किन्तु राज्य के एक प्रभावशाली नेता नाना फड़नवीस के समक्ष अपने को असमर्थ पाकर उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सहायता की याचना की.
  • बम्बई सरकार ने इस याचना को स्वीकार कर रघुनाथ राव के साथ सूरत की संधि (1775) की.
  • सूरत की संधि के अनुसार कम्पनी ने रघुनाथ राव को पेशवा बनाने का वचन दिया.
  • इसके बदले रघुनाथ राव ने कम्पनी को सालसेट बसीन नगर देने का वादा किया.
  • इस प्रकार कम्पनी की सहायता प्राप्त कर रघुनाथ राव ने मई, 1775 में अर्शस नामक स्थान पर एक अनिर्णायक युद्ध लड़ा.
  • सूरत की संधि गवर्नर जनरल की जानकारी के बिना की गई थी.
  • अतः जब गवर्नर जनरल को पता चला तो उसने तथा उसकी परिषद् ने इस संधि को अस्वीकार कर दिया.
  • 1776 में पुरन्धर की संधि के नाम से एक और संधि की गई.
  • इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा हथियाए हुए सारे प्रदेश जिनमें, बसीन भी था, पेशवाओं को लौटा देने थे.
  • परन्तु इंग्लैण्ड स्थित डाइरेक्टरों ने सूरत की संधि को स्वीकार किया तथा पुरन्धर की संधि को अस्वीकृत कर दिया.
  • बड़गांव के स्थान पर वॉरेन हेस्टिंग्ज के द्वारा बम्बई से भेजी गई सेना को पेशवाओं की सेना ने परास्त कर दिया.
  • जनवरी, 1779 में बड़गांव की संधि हुई.
  • यह संधि अंग्रेजों के लिए बहुत अपमानजनक थी क्योंकि इसके अनुसार अंग्रेजों ने 1773 के बाद जीते गए सभी मराठा प्रदेशों को लौटाने का वचन दिया.
  • किन्तु शीघ्र ही अंग्रेजों ने अगस्त, 1780 में ग्वालियर के दुर्ग पर कब्जा कर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित कर लिया.
  • मई, 1782 में अंग्रेजों और मराठों के मध्य सालाबाई के स्थान पर एक संधि हुई इस संधि के बाद केवल सालसेट तथा एलीफेंटा के द्वीप अंग्रेजों के पास रहे.
  • अब अंग्रेजों ने रघुनाथ राव का साथ छोड़कर माधवराव नारायण को पेशवा स्वीकार कर लिया.
  • कुल मिलाकर इन घटनाओं के बाद कम्पनी को मराठों की शक्ति का एहसास हो गया.
  • इस कारण आगामी 20 वर्षों तक दोनों के मध्य शान्ति रही.

दूसरा आंग्ल-मैसूर युद्ध (Second Anglo-Mysore War, 1780-84)

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज को यह सन्देह था कि मालाबार तट पर स्थित माही के द्वारा हैदर अली को फ्रांसीसी सहायता मिलती है.
  • अतः उसने माहो पर कब्जा कर लिया.
  • हैदर अली ने इसका प्रत्युत्तर देने के लिए मराठों तथा निजाम के साथ एक समझौता करके तथा फ्रांसीसी सहायता का वचन लेकर जुलाई, 1780 में कर्नाटक पर आक्रमण करके अरकाट पर कब्जा कर लिया.
  • हैदर अली ने सर हेक्टर मनरो की सेना को भी परास्त कर दिया.
  • परन्तु वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने स्थिति को संभालते हुए सर आयर कूट के नेतृत्व में कलकत्ता से एक सेना भेजी.
  • इस सेना ने हैदर अली को पोर्टेनोवो, पोलिलूर तथा सोलिंगपुर के स्थानों पर जून, 1781 से सितम्बर 1781 तक की अवधि के भीतर परास्त कर दिया.
  • शीघ्र ही हैदर अली की सहायता के लिए फ्रांसीसी एडमिरल सफ़रिन अपनी सेना के साथ आ गया.
  • किन्तु ह्यूज के अधीन अंग्रेजी सेना ने उसकी एक न चलने दी.
  • दिसम्बर, 1782 में हैदर अली की मृत्यु हो गई.
  • उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा.
  • अन्ततः मार्च, 1784 में हुई मंगलौर की संधि के बाद युद्ध समाप्त हो गया तथा विजित प्रदेश लौटा दिए गए.

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ और राजा चेतसिंह (Warren Hastings and King Chait Singh) 

  • बनारस का राजा बलवन्त सिंह अवध के नवाब का आश्रित था.
  • बलवन्तसिंह के बाद उसका पुत्र चेत सिंह गद्दी पर बैठा.
  • 1775 में अवध के नवाब ने बनारस को कम्पनी को सौंप दिया.
  • अतः चेतसिंह अब कम्पनी के प्रभुत्व में आ गया.
  • चेतसिंह प्रति वर्ष कम्पनी को लगान देता था, स्थिति ऐसी थी कि इस लगान में वृद्धि नहीं की जा सकती थी, 1778 में वॉरेन हेस्टिंग्ज ने चेतसिंह से पांच लाख रुपये की मांग की.
  • यह राशि प्रदान कर दी गई किन्तु हेस्टिंग्ज द्वारा धन की मांग निरन्तर को जाती रही.
  • जब चेतसिंह धन की आपूर्ति करवाने में असमर्थ हो गया तो हेस्टिग्ज ने इसे कम्पनी की अवमानना की संज्ञा दी तथा चेतसिंह पर 50 लाख रुपया जुर्माना कर दिया.
  • इस जुमनि को वसूलने के लिए उसने स्वयं बनारस की ओर प्रस्थान किया.
  • चेतसिंह बनारस छोड़कर भाग गया.
  • हेस्टिग्ज़ ने बनारस पर कब्जा कर लिया और चेतसिंह के भतीजे महीप नारायण को बनारस का कठपुतली शासक बना दिया गया.
  • चेतसिंह के संबंध में वॉरेन हेस्टिंग्ज़ की उक्त कार्यवाही की व्यापक आलोचना की गई.

वॉरेन हेस्टिंग्ज़ और अवध की बेगमें (Warren Hastings and Begums of Avadh)

  • अवध के नवाब आसफउद्दौला पर कम्पनी का 15 लाख रुपया बकाया था.
  • इस राशि को लौटाने में नवाब असमर्थ था.
  • जब वॉरेन हेस्टिंग्ज ने नवाब पर इस राशि के भुगतान हेतु दबाव डाला तो उसने कम्पनी से यह आज्ञा मांगी की उसे अपनी विमाताओं (अपने पिताकी विधवाओं ये अवध की बेगमें कहलाती थी) के कोष पर अधिकार करने की अनुमति दी जाए.
  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने तुरंत अपनी अनुमति दे दी.
  • हेस्टिंग्ज ने नवाब की सहायता के लिए अंग्रेज रेजिडेंट मिस्टर मिडलटन को यह आदेश दिया कि वह अवध की बेगमों को अपनी सेना के माध्यम से इस प्रकार विवश कर दे कि वे नवाब की इच्छा के अनुसार कार्य करें.
  • इस प्रकार बेगमों को लगभग 105 लाख रुपया देने के लिए बाध्य किया गया.
  • वॉरेन हेस्टिंग्ज़ के इस कृत्य की भी कटु आलोचना की गई.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज के संबंध में यह कहा जाता है कि उसने बलपूर्वक भारत को लूटा और शासन किया.
  • उसने ब्रिटिश शासन के आक्रान्ता पक्ष को प्रस्तुत किया.
  • उसकी पंचवर्षीय कर-संग्रहण की व्यवस्था से कृषकों को अपार कष्ट हुआ.
  • उसके द्वारा प्रस्तुत न्याय की द्वैध प्रणाली में सदैव टकराव की स्थिति बनी रही.
  • चेतसिंह और अवध की बेगमों के साथ उसके किए गए व्यवहार की बहुत आलोचना हुई.
  • 1788 से 1795 तक उस पर महाभियोग का मुकदमा चलता रहा.
  • संक्षेप में उसके अन्यायपूर्ण तथा निरंकुश कार्यों से अंग्रेज अंतरात्मा को ठेस पहुँची.

The post वॉरेन हेस्टिंग्ज़, (WARREN HASTINGS, 1772-1785)  रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 | आधुनिक भारत appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2Q309Wf
via IFTTT

Tuesday, November 27, 2018

क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप, द्वैध प्रणाली (CLIVE’S 2nd GOVERNORSHIP)

क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप,बंगाल में द्वैध प्रणाली (CLIVE’S SECOND GOVERNORSHIP IN BENGAL, The Dual System in Bengal) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप

  • लार्ड क्लाइव ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी थी.
  • अत: जब ब्रिटिश साम्राज्य को सुदृढ़ करने का अवसर आया तो ब्रिटिश सरकार ने क्लाइव को पुनः भारत में ब्रिटिश प्रदेशों का गवर्नर जनरल नियुक्त कर भारत भेजा.
  • क्लाइव के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थिति अस्त-व्यस्त थी.
  • बंगाल का प्रशासन पूर्णतया भ्रष्ट और अकार्यकुशल हो चुका था.
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापार कर्मचारियों की अयोग्यता के कारण ठप्प हो रहा था.
  • अतः क्लाइव के समक्ष उपरोक्त स्थिति में सुधार करना प्रमुख चुनौती थी.

क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप,बंगाल में द्वैध प्रणाली (CLIVE'S SECOND GOVERNORSHIP IN BENGAL, The Dual System in Bengal) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

अवध के नवाब से संधि

  • भारत आगमन के बाद क्लाइव का प्रथम कार्य परास्त शक्तियों के साथ सम्बन्धों को निश्चित करना था.
  • इस कार्य के प्रथम चरण के रूप में उसने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से इलाहाबाद में 16 अगस्त, 1765 को एक संधि की.
  • इस संधि में निम्नलिखित प्रावधान थे-
  1. नवाब इलाहाबाद तथा कारा के जिले सम्राट शाह आलम को देगा.
  2. नवाब युद्ध की क्षतिपूर्ति के लिए कम्पनी को 50 लाख रुपया देगा.
  3. नवाब बनारस के जागीरदार बलवन्त सिंह को उसकी जागीर वापस देगा.
  4. कम्पनी नवाब की सीमाओं की रक्षा के लिए सैनिक सहायता देगी.
  • इस सहायता के बदले नवाब कम्पनी को धन देगा.

सम्राट शाह आलम से संधि

  • अगस्त, 1765 में ही क्लाइव ने मुगल सम्राट शाह आलम से संधि की.
  • इस संधि के अनुसार शाह आलम को ब्रिटिश सरंक्षण में ले लिया गया.
  • इलाहाबाद तथा कारा के जिले शाह आलम को मिल गए.
  • शाह आलम ने एक शाही फरमान के द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी कम्पनी को स्थाई रूप से दे दी.

बंगाल में द्वैध प्रणाली (The Dual System in Bengal)

  • क्लाइव ने बंगाल की कठिन समस्या के समाधान हेतु द्वैध प्रणाली को प्रस्तुत किया.
  • इस प्रणाली के तहत क्लाइव ने नवाब को नाममात्र का शासक बनाकर वास्तविक सत्ता कम्पनी को सौंप दी.
  • फरवरी, 1765 में नवाब ने बंगाल सूबे की निजामत (सैन्य व्यवस्था) कम्पनी को सौंप दी.
  • अगस्त 1767 में शाह आलम ने कम्पनी को दीवानी भी सौंप दी.
  • इस प्रकार कम्पनी के हाथ में निजामत तथा दिवानी दोनों आ गई.
  • यद्यपि कम्पनी वास्तविक सत्ता की स्वामी बन गई तथापि कानून की दृष्टि से नवाब ही बंगाल का शासक बना रहा.
  • इस व्यवस्था को द्वैध प्रणाली की संज्ञा दी गई अर्थात् दो शासक-एक कम्पनी और दूसरा नवाब.
  • इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह था कि प्रकट में ऐसा न लगे की कम्पनी का बंगाल पर कब्जा हो गया है.
  • इस प्रकार द्वैध शासन से अंग्रेजों को वह सब कुछ मिल गया जो उन्हें चाहिए था.

द्वैध प्रणाली का औचित्य (Justification of the Dual System)

क्लाइव ने अपने द्वैध शासन के पक्ष में निम्नलिखित कारण दिए –

  1. यदि प्रत्यक्ष रूप से कम्पनी बंगाल की सत्ता अपने हाथ में ले लेती तो इससे यह लगता कि कम्पनी ने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया है. इसके फलस्वरूप सम्भवतः कम्पनी को अपार जन-आक्रोश का सामना करना पड़ता.
  2. प्रत्यक्ष नियंत्रण की स्थिति में फ्रांसीसी डच और डेन आदि विदेशी कम्पनियां ब्रिटिश कम्पनी को वे कर इत्यादि नहीं देती जो नवाब के फरमानों के अनुसार उन्हें देने होते थे.
  3. कम्पनी के पास प्रशासन चलाने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों का अभाव था. ये अधिकारी भारतीय रीति-रिवाजों तथा भाषा से अनभिज्ञ थे.
  4. कम्पनी का मुख्य उद्देश्य भारत में प्रदेश प्राप्त करना नहीं वरन् अपने को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना था.
  5. क्लाइव को यह आभास था कि यदि उसने प्रत्यक्ष रूप से बंगाल की सत्ता पर कब्जा कर लिया तो ब्रिटिश संसद् कम्पनी के कार्यों में हस्तक्षेप आरंभ कर देगी.

द्वैध प्रणाली के दोष (Shortcoming of the Dual System)

  • क्लाइव ने प्रशासन की जो व्यवस्था स्थापित की वह अप्रभावी तथा अव्यावहारिक सिद्ध हुई.

द्वैध प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखत थे –

प्रशासनिक व्यवधान (Administrative Breakdown)

  • द्वैध प्रणाली का प्रमुख दोष निजामत की शिथिलता के रूप में सामने आया.
  • इससे देश में कानून और व्यवस्था लगभग ठप्प हो गई.
  • नवाब में कानून लागू करने की क्षमता नहीं थी.
  • वह जनता को न्याय दिलवाने में असमर्थ रहा.
  • दूसरी तरफ कम्पनी ने किसी प्रकार के उत्तरदायित्व को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया.
  • प्रशासन में सर्वत्र भ्रष्टाचार छा गया.
  • इस प्रकार पूरे सूबे में कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत ही शोचनीय हो गई.

कृषि का ह्रास (Decline of Agriculture)

  • बंगाल की उन्नत कृषि व्यवस्था अब चौपट हो चुकी थी.
  • अधिकाधिक बोली देने वाले को प्रतिवर्ष कर एकत्र करने का भार सौंप दिया जाता था.
  • कृषकों से लगान वसूलने के लिए उन पर अमानवीय अत्याचार किये जाते थे.
  • अतः शीघ्र कृषक समुदाय खेतीबाड़ी छोड़कर लूटमार में लग गया.
  • 1770 में भीषण अकाल पड़ा.
  • किन्तु कर वसूल करने वाले ब्रिटिश नुमाइंदों का जुल्म कम न हुआ.

व्यापार तथा वाणिज्य का ह्रास (Decline of Trade and Commerce)

  • कृषि के ह्रास का व्यापार तथा वाणिज्य पर भी कुप्रभाव पड़ा.
  • 1717 से ही अंग्रेजों को बंगाल में बिना कोई कर दिए व्यापार करने की अनुमति थी.
  • धीरे-धीरे कम्पनी का व्यापार पर लगभग एकाधिकार हो गया.
  • अनेक भारतीय उद्योग बंद हो गए.

उद्योगों का ह्रास (Ruination of Industry)

  • द्वैध प्रणाली से सर्वाधिक हानि बंगाल के कपड़ा उद्योग को हुई.
  • कम्पनी ने बंगाल के रेशम-उद्योग को समाप्त करने में कोई कसर न छोड़ी.
  • उल्लेखनीय है कि बंगाल के रेशम उद्योग से इंग्लैड के रेशम उद्योग को क्षति पहुँचती थी.
  • कम्पनी ने रेशम के कारीगरों को कम्पनी के लिए काम करने पर बाध्य किया.
  • अनेक जुलाहों ने कम्पनी के उत्पीड़न से बचने के लिए अपने अंगूठे कटवा लिए.
  • रेशम के इन कुशल कारीगरों को दासत्व की स्थिति में पहुँचा दिया गया.

क्लाइव के प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms of Clive)

क्लाइव ने सैनिक तथा असैनिक दोनों ही क्षेत्रों में कुछ सुधार किए –

असैनिक सुधार

  • कम्पनी के कर्मचारी पूर्णतया भ्रष्ट बन चुके थे.
  • उनके मध्य घूस, बेईमानी तथा अन्य उपहार लेने की परम्परा बन चुकी थी.
  • इन कर्मचारियों ने अपना निजी व्यापार भी शुरू कर दिया था तथा कर-चोरी के अनेक उपाय उन्हें अब पता लग गए थे.
  • क्लाइव ने इस स्थिति से निपटने के लिए उपहार लेने और निजी व्यापार करने पर प्रतिबंध लगा दिया तथा आन्तरिक कर देना प्रत्येक कर्मचारी के लिए अनिवार्य कर दिया गया.
  • क्लाइव ने एक व्यापार समिति का भी गठन किया.
  • इस समिति को नमक, सुपारी और तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार भी प्रदान किया गया.
  • इस समिति के लाभ को कम्पनी के कर्मचारियों के मध्य बांटने की भी व्यवस्था थी.
  • किन्तु इस समिति के कार्यकलापों से दैनिक उपभोग की वस्तुओं के दाम आसमान छूने लगे.
  • वास्तव में कम्पनी की यह एक संगठित लूट थी.

सैनिक सुधार

  • सैनिकों को पहले केवल युद्ध काल में ही विशेष भत्ता मिलता था किन्तु मीर जाफर के शासन काल से यह शांति काल में भी मिलने लगा.
  • आगे चलकर यह सैनिकों के वेतन का भाग बन गया.
  • इस दोहरे भत्ते से कम्पनी पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ने लगा.
  • अत: क्लाइव ने जनवरी, 1766 में इस दोहरे भत्ते को समाप्त कर दिया.
  • अब यह भत्ता केवल उन सैनिकों को ही मिलने लगा जो बंगाल तथा बिहार की सीमा से बाहर कार्य करते थे.

मूल्यांकन (Evaluation)

  • कुल मिलाकर क्लाइव के संबंध में यह कहा जा सकता है कि वह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था.
  • उसने शीघ्र ही ईस्ट इंडिया कम्पनी जो कि एक व्यापारिक संस्था थी, को एक प्रादेशिक संस्था बना दिया.
  • उसने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रमुख प्रतिद्वन्दी डूप्ले को पराजित कर दिया.
  • फ्रांसीसियों के विरुद्ध अरकाट को घेरना (1751) उसकी एक महत्वपूर्ण योजना थी.
  • बाद कर्नाटक से फ्रांसीसियों का सफाया हो गया.
  • प्लासी के युद्ध (1757) के बाद बंगाल का नवाब उसके हाथ की कठपुतली बन गया.
  • बंगाल से प्राप्त धन के बल पर उसने शीघ्र ही दक्षिण को भी जीत लिया.

 

  • क्लाइव की अलोचना करते हुए यह कहा जाता है कि उसने अपनी व्यापार समिति के माध्यम से बंगाल को लूटने की योजना बनाई.
  • उसकी वैध प्रणाली का उद्देश्य ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना था न कि जनता का हित .
  • उसने बंगाल को ईस्ट इंडिया कम्पनी की जागीर के रूप में परिणत कर दिया.
  • वह एक सफल राजनीतिज्ञ नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके कार्यों से सर्वत्र अव्यवस्था ही फैली, व्यवस्था नहीं.

The post क्लाइव की बंगाल में दूसरी गवर्नरशिप, द्वैध प्रणाली (CLIVE’S 2nd GOVERNORSHIP) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2SeOHU5
via IFTTT

Monday, November 26, 2018

Story of Ambulance – A vehicle for carrying sick or injured people

Story of Ambulance

An Ambulance is a vehicle for carrying sick or injured people from their home or place of sickness to a hospital or clinic. Today, two types of ambulance are in use-civilian and military. The civilian ambulance is built for speed and smooth riding. It is equipped to carry only one or two patients along with an attending doctor or paramedic who gives first aid in it on the way to the hospital. The military ambulance is larger and sturdier. It is designed to provide emergency treatment for four to six stretcher patients.

Story of Ambulance

During the Crusades, in the 11th century, the Knights of St.John were taught first-aid treatment by the Arab and Greek doctors. This enabled the Knights to take care of the wounded soldiers on the battlefield. However, the death rate among the wounded soldiers was very high. Actually, the soldiers were cleared out between 15 and 36 hours while lying wounded on the battlefield. Moreover, the procedures used for removing the wounded were crude and clumsy. The soldiers were paid to transport their wounded comrades on stretchers and wagons. But due to a shortage of equipment and the delay in getting skilled medical care, amputations were very common.

In 1792 a young French surgeon joined Napoleon’s army and served in many battles in Europe. A fine military surgeon, Dominique Jean Larrey was anxious about the pitiable condition of the wounded soldiers. He introduced many unusual and advanced procedures for the removal of the wounded soldiers from the battlefield. He brought in wheeled carts called the ‘ambulance volante’ (flying ambulance) that could be moved about speedily, transporting surgeons to the battlefields and the wounded soldiers to nearby hospitals. This helped to increase the survival rate among the wounded. Trained and well-equipped staff were also sent out from field hospitals to take care of the wounded and bring them back on stretchers or hand-carts.

Subsequently, animal-drawn wagons or carts were used for the first time as ambulances when the Crimean war was raging in Europe in the 1850s. Later on, ambulances used in the American Civil War between 1861 and 1865. were made of one size, shape etc., They were drawn by horses. It was only in 1916 that the first motorized ambulance was introduced in Mexico by the Government of the United States. Since the signing of the Geneva Convention in 1864, ambulance units and the wounded in their care have been considered neutrals on the field of battle. The Geneva Convention in 1864 laid down the international protocol of not attacking ambulance units and the wounded under their care during war or any conflict.

The 20th century saw the introduction of motorized ambulances. During the Korean War in the 1950s, the United States of America began using the helicopter – ambulances. Another first by the Americans was the introduction of the first mobile coronary unit by St. Vincent’s Hospital in 1968.

Casualties were at first transported by rail to hospitals in the 19th century. Specially built ambulance trains were regularly used to carry the wounded soldiers. They were found to be much more convenient than the poorly built freight wagons that were used in the beginning. Sometimes these actually increased the extent of injuries of the wounded who were transported in them.

During the Franco – Prusso War in 1870-71, nearly 90,000 wounded soldiers were transported by rail and lakhs of others in the conflicts that followed. In 1885-86 the British Red Cross Society partly provided a sum of money for a hospital train used during wartime. The first hospital train for home use was introduced in 1900. Various charitable organizations provided money for it and it was named the Princess Christian Hospital Train after Princess Christian of Schleswig – Holstein who arranged the raising of funds. Other means of quick evacuation were used like balloons for airlifting soldiers during the siege of Paris by the Prussians.

Between 1890 and 1910, M. de Mooy, Chief of the Dutch Medical Service, was one of those who took the first steps in the development of air ambulance service. He suggested evacuating the injured with the use of litters suspended from balloons. The French government was at first against the idea of building air ambulances in spite of the passionate pleas of French senator and medical doctor Emile Raymond and another leading doctor, M. Gautier. In fact, in 1912 Raymond flew over the battlefield in Amiens and helped stretcher parties to locate wounded soldiers. However, it was only in 1923 that a supplement was added to the 1906 Geneva Convention about air ambulances.

In the United States of America, the first air ambulance was designed by Captain George Gosman and Lieutenant Albert Rhoades in 1909. The design provided for the doctor to pilot the plane himself. However, the crashing of the first test flight turned out to be a setback. Soon a number of articles appeared making out a case for the air ambulance. In the 1920s the Chief Surgeon of the United States Army, Colonel Albert Truby, ordered a change in the design of an existing plane to carry a pilot, doctor and two patients. With the passing of time, in 1925, a section of the U.S.Army Air Corps was created to specifically deal with airborne evacuations and delivery of medical supplies. By the 1930s most military bases had specially equipped air ambulances. In the 1940s helicopters were also taken into air ambulance service. This was a great change that happened suddenly.

American businessman, Bill Mathews introduced the first civilian air ambulance at Etna in California in 1958. The town’s only doctor, Granville Ashcraft, used the helicopter to transport patients. It was also used to deliver drugs during emergencies. In the 1960s ambulance helicopters began to be used in Europe.

The National Institute of Health and National Academy of Sciences published in 1966 a white paper on emergency medical services. The white paper set standards for emergency prehospital care. Military helicopters began increasing and making efficient emergency medical services in 1969. A country-wide Emergency Medical Service System was designed and put into effect by the doctor William Cowley. He was the person who coined the phrase ‘Golden Hour’ stating that if a trauma (a shock caused by violent injury) patient was transported quickly to a health care facility within the first sixty minutes, his or her chances of remaining alive would be greatly increased.

The post Story of Ambulance – A vehicle for carrying sick or injured people appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2DYuPlk
via IFTTT

Sunday, November 25, 2018

Story of Mirrors

Story of Mirrors

The earliest mirrors that were used by the ancient Egyptians, Etruscans, Greeks, and Romans usually consisted of a thin disc of highly polished metal, in most cases bronze. During the Middle Ages (the time between the downfall of the Roman empire and renewed interest in art and learning) these hand-held mirrors were replaced by portable mirrors, enclosed in ornamental cases of ivory or precious metal. These became popular with ladies who hung them from their belts.Story of Mirrors

In the late 12th and early 13th centuries, the Europeans discovered the art of using glass with a metallic backing. Nuremberg in Germany and Venice in Italy became reputed centers for the production of mirrors with the backing of a mixture of tin and mercury. That was in the 16th century. Even 100 years later mirrors were still generally very expensive. They were far beyond the pocket of the common man!

The turning point in the production of mirrors came in 1835. The German chemist Justus Von Liebig discovered the coating process called silvering. This is still in use today. In this process, the silver from silver nitrate is deposited on glass and protected from stain by a resin in thin sheets or paint.

The earliest mention of the mirror – makers in Nuremberg in Germany dates back to 1373. Unlike the people of Venice in Italy, the Germans backed their mirror glass with a mixture of tin and lead instead of mercury. The process of converting the simple plate-glass into mirrors was carried out by the state mirror manufacturers in Nuremberg and the nearby town of Furth. Gradually, however, in the course of the 18th century, the entire mirror industry came to be located in Furth.

The mirror manufacturers of Furth successfully survived World War I and the Great Economic Depression of the 1930s. In recent years four of the town’s leading manufacturers have come together under the name Flabeg, which is thus the world’s largest manufacturer. The German firm exports over one-third of its mirror production to 100 countries around the world. Now-a-days mirrors of different types for varied uses are made in many countries of the world.

For the most accurate mirror image, the reflecting glass surface should be very smooth and flat. Some mirrors are not flat for a reason. A concave mirror curves inward and focusses the light in such a way so as to make the reflected image appear larger than the original object. A convex mirror curves outward. It enables the mirror to reflect more of the area it faces than a flat mirror would do. For motorists, the convex glass of the rear-view mirror gives a better view of the road behind.

In some telescopes carefully made concave mirrors up to 5 meters across are used. These telescopes collect and focus the very faint light of distant stars.

Most common mirrors reflect light rays. But mirrors can also reflect heat or radio waves. Heat reflectors are often built into home electric heaters. Radio reflectors help send radio-telephone signals over long distances.

The post Story of Mirrors appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2PYK8Rq
via IFTTT

Thursday, November 22, 2018

बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय- प्लासी और बक्सर का युद्ध (BATTLE OF PLASSY & BUXAR)

बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय- प्लासी और बक्सर का युद्ध (RISE OF BRITISH POWER IN BENGAL- BATTLE OF PLASSY AND BUXAR) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में अपनी पहली कोठी (कार्यालय) 1651 में हुगली में बनाई.
  • शीघ्र ही उन्होंने कासिम बाजार और पटना में भी अपनी कोठियां बना ली.
  • 1698 में उन्होंने सूबेदार अजीमुशान से सूतानती, कालीघाट और गोविन्दपुर (जहां वर्तमान कलकत्ता महानगर बसा हुआ है) की जमींदारी भी प्राप्त कर ली इसके बदले उन्हें केवल 1200 रुपये पुराने मालिकों (जमीदारों) को देने पड़ते थे.
  • 1741 में बिहार के नायब सूबेदार अली-वर्दी खां ने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के नायब सरफराज खां के विरुद्ध विद्रोह कर उसे परास्त कर दिया और स्वयं इस सम्पूर्ण प्रदेश का नवाब बन गया.
  • किन्तु शीघ्र ही मराठा आक्रमणों के कारण उसकी योजनाएं अधिक सफल न हो सकी.
  • इसके अलावा मराठों के आक्रमणों से भयभीत होकर अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति से अपनी कोठी अर्थात् फोर्ट विलियम की सुरक्षा हेतु उसके चारों ओर गहरी खाई बनवा ली.
  • शीघ्र ही नवाब अलीवर्दी खां का ध्यान कर्नाटक में विदेशी कम्पनियों द्वारा सत्ता हथियाने की घटनाओं की ओर गया.
  • अत: इस आशंका से कि कहीं अंग्रेज बंगाल पर भी कब्जा न कर लें, नवाब ने अंग्रेजों को बंगाल से पूर्णरूपेण निष्काषित कर दिया.
  • 9 अप्रैल, 1756 को अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद उसका दामाद सिराजुद्दौला उसका उत्तराधिकारी बना.
  • सिराजुद्दौला के प्रमुख प्रतिद्वन्दी थेपूरनिया का नवाब शौकतजंग तथा स्वयं सिरजुद्दौला की मौसी घसीटी बेगम तथा अंग्रेज.
  • 15 जून, 1756 को सिराजुद्दौला ने बंगाल में अंग्रेजों की कोठी अर्थात् फोर्ट विलियम को घेर लिया.
  • लगातार पांच दिन के संघर्ष के बाद फोर्ट विलियम पर सिराजुद्दौला का कब्जा हो गया.
  • नवाब ने कलकत्ता को नया नाम अलीनगर दिया.
  • इसके बाद वह कलकत्ता को अपने सेवक मानिक चन्द के सुपुर्द कर मुर्शिदाबाद वापस लौट गया.

बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय- प्लासी और बक्सर का युद्ध (RISE OF BRITISH POWER IN BENGAL- BATTLE OF PLASSY AND BUXAR) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

ब्लैक होल (Black Hole) की घटना

  • इसी दौरान ‘ब्लैक होल’ (Black Hole) की बहुचर्चित घटना भी हुई.
  • इस घटना के संबंध में यह कहा जाता है कि नवाब सिराजुद्दौला ने अपनी कलकत्ता विजय के बाद 146 अंग्रेजी युद्ध बन्दियों को एक 18 फुट लम्बे तथा 14 फुट 10 इंच चौड़े कक्ष में 20 जून की रात्रि को बंद कर दिया.
  • 21 जून की सुबह को उनमें से केवल 23 व्यक्ति ही बचे.
  • शेष जून माह की गर्मी, घुटन तथा कुचल जाने के कारण मर गए.
  • सिरजुद्दौला को इस घटना के लिए उत्तरदायी माना जाता है.

प्लासी का युद्ध (The Battle of Plassy 1757)

  • कलकत्ता पर सिराजुद्दौला के कब्जे का समाचार जैसे ही मद्रास पहुँचा वैसे ही क्लाइव के नेतृत्व में एक सशस्त्र सेना कलकत्ता के लिए रवाना कर दी गई.
  • नवाब के प्रभारी मानिक चन्द ने एक बड़ी राशि लेकर कलकत्ता अंग्रेजों को सौंप दिया.
  • इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि नवाब के प्रमुख अधिकारी नवाब से संतुष्ट नहीं थे.
  • इस स्थिति का लाभ उठाकार क्लाइव ने बंगाल के प्रमुख साहूकार जगत सेठ तथा मीर जाफर को अपने साथ मिलाकर नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध एक घड्यन्त्र रचा.
  • मीर जाफर को नवाब बनाने का लालच दिया गया.
  • इसी समय सिराजुद्दौला को अफगानों तथा मराठों के आक्रमण का भी भय था.
  • अतः क्लाइव ने उपयुक्त अवसर का लाभ उठाते हुए मुर्शिदाबाद पर आक्रमण के लिए प्रस्थान किया.
  • 23 जून, 1757 को दोनों सेनाएं मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर स्थित प्लासी के ऐतिहासिक क्षेत्र में टकराई.
  • नवाब की विशाल सेना का नेतृत्व विश्वासघाती मीर जाफर कर रहा था.
  • अंग्रेजों के थोड़े से सैनिकों ने शीघ्र ही सिराजुद्दौला की विशाल सेना पर कब्जा कर लिया.
  • मीर जाफ़र सिर्फ देखता रहा. इस प्रकार क्लाइव को सस्ती तथा निश्चयात्मक विजय प्राप्त हुई.
  • सिराजुद्दौला भाग कर मुर्शिदाबाद और वहां से भाग कर पटना चला गया.
  • पटना में मीर जाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या कर दी.
  • 25 जून, 1757 को मीर जाफर मुर्शिदाबाद वापस आ गया और अपने-आप को नवाब, घोषित कर दिया.
  • इस सफलता की प्राप्ति में दिए गए सहयोग के कारण उसने अंग्रेजों को 24 परगनों को जमींदारी से पुरस्कृत किया.
  • क्लाइव को 2,34,000 पौण्ड निजी भेंट के रूप में दिए गए.
  • इसके अलावा बंगाल की समस्त फ्रांसीसी बस्तियां भी अंग्रेजों को दे दी गई.
  • इस प्रकार प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल अंग्रेजों के अधीन आ गया और फिर कभी स्वतंत्र न हो सका.
  • बंगाल का नया नवाब मीर जाफ़र अपनी रक्षा तथा पद के लिए पूर्ण रूप से अंग्रेजों पर निर्भर था.
  • यद्यपि मीर जाफ़र क्लाइव का कठपुतली शासक था किन्तु वह अंग्रेजों की निरन्तर बढ़ती धन की मांग को पूरा न कर सका.
  • अत: अंग्रेज किसी अन्य शासक की तलाश करने लगे.
  • इस उपयुक्त अवसर की तलाश मीर जाफर का दामाद मीर कासिम भी कर रहा था.
  • अतः शीघ्र ही दोनों (अंग्रेज और मीर कासिम) की तलाश पूरी हो गई.
  • 27 सितम्बर, 1760 को मीर कासिम तथा कलकत्ता काउन्सिल के मध्य एक संधि पर हस्ताक्षर हुए.
  • इस संधि में निम्नलिखित प्रावधान थे-
  1. मीर कासिम ने कम्पनी को बर्दमान, मिदनापुर तथा चटगांव के जिले देना स्वीकार किया.
  2. सिल्हट के चूने के व्यापार में कम्पनी का आधा हिस्सा तय किया गया.
  3. मीर कासिम कम्पनी को दक्षिण के अभियान हेतु 5 लाख रुपया देगा.
  4. मीर कासिम कम्पनी के मित्रों को अपना मित्र तथा शत्रुओं को अपना शत्रु मानेगा.
  5. कम्पनी नवाब के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी.
  6. कम्पनी नवाब को सैनिक सहायता प्रदान करेगी.
  • 14 अक्टूबर, 1760 को इस संधि को कार्यान्वित करवाने हेतु बेन सिंटार्ट तथा कोलॉड मुर्शिदाबाद पहुंचे.
  • मीर जाफ़र ने अंग्रेजों के भय के कारण मीर कासिम के पक्ष में गद्दी छोड़ दी.
  • मीर जाफ़र कलकत्ता में रहने लगा, जहां उसे 15,000 रुपये मासिक पेंशन प्राप्त होती थी.
  • नवाब बनने के बाद मीर कासिम अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंघेर ले गया.
  • वह मुर्शिदाबाद को षड्यन्त्रों का केन्द्र समझता था तथा कलकत्ता से दूर रहकर अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रहना चाहता था.
  • उसने अपनी सेना का गठन यूरोपीय पद्धति पर करने का निश्चय किया.
  • उसने मुंघेर में तोपों तथा तोड़ेदार बन्दूकों (Watch Lock Gun) के बनाने की भी व्यवस्था की.

बक्सर का युद्ध (The Battle of Buxar in Hindi)

  • मीर कासिम को नवाब बनाते समय कम्पनी ने यह सोचा था कि मीर कासिम भी कठपुतली शासक साबित होगा.
  • किन्तु मीर कासिम 1760 की संधि तक ही कठपुतली शासक साबित हुआ.
  • मीर कासिम का वास्तविक उद्देश्य केवल अंग्रेजों की शक्ति को अधिक बढ़ने से रोकना या अपनी शक्ति को कम होने से रोकना था.
  • दूसरे शब्दों में, वह केवल उक्त संधि का ही अक्षरशः पालन करना चाहता था.
  • अतः शीघ्र ही कम्पनी और मीर कासिम के मध्य मतभेद सामने आने लगे.
  • स्पष्ट रूप से कम्पनी और मीर कासिम के मध्य झगड़ा आन्तरिक व्यापार पर लगे करों को लेकर आरंभ हुआ.
  • इसके बाद दोनों के मध्य झगड़े बढ़ते ही गए.
  • इन झगड़ों का परिणाम 1764 में बक्सर के युद्ध के रूप में सामने आया.
  • मीर कासिम ने अवध के नवाब तथा मुगल सम्राट से मिलकर अंग्रेजों से मुकाबला करने की योजना बनाई.
  • मेजर मनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने मीर कासिम को परास्त कर दिया.
  • इस प्रकार बक्सर की लड़ाई ने प्लासी की लड़ाई के बाद शेष बची हुई औपचारिकताओं को भी पूरा कर दिया.
  • अब भारत में अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई न रहा.
  • प्लासी के युद्ध ने बंगाल में तथा बक्सर के युद्ध ने उत्तर भारत में अंग्रेजों की स्थिति को सुदृढ़ कर दिया.
  • मीर कासिम के बाद आने वाले नवाब अंग्रेजों के कठपुतली शासक थे.

The post बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय- प्लासी और बक्सर का युद्ध (BATTLE OF PLASSY & BUXAR) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2r1mAMI
via IFTTT

Tuesday, November 20, 2018

कर्नाटक में आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा (Anglo-French Rivalry in the Carnatic)

कर्नाटक में आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा (Anglo-French Rivalry in the Carnatic) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

कर्नाटक में आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा

  • भारत में ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी कम्पनियां मुख्यतः व्यापारिक कम्पनियां थीं, किन्तु शीघ्र ही ये कम्पनियां भारत की राजनीति में अपरिहार्य रूप से उलझती चली गईं.
  • वास्तव में जब मुगल सत्ता क्षीण हो गई तथा दक्कन के सूबेदार इन कम्पनियों की रक्षा करने में असमर्थ साबित हुए तो इन कम्पनियों ने स्वयं ही अपनी रक्षा करने का बीड़ा उठाया.
  • इससे इनका भारत की राजनीति में अधिक उलझ जाना बहुत स्वाभाविक था.
  • भारत में फ्रांसीसियों का मुख्य कार्यालय पांडिचेरी में था तथा अंग्रेजों की मुख्य बस्तियां मद्रास, बम्बई और कलकत्ता में थीं.
  • इनके अलावा इन कम्पनियों के अन्य कार्यक्रम भी थे.
  • आंग्ल-फ्रांसीसी कम्पनियों के मध्य अपने एकाधिकार को स्थापित करने के लिए कर्नाटक में तीन युद्ध हुए.
  • तीसरे युद्ध के बाद फ्रांसीसी कम्पनी की पराजय हुई.

कर्नाटक में आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा (Anglo-French Rivalry in the Carnatic) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

कर्नाटक का प्रथम युद्ध (The First Carnatic war, 1746-48)

  • 1740 में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार को लेकर यूरोप में ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य संघर्ष प्रारंभ हो गया.
  • कर्नाटक का प्रथम युद्ध इस संघर्ष का विस्तार मात्र ही था.
  • क्योंकि प्रायः जैसे ही यूरोप में इन दोनों शक्तियों के मध्य कोई युद्ध आरंभ हो जाता था, भारत में भी इन दोनों कंपनियों पर प्रभाव पड़ता था.
  • 1746 में आंग्ल-फ्रांसीसी कम्पनियों के मध्य कर्नाटक में युद्ध प्रारंभ हो गया.
  • बारनैट के नेतृत्व में ब्रिटिश नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोतों पर कब्जा कर लिया.
  • पांडिचेरी के फ्रेंच गवर्नर जनरल डूप्ले ने मॉरीशस स्थित फ्रांसीसी गवर्नर ला बुर्डों से सहायता प्राप्त कर ब्रिटिश प्रभुत्व वाले प्रदास नगर को जल एवं थल दोनों ही मार्गों से घेर लिया.
  • कुछ ही समय बाद मद्रास ने आत्मसमर्पण कर दिया.
  • ला बुर्डों ने एक बड़ी धनराशि के बदले मद्रास नगर को वापस ब्रिटेन को लौटा दिया किन्तु डूप्ले इस कार्य से सहमत नहीं था अतः उसने मद्रास को पुनः जीत लिया.
  • परन्तु वह पांडिचेरी से 18 मील दूर दक्षिण में स्थित फोर्ट सेन्ट डेविड नामक स्थान को जीतने में असफल रहा.
  • कर्नाटक का प्रथम युद्ध सेन्ट येमे के युद्ध के लिए भी स्मरणीय है.
  • इस युद्ध का प्रमुख कारण मद्रास पर फ्रांसीसियों का अधिकार होना था.
  • डुप्ले ने कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन को यह वचन दिया था कि वह मद्रास को जीत कर नवाब को सौंप देगा.
  • किन्तु समय आने पर डूप्ले अपने वादे से मुकर गया.
  • इससे नवाब ने रुष्ट होकर अपनी मांग स्वीकार करवाने के लिए एक विशाल सेना भेजी.
  • कैप्टिन पेराडाइज के नेतृत्व में एक छोटी सी फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेना को अडियार नदी के समीप सेन्ट टोमे नामक स्थान पर पराजित कर दिया.
  • एला शापल की संधि (1748) के बाद यूरोप में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हो गया.
  • इसके साथ ही कर्नाटक का प्रथम युद्ध भी समाप्त हो गया तथा मद्रास पुनः अंग्रेजों को प्राप्त हो गया.

कर्नाटक का द्वितीय युद्ध (The Second Carnatic war, 1749-54)

  • 1748 में दक्कन के निज़ाम आसफजाह की मृत्यु हो गई.
  • इसके बाद उसके पुत्र नासिरजंग तथा पौत्र (नासिरजंग का भतीजा) मुजफ्फरजंग के मध्य उत्तराधिकार के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया.
  • कर्नाटक में भी नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साहिब के मध्य में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष हो रहा था.
  • डूप्ले ने राजनीतिक अस्थिरता की इस स्थिति से लाभ उठाने का प्रयत्न किया.
  • उसने मुजफ्फरजंग और कर्नाटक की सूबेदारी का समर्थन किया.
  • अंग्रेजों का समर्थन नासिरजंग और अनवरूद्दीन के साथ था.
  • अगस्त 1749 में डूप्ले के नेतृत्व में मुजफ्फरजंग, चन्दा साहिब और फ्रेंच सेनाओं ने वैल्लौर के समीप अम्बूर नामक स्थान पर अनवरूद्दीन को पराजित कर दिया.
  • 1750 में एक संघर्ष में नासिरजंग भी मारा गया.
  • मुजफ्फरजंग दक्कन का सूबेदार बन गया तथा उसने डूप्ले को कृष्णा नदी के दक्षिणी भाग में मुगल प्रदेशों का गवर्नर नियुक्त कर दिया.
  • 1751 में चन्दा साहिब कर्नाटक के नवाब बन गए.
  • इस प्रकार डूप्ले की योजनाएं सफल सिद्ध हुई किन्तु शीघ्र ही उसके समक्ष गम्भीर चुनौतियां प्रस्तुत होने लगी.
  • कर्नाटक की राजधानी अरकाट को क्लाइव ने मात्र 210 सैनिकों की मदद से अपने कब्जे में ले लिया.
  • कर्नाटक का नवाब चन्दा साहिब 4,000 सैनिकों की मदद से भी अरकाट को पुनः प्राप्त न कर सका.
  • 1752 में स्ट्रिगर लोरेन्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने त्रिचनापली से भी फ्रांसीसियों को खदेड़ दिया.
  • त्रिचनापली की हार से डूप्ले की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया.
  • 1754 में गोडेहू को डूप्ले के स्थान पर भारत में फ्रांसीसी प्रदेशों का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया.
  • अंग्रेजों के प्रत्याशी मुहम्मद अली को कर्नाटक का नवाब बनाया गया.
  • किन्तु हैदराबाद में फ्रांसीसियों की स्थिति अभी भी सुदृढ़ अवस्था में थी.
  • कुल मिलाकर यह कहना होगा कि कर्नाटक के दूसरे युद्ध से फ्रांसीसियों की योजनाओं को कुछ ठेस पहुंची जबकि अंग्रेजों की स्थिति सुदृढ़ हो गई.

कर्नाटक का तृतीय युद्ध (The Third Carnatic War, 1758-63)

  • फ्रांसीसी सरकार ने 1757 में काउन्ट लाली को भारत भेजा.
  • लाली एक वर्ष की लम्बी समुद्री यात्रा के बाद अप्रैल, 1758 में भारत पहुँचा.
  • इस बीच अंग्रेज बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर बंगाल पर अधिकार करने में सफल हो चुके थे.
  • इस सफलता से प्राप्त अपार धन के बल पर अंग्रेज फ्रांसीसियों को दक्कन में पराजित करने में सफल हो गए.
  • 1758 में काउन्ट लाली ने फोर्ट सेन्ट डेविड जीत लिया. इसके बाद उसने मद्रास को घेर लिया.
  • किन्तु शीघ्र ही उसे एक शक्तिशाली नौसेना के आने पर अपना घेरा उठाना पड़ा.
  • इसके बाद लाली ने बुस्सी को हैदराबाद से वापस बुलाने की एक गंभीर भूल की.
  • इससे हैदराबाद में फ्रांसीसियों की स्थिति कमजोर हो गई.
  • 1760 में सर आयर कूट ने वन्दिवाश नामक स्थान पर फ्रांसीसियों को बुरी तरह पराजित किया.
  • बुस्सी को बन्दी बना लिया गया.
  • जनवरी, 1761 में दक्कन में फ्रांसीसियों की पूर्णरूपेण पराजय हो गई.
  • इसके बाद फ्रांसीसी पांडिचेरी वापस लौट गए.
  • शीघ्र ही अंग्रेजों ने पांडिचेरी, माही तथा जिजी के फ्रांसीसी प्रदेशों पर भी कब्जा कर लिया.
  • 1763 में पांडिचेरी फ्रांसीसियों को वापस कर दिया गया.

फ्रांसीसियों की असफलता के कारण (Causes of Fallure of the French)

फ्रांसीसियों की पराजय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

फ्रांसीसियों का यूरोप में उलझना (French Continental Preoccupations)

  • 18वीं शताब्दी के फ्रांसीसी सम्राटों ने यूरोपीय देशों जैसे इटली, बेल्जियम और जर्मनी आदि में अपने साम्राज्य विस्तार के लिए जितना प्रयत्न किया उतना वे भारत तथा उत्तरी अमेरिका के संबंध में न कर पाए.
  • इस कार्य में उनका काफी धन भी व्यय हुआ था तथा कोई विशेष सफलता भी प्राप्त न हो सकी.
  • दूसरी तरफ अंग्रेजों ने यूरोप में केवल शक्ति-संतुलन बनाए रखने तक अपनी भूमिका सीमित रखी.
  • उन्होंने एकाग्रचित से भारत और उत्तरी अमेरिका में अपने साम्राज्य का विस्तार किया.

प्रशासनिक भिन्नताएं (Administrative Differences)

  • फ्रांस की तत्कालीन शासन व्यवस्था या प्रशासनिक प्रणाली को भी फ्रांसीसियों की पराजय के लिए उत्तरदायी माना जाता है.
  • लुई चौदहवें और उसके बाद लूई पन्द्रहवें के शासन काल में फ्रांस की प्रशासनिक व्यवस्था निरन्तर गिरती गई.
  • दूसरी ओर ब्रिटेन ह्लिग (Whigs) दल के अधीन संवैधानिक व्यवस्था की ओर बढ़ रहा था.
  • यह व्यवस्था फ्रांस की राजशाही से उत्तम थी.
  • इसने ब्रिटेन को दिन प्रतिदिन शक्तिशाली बनाया.

कम्पनियों के गठन में भिन्नता (Difference in the Organisation of Companies)

  • फ्रांसीसी कम्पनी एक सरकारी कम्पनी भी.
  • अतः इसके क्रियाकलाप भी सरकारी थे.
  • कम्पनी से जुड़े व्यक्तियों का कम्पनी की समृद्धि से कोई लेना-देना नहीं था.
  • उदासीनता की स्थिति यह थी कि 1725 से 1765 के मध्य कम्पनी के भागीदारों की कोई भी बैठक नहीं हुई.
  • 1721 से 1740 तक कम्पनी उधार के धन से व्यापार करती रही.
  • ऐसी कंपनी डुप्ले की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति न कर सकी.
  • दूसरी ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी एक निजी व्यापारिक कम्पनी थी.
  • ब्रिटेन इस कम्पनी के कल्याण में विशेष रुचि दिखाता था.
  • कम्पनी की वित्तीय स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि लोभवश ब्रिटिश संसद ने 1767 में कम्पनी को आदेश दिया कि वह 4 लाख पौंड वार्षिक ब्रिटिश राजकोष में जमा करवाया करे.

नौसेना की भूमिका (Role of the Navy)

  • कर्नाटक के युद्धों ने यह स्पष्ट किया कि ब्रिटिश नौसेना कितनी शक्तिशाली है.
  • डूप्ले की सफलता काफी हद तक ब्रिटिश नौसेना की निष्क्रियता पर आधारित थी.
  • धीरे-धीरे ब्रिटिश नौसेना सशक्त होती गई जिसके कारण काउन्ट लाली डूप्ले जितनी सफलता प्राप्त नहीं कर सका.

बंगाल में अंग्रेजो की सफलता का प्रभाव (Impact of English Successes in Bengal)

  • अंग्रेजों की सफलता में बंगाल की विजय का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा.
  • बंगाल विजय से अंग्रेजों को अपार धन और जनशक्ति की प्राप्ति हुई.
  • दक्कन बंगाल की तुलना में कम धनी था अतः फ्रांसीसियों को दक्कन की विजय का कोई खास लाभ न हुआ.
  • आगे चलकर लाली के सैनिकों को वेतन देने के लिए भी धन नहीं था.

कम्पनियों का राजनीतिक नेतृत्व (Political Leadership of Companies)

  • फ्रांसीसी कम्पनी का राजनीतिक तथा सैनिक नेतृत्व ब्रिटिश कम्पनी की तुलना में दुर्बल था.
  • डूप्ले, बुस्सी तथा काउन्ट लाली व्यक्तिगत रूप से क्लाइव, लौरेन्स सॉण्डर्स से कम नहीं थे किन्तु वे अपने सैनिकों में क्लाइव के समान जोश न भर सके.
  • डूप्ले एक उत्तम नेता होते हुए भी फ्रांसीसियों की पराजय के लिए उत्तरदायी बना.
  • उसने अपनी महत्वकांक्षाओं के सामने कम्पनी के व्यापारिक तथा वित्तीय पक्षों की अवहेलना की.

The post कर्नाटक में आंग्ल-फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा (Anglo-French Rivalry in the Carnatic) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2OWCBwW
via IFTTT

भारत में यूरोपियों का आगमन (Advent of Europeans in India) आधुनिक भारत

भारत में यूरोपियों का आगमन (Advent of Europeans in India) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

भारत में यूरोपियों का आगमन

पुर्तगाली

  • 1486 ई. में पुर्तगाली नाविक बार्थोलोम्यो ने उत्तमाशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) तथा 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की.

भारत में यूरोपियों का आगमन (Advent of Europeans in India) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा

  • प्रथम पुर्तगीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की यात्रा कर अब्दुल मनीक नामक गुजराती पथ-प्रदर्शक की सहायता से 17 मई, 1498 ई. को कालीकट के बंदरगाह पर पहुंचा,
  • वहां वास्कोडिगामा का स्वागत वहां के राजा जमोरिन (हिन्दू शासक) ने किया .
  • किन्तु कालीकट के समुद्री तटों पर पहले से ही व्यापार कर रहे अरबों ने उसका विरोध किया.
  • वास्कोडिगामा 1499 ई. में पुर्तगाल लौट गया.
  • वास्कोडिगामा जिस माल को (खासकर कालीमिर्च) लेकर वापस लौटा वह पूरी यात्रा की कीमत के 60 गुना दामों पर बिका.
  • सन् 1500 में पेड्रो अल्वारेज कब्राल के भारत आगमन तथा 1502 में वास्कोडिगामा के दुबारा आने से कालीकट, कोचीन तथा कन्नानोर में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना हुई.
  • बाद में इनका स्थान गोवा ने ले लिया.

अल्फांसों दि अल्बुकर्क

  • 1503 ई में अल्फांसों दि अल्बुकर्क सेना का कमाण्डर तथा 1509 में भारत में पुर्तगालियों का गवर्नर बनाया गया.
  • यह भारत में दूसरा पुर्तगाली गवर्नर था,
  • पहला फ्रांसिस्को डि अल्मिडा था जो 1505-9 ई. तक गवर्नर रहा.
  • अल्बुकर्क ने 1510 में बीजापुर के शासक से गोवा छीन लिया.
  • अल्बुकर्क ने पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह करने को प्रोत्साहित किया.
  • अल्बुकर्क मुसलमानों का विरोधी था.
  • 1515 ई. में अल्बुकर्क की मृत्यु हो गई.

पुर्तगालियों ने 1503 ई. में कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की.

  • 1529-38 में निना-दा-कुन्हा गवर्नर बना जिसने राजधानी को 1530 ई. में कोचीन से गोवा स्थानांतरित किया तथा गुजरात के शासक बहादुरशाह से दिव तथा बसीन (1534 ई.) प्राप्त किया.
  • 1542-45 ई. में मार्टिन अलफांसों डि सूजा गवर्नर बना.
  • प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस्कों जेवियर उसके साथ भारत आया था.
  • अलबुकर्क के उत्तराधिकारियों ने पश्चिमी तट पर दमन, सलसेट, चौल तथा बंबई, मद्रास के निकट सैन थोम तथा बंगाल में हुगली में बस्तियां बसाई .

पुर्तगालियों का पतन

  • 16वीं शताब्दी के अंत तक पुर्तगाली शक्ति का हास हुआ तथा धीरे-धीरे ये बस्तियां उनके हाथों से निकलती गई.
  • एक मुगल सामंत कासिम खान द्वारा भगाए जाने के कारण 1631 ई. में उन्हें हुगली से हाथ धोना पड़ा.
  • सन् 1661 में इंग्लैंड के शासन चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाल के राजा की बहन के साथ हुआ तथा चाल्र्स द्वितीय को दहेज के रूप में बंबई प्राप्त हुई .
  • मराठों ने 1739 ई. में सलसेट तथा बसीन पर अधिकार कर लिया.
  • अंततः उनके पास सिर्फ गोवा, दिव तथा दमन बचा रहा जो उनके पास 1961 तक रहा.

पुर्तगालियों के पतन के कारण

  • उनकी धार्मिक असहिष्णुता के कारण भारतीय शासकों तथा जनता में विरोध की भावना उत्पन्न हुई.
  • व्यापार में उनके अनुचित तरीके ज्यादा दिन तक सफल नहीं रह सके.
  • वे अन्य यूरोपीय कंपनियों (सीमित जनसंख्या, पिछड़ी अर्थव्यवस्था आदि जैसी पुर्तगाल की आंतरिक कमजोरियों के कारण) के समक्ष प्रतियोगिता में सफलतापूर्वक नहीं टिक सके.
  • ब्राजील की खोज के कारण उनका ध्यान भारत की ओर से हट गया.
  • पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुगली में तथा शाहजहाँ की अनुमति से बंदेल में कारखाने स्थापित किए.
  • पुर्तगाली मालाबार और कोंकण तट से सर्वाधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे.
  • मालाबार तट से अदरक, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील आदि का निर्यात करते थे.

डच

  • डच संसद के एक आदेश के द्वारा मार्च 1605 ई. में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई जिसे युद्ध करने, संधि करने, किलों पर कब्जा करने तथा किले बनाने का अधिकार दिया गया.
  • डचों ने अपना कारखाना मसूलीपटम (1605 ई.), पुलीकट (1610 ई.), सूरत (1616 ई.), विमिलिपटमम (1641 ई.) कारीकल (1645 ई.), चिनसुरा (1653 ई.), कासिम बाजार, बसागोरे, पटना, बालासोर, नागापटम (सभी 1658 ई.) तथा कोचीन (1663 ई.) में स्थापित किया था.
  • 17वीं शताब्दी में पूर्व के साथ सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक शक्ति के रूप में, जिसमें भारत भी था, उन्होंने पुर्तगालियों को विस्थापित किया.
  • 1690 ई. तक भारत में उनका प्रमुख केंद्र पुलीकट था, जो इसके बाद नागापट्टम हो गया.
  • 17वीं शताब्दी के मध्य में (1654 ई.) अंग्रेज एक महत्वपूर्ण शक्ति बनने लगे.
  • भारत में 60-70 वर्ष तक संघर्ष के बाद 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में डच शक्ति अंग्रेजों के सामने कमजोर पड़ने लगी.
  • यह 1759 ई. में बदेरा के युद्ध में अंग्रेजों के हाथों पराजय के साथ पूरी तरह ध्यस्त हो गई.
  • एक-एक कर सारी इच बस्तियां अंग्रेजों के हाथ लग गई.
  • 1795 ई. में उन्हें अंग्रेजों ने भारत से बाहर निकाल दिया.

अंग्रेज

  • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सूरत में कारखाना लगाने के निर्णय (1608 ई.) के बाद कैप्टन हाकिन्स जहांगीर के दरबार में गए (1609 ई.).
  • प्रारंभ में जहांगीर अनुमति देने के लिए तैयार था, पर बाद में पुर्तगाली दबाव में मुकर गए.
  • परंतु जब स्वाली (सूरत के निकट) में 1612 ई. में कैप्टन बेस्ट ने पुर्तगाली बेड़े को पराजित किया तो जहांगीर ने अंग्रेजों को कारखाना लगाने के लिए फरमान जारी कर दिया (1613 ई.).
  • सर थॉमस रो 1615 ई. में जेम्स I के राजदूत के रूप में जहांगीर के दरबार में आए तथा 1618 ई. के अंत तक यहीं रहे और राज्य के विभिन्न भागों में कारखाने लगाने तथा व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की.
  • फरवरी 1619 ई. में वे भारत से वापस गए.

कारखानों की स्थापना

पश्चिमी तट-
  • अंग्रेजों ने आगरा, अहमदाबाद, बड़ौदा तथा भड़ौच में 1619 ई. तक कारखाने लगाए जो सूरत के नियंत्रण में थे.
  • 1665 ई. में कंपनी ने 10 पाउंड प्रति साल के भाड़े पर चार्ल्स II से बंबई ली.
  • गेराल्ड औंगीयर 1669 से 1677 ई. तक इसके पहले गर्वनर थे.
  • 1687 ई. में पश्चिमी तट पर कंपनी का मुख्यालय सूरत से हटाकर बंबई कर दिया गया.
दक्षिण-पूर्वी तट-
  • मसूलीपटनम (1611 ई.) तथा पुलीकट के निकट अरमागांव में कारखाने लगाए गए.
  • 1639 ई. में फ्रांसिस डे ने चंद्रगिरी के राजा से मद्रास प्राप्त किया तथा एक किलाबंद कारखाना लगाने की अनुमति प्राप्त की जिसे फोर्य सेंट जॉर्ज कहा गया.
  • शीघ्र ही मसूलीपटनम के स्थान पर कोरोमंडल तट पर कंपनी का मुख्यालय मद्रास हो गया
  • 1658 में पूर्वी भारत की अंग्रेज बस्तियां (बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा) फोर्ट सेट जार्ज के अधीन कर दी गई.
पूर्वी भारत-
  • उड़ीसा के हरिहरपुर तथा बालासोर (1633 ई.), हुगली (1651 ई.) तथा उसके बाद पटना, ढाका, कासिमबाजार में (बंगाल तथा बिहार) अनेक कारखाने लगाए गए.
  • 1690 ई. में जॉब चारानोक ने सुतानुती में एक एक कारखाना लगाया तथा सुतानुती, कालीकट तथा गोविंदपुर की जमींदारी अंग्रेजों ने (1696 ई.) में प्राप्त की.
  • ये गांव बाद में कलकत्ता के रूप में उभरे .
  • 1696 ई. में अंग्रेजों ने सुतानुती के कारखाने की घेराबंदी की (बर्दवान के जमींदार सोभा सिंह के विद्रोह का बहाना बनाकर) तथा इस नए रूप में 1700 ई. में फोर्ट विलियम नाम दिया गया.
  • एक प्रधान के साथ एक समिति का गठन किया गया (सर चाल्र्स ऐरे पहले प्रधान थे) तथा बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा इस फोर्ट विलियम की समिति के अधीन कर दिया गया (1700 ई.) .

फ्रांसीसी

  • 1664 ई. में राज्य प्रश्रय द्वारा कोलवर्ट में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की.
  • पहला फ्रांसीसी कारखाना सूरत में 1668 ई. में फ्रांकोइस कारोन के द्वारा बनाया गया.
  • बाद में 1669 ई. में माराकारा ने मसूलीपटनम में कारखाना स्थापित किया था.
  • मुस्लिम गवर्नर (वालिकोंडापुरम) से फ्रांकोइस मार्टिन तथा बेलांगेर डी लेसपीने ने 1673 ई. में एक छोटा-सा गांव लिया.
  • यह गांव आगे चलकर पांडिचेरी बना तथा इसके पहले गवर्नर फ्रांकोइस मार्टिन बने. 1690 ई. में बंगाल के मुगल नायब से चंदेरगांव लिया गया.
  • 1706 से 1720 ई. के बीच भारत में फ्रांसीसियों का पतन हुआ जिससे 1720 ई. में कपनी पुनर्गठित हुई.
  • भारत में फ्रांसीसी शक्ति निनोयार तथा दुमास द्वारा पुनः 1720 से 1742 ई. के बीच गठित हुआ.
  • उन्होंने मालाबार पर माहे, कोरोमंडल परयानाम (1725 में) तथा तामिलनाडु में कराइकल पर कब्जा किया (1739 ई.).
  • 1742 ई. में डुप्ले के फ्रांसीसी गवर्नर के रूप में आगमन के साथ आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष प्रारंभ हुआ, जिसमें वे अंततः पराजित हुए.

डेनिस

  • डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी 1616 ई. में बनी.
  • उन्होंने 1620 ई. में ट्रानकोबेर (तामिलनाडु) तथा 1676 ई. में श्रीरामपुर (बंगाल) में अपनी बस्ती बनाई.
  • श्रीरामपुर उनका भारत में मुख्यालय था.
  • परंतु वे अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाए तथा 1845 ई. में अपनी सारी संपत्ति उन्होंने अंग्रेजों को बेच दी.

प्रमुख यूरोपीय कम्पनी

कंपनी स्थापना वर्ष
पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी (इस्तादो द इंडिया) 1498 ई.
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी (द गवर्नर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेण्ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडिज) 1600 ई.
डच ईस्ट इंडिया कंपनी (वेरींगिडे ओस्त इण्डिशे कंपने) 1602 ई.
डैनिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1616 ई.
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी (कम्पने देस इण्डेस ओरियंतलेस) 1664 ई.
स्वीडिश ईस्ट इंडिया कंपनी  1731 ई.

भारत में यूरोपीय कंपनियों के आगम का क्रम

पुर्तगीज डच अंग्रेज डेनिस फ्रांसीसी
1 2 3 4 5

महत्वपूर्ण बिंदुएं 

  • पुर्तगालियों के आगमन से भारत में तम्बाकू की खेती, जहाज निर्माण (गुजरात और कालीकट) तथा प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना हुई. 
  • उनके आगमन से भारत में गोथिक स्थापत्यकला का आगमन हुआ.
  •  डचों ने 1605 ई. में मसुलीपटनम् में प्रथम डच कारखाना स्थापित किया.
  • डचों द्वारा बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री पीपली में स्थापित की गई, लेकिन शीघ्र ही पीपली की जगह बालासोर में फैक्ट्री की स्थापना हुई.
  • 1653 ई. में डचों ने चिनसुरा में गुस्तावुल नाम के किले का निर्माण कराया.
  • डचों ने पुलीकट में अपने स्वर्ण निर्मित ‘पेंगोडा’ सिक्के का प्रचलन करवाया.
  • अंग्रेजों द्वारा उत्तरी भारत में सर्वप्रथम फैक्ट्री सूरत में 1607 ई. में खोली गई.
  • द. भारत में उनकी पहली फैक्ट्री 1611 ई. में मसुलीपटनम् तथा पेटापुली में स्थापित हुई.
  • डेनिशों ने 1620 ई. में बैंकोबर तथा 1676 में सेरामपुर (बंगाल) में अपनी व्यापारिक कंपनियाँ स्थापित कीं.

The post भारत में यूरोपियों का आगमन (Advent of Europeans in India) आधुनिक भारत appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2DP7e6w
via IFTTT

Monday, November 19, 2018

पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Administration Under the Peshwas)

पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Administration Under the Peshwas) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Under the Peshwas)

  • पेशवाओं के अधीन मराठों की शासन व्यवस्था हिन्दू शासन-शास्त्र, छत्रपति शिवाजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों तथा स्वयं पेशवाओं के द्वारा किए गए सुधारों का सम्मिश्रण थी.
  • संक्षेप में, हम पेशवाओं के अधीन मराठों की शासन व्यवस्था का उल्लेख इस प्रकार कर सकते हैं

पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Administration Under the Peshwas) आधुनिक भारत (MODERN INDIA)

राजा (छत्रपति)

  • मराठा साम्राज्य का मुखिया छत्रपति शिवाजी का वंशज छत्रपति साहू था.
  • वह सतारा का राजा कहलाता था.
  • राज्य में सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां वही करता था.
  • मुख्यतः पेशवा बालाजी विश्वनाथ के शासनकाल से राजा की प्रतिष्ठा एवं शक्तियां कम होने लगी थीं.
  • बाद में साहू के उत्तराधिकारी नाममात्र के राजा रह गए थे.
  • उनके आदेश प्रायः पेशवा रद्द कर देता था.
  • राजा को विशेष मदों के लिए अनुदान मांगना पड़ता था.

पेशवा

  • प्रारंभ में पेशवा छत्रपति शिवाजी की अष्ट प्रधान समिति अर्थात् आठ मंत्रियों का एक समूह का एक सदस्य होता था.
  • बालाजी विश्वनाथ ने अपनी अद्भुत योग्यताओं एवं राजमर्मज्ञता से इस पद को परम शक्तिशाली बनाया.
  • उन्होंने इस पद को अपने वश में वंशानुगत बनाया.
  • उनके पुत्र बाजीराव प्रथम ने इस पद को मराठा प्रशासन में सर्वोच्च बना दिया.

केन्द्रीय प्रशासन

  • पूना में स्थिति पेशवा का सचिवालय मराठी प्रशासन का केन्द्र था.
  • इसे ‘हजूर दफ्तर’ कहते थे.
  • एलबेरीज का संबंध सभी प्रकार के लेखों से था.
  • यह विभाग एक खतौनी भी तैयार करता था.
  • यह खतौनी व्यय का अनुवर्णिक क्रम सारणी (Alphabetically arranged) रूप में वर्णित सारांश होता था.
  • चातले दफ़्तर सीधे फड़नवीस के अधीन होता था.
  • नाना फड़नवीस ने इसकी कार्यप्रणाली में अनेक सुधार किए, किन्तु पेशवा बालाजी बाजीराव के काल में यह दफ्तर अस्त-व्यस्त हो गया.

प्रान्तीय तथा जिला प्रशासन

  • प्रायः सूबे को प्रान्त कहते थे और तरफ या परगने को महल भी कहते थे.
  • खानदेश, गुजरात तथा कर्नाटक जैसे बड़े-बड़े प्रान्त सर सूबेदारों के अधीन होते थे.
  • कर्नाटक का सूबेदार अपने मामलतदार स्वयं नियुक्त करता था.
  • सर सूबेदार के अधीन एक मामलतदार होता था जिस पर मण्डल, जिले, सरकार और सूबा इत्यादि का कार्यभार होता था.
  • मामलतदार तथा कामविसदार दोनों ही जिले में पेशवा के प्रतिनिधि होते थे.
  • यह सभी प्रकार के कार्यों की देख रेख करते थे.
  • जैसे–कृषि एवं उद्योग का विकास, दीवानी तथा फौजदानी न्याय और पुलिस आदि.
  • गांवों में कर निर्धारण मामलतदार स्थानीय पटेलों के परामर्श से करता था.
  • मामलतदार तथा कामविसदार के वेतन और भत्ते अलग-अलग जिलों के महल के अनुसार होते थे.
  • छत्रपति शिवाजी के काल में ये अधिकारी हस्तांतरण होता रहता था, किन्तु पेशवाओं के काल में ये प्रायः वंशानुगत हो गए.
  • इससे अकुशलता तथा भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला.
  • देशमुख तथा देशपाण्डे अन्य जिला अधिकारी थे.
  • ये मामलतदार एक नियंत्रण के रूप में कार्य करते थे.
  • इनकी पुष्टि के बिना कोई लेखा स्वीकार नहीं किया जाता था.
  • एक अन्य अधिकारी दरखदार था.
  • यह एक वंशानुगत तथा मामलतदार से स्वतंत्र अधिकारी था.
  • यह अधिकारी देशमुख तथा देशपाण्डे पर नियंत्रण के रूप में कार्य करता था.
  • प्रत्येक जिले में कारकुन भी होता था.
  • यह विशेष घटनाओं की सूचना सीधे केन्द्र को देता था.
  • महल या तरह का प्रशासन भी जिलों की तरह ही था.
  • महल में मुख्य कार्यकर्ता हवलदार होता था.
  • उसके सहायकों के रूप में महूमदार तथा फड़नवीस की व्यवस्था थी.

स्थानीय अथवा ग्राम प्रशासन

  • मुख्य ग्राम अधिकारी पटेल (पाटील) होता था.
  • यह अधिकारी कर संबंधी, न्यायिक और अन्य प्रशासनिक कार्य करता था.
  • ग्राम तथा पेशवा के अधिकारियों के मध्य एक कड़ी थी.
  • पटेल (पाटील) का पद वंशानुगत था.
  • पटेल (पाटील) पद का क्रय-विक्रय भी किया जा सकता था.
  • पटेल (पाटील) पद का आंशिक हस्तांतरण भी हो सकता था.
  • इस स्थिति में एक ग्राम में एक से अधिक पटेल भी हो सकते थे.
  • प्रत्येक को सरकार से वेतन नहीं मिलता था.
  • वह एकत्रित कर का एक छोटा-सा भाग अपने लिए रख लेता था.
  • पटेल के लिए अनिवार्य था कि वह भूमि कर राज्य को दे .
  • भूमि कर न देने की अवस्था में उसे जेल में भी डाल दिया जाता था.
  • पटेल (पाटील) के नीचे कुलकर्णी होता था.
  • कुलकर्णी अधिकारी ग्राम की भूमि का लेखा रखता था.
  • कुलकर्णी के नीचे चौगुले होता था.
  • यह (चौगुले ) अधिकारी पटेल (पाटील)और कुलकर्णी की सहायता करता था.
  • इनके अलावा ग्रामों में 12 बलूते या शिल्पी भी होते थे.
  • ये पदाधिकारी ग्रामवासियों की सेवा करते थे और बदले में अनाज प्राप्त करते थे.
  • कुछ ग्रामों में वलूटों के अलावा 12 अलूटे भी होते थे.
  • ये पदाधिकारी भी ग्राम वासियों के सेवक थे.

नगर प्रशासन

  • मराठों का प्रशासन मौर्यो के नगर प्रशासन से काफी मिलता-जुलता था.
  • कोतवाल नगर का मुख्य शासक होता था.
  • उसका प्रमुख कार्य महत्वपूर्ण झगड़ों को निपटाना, मूल्यों को नियमित करना तथा सरकार को अपने कार्यों का मासिक वितरण भेजना होता था.
  • कोतवाल नगर का मुख्य दण्डाधिकारी तथा पुलिस का मुखिया होता था.

न्याय प्रणाली

  • मराठा न्याय व्यवस्था और कानून प्राचीन संस्कृत स्मृति ग्रंथों और मनु स्मृति आदि पर आधारित थे.
  • न्याय के लिए ग्राम में पटेल, जिले में मामलतदार सूबे में सरसूबेदार और अन्त में सतारा का राजा होता था.
  • नगरों में न्यायाधीश होते थे.
  • ये न्यायाधीश शास्त्रों में पारंगत होते थे तथा सिर्फ न्याय का ही कार्य करते थे.
  • अतएव मराठे न्यायपालिका तथा कार्यपालिका के पथक्करण से अनभिज्ञ थे.
  • इनके समय में मुकदमों की कार्यविधि निश्चित नहीं थी.
  • कानुन भी संहिताबद्ध न था.
  • दीवानी मुकदमों का फैसला पंचायतें करती थीं.
  • पंचायतों के निर्णय के विरुद्ध मामलतदार के समक्ष अपील की जा सकती थी तथा मामलतदार के बाद पेशवा के समक्ष अपील की जा सकती थी.
  • प्रायः दंड स्वरूप कोड़े लगाना, जेल भेजना या सम्पत्ति जब्त कर लेने की कार्यवाहियां होती थी.
  • मराठा पुलिस व्यवस्था को प्रायः संतोषजनक कहा गया है.

कर व्यवस्था

  • भूमिकर आय का मुख्य साधन था.
  • शिवाजी खेत की वास्तविक उपज का भाग लेना पसंद करते थे, जबकि पेशवाओं के काल में यह लम्बी अवधि के लिए निश्चित कर दिया जाता था.
  • इसका भूमि की वास्तविक स्थिति से कोई लेना-देना नहीं था.
  • बालाजी बाजीराव के काल में कर वसूली का अधिकार नीलामी पर दिया जाने लगा.

राज्य की आय के अन्य स्त्रोत 

  1. चौथ (25 प्रतिशत) तथा
  2. सरदेशमुख (10 प्रतिशत)
  • राज्य की आय के अन्य स्त्रोत थे.
  • ये कर प्रदेशों को देने पड़ते थे जो मराठों के अधिकार क्षेत्र में आ जाते थे.

सैन्य व्यवस्था

  • मराठा सेना का संगठन मुगल व्यवस्था पर आधारित था.
  • मराठा सैन्य विनियम दक्षिण के मुस्लिम राज्यों के विनियमों पर आधारित थे.
  • सेना में पैदल सिपाहियों की अपेक्षा घुड़सवारों की संख्या अधिक थी.
  • शिवाजी सामन्तशाही सेना को पसंद नहीं करते थे तथा सैनिकों को सीधे वेतन देते थे, किन्तु पेशवाओं ने सामंतवादी पद्धति को अपनाया और साम्राज्य का एक बड़ा भाग जागीरों में बांट दिया.
  • अधिकांशतः पेशवा अपनी तोपों और गोलों की आवश्यकता की पूर्ति अंग्रेजों तथा पुर्तगालियों से करते थे.
  • पेशवाओं ने एक नौसेना का भी गठन किया.
  • इस नौसेना का प्रयोग उन्होंने मुख्यतः समुद्री डाकुओं को रोकने, आने-जाने वाले जहाजों से ‘जकात’ प्राप्त करने तथा मराठा बन्दरगाहों की रक्षा करने के लिए किया .

The post पेशवाओं के अधीन मराठा प्रशासन (Maratha Administration Under the Peshwas) appeared first on SRweb.



from SRweb https://ift.tt/2FvDqx8
via IFTTT