स्वतंत्रता की प्राप्ति और विभाजन (Achievement of Independence and Partition) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)
युद्धोन्तर काल का संघर्ष (Post War Struggle)
- अप्रैल, 1945 में यूरोप में युद्ध समाप्त होने के साथ ही भारत के स्वाधीनता संघर्ष ने एक नए चरण में प्रवेश किया.
- 1942 के विद्रोह तथा आजाद हिंद फौज की मिसाल ने भारतीय जनता की बहादुरी और दृढ़ता को स्पष्ट कर दिया था.
- राष्ट्रीय नेताओं के जेल से रिहा होने के बाद लोगों में नये उत्साह का संचार हुआ और वे स्वतंत्रता के लिए अन्तिम संघर्ष हेतु प्रतिबद्ध हो गये.
आजाद हिंद फौज पर मुकदमा (INA Trial)
- आजाद हिंद फौज के अधिकारियों और सैनिकों पर ब्रिटिश सरकार ने मुकदमें शुरू कर दिए, जिससे बहुत बड़ा आंदोलन शुरू हो गया.
- इस मुकदमें के तीन प्रमुख अभियुक्त, (जो कि पूर्व में ब्रिटिश भारतीय आर्मी के अधिकारी भी रह चुके थे) शाह नवाज खान, गुरुदयाल सिंह ढिल्लन और प्रेम सहगल पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया.
- उन्होंने पहले ब्रिटिश क्राउन के प्रति राज-भक्ति की शपथ खाई थी परन्तु आज ये देश-भक्त आतंकवादी बन चुके थे.
- साथ ही देश की जनता ने इनका राष्ट्रीय हीरो के रूप में भव्य स्वागत किया.
- इनके पक्ष में सर तेज बहादुर सप्रू , जवाहरलाल नेहरु, भोला भाई देसाई, के. एन. काटजू ने दलीलें दी, लेकिन फिर भी इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई.
- इस निर्णय से देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई. अन्त में लार्ड वेवल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी फांसी की सजा को माफ कर दिया.
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में आजाद हिंद फौज के इन तीनों अधिकारियों की सुरक्षा से लोगों में नए उत्साह का संचार हुआ.
- यद्यपि आजाद हिंद फौज के अधिकारी दोषी पाये गए थे परन्तु उनके पक्ष में दी गई दलीलों के आधार पर उनकी सजा कम कर दी गई.
ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण में परिवर्तन (Changed Attitude of British Government)
- इसी बीच विभिन्न कारणों से ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण में भी भारत के प्रति परिवर्तन हो चुका था.
- इनमें पहला कारण था द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में दो नई महा-शक्तियाँ अमेरिका और सोवियत संघ उभर कर सामने आयी थी.
- दोनों ही भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में थे.
- दूसरा कारण , इंग्लैण्ड में कंजरवेटिव पार्टी के स्थान पर लेबर पार्टी ने सरकार का गठन किया.
- जिसके अधिकांश नेता भारतीय स्वतंत्रता के पक्षधर थे.
- तीसरा कारण , यद्यपि, ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी रहा था, परन्तु लगातार छः साल तक युद्ध में खून बहाने के बाद उसके सैनिक भारत में स्वतंत्रता संघर्ष को रोकने में अब और खून बहाना नहीं चाहते थे.
- चतुर्थ कारण , ब्रिटिश भारतीय सरकार और लम्बे समय तक भारतीय लोगों के प्रशासनिक कार्यों में विश्वास नहीं कर सकती थी तथा राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने से भारतीय सैनिकों को भी नहीं रोक सकती थी.
- अन्तिम कारण , उपरोक्त सभी कारणों के अतिरिक्त देशवासी अब और ब्रिटिश शासकों को शासन करते नहीं देखना चाहते थे.
- 1945-46 के काल में सम्पूर्ण देश में बहुत बड़ी मात्रा में हड़तालें, तनाव, प्रदर्शन, व्याकुलता का माहौल व्याप्त था.
- पूरे देश में श्रमिक वर्ग में अशान्ति व्याप्त थी.
- उद्योगों में हड़ताले लगातार जारी थी.
- जुलाई 1946 में डाक और तार विभाग ने अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल शुरू कर दी.
- अगस्त, 1946 में दक्षिणी भारत में रेलवे कर्मचारी हड़ताल पर चले गए.
- इस समय अधिकतर किसान आंदोलनों ने उग्रवाद का रूप ले लिया था.
- हैदराबाद, मालाबार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में भूमि से संबंधित ऊंचे करों व बहुत से अन्य कारणों से आंदोलन जोरों पर था.
सी. आर. फार्मूला (C. R. Formula)
- सरकार को यह बात स्पष्ट हो गई थी कि बिना मुस्लिम लीग की सहमति के भारत की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता.
- राजगोपालाचारी जो कि कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग में समझौते के पूर्ण पक्षधर थे, ने इन दोनों के बीच समझौते के लिए एक योजना प्रस्तुत की.
- गांधीजी ने जिन्ना को मनाने के अनेक प्रयत्न किए और बम्बई में 1944 में 9 से 13 सितम्बर तक दोनों के बीच लम्बी बातचीत हुई.
- सी. आर. फार्मूले के अनुसार गांधीजी ने पाकिस्तान की मांग को स्वीकार कर लिया.
- इस फार्मूले के अनुसार, मुस्लिम लीग भारतीय स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे और अस्थायी सरकार के गठन में कांग्रेस के साथ सहयोग करे.
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर भारत के उत्तर-पश्चिम व पूर्वी भागों में स्थित मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण करने के लिए एक कमीशन नियुक्त किया जाए, फिर वयस्क मताधिकार प्रणाली के आधार पर इन क्षेत्रों के निवासियों की मतगणना करके भारत से उनके सम्बन्ध–विच्छेद के प्रश्न का निर्णय किया जाय.
- मतगणना से पूर्व सभी राजनीतिक दलों को अपने दृष्टिकोण के प्रचार की पूर्ण स्वतंत्रता हो.
- देश विभाजन की स्थिति में रक्षा, यातायात या अन्य अनिवार्य विषयों पर आपसी समझौते की व्यवस्था की जाए.
- जिन्ना ने इस फार्मूले को अस्वीकार कर दिया तथा अपनी बिना किसी समझौते के पाकिस्तान की मांग पर अटल रहे.
वेवेल योजना एवं शिमला सम्मेलन (Wavell Plan and Simla Conference)
- लार्ड वेवेल जो कि भारत को विभाजित करने का विरोधी था ने भी कांग्रेस और लीग के बीच समझौता कराने की चेष्टा की.
- उसने यहां तक कहा था कि “तुम भूगोल नहीं बदल सकते.”
- वेवेल मार्च, 1945 ई. में अंग्रेजी सरकार से सलाह करने इंग्लैण्ड गया और जून में लौट आया.
- तभी भारत मंत्री ऐमरी ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा कि 1942 ई. को जो प्रस्ताव था वह अब भी ज्यों का त्यों है.
- अपने प्रस्तावों को कार्यरूप में परिवर्तित करने के लिए उसने शिमला में भारत के नेताओं का एक सम्मेलन बुलाया.
- इसमें जो सुझाव रखे गये थे उनका नाम वेवेल योजना के नाम से जाना गया.
- वेवेल योजना के अनुसार –
- केन्द्र में ऐसी कार्यपालिका बनाना जिसमें अधिकांश व्यक्ति भारतीय रुचि के हों और हिन्दू मुसलमान बराबर संख्या में हों.
- वायसराय और प्रधान सेनापति को छोड़ कर उसके शेष सदस्य भारतीय हों.
- एक भारतीय विदेशी मामलों की अध्यक्षता करे.
- भारत में एक ब्रिटिश हाई कमिश्नर आकर रहे जो ब्रिटेन के व्यापारिक लाभों का ध्यान रख सके.
- 22 जून, 1945 को शिमला में हुए सर्वदलीय सम्मेलन में कुल 22, प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
- इनमें प्रमुख नेता थे- जवाहरलाल नेहरु, इस्माइल खां, जिन्ना, सरदार पटेल, अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खां तथा तारा सिंह.
- कांग्रेस का कहना था कि वह एक ऐसी राजनीतिक संस्था है जो सब व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है.
- अतः वह अपनी ओर से कार्यपालिका के लिए दो मुसलमान सदस्य देगी.
- जिन्ना का कहना था कि सब मुस्लिम सदस्य केवल लीग के ही प्रतिनिधि होने चाहिए.
- इसी बात पर समझौता न हो सका और सम्मेलन असफल हो गया.
चुनाव, 1945-46 (The Election, 1945-46)
- 1945-46 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने अधिकतर गैर-मुस्लिम प्रान्तों में सभी सीटें जीत ली तथा सीमा प्रान्त में अधिकांश मुस्लिम भी कांग्रेसी चुने गये.
- अन्य प्रान्तों में अधिकांश लोग मुस्लिम लीग के चुने गये.
- बंगाल और सिंध में लीग के मंत्रिमंडल बने पंजाब में मिश्रित और अन्य सभी प्रान्तों में कांग्रेसी मंत्रिमंडल बने.
- जहां देश में राजनीतिक माहौल तेजी के साथ बदल रहा था वहीं देश के अधिकतर उद्योगों में हड़ताल और निराशा का वातावरण व्याप्त था.
- ग्रामीण जनता भूमि तथा अत्यधिक ऊंचे करों को कम करने की मांग कर रही थी.
- पूरा देश असंतोष तथा डर के माहौल से ओत-प्रोत था.
- पिछले लम्बे समय में मुख्य रूप से 1857, 1919, 1932 तथा 1942 में अंग्रेजों ने निहत्थे भारतीयों पर अनेक अत्याचार किए थे.
- परन्तु अब आर्थिक रूप से तंग और 6 साल तक लगातार युद्ध में फंसे रहने के कारण ब्रिटेन की भारत में और शासन करने में रुचि कम हो गई थी.
- 1942 के आंदोलन तथा आजाद हिंद फौज ने शासकों को यह दिखा दिया था कि वे किसी भी तरीके से ब्रिटिश सरकार की राजभक्ति पर निर्भर नहीं हैं.
कैबिनेट मिशन, 1946 (Cabinet Mission, 1946)
- उस समय ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने यह घोषणा की कि वह भारत की वास्तविक अवस्था जानने के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेज रहा है.
- मार्च, 1946 ई. में एक केबिनेट मिशन भारत पहुंचा. जिसमें लार्ड पैथिक लारेन्स, सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. वी. अलेक्जेण्डर सम्मिलित थे.
- मिशन ने भारतीय नेताओं से बातचीत कर मई महीने में कांग्रेस व लीग के सदस्यों का एक सम्मेलन बुलाया.
- परन्तु इसमें भी लीग व कांग्रेस के बीच कोई समझौता नहीं हो सका.
- अतः 16 मई, 1946 ई. को उन्होंने अपना निश्चय घोषित कर दिया.
- इसकी मुख्य बातें थी-
- एक भारत संघ होगा, जिसमें ब्रिटिश भारत और रियासतें सम्मिलित होंगी.
- वह विदेशी कार्य, रक्षा तथा संचार का उत्तरदायित्व लेगा और उसके लिए धन भी एकत्रित करेगा.
- प्रांतों को पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी और संघ के विषयों को छोड़कर अवशेष शक्ति प्रान्तों तथा रियासतों के पास रहेगी.
- प्रान्त समूह बनाने के लिए स्वतंत्र होंगे तथा प्रत्येक समूह अपने सार्वलौकिक विषय स्वयं निश्चित करेगा.
- संघ और समूहों के संविधान में एक ऐसी धारा होगी जिससे कोई भी प्रान्त विधानमण्डल के बहुमत द्वारा निर्बन्धों पर पुनर्विचार करवा सकेगा, जोकि प्रत्येक 10 वर्ष बाद होगा.
- उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य एक ऐसी संस्था का निर्माण करना है.
- जिससे भारतीयों द्वारा ही उनका संविधान निश्चित हो सके.
- कैबिनेट ने पाकिस्तान की मांग को रद्द कर दिया.
- उनका विश्वास था कि इससे साम्प्रदायिक झगड़े समाप्त नहीं हो सकते.
संविधान सभा और अन्तरिम सरकार (Constitutional Assembly and Interim Government)
- प्रान्तीय विधानसभाओं द्वारा चुने गये सदस्यों की एक संविधान सभा बना दी गई.
- कैबिनेट मिशन ने अन्तरिम सरकार बनाने का भी आदेश दिया.
- वायसराय ने अपनी कार्यपालिका परिषद् को विसर्जित करके 14 सदस्यों की अन्तरिम सरकार बनाने को कहा.
- लीग ने पहले इसमें सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया, परन्तु बाद में वह सम्मिलित हो गयी.
- संविधान सभा में कांग्रेस का भारी बहुमत हो गया.
- परिणामस्वरूप जिन्ना के नेतृत्व में लीग ने पाकिस्तान की मांग पुनः जोरों से शुरू कर दी.
- फलस्वरूप 16 अगस्त, 1946 को कलकत्ता में साम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये और अनेक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा.
- धीरे-धीरे साम्प्रदायिक दंगे देश के अन्य भागों में भी शुरू हो अये.
- लीग ने पाकिस्तान प्राप्ति के पूर्व संविधान सभा में भाग लेने से इन्कार कर दिया.
- इस तरह लीग के लगातार विरोध से देश में अनिश्चितता व अराजकता की स्थिति व्याप्त रही.
- संविधान सभा ने 9 सितम्बर, 1946 ई. को कार्य आरम्भ किया.
स्वतंत्रता और विभाजन (Independence and Partition)
- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, 1947 को हाउस ऑफ कामन्स में घोषणा की कि उनकी सरकार की यह निश्चित इच्छा है कि जून, 1948 ई. तक भारत को स्वायत्त शासन अवश्य दे देंगे.
- इस ऐतिहासिक निर्णय से पूरे देश में हर्ष और उल्लास का नया वातावरण पैदा हो गया.
- इसी समय लार्ड वेवेल को वापस बुला लिया गया तथा लार्ड. माउण्टबेटन मार्च, 1947 में भारत का अन्तिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुआ.
- उसने आते ही परिस्थिति का निरीक्षण किया तथा कांग्रेस व लीग से लम्बी-लम्बी बातचीतें की.
- अन्त में देश के विभाजन का निर्णय लिया गया.
- राष्ट्रवादी नेताओं ने भी मजबूरन भारत विभाजन का निर्णय स्वीकार कर लिया.
- क्योंकि पिछले 70 वर्षों के दौरान हिंदू और मुस्लिम साम्प्रदायिकता का विकास इस प्रकार हुआ था कि विभाजन न होता तो शायद साम्प्रदायिकता की बाढ़ में हजारों-लाखों लोगों को बहना पड़ता.
- सबसे बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात यह थी कि साम्प्रदायिक दंगे देश के किसी एक वर्ग तक सीमित न होकर सम्पूर्ण देश में हो रहे थे.
- जिनमें हिंदू व मुसलमान दोनों की सक्रिय भागेदारी थी तथा तत्कानीन ब्रिटिश सरकार ने भी दंगों को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया था.
- 3 जून, 1947 को भारत और पाकिस्तान दोनों के स्वाधीन होने की घोषणा की गई.
- रजवाड़ों को इस बात की छूट दी गई कि वे जिस राज्य में चाहें सम्मिलित हो सकते हैं.
- अत: अधिकतर रजवाड़े भारतीय राज्य में सम्मिलित हो गए.
- 15 अगस्त, 1947 को भारत ने हर्षोल्लास के साथ अपना पहला स्वाधीनता-दिवस मनाया.
- यह हर्षोल्लास जिसे असीम और अबाध होना चाहिए था दु:ख और दर्द से भरा हुआ था.
- सदियों के बाद प्राप्त हुए स्वतंत्रता के इस क्षण में साम्प्रदायिकता का दानव जहां नर संहार में व्यस्त था वहीं अपनी जन्मभूमि से नाता तोड़कर लाखों शरणार्थी हर रोज इन दोनों राज्यों में पहुंच रहे थे.
- गांधीजी जिन्होंने भारतीय जनता को अहिंसा-सत्य-प्रेम-साहस तथा शूरवीरता का संदेश दिया था और जो भारतीय संस्कृति के उत्कृष्टतम तत्वों के प्रतीक थे खुशी के इन दिनों में भी बंगाल के गांवों में चक्कर लगा रहे थे तथा साम्प्रदायिक दंगों से पीड़ित लोगों को सहायता पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे.
- 30 जनवरी, 1948 में एक धर्मान्ध की गोली से गांधीजी की जीवनलीला हमेशा के लिए समाप्त हो गई.
- शीघ्र ही नवीन भारत का संविधान बनकर तैयार हो गया और 26 जनवरी, 1950 से इस नवीन संविधान के अनुसार देश का शासन संचालन होने लगा.
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