भारत छोड़ो आंदोलन, 1942 (Quit India Movement, 1942) भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (Indian National Movement)
- युद्ध की स्थिति से उत्पन्न संकट तथा क्रिप्स मिशन की असफलता आदि विभिन्न कारणों से जनता रुष्ट हो गई.
- अप्रैल-अगस्त 1942 के काल में तनाव लगातार बढ़ता गया.
- अत: कांग्रेस ने अब फैसला किया कि अंग्रेजों से भारतीय स्वाधीनता की मांग मनवाने के लिए सक्रिय उपाय किए जाएं, क्योंकि युद्धकाल में भारत स्वतंत्र हुए बिना अपनी रक्षा नहीं कर सकता.
- अत: 8 अगस्त, 1942 को बम्बई में कांग्रेस ने “भारत छोड़ों” प्रस्ताव स्वीकार किया तथा इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए गांधीजी के नेतृत्व में एक अहिंसक जनसंघर्ष चलाने का फैसला किया गया.
- कांग्रेस तेजी से आंदोलन चला सके, इसके पहले ही 9 अगस्त को तड़के ही गांधीजी समेत तमाम कांग्रेसी नेता बन्दी बना लिए गए तथा कांग्रेस को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया.
- इन गिरफ्तारियों ने देश को सकते में डाल दिया और हर जगह विरोध में एक स्वतः स्फूर्त आंदोलन उठ खड़ा हुआ.
- पूरे देश में कारखानों, स्कूलों और कालेजों में हड़तालें और कामबन्दी हुई तथा जगह-जगह प्रदर्शन हुए, जिन पर लाठी चार्ज तथा गोली-बारी भी हुई.
- बार-बार गोलीबारी और निर्दय दमन से क्रुद्ध होकर जनता ने अनेक जगहों पर हिंसक कार्यवाहियां भी की.
- जनता ने रेल की पटरियां उखाड़ फेंकी तार काट दिए तथा सरकारी इमारतें नष्ट कर दीं.
- सरकार ने इसका दमन करने के लिए सेना का प्रयोग किया.
- लाखों आंदोलनकारी जेल में डाल दिए गए और अनेकों गोलीबारी के शिकार हुए.
- 1942 के अन्त तक भारत छोड़ो आंदोलन हल्का पड़ गया.
- 1945 में युद्ध की समाप्ति तक देश में राजनीतिक गतिविधियां लगभग ठप रहीं.
- राष्ट्रीय आंदोलन (भारत छोड़ो आंदोलन) के सर्वमान्य नेता जेलों में बन्द थे और कोई नया नेता उनकी जगह नहीं ले सका था.
- 1943 में बंगाल में आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा.
- कुछ ही महीनों में 30 लाख से अधिक लोग भूख से मर गए.
- सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया न होने के कारण लोगों में सरकार के प्रति जबरदस्त रोष व्याप्त हो गया था.
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