संविधान का निर्माण– संविधान सभा (The Making of the Constitution- Constituent Assembly)
- मुख्यतः 1935 के भारत शासन अधिनियम के बाद से भारत में इस मांग ने जोर पकड़ा कि भारतवासी बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपना संविधान बनाना चाहते हैं.
- 1938 में पं. नेहरू ने संविधान सभा की मांग को और अधिक स्पष्ट शब्दों में अभिव्यक्त किया और द्वितीय महायुद्ध की विषम परिस्थितियों के कारण ब्रिटिश सरकार को यह स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा कि भारत की संवैधानिक समस्या का हल निकालना अति आवश्यक है.
- फलतः मार्च, 1942 को सर स्टेफर्ड क्रिप्स को ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों के साथ भारत भेजा गया.
- मुख्य प्रस्ताव इस प्रकार थे :-
- भारतीय संविधान की रचना भारत के लोगों द्वारा निर्वाचित संविधान सभा करेगा.
- संविधान भारत के डोमिनियन स्तर (Dominion Status) और ब्रिटिश राष्ट्रकुल में (British Commonwealth) बराबर की भागीदारी देगा.
- सभी प्रांतों और देशी रियासतों से मिलकर एक संघ बनेगा किंतु यदि कोई प्रांत या देशी रियासत संघ में सम्मिलित न होना चाहे तो वह अपनी पृथक सांविधानिक स्थिति बनाए रखने के लिए स्वतंत्र होगी.
- किंतु कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल इन प्रस्तावों से सहमत न हो सके.
- मुस्लिम लीग ने स्वतंत्र पाकिस्तान और पृथक संविधान सभा की मांग को लेकर इन प्रस्तावों का विरोध किया.
कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission)
- 16 मई, 1946 को ब्रिटिश मंत्रिमंडलीय प्रतिनिधिमण्डल ने पृथक संविधान सभा और पृथक मुस्लिम राज्य के प्रस्तावों को स्पष्टतः नामंज़ूर करते हुए भारत को संघ बनाने और मुस्लिम लीग के दावे के पीछे जो सिद्धांत था उसे अधिकांशतः स्वीकार करते हुए निम्न प्रस्तावों की घोषणा की :-
- भारत एक संघ होगा जो ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों से मिलकर बनेगा. जिसके विदेश कार्य, प्रतिरक्षा और सूचना आदि राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर अधिकारिता होगी, शेष शक्तियाँ प्रांतों में निहित होगी.
- संघ के एक कार्यपालिका और एक विधान-मंडल होगा जो कान्तो और देशी रियासतों के प्रतिनिधियों से मिलकर बनेगा. किंतु विधानमंडल में जब कोई प्रमुख साम्प्रदायिक प्रश्न उठेगा तो उसका विनिश्चय दोनों प्रमुख समुदायों के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा .
- भारत पर ब्रिटिश सरकार की प्रभुत्व-संपन्नता को समाप्त कर देना चाहिए.
- देशी रियासतों को इस बात की स्वतंत्रता होनी चाहिए, कि वे संघ में अपने आपको सम्मिलित करें या नहीं.
- भारत के शासन को संचालित करने के लिए एक अंतरिम सरकार होगी.
- भारत की एक संविधान सभा होगी जो भारत के संविधान का निर्माण करेगी.
- संविधान सभा के गठन के संबंध में यह उप-बंध किया गया कि — (a) सभा में प्रांतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान दिए जाएगें और दस लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि होगा. (b) प्रांतों को दिए गए स्थानों को सम्बन्धित प्रान्त की प्रमुख जातियों के अनुपात में बांटा जाएगा. (c) देशी रियासतों के प्रतिनिधि भी संविधान सभा में शामिल होंगे और दस लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि होगा .
अंतरिम सरकार (Interim Government)
- कैबिनेट मिशन योजना को क्रियान्वित करते हुए लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस के कालीन अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन हेतु निमंत्रण दिया.
- श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सितम्बर, 1946 को पदभार ग्रहण किया.
- यह अंतरिम सरकार भारत विभाजन अर्थात अगस्त, 1947 तक पदारूढ़ रही .
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता करवाने की इस ब्रिटिश योजना का भी कोई सकारात्मक परिणाम न निकला और अन्ततः 9 दिसम्बर, 1946 को पहले-पहल ब्रिटिश सरकार ने यह स्वीकार किया कि दो राज्य और दो संविधान सभाएँ बन सकती है.
- परिणामतः इसी दिन संविधान सभा की पहली बैठक हुई जिसमें मुस्लिम लीग ने भाग नहीं लिया .
- अब लॉर्ड वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का गवर्नर-जनरल बनाकर भेजा गया ताकि विभाजन की औपचारिकताएं पूरी की जा सकें.
- लॉर्ड माउंटबेटन ने कांग्रेस और लीग में यह स्पष्ट समझौता करवाया कि पंजाब और बंगाल के समस्या वाले प्रांतों का विभाजन करवाया जाएगा और इन प्रांतों में हिन्दू और मुसलमान बहुमत वाले खंड बनाए जाएंगे.
- इन दोनों प्रांतों के विभाजन का वास्तविक निर्णय इन प्रांतों की विधान सभाओं पर छोड़ दिया गया.
- यह “माउंटबेटन योजना” (Mountbatten plan) थी जिसे 3 जून, 1947 को ब्रिटिश सरकार ने अपनी औपचारिक स्वीकृति प्रदान की.
- पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और सिलहट में प्रस्तावित जनमतसंग्रह का परिणाम भी पाकिस्तान के पक्ष में गया.
- 26 जुलाई, 1947 को गवर्नर-जनरल ने पाकिस्तान के लिए पृथक संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की.
- अंततः 1947 के भारत स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत डोमिनियन को सिंध, बलूचिस्तान, पश्चिमी पंजाब, पूर्वी बंगाल, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और असम के सिलहट जिले को छोड़कर भारत का शेष राज्य-क्षेत्र मिल गया .
भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly of india)
- अविभाजित भारत के लिए निर्वाचित की गई और 9 दिसम्बर, 1946 को पहली बार समवेत (First sitting) हुई संविधान सभा ही भारत डोमिनियन की प्रभुत्वसंपन्न संविधान सभा के रूप में 14 अगस्त 1947 को पुनः समवेत (Reassemble) हुई.
संविधान सभा का सभापति (The Chairman of Constituent Assembly)
- 7 दिसम्बर, 1946 को प्रथम बार समवेत हुई संविधान सभा ने श्री सच्चिदानंद सिन्हा को अपना अस्थायी सभापति निर्वाचित किया था लेकिन सभा के सदस्यों द्वारा 11 दिसम्बर, 1946 को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा के स्थायी सभापति के रूप में विधिवत् निर्वाचित किया गया .
- यह तथ्य ध्यान रखने योग्य है कि यह संविधान सभा कैबिनेट प्रतिनिधिमण्डल के सुझावानुसार प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित हुई थी.
- इस निर्वाचन में :-
- प्रत्येक प्रांत और प्रत्येक देशी रियासत या रियासतों के समूह को अपनी जनसंख्या के अनुपात से स्थानों का आवंटन किया गया था. स्थूल रूप से 10 लाख के लिए एक स्थान का अनुपात था. अतः प्रांतों को 292 और रियासतों को 93 स्थान दिये गए.
- प्रत्येक प्रांत के स्थानों को तीन प्रमुख समुदायों (मुस्लिम, सिख, साधारण) में जनसंख्या के अनुपात में बाँटा गया .
- प्रान्तीय विधान सभा के सदस्यों ने “एकल संक्रमणीय मत से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार” ( Proportional representation with single transferable vote) अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन किया.
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चयन की पद्धति परामर्श से तय की जानी थी.
- विभाजन के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी भू-भाग के प्रतिनिधि, सभा के सदस्य नहीं रहे.
- पश्चिमी बंगाल और पूर्वी पंजाब में पुनः चुनाव करवाए गए.
- इस प्रकार अंततः 26 नवम्बर 1949 को 284 सदस्य वास्तव में उपस्थित थे.
- जिन्होंने अंतिम रूप से पारित संविधान पर अपने हस्ताक्षर किये .
- प्रस्तावित संविधान के प्रमुख सिद्धांतों की रूपरेखा सभा की विभिन्न समितियों ने तैयार की जिनमें सबसे महत्वपूर्ण समिति प्रारूप समिति (Drafting Committee) की स्थापना 29 अगस्त, 1947 को हुई. इसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर थे.
- 26 नवंबर, 1949 को संविधान पर सभा के सभापति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हस्ताक्षर हुए और उसे पारित घोषित किया गया .
- नागरिकता, निर्वाचन और अन्तरिम संसद से सम्बन्धित उपबन्धों को तथा अस्थायी और संक्रमणकारी उपबन्धों को उक्त दिनांक से ही प्रभावी घोषित किया गया.
- शेष संविधान, 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ.
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